रोमियों 1 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

रोमियों 1:1-32

1यह पत्र पौलॉस की ओर से है, जो मसीह येशु का दास है, जिसका आगमन एक प्रेरित के रूप में हुआ तथा जो परमेश्वर के उस ईश्वरीय सुसमाचार के लिए अलग किया गया है, 2जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने पहले ही अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा पवित्र अभिलेखों में की थी, 3जो उनके पुत्र के संबंध में थी, जो शारीरिक दृष्टि से दावीद के वंशज थे, 4जिन्हें, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से मरे हुओं में से जिलाए जाने के कारण, परमेश्वर का पुत्र ठहराया गया; वही अपना प्रभु येशु मसीह. 5उन्हीं के द्वारा हमने कृपा तथा प्रेरिताई प्राप्‍त की है कि हम उन्हीं के लिए सभी गैर-यहूदियों में विश्वास करके आज्ञाकारिता प्रभावी करें, 6जिनमें से तुम भी मसीह येशु के होने के लिए बुलाए गए हो.

7यह पत्र रोम नगर में उन सभी के नाम है,

जो परमेश्वर के प्रिय हैं, जिनका बुलावा पवित्र होने के लिए किया गया है. परमेश्वर हमारे पिता तथा प्रभु येशु मसीह की ओर से तुममें अनुग्रह और शांति बनी रहे.

रोम जाने के लिये पौलॉस की अभिलाषा

8सबसे पहले, मैं तुम सबके लिए मसीह येशु के द्वारा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं क्योंकि तुम्हारे विश्वास की कीर्ति पूरे विश्व में फैलती जा रही है. 9परमेश्वर, जिनके पुत्र के ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार मैं पूरे हृदय से कर रहा हूं, मेरे गवाह हैं कि मैं तुम्हें अपनी प्रार्थनाओं में कैसे लगातार याद किया करता हूं 10और विनती करता हूं कि यदि संभव हो तो परमेश्वर की इच्छा अनुसार मैं तुमसे भेंट करने आऊं.

11तुमसे भेंट करने के लिए मेरी बहुत इच्छा इसलिये है कि तुम्हें आत्मिक रूप से मजबूत करने के उद्देश्य से कोई आत्मिक वरदान प्रदान करूं 12कि तुम और मैं आपस में एक दूसरे के विश्वास द्वारा प्रोत्साहित हो जाएं. 13प्रिय भाई बहिनो, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनजान रहो कि मैंने अनेक बार तुम्हारे पास आने की योजना बनाई है कि मैं तुम्हारे बीच वैसे ही उत्तम परिणाम देख सकूं जैसे मैंने बाकी गैर-यहूदियों में देखे हैं किंतु अब तक इसमें रुकावट ही पड़ती रही है.

14मैं यूनानियों तथा बरबरों, बुद्धिमानों तथा निर्बुद्धियों दोनों ही का कर्ज़दार हूं. 15इसलिये मैं तुम्हारे बीच भी—तुम, जो रोम नगर में हो—ईश्वरीय सुसमाचार सुनाने के लिए उत्सुक हूं.

16ईश्वरीय सुसमाचार मेरे लिए लज्जा का विषय नहीं है. यह उन सभी के उद्धार के लिए परमेश्वर का सामर्थ्य है, जो इसमें विश्वास करते हैं. सबसे पहले यहूदियों के लिए और यूनानियों के लिए भी. 17क्योंकि इसमें विश्वास से विश्वास के लिए परमेश्वर की धार्मिकता का प्रकाशन होता है, जैसा कि पवित्र शास्त्र का लेख है: वह, जो विश्वास द्वारा धर्मी है, जीवित रहेगा.1:17 हब 2:4

गैर-यहूदियों और यहूदियों पर परमेश्वर का क्रोध

18स्वर्ग से परमेश्वर का क्रोध उन मनुष्यों की अभक्ति तथा दुराचरण पर प्रकट होता है, जो सच्चाई को अधर्म में दबाए रहते हैं 19क्योंकि परमेश्वर के विषय में जो कुछ भी जाना जा सकता है, वह ज्ञान मनुष्यों पर प्रकट है—इसे स्वयं परमेश्वर ने उन पर प्रकट किया है. 20सच यह है कि सृष्टि के प्रारंभ ही से परमेश्वर के अनदेखे गुण, उनकी अनंत सामर्थ्य तथा उनका परमेश्वरत्व उनकी सृष्टि में स्पष्ट है और दिखाई देता है. इसलिये मनुष्य के पास अपने इस प्रकार के स्वभाव के बचाव में कोई भी तर्क शेष नहीं रह जाता.

21परमेश्वर का ज्ञान होने पर भी उन्होंने न तो परमेश्वर को परमेश्वर के योग्य सम्मान दिया और न ही उनका आभार माना. इसके विपरीत उनकी विचार शक्ति व्यर्थ हो गई तथा उनके जड़ हृदयों पर अंधकार छा गया. 22उनका दावा था कि वे बुद्धिमान हैं किंतु वे बिलकुल मूर्ख साबित हुए, 23क्योंकि उन्होंने अविनाशी परमेश्वर के प्रताप को बदलकर नाशमान मनुष्य, पक्षियों, पशुओं तथा रेंगते जंतुओं में कर दिया.

24इसलिये परमेश्वर ने भी उन्हें उनके हृदय की अभिलाषाओं की मलिनता के लिए छोड़ दिया कि वे आपस में बुरे कामों में अपने शरीर का अनादर करें. 25ये वे हैं, जिन्होंने परमेश्वर के सच का बदलाव झूठ से किया. ये वे हैं, जिन्होंने सृष्टि की वंदना अर्चना की, न कि सृष्टिकर्ता की, जो सदा-सर्वदा वंदनीय हैं. आमेन.

26यह देख परमेश्वर ने उन्हें निर्लज्ज कामनाओं को सौंप दिया. फलस्वरूप उनकी स्त्रियों ने प्राकृतिक यौनाचार के स्थान पर अप्राकृतिक यौनाचार अपना लिया. 27इसी प्रकार स्त्रियों के साथ प्राकृतिक यौनाचार को छोड़कर पुरुष अन्य पुरुष के लिए कामाग्नि में जलने लगे. पुरुष, पुरुष के साथ ही निर्लज्ज व्यवहार करने लगे, जिसके फलस्वरूप उन्हें अपने ही शरीर में अपनी अपंगता का दुष्परिणाम प्राप्‍त हुआ.

28इसके बाद भी उन्होंने यह उचित न समझा कि परमेश्वर के समग्र ज्ञान को स्वीकार करें, इसलिये परमेश्वर ने उन्हें वह सब करने के लिए, जो अनुचित था, निकम्मे मन के वश में छोड़ दिया. 29उनमें सब प्रकार की बुराइयां समा गईं: दुष्टता, लोभ, दुष्कृति, जलन, हत्या, झगड़ा, छल, दुर्भाव, कानाफूसी, 30दूसरों की निंदा, परमेश्वर से घृणा, असभ्य, घमंड, डींग मारना, षड़्‍यंत्र रचना, माता-पिता की आज्ञा टालना, 31निर्बुद्धि, विश्वासघाती, कठोरता और निर्दयता. 32यद्यपि वे परमेश्वर के धर्ममय अध्यादेश से परिचित हैं कि इन सबका दोषी व्यक्ति मृत्यु दंड के योग्य है, वे न केवल स्वयं ऐसा काम करते हैं, परंतु उन्हें भी पूरा समर्थन देते हैं, जो इनका पालन करते हैं.

New Arabic Version

روما 1:1-32

1مِنْ بُولُسَ عَبْدِ يَسُوعَ المَسِيحِ، الرَّسُولِ الْمَدْعُوِّ وَالْمُفْرَزِ لإِنْجِيلِ اللهِ، 2هَذَا الإِنْجِيلِ الَّذِي وَعَدَ اللهُ بِهِ مِنْ قَبْلُ عَلَى أَلْسِنَةِ أَنْبِيَائِهِ فِي الْكُتُبِ الْمُقَدَّسَةِ، 3وَهُوَ يَخْتَصُّ بِابْنِهِ الَّذِي جَاءَ مِنْ نَسْلِ دَاوُدَ مِنَ النَّاحِيَةِ الْبَشَرِيَّةِ؛ 4وَمِنْ نَاحِيَةِ رُوحِ الْقَدَاسَةِ، تَبَيَّنَ بِقُوَّةٍ أَنَّهُ ابْنُ اللهِ بِالْقِيَامَةِ مِنْ بَيْنِ الأَمْوَاتِ. إِنَّهُ يَسُوعُ الْمَسِيحُ رَبُّنَا 5الَّذِي بِهِ وَلأَجْلِ اسْمِهِ نِلْنَا نِعْمَةً وَرِسَالَةً لإِطَاعَةِ الإِيمَانِ بَيْنَ جَمِيعِ الأُمَمِ، 6وَمِنْ بَيْنِهِمْ أَنْتُمْ أَيْضاً مَدْعُوُّو يَسُوعَ الْمَسِيحِ. 7إِلَى جَمِيعِ مَنْ هُمْ فِي رُومَا مِنْ أَحِبَّاءِ اللهِ الْقِدِّيسِينَ الْمَدْعُوِّينَ. لِتَكُنْ لَكُمُ النِّعْمَةُ وَالسَّلامُ مِنَ اللهِ أَبِينَا وَالرَّبِّ يَسُوعَ الْمَسِيحِ!

رغبة بولس في زيارة روما

8أَوَّلاً، أَشْكُرُ إِلهِي بِيَسُوعَ الْمَسِيحِ مِنْ أَجْلِكُمْ جَمِيعاً، لأَنَّ إِيمَانَكُمْ يُذَاعُ خَبَرُهُ فِي الْعَالَمِ كُلِّهِ. 9فَإِنَّ اللهَ الَّذِي أَخْدِمُهُ بِرُوحِي فِي التَّبْشِيرِ بِإِنْجِيلِ ابْنِهِ، هُوَ شَاهِدٌ لِي كَيْفَ لَا أَتَوَقَّفُ عَنْ ذِكْرِكُمْ 10فِي صَلَوَاتِي، مُتَوَسِّلاً دَائِماً عَسَى الآنَ أَنْ يَتَيَسَّرَ لِي مَرَّةً بِمَشِيئَةِ اللهِ أَنْ آتِيَ إِلَيْكُمْ. 11فَإِنِّي أَشْتَاقُ أَنْ أَرَاكُمْ لأَحْمِلَ إِلَيْكُمْ بَرَكَةً رُوحِيَّةً لِتَثْبِيتِكُمْ، 12لِيُشَجِّعَ بَعْضُنَا بَعْضَاً بِالإِيمَانِ الْمُشْتَرَكِ، إِيمَانِكُمْ وَإِيمَانِي.

13ثُمَّ لَا أُرِيدُ أَنْ يَخْفَى عَلَيْكُمْ، أَيُّهَا الإِخْوَةُ، أَنَّنِي كَثِيراً مَا قَصَدْتُ أَنْ آتِيَ إِلَيْكُمْ، لِيَكُونَ لِي ثَمَرٌ مِنْ بَيْنِكُمْ أَيْضاً كَمَا لِي مِنْ بَيْنِ الأُمَمِ الأُخْرَى، إِلّا أَنَّنِي كُنْتُ أُعَاقُ حَتَّى الآنَ 14فَإِنَّ عَلَيَّ دَيْناً لِلْيُونَانِيِّينَ وَالْبَرَابِرَةِ، لِلمُتَعَلِّمِينَ وَالْجُهَّالِ. 15وَلِذلِكَ، فَبِكُلِّ مَا لَدَيَّ، أَنَا فِي غَايَةِ الشَّوْقِ أَنْ أُبَشِّرَ بِالإِنْجِيلِ أَيْضاً بَيْنَكُمْ أَنْتُمُ الَّذِينَ فِي رُومَا.

16فَأَنَا لَا أَسْتَحِي بِالإِنْجِيلِ، لأَنَّهُ قُدْرَةُ اللهِ لِلْخَلاصِ، لِكُلِّ مَنْ يُؤْمِنُ، لِلْيَهُودِيِّ أَوَّلاً ثُمَّ لِلْيُونَانِيِّ. 17فَفِيهِ قَدْ أُعْلِنَ الْبِرُّ الَّذِي يَمْنَحُهُ اللهُ عَلَى أَسَاسِ الإِيمَانِ وَالَّذِي يُؤَدِّي إِلَى الإِيمَانِ، عَلَى حَدِّ مَا قَدْ كُتِبَ: «أَمَّا مَنْ تَبَرَّرَ بِالإِيمَانِ، فَبِالإِيمَانِ يَحْيَا».

غضب الله على البشر

18فَإِنَّهُ قَدْ أُعْلِنَ غَضَبُ اللهِ مِنَ السَّمَاءِ عَلَى جَمِيعِ مَا يَفْعَلُهُ النَّاسُ مِنْ عِصْيَانٍ وَإِثْمٍ الَّذِينَ يَحْجُبُونَ الْحَقَّ بِالإِثْمِ. 19ذَلِكَ لأَنَّ مَا يُعْرَفُ عَنِ اللهِ وَاضِحٌ بَيْنَهُمْ، إِذْ بَيَّنَهُ اللهُ لَهُمْ. 20فَإِنَّ مَا لَا يُرَى مِنْ أُمُورِ اللهِ، أَيْ قُدْرَتَهُ الأَزَلِيَّةَ وَأُلُوهَتَهُ، ظَاهِرٌ لِلْعِيَانِ مُنْذُ خَلْقِ الْعَالَمِ، إِذْ تُدْرِكُهُ الْعُقُولُ مِنْ خِلالِ الْمَخْلُوقَاتِ. حَتَّى إِنَّ النَّاسَ بَاتُوا بِلا عُذْرٍ. 21فَمَعَ أَنَّهُمْ عَرَفُوا اللهَ، لَمْ يُمَجِّدُوهُ بِاعْتِبَارِهِ اللهَ، وَلا شَكَرُوهُ، بَلِ انْصَرَفُوا بِتَفْكِيرِهِمْ إِلَى الْحَمَاقَةِ وَصَارَ قَلْبُهُمْ لِغَبَاوَتِهِ مُظْلِماً. 22وَفِيمَا يَدَّعُونَ أَنَّهُمْ حُكَمَاءُ، صَارُوا جُهَّالاً، 23وَاسْتَبْدَلُوا بِمَجْدِ اللهِ الْخَالِدِ تَمَاثِيلَ لِصُوَرِ الإِنْسَانِ الْفَانِي وَالطُّيُورِ وَذَوَاتِ الأَرْبَعِ وَالزَّوَاحِفِ. 24لِذَلِكَ أَسْلَمَهُمُ اللهُ، فِي شَهْوَاتِ قُلُوبِهِمْ، إِلَى النَّجَاسَةِ، لِيُهِينُوا أَجْسَادَهُمْ فِيمَا بَيْنَهُمْ. 25إِذْ قَدِ اسْتَبْدَلُوا بِحَقِّ اللهِ مَا هُوَ بَاطِلٌ، فَاتَّقَوْا الْمَخْلُوقَ وَعَبَدُوهُ بَدَلَ الْخَالِقِ، الْمُبَارَكِ إِلَى الأَبَدِ. آمِين!

26لِهَذَا السَّبَبِ أَسْلَمَهُمُ اللهُ إِلَى الشَّهَوَاتِ الْمُخْزِيَةِ. فَإِنَّ إِنَاثَهُمْ تَحَوَّلْنَ عَنِ اسْتِعْمَالِ أَجْسَادِهِنَّ بِالطَّرِيقَةِ الطَّبِيعِيَّةِ إِلَى اسْتِعْمَالِهَا بِطَرِيقَةٍ مُخَالِفَةٍ لِلطَّبِيعَةِ. 27وَكَذلِكَ تَحَوَّلَ الذُّكُورُ أَيْضاً عَنِ اسْتِعْمَالِ الأُنْثَى بِالطَّرِيقَةِ الطَّبِيعِيَّةِ، وَالْتَهَبُوا شَهْوَةً بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ، مُرْتَكِبِينَ الْفَحْشَاءَ ذُكُوراً بِذُكُورٍ، فَاسْتَحَقُّوا أَنْ يَنَالُوا فِي أَنْفُسِهِمِ الْجَزَاءَ الْعَادِلَ عَلَى ضَلالِهِمْ.

28وَبِمَا أَنَّهُمْ لَمْ يَتَخَيَّرُوا إِبْقَاءَ اللهِ ضِمْنَ مَعْرِفَتِهِمْ، أَسْلَمَهُمُ اللهُ إِلَى ذِهْنٍ عَاطِلٍ عَنِ التَّمْيِيزِ دَفَعَهُمْ إِلَى مُمَارَسَةِ الأُمُورِ غَيْرِ اللّائِقَةِ. 29إِذْ قَدِ امْتَلأُوا مِنْ كُلِّ إِثْمٍ وَشَرٍّ وَجَشَعٍ وَخُبْثٍ، وَشُحِنُوا حَسَداً وَقَتْلاً وَخِصَاماً وَمَكْراً وَسُوءاً. وَهُمْ ثَرْثَارُونَ، 30مُغْتَابُونَ، كَارِهُونَ لِلهِ، شَتَّامُونَ، مُتَكَبِّرُونَ، مُتَفَاخِرُونَ، مُخْتَرِعُونَ لِلشُّرُورِ، غَيْرُ طَائِعِينَ لِلْوَالِدَيْنِ. 31لَا فَهْمَ عِنْدَهُمْ، وَلا أَمَانَةَ، وَلا حَنَانَ، وَلا رَحْمَةَ. 32إِنَّهُمْ يَعْلَمُونَ حُكْمَ اللهِ الْعَادِلِ: أَنَّ الَّذِينَ يَفْعَلُونَ هَذِهِ الأُمُورَ يَسْتَوْجِبُونَ الْمَوْتَ؛ وَمَعَ ذَلِكَ، لَا يُمَارِسُونَهَا وَحَسْبُ، بَلْ يُسَرُّونَ بِفَاعِلِيهَا.