रोमियों 9:22-33, रोमियों 10:1-4 HCV

रोमियों 9:22-33

क्या हुआ यदि परमेश्वर अपने क्रोध का प्रदर्शन और अपने सामर्थ्य के प्रकाशन के उद्देश्य से अत्यंत धीरज से विनाश के लिए निर्धारित पात्रों की सहते रहे? इसमें उनका उद्देश्य यही था कि वह कृपापात्रों पर अपनी महिमा के धन को प्रकाशित कर सकें, जिन्हें उन्होंने महिमा ही के लिए पहले से तैयार कर लिया था; हमें भी, जो उनके द्वारा बुलाए गए हैं, मात्र यहूदियों ही में से नहीं, परंतु गैर-यहूदियों में से भी. जैसा कि वह भविष्यवक्ता होशे के अभिलेख में भी कहते हैं:

“मैं उन्हें ‘अपनी प्रजा’ घोषित करूंगा, जो मेरी प्रजा नहीं थे;

तथा उन्हें ‘प्रिय’ संबोधित करूंगा, जो प्रियजन थे ही नहीं,”9:25 होशे 2:23

और,

“जिस स्थान पर उनसे यह कहा गया था,

‘तुम मेरी प्रजा नहीं हो,’

उसी स्थान पर वे ‘जीवित परमेश्वर की संतान’ घोषित किए जाएंगे.”9:26 होशे 1:10

भविष्यवक्ता यशायाह इस्राएल के विषय में कातर शब्द में कहते हैं:

“यद्यपि इस्राएल के वंशजों की संख्या समुद्रतट की बालू के कणों के तुल्य है,

उनमें से थोड़े ही बचाए जाएंगे.

क्योंकि परमेश्वर पृथ्वी पर

अपनी दंड की आज्ञा का कार्य शीघ्र ही पूरा करेंगे.”9:28 यशा 10:22-23

ठीक जैसी भविष्यवक्ता यशायाह की पहले से लिखित बात है:

“यदि स्वर्गीय सेनाओं के प्रभु ने

हमारे लिए वंशज न छोड़े होते

तो हमारी दशा सोदोम,

और गोमोरा नगरों के समान हो जाती.”9:29 उत्प 19:1-29

इस्राएल की असफलता का कारण

तब परिणाम क्या निकला? वे गैर-यहूदी, जो धार्मिकता को खोज भी नहीं रहे थे, उन्होंने धार्मिकता प्राप्‍त कर ली—वह भी वह धार्मिकता, जो विश्वास के द्वारा है. किंतु धार्मिकता की व्यवस्था की खोज कर रहा इस्राएल उस व्यवस्था के भेद तक पहुंचने में असफल ही रहा. क्या कारण है इसका? मात्र यह कि वे इसकी खोज विश्वास में नहीं परंतु मात्र रीतियों को पूरा करने के लिए करते रहे. परिणामस्वरूप उस ठोकर के पत्थर से उन्हें ठोकर लगी. ठीक जैसा पवित्र शास्त्र का अभिलेख है:

“मैं ज़ियोन में एक ठोकर के पत्थर तथा ठोकर खाने की चट्टान की स्थापना कर रहा हूं.

जो इसमें विश्वास रखता है,

वह लज्जित कभी न होगा.”9:33 यशा 8:14; 28:16

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रोमियों 10:1-4

प्रिय भाई बहिनो, उनका उद्धार ही मेरी हार्दिक अभिलाषा तथा परमेश्वर से मेरी प्रार्थना का विषय है. उनके विषय में मैं यह गवाही देता हूं कि उनमें परमेश्वर के प्रति उत्साह तो है किंतु उनका यह उत्साह वास्तविक ज्ञान के अनुसार नहीं है. परमेश्वर की धार्मिकता के विषय में अज्ञानता तथा अपनी ही धार्मिकता की स्थापना करने के उत्साह में उन्होंने स्वयं को परमेश्वर की धार्मिकता के अधीन नहीं किया. उस हर एक व्यक्ति के लिए, जो मसीह में विश्वास करता है, मसीह ही धार्मिकता की व्यवस्था की समाप्‍ति हैं.

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