सूक्ति संग्रह 29:19-27 HCV

सूक्ति संग्रह 29:19-27

सेवकों के अनुशासन के लिए मात्र शब्द निर्देश पर्याप्‍त नहीं होता;

वे इसे समझ अवश्य लेंगे, किंतु इसका पालन नहीं करेंगे.

एक मूर्ख व्यक्ति से उस व्यक्ति की अपेक्षा अधिक आशा की जा सकती है,

जो बिना विचार अपना मत दे देता है.

यदि सेवक को बाल्यकाल से ही जो भी चाहे दिया जाए,

तो अंततः वह घमंडी हो जाएगा.

शीघ्र क्रोधी व्यक्ति कलह करनेवाला होता है,

और अनियंत्रित क्रोध का दास अनेक अपराध कर बैठता है.

अहंकार ही व्यक्ति के पतन का कारण होता है,

किंतु वह, जो आत्मा में विनम्र है, सम्मानित किया जाता है.

जो चोर का साथ देता है, वह अपने ही प्राणों का शत्रु होता है;

वह न्यायालय में सबके द्वारा शापित किया जाता है, किंतु फिर भी सत्य प्रकट नहीं कर सकता.

लोगों से भयभीत होना उलझन प्रमाणित होता है,

किंतु जो कोई याहवेह पर भरोसा रखता है, सुरक्षित रहता है.

शासक के प्रिय पात्र सभी बनना चाहते हैं,

किंतु वास्तविक न्याय याहवेह के द्वारा निष्पन्‍न होता है.

अन्यायी खरे के लिए तुच्छ होते हैं;

किंतु वह, जिसका चालचलन खरा है, दुष्टों के लिए तुच्छ होता है.

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