इब्री 5:11-14, इब्री 6:1-12 HCV

इब्री 5:11-14

शिक्षा में अपेक्षित प्रगति

हमारे पास इस विषय में कहने के लिए बहुत कुछ है तथा इसका वर्णन करना भी कठिन काम है क्योंकि तुम अपनी सुनने की क्षमता खो बैठे हो. समय के अनुसार तो तुम्हें अब तक शिक्षक बन जाना चाहिए था किंतु अब आवश्यक यह हो गया है कि कोई तुम्हें दोबारा परमेश्वर के ईश्वरीय वचनों के शुरू के सिद्धांतों की शिक्षा दे. तुम्हें ठोस आहार नहीं, दूध की ज़रूरत हो गई है! वह जो मात्र दूध का सेवन करता है, धार्मिकता की शिक्षा से अपरिचित है, क्योंकि वह शिशु है. ठोस आहार सयानों के लिए होता है, जिन्होंने लगातार अभ्यास के द्वारा अपनी ज्ञानेन्द्रियों को इसके प्रति निपुण बना लिया है कि क्या सही है और क्या गलत.

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इब्री 6:1-12

इसलिये हम सिद्धता को अपना लक्ष्य बना लें, मसीह संबंधित प्रारंभिक शिक्षाओं से ऊपर उठकर परिपक्वता की ओर बढ़ें. नींव दोबारा न रखें, जो व्यर्थ की प्रथाओं से मन फिराना और परमेश्वर के प्रति विश्वास, शुद्ध होने के विषय, सिर पर हाथ रखने, मरे हुओं के जी उठने तथा अनंत दंड के विषय है. यदि परमेश्वर हमें आज्ञा दें तो हम ऐसा ही करेंगे.

जिन्होंने किसी समय सच के ज्ञान की ज्योति प्राप्‍त कर ली थी, जिन्होंने स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख लिया था, जो पवित्र आत्मा के सहभागी हो गए थे, तथा जो परमेश्वर के उत्तम वचन के, और आनेवाले युग के सामर्थ्य का स्वाद चख लेने के बाद भी परमेश्वर से दूर हो गए, उन्हें दोबारा पश्चाताप की ओर ले आना असंभव है क्योंकि वे परमेश्वर-पुत्र को अपने लिए दोबारा क्रूस पर चढ़ाने तथा सार्वजनिक रूप से उनका ठट्ठा करने में शामिल हो जाते हैं. वह भूमि, जो वृष्टि के जल को सोखकर किसान के लिए उपयोगी उपज उत्पन्‍न करती है, परमेश्वर की ओर से आशीष पाती है. किंतु वही भूमि यदि कांटा और ऊंटकटारे उत्पन्‍न करती है तो वह किसी काम की नहीं है तथा शापित होने पर है—आग में जलाया जाना ही उसका अंत है.

प्रियो, हालांकि हमने तुम्हारे सामने इस विषय को इस रीति से स्पष्ट किया है; फिर भी हम तुम्हारे लिए इससे अच्छी वस्तुओं तथा उद्धार से संबंधित आशीषों के प्रति आश्वस्त हैं. परमेश्वर अन्यायी नहीं हैं कि उनके सम्मान के लिए तुम्हारे द्वारा पवित्र लोगों के भले के लिए किए गए—तथा अब भी किए जा रहे—भले कामों और तुम्हारे द्वारा उनके लिए अभिव्यक्त प्रेम की उपेक्षा करें. हमारी यही इच्छा है कि तुममें से हर एक में ऐसा उत्साह प्रदर्शित हो कि अंत तक तुममें आशा का पूरा निश्चय स्पष्ट दिखाई दे. तुम आलसी न बनो परंतु उन लोगों के पद-चिह्नों पर चलो, जो विश्वास तथा धीरज द्वारा प्रतिज्ञाओं के वारिस हैं.

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