स्तोत्र 44:13-26 HCV

स्तोत्र 44:13-26

अपने पड़ोसियों के लिए अब हम निंदनीय हो गए हैं,

सबके सामने घृणित एवं उपहास पात्र.

राष्ट्रों में हम उपमा होकर रह गए हैं;

हमारे नाम पर वे सिर हिलाने लगते हैं.

सारे दिन मेरा अपमान मेरे सामने झूलता रहता है,

तथा मेरी लज्जा ने मुझे भयभीत कर रखा है.

उस शत्रु की वाणी, जो मेरी निंदा एवं मुझे कलंकित करता है,

उसकी उपस्थिति के कारण जो शत्रु तथा बदला लेनेवाले है.

हमने न तो आपको भुला दिया था,

और न हमने आपकी वाचा ही भंग की;

फिर भी हमें यह सब सहना पड़ा.

हमारे हृदय आपसे बहके नहीं;

हमारे कदम आपके मार्ग से भटके नहीं.

फिर भी आपने हमें उजाड़ कर गीदड़ों का बसेरा बना दिया;

और हमें गहन अंधकार में छिपा दिया.

यदि हम अपने परमेश्वर को भूल ही जाते

अथवा हमने अन्य देवताओं की ओर हाथ बढ़ाया होता,

क्या परमेश्वर को इसका पता न चल गया होता,

उन्हें तो हृदय के सभी रहस्यों का ज्ञान होता है?

फिर भी आपके निमित्त हम दिन भर मृत्यु का सामना करते रहते हैं;

हमारी स्थिति वध के लिए निर्धारित भेड़ों के समान है.

जागिए, प्रभु! सो क्यों रहे हैं?

उठ जाइए! हमें सदा के लिए शोकित न छोड़िए.

आपने हमसे अपना मुख क्यों छिपा लिया है

हमारी दुर्दशा और उत्पीड़न को अनदेखा न कीजिए?

हमारे प्राण धूल में मिल ही चुके हैं;

हमारा पेट भूमि से जा लगा है.

उठकर हमारी सहायता कीजिए;

अपने करुणा-प्रेम के निमित्त हमें मुक्त कीजिए.

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