स्तोत्र 35:19-28 HCV

स्तोत्र 35:19-28

जो अकारण ही मेरे शत्रु बन गए हैं,

अब उन्हें मेरा उपहास करने का संतोष प्राप्‍त न हो;

अब अकारण ही मेरे विरोधी बन गए

पुरुषों को आंखों ही आंखों में मेरी निंदा में निर्लज्जतापूर्ण संकेत करने का अवसर प्राप्‍त न हो.

उनके वार्तालाप शांति प्रेरक नहीं होते,

वे शांति प्रिय नागरिकों के लिए

झूठे आरोप सोचने में लगे रहते हैं.

मुख फाड़कर वे मेरे विरुद्ध यह कहते हैं, “आहा! आहा!

हमने अपनी ही आंखों से सब देख लिया है.”

याहवेह, सत्य आपकी दृष्टि में है; अब आप शांत न रहिए.

याहवेह, अब मुझसे दूर न रहिए.

मेरी रक्षा के लिए उठिए!

मेरे परमेश्वर और मेरे स्वामी, मेरे पक्ष में न्याय प्रस्तुत कीजिए.

याहवेह, मेरे परमेश्वर, अपनी सच्चाई में मुझे निर्दोष प्रमाणित कीजिए;

मेरी स्थिति से उन्हें कोई आनंद प्राप्‍त न हो.

वे मन ही मन यह न कह सकें, “देखा, यही तो हम चाहते थे!”

अथवा वे यह न कह सकें, “हम उसे निगल गए.”

वे सभी, जो मेरी दुखद स्थिति पर आनंदित हो रहे हैं,

लज्जित और निराश हो जाएं;

वे सभी, जिन्होंने मुझे नीच प्रमाणित करना चाहा था

स्वयं निंदा और लज्जा में दब जाएं.

वे सभी, जो मुझे दोष मुक्त हुआ देखने की कामना करते रहे,

आनंद में उल्‍लसित हो जय जयकार करें;

उनका स्थायी नारा यह हो जाए, “ऊंची हो याहवेह की महिमा,

वह अपने सेवक के कल्याण में उल्‍लसित होते हैं.”

मेरी जीभ सर्वदा आपकी धार्मिकता की घोषणा,

तथा आपकी वंदना करती रहेगी.

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