सूक्ति संग्रह 15:1-10 HCV

सूक्ति संग्रह 15:1-10

मृदु प्रत्युत्तर कोप शांत कर देता है,

किंतु कठोर प्रतिक्रिया से क्रोध भड़कता है.

बुद्धिमान के मुख से ज्ञान निकलता है,

किंतु मूर्ख का मुख मूर्खता ही उगलता है.

याहवेह की दृष्टि सब स्थान पर बनी रहती है,

उनके नेत्र उचित-अनुचित दोनों पर निगरानी रखते हैं.

सांत्वना देनेवाली बातें जीवनदायी वृक्ष है,

किंतु कुटिलतापूर्ण वार्तालाप उत्साह को दुःखित कर देता है.

मूर्ख पुत्र की दृष्टि में पिता के निर्देश तिरस्कारीय होते हैं,

किंतु विवेकशील होता है वह पुत्र, जो पिता की डांट पर ध्यान देता है.

धर्मी के घर में अनेक-अनेक बहुमूल्य वस्तुएं पाई जाती हैं,

किंतु दुष्ट की आय ही उसके संकट का कारण बन जाती है.

बुद्धिमान के होंठों से ज्ञान का प्रसरण होता है,

किंतु मूर्ख के हृदय से ऐसा कुछ नहीं होता.

दुष्ट द्वारा अर्पित की गई बलि याहवेह के लिए घृणास्पद है,

किंतु धर्मी द्वारा की गई प्रार्थना उन्हें स्वीकार्य है.

याहवेह के समक्ष बुराई का चालचलन घृणास्पद होता है,

किंतु जो धर्मी का निर्वाह करता है वह उनका प्रिय पात्र हो जाता है.

उसके लिए घातक दंड निर्धारित है, जो सन्मार्ग का परित्याग कर देता है और वह;

जो डांट से घृणा करता है, मृत्यु आमंत्रित करता है.

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