अय्योब 19:1-29, अय्योब 20:1-29, अय्योब 21:1-34 HCV

अय्योब 19:1-29

परमेश्वर तथा मनुष्य द्वारा विश्वास का उत्तर

तब अय्योब ने उत्तर दिया:

“तुम कब तक मुझे यातना देते रहोगे

तथा अपने इन शब्दों से कुचलते रहोगे?

इन दसों अवसरों पर तुम मेरा अपमान करते रहे हो;

मेरे साथ अन्याय करते हुए तुम्हें लज्जा तक न आई.

हां, यदि वास्तव में मुझसे कोई त्रुटि हुई है,

तो यह त्रुटि मेरे लिए चिंता का विषय है.

यदि तुम वास्तव में स्वयं को मुझसे उच्चतर प्रदर्शित करोगे

तथा मुझ पर मेरी स्थिति को निंदनीय प्रमाणित कर दोगे,

तब मैं यह समझ लूंगा, कि मेरी यह स्थिति परमेश्वर की ओर से है

तथा उन्हीं ने मुझे इस जाल में डाला है.

“मैं तो चिल्ला रहा हूं, ‘अन्याय!’ किंतु मुझे कोई उत्तर नहीं मिल रहा;

मैं सहायता के लिए पुकार रहा हूं, किंतु न्याय कहीं से मिल नहीं रहा है.

परमेश्वर ने ही जब मेरे मार्ग रोक दिया है, मैं आगे कैसे बढ़ूं?

उन्होंने तो मेरे मार्ग अंधकार कर दिए हैं.

मेरा सम्मान मुझसे छीन लिया गया है,

तथा जो मुकुट मेरे सिर पर था, वह भी उतार लिया गया है.

वह मुझे चारों ओर से तोड़ने में शामिल हैं, कि मैं नष्ट हो जाऊं;

उन्होंने मेरी आशा को उखाड़ दिया है, जैसे किसी वृक्ष से किया जाता है.

अपना कोप भी उन्होंने मुझ पर उंडेल दिया है;

क्योंकि उन्होंने तो मुझे अपना शत्रु मान लिया है.

उनकी सेना एकत्र हो रही है;

उन्होंने मेरे विरुद्ध ढलान तैयार की है

तथा मेरे तंबू के आस-पास घेराबंदी कर ली है.

“उन्होंने तो मेरे भाइयों को मुझसे दूर कर दिया है;

मेरे परिचित मुझसे पूर्णतः अनजान हो गए हैं.

मेरे संबंधियों ने तो मेरा त्याग कर दिया है;

मेरे परम मित्रों ने मुझे याद करना छोड़ दिया है.

वे, जो मेरी गृहस्थी के अंग हैं तथा जो मेरी परिचारिकाएं हैं;

वे सब मुझे परदेशी समझने लगी हैं.

मैं अपने सेवक को अपने निकट बुलाता हूं,

किंतु वह उत्तर नहीं देता.

मेरी पत्नी के लिए अब मेरा श्वास घृणास्पद हो गया है;

अपने भाइयों के लिए मैं घिनौना हो गया हूं.

यहां तक कि छोटे-छोटे बालक मुझे तुच्छ समझने लगे हैं;

जैसे ही मैं उठता हूं, वे मेरी निंदा करते हैं.

मेरे सभी सहयोगी मेरे विद्वेषी हो गए हैं;

मुझे जिन-जिन से प्रेम था, वे अब मेरे विरुद्ध हो चुके हैं.

अब तो मैं मात्र चमड़ी तथा हड्डियों का रह गया हूं;

मैं जो हूं, मृत्यु से बाल-बाल बच निकला हूं.

“मेरे मित्रों, मुझ पर कृपा करो,

क्योंकि मुझ पर तो परमेश्वर का प्रहार हुआ है.

किंतु परमेश्वर के समान तुम मुझे क्यों सता रहे हो?

क्या मेरी देह को यातना देकर तुम्हें संतोष नहीं हुआ है?

“कैसा होता यदि मेरे इन विचारों को लिखा जाता,

इन्हें पुस्तक का रूप दिया जा सकता,

सीसे के पटल पर लौह लेखनी से

उन्हें चट्टान पर स्थायी रूप से खोद दिया जाता!

परंतु मुझे यह मालूम है कि मेरा छुड़ाने वाला जीवित हैं,

तथा अंततः वह पृथ्वी पर खड़ा रहेंगे.

मेरी देह के नष्ट हो जाने के बाद भी,

मैं अपनी देह में ही परमेश्वर का दर्शन करूंगा;

जिन्हें मैं अपनी ही आंखों से देखूंगा,

उन्हें अन्य किसी के नहीं, बल्कि मेरे ही नेत्र देखेंगे.

मेरा मन अंदर ही अंदर उतावला हुआ जा रहा है!

“अब यदि तुम यह विचार करने लगो, ‘हम उसे कैसे सता सकेंगे?’

अथवा, ‘उस पर हम कौन सा आरोप लगा सकेंगे?’

तब उपयुक्त यह होगा कि तुम अपने ऊपर तलवार के प्रहार का ध्यान रखो;

क्योंकि क्रोध का दंड तलवार से होता है,

तब तुम्हें यह बोध होना अनिवार्य है, कि एक न्याय का समय है.”

Read More of अय्योब 19

अय्योब 20:1-29

न्याय-रास्ते पर कोई अपवाद नहीं

तब नआमथवासी ज़ोफर ने कहना प्रारंभ किया:

“मेरे विचारों ने मुझे प्रत्युत्तर के लिए प्रेरित किया

क्योंकि मेरा अंतर्मन उत्तेजित हो गया था.

मैंने उस झिड़की की ओर ध्यान दिया,

जो मेरा अपमान कर रही थी इसका भाव समझकर ही मैंने प्रत्युत्तर का निश्चय किया है.

“क्या आरंभ से तुम्हें इसकी वास्तविकता मालूम थी,

उस अवसर से जब पृथ्वी पर मनुष्य की सृष्टि हुई थी,

अल्पकालिक ही होता है, दुर्वृत्त का उल्लास

तथा क्षणिक होता है पापिष्ठ का आनंद.

भले ही उसका नाम आकाश तुल्य ऊंचा हो

तथा उसका सिर मेघों तक जा पहुंचा हो,

वह कूड़े समान पूर्णतः मिट जाता है;

जिन्होंने उसे देखा था, वे पूछते रह जाएंगे, ‘कहां है वह?’

वह तो स्वप्न समान टूट जाता है, तब उसे खोजने पर भी पाया नहीं जा सकता,

रात्रि के दर्शन समान उसकी स्मृति मिट जाती है.

जिन नेत्रों ने उसे देखा था, उनके लिए अब वह अदृश्य है;

न ही वह स्थान, जिसके सामने वह बना रहता था.

उसके पुत्रों की कृपा दीनों पर बनी रहती है

तथा वह अपने हाथों से अपनी संपत्ति लौटाता है.

उसकी हड्डियां उसके यौवन से भरी हैं

किंतु यह शौर्य उसी के साथ धूल में जा मिलता है.

“यद्यपि उसके मुख को अनिष्ट का स्वाद लग चुका है

और वह इसे अपनी जीभ के नीचे छिपाए रखता है,

यद्यपि वह इसकी आकांक्षा करता रहता है,

वह अपने मुख में इसे छिपाए रखता है,

फिर भी उसका भोजन उसके पेट में उथल-पुथल करता है;

वह वहां नाग के विष में परिणत हो जाता है.

उसने तो धन-संपत्ति निगल रखी है, किंतु उसे उगलना ही होगा;

परमेश्वर ही उन्हें उसके पेट से बाहर निकाल देंगे.

वह तो नागों के विष को चूस लेता है;

सर्प की जीभ उसका संहार कर देती है.

वह नदियों की ओर दृष्टि नहीं कर पाएगा, उन नदियों की ओर,

जिनमें दूध एवं दही बह रहे हैं.

वह अपनी उपलब्धियों को लौटाने लगा है, इसका उपभोग करना उसके लिए संभव नहीं है;

व्यापार में मिले लाभ का वह आनंद न ले सकेगा.

क्योंकि उसने कंगालों पर अत्याचार किए हैं तथा उनका त्याग कर दिया है;

उसने वह घर हड़प लिया है, जिसका निर्माण उसने नहीं किया है.

“इसलिये कि उसका मन विचलित था;

वह अपनी अभिलाषित वस्तुओं को अपने अधिकार में न रख सका.

खाने के लिये कुछ भी शेष न रह गया;

तब अब उसकी समृद्धि अल्पकालीन ही रह गई है.

जब वह परिपूर्णता की स्थिति में होगा तब भी वह संतुष्ट न रह सकेगा;

हर एक व्यक्ति, जो इस समय यातना की स्थिति में होगा, उसके विरुद्ध उठ खड़ा होगा.

जब वह पेट भरके खा चुका होगा, परमेश्वर

अपने प्रचंड कोप को उस पर उंडेल देंगे,

तभी यह कोप की वृष्टि उस पर बरस पड़ेगी.

संभव है कि वह लौह शस्त्र के प्रहार से बच निकले

किंतु कांस्यबाण तो उसे बेध ही देगा.

यह बाण उसकी देह में से खींचा जाएगा, और यह उसकी पीठ की ओर से बाहर आएगा,

उसकी चमकदार नोक उसके पित्त से सनी हुई है.

वह आतंक से भयभीत है.

घोर अंधकार उसकी संपत्ति की प्रतीक्षा में है.

अग्नि ही उसे चट कर जाएगी.

यह अग्नि उसके तंबू के बचे हुओं को भस्म कर जाएगी.

स्वर्ग ही उसके पाप को उजागर करेगा;

पृथ्वी भी उसके विरुद्ध खड़ी होगी.

उसके वंश का विस्तार समाप्‍त हो जाएगा,

परमेश्वर के कोप-दिवस पर उसकी संपत्ति नाश हो जाएगी.

यही होगा परमेश्वर द्वारा नियत दुर्वृत्त का भाग, हां,

वह उत्तराधिकार, जो उसे याहवेह द्वारा दिया गया है.”

Read More of अय्योब 20

अय्योब 21:1-34

अय्योब की चेतावनी

तब अय्योब ने उत्तर दिया:

“अब ध्यान से मेरी बात सुन लो

और इससे तुम्हें सांत्वना प्राप्‍त हो.

मेरे उद्गार पूर्ण होने तक धैर्य रखना,

बाद में तुम मेरा उपहास कर सकते हो.

“मेरी स्थिति यह है कि मेरी शिकायत किसी मनुष्य से नहीं है,

तब क्या मेरी अधीरता असंगत है?

मेरी स्थिति पर ध्यान दो तथा इस पर चकित भी हो जाओ;

आश्चर्यचकित होकर अपने मुख पर हाथ रख लो.

उसकी स्मृति मुझे डरा देती है;

तथा मेरी देह आतंक में समा जाती है.

क्यों दुर्वृत्त दीर्घायु प्राप्‍त करते जाते हैं?

वे उन्‍नति करते जाते एवं सशक्त हो जाते हैं.

इतना ही नहीं उनके तो वंश भी,

उनके जीवनकाल में समृद्ध होते जाते हैं.

उनके घरों पर आतंक नहीं होता;

उन पर परमेश्वर का दंड भी नहीं होता.

उसका सांड़ बिना किसी बाधा के गाभिन करता है;

उसकी गाय बच्‍चे को जन्म देती है, तथा कभी उसका गर्भपात नहीं होता.

उनके बालक संख्या में झुंड समान होते हैं;

तथा खेलते रहते हैं.

वे खंजरी एवं किन्‍नोर की संगत पर गायन करते हैं;

बांसुरी का स्वर उन्हें आनंदित कर देता है.

उनके जीवन के दिन तो समृद्धि में ही पूर्ण होते हैं,

तब वे एकाएक अधोलोक में प्रवेश कर जाते हैं.

वे तो परमेश्वर को आदेश दे बैठते हैं, ‘दूर हो जाइए मुझसे!’

कोई रुचि नहीं है हमें आपकी नीतियों में.

कौन है यह सर्वशक्तिमान, कि हम उनकी सेवा करें?

क्या मिलेगा, हमें यदि हम उनसे आग्रह करेंगे?

तुम्हीं देख लो, उनकी समृद्धि उनके हाथ में नहीं है,

दुर्वृत्तों की परामर्श मुझे स्वीकार्य नहीं है.

“क्या कभी ऐसा हुआ है कि दुष्टों का दीपक बुझा हो?

अथवा उन पर विपत्ति का पर्वत टूट पड़ा हो,

क्या कभी परमेश्वर ने अपने कोप में उन पर नाश प्रभावी किया है?

क्या दुर्वृत्त वायु प्रवाह में भूसी-समान हैं,

उस भूसी-समान जो तूफान में विलीन हो जाता है?

तुम दावा करते हो, ‘परमेश्वर किसी भी व्यक्ति के पाप को उसकी संतान के लिए जमा कर रखते हैं.’

तो उपयुक्त हैं कि वह इसका दंड प्रभावी कर दें, कि उसे स्थिति बोध हो जाए.

उत्तम होगा कि वह स्वयं अपने नाश को देख ले;

वह स्वयं सर्वशक्तिमान के कोप का पान कर ले.

क्योंकि जब उसकी आयु के वर्ष समाप्‍त कर दिए गए हैं

तो वह अपनी गृहस्थी की चिंता कैसे कर सकता है?

“क्या यह संभव है कि कोई परमेश्वर को ज्ञान दे,

वह, जो परलोक के प्राणियों का न्याय करते हैं?

पूर्णतः सशक्त व्यक्ति का भी देहावसान हो जाता है,

उसका, जो निश्चिंत एवं संतुष्ट था.

जिसकी देह पर चर्बी थी

तथा हड्डियों में मज्जा भी था.

जबकि अन्य व्यक्ति की मृत्यु कड़वाहट में होती है,

जिसने जीवन में कुछ भी सुख प्राप्‍त नहीं किया.

दोनों धूल में जा मिलते हैं,

और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं.

“यह समझ लो, मैं तुम्हारे विचारों से अवगत हूं,

उन योजनाओं से भी, जिनके द्वारा तुम मुझे छलते रहते हो.

तुम्हारे मन में प्रश्न उठ रहा है, ‘कहां है उस कुलीन व्यक्ति का घर,

कहां है वह तंबू, जहां दुर्वृत्त निवास करते हैं?’

क्या तुमने कभी अनुभवी यात्रियों से प्रश्न किया है?

क्या उनके साक्ष्य से तुम परिचित हो?

क्योंकि दुर्वृत्त तो प्रलय के लिए हैं,

वे कोप-दिवस पर बंदी बना लिए जाएंगे.

कौन उसे उसके कृत्यों का स्मरण दिलाएगा?

कौन उसे उसके कृत्यों का प्रतिफल देगा?

जब उसकी मृत्यु पर उसे दफन किया जाएगा,

लोग उसकी कब्र पर पहरेदार रखेंगे.

घाटी की मिट्टी उसे मीठी लगती है;

सभी उसका अनुगमन करेंगे,

जबकि असंख्य तो वे हैं, जो उसकी यात्रा में होंगे.

“तुम्हारे निरर्थक वचन मुझे सांत्वना कैसे देंगे?

क्योंकि तुम्हारे प्रत्युत्तर झूठी बातों से भरे हैं!”

Read More of अय्योब 21