यशायाह 55:1-13
प्यासों को निमंत्रण
“हे सब प्यासे लोगो,
पानी के पास आओ;
जिनके पास धन नहीं,
वे भी आकर दाखमधु
और दूध
बिना मोल ले जाएं!
जो खाने का नहीं है उस पर धन क्यों खर्च करते हो?
जिससे पेट नहीं भरता उसके लिये क्यों मेहनत करते हो?
ध्यान से मेरी सुनों, तब उत्तम वस्तुएं खाओगे,
और तृप्त होंगे.
मेरी सुनो तथा मेरे पास आओ;
ताकि तुम जीवित रह सको.
और मैं तुम्हारे साथ सदा की वाचा बांधूंगा,
जैसा मैंने दावीद से किया था.
मैंने उसे देशों के लिए गवाह,
प्रधान और आज्ञा देनेवाला बनाया है.
अब देख इस्राएल के पवित्र परमेश्वर याहवेह, ऐसे देशों को बुलाएंगे, जिन्हें तुम जानते ही नहीं,
और ऐसी जनता, जो तुम्हें जानता तक नहीं, तुम्हारे पास आएगी,
क्योंकि तुम्हें परमेश्वर ने शोभायमान किया है.”
जब तक याहवेह मिल सकते हैं उन्हें खोज लो;
जब तक वह पास हैं उन्हें पुकार लो.
दुष्ट अपनी चालचलन
और पापी अपने सोच-विचार छोड़कर याहवेह की ओर आए.
तब याहवेह उन पर दया करेंगे, जब हम परमेश्वर की ओर आएंगे,
तब वह हमें क्षमा करेंगे.
क्योंकि याहवेह कहते हैं,
“मेरे और तुम्हारे विचार एक समान नहीं,
न ही तुम्हारी गति और मेरी गति एक समान है.
क्योंकि जिस प्रकार आकाश और पृथ्वी में अंतर है,
उसी प्रकार मेरे और तुम्हारे कामों में बहुत अंतर है
तथा मेरे और तुम्हारे विचारों में भी बहुत अंतर है.
क्योंकि जिस प्रकार बारिश और ओस
आकाश से गिरकर भूमि को सींचते हैं,
जिससे बोने वाले को बीज,
और खानेवाले को रोटी मिलती है,
वैसे ही मेरे मुंह से निकला शब्द व्यर्थ नहीं लौटेगा:
न ही उस काम को पूरा किए बिना आयेगा
जिसके लिये उसे भेजा गया है.
क्योंकि तुम आनंद से निकलोगे
तथा शांति से पहुंचोगे;
तुम्हारे आगे पर्वत
एवं घाटियां जय जयकार करेंगी,
तथा मैदान के सभी वृक्ष
आनंद से ताली बजायेंगे.
कंटीली झाड़ियों की जगह पर सनोवर उगेंगे,
तथा बिच्छुबूटी की जगह पर मेंहदी उगेंगी.
इससे याहवेह का नाम होगा,
जो सदा का चिन्ह है,
उसे कभी मिटाया न जाएगा.”
यशायाह 56:1-12
सब राष्ट्रों को आशीष
याहवेह यों कहते हैं:
“न्याय का यों पालन करो
तथा धर्म के काम करो,
क्योंकि मैं जल्द ही तुम्हारा उद्धार करूंगा,
मेरा धर्म अब प्रकट होगा.
क्या ही धन्य है वह व्यक्ति जो ऐसा ही करता है,
वह मनुष्य जो इस पर अटल रहकर इसे थामे रहता है,
जो शब्बाथ को दूषित न करने का ध्यान रखता है,
तथा किसी भी गलत काम करने से अपने हाथ को बचाये रखता है.”
जो परदेशी याहवेह से मिल चुका है,
“यह न कहे कि निश्चय याहवेह मुझे अपने लोगों से अलग रखेंगे.”
खोजे भी यह कह न सके,
“मैं तो एक सुखा वृक्ष हूं.”
इस पर याहवेह ने कहा है:
“जो मेरे विश्राम दिन को मानते और जिस बात से मैं खुश रहता हूं,
वे उसी को मानते
और वाचा का पालन करते हैं—
उन्हें मैं अपने भवन में और भवन की दीवारों के भीतर
एक यादगार बनाऊंगा तथा एक ऐसा नाम दूंगा;
जो पुत्र एवं पुत्रियों से उत्तम और स्थिर एवं कभी न मिटेगा.
परदेशी भी जो याहवेह के साथ होकर
उनकी सेवा करते हैं,
और याहवेह के नाम से प्रीति रखते है,
उसके दास हो जाते है,
और विश्राम दिन को अपवित्र नहीं करते हुए पालते है,
तथा मेरी वाचा पूरी करते हैं—
मैं उन्हें भी अपने पवित्र पर्वत पर
तथा प्रार्थना भवन में लाकर आनंदित करूंगा.
उनके चढ़ाए होमबलि तथा मेलबलि
ग्रहण करूंगा;
क्योंकि मेरा भवन सभी देशों के लिए
प्रार्थना भवन कहलाएगा.”
प्रभु याहवेह,
जो निकाले हुए इस्राएलियों को इकट्ठा कर रहे हैं:
“उनका संदेश है कि जो आ चुके हैं,
मैं उनमें औरों को भी मिला दूंगा.”
दुष्टों के प्रति चेतावनी
हे मैदान के पशुओ,
हे जंगली पशुओ, भोजन के लिए आ जाओ!
अंधे हैं उनके पहरेदार,
अज्ञानी हैं वे सभी;
वे ऐसे गूंगे कुत्ते हैं,
जो भौंकते नहीं;
बिछौने पर लेटे हुए स्वप्न देखते,
जिन्हें नींद प्रिय है.
वे कुत्ते जो लोभी हैं;
कभी तृप्त नहीं होते.
ऐसे चरवाहे जिनमें समझ ही नहीं;
उन सभी ने अपने ही लाभ के लिए,
अपना अपना मार्ग चुन लिया.
वे कहते हैं, “आओ,
हम दाखमधु पीकर तृप्त हो जाएं!
कल का दिन भी आज के समान,
या इससे भी बेहतर होगा.”
यशायाह 57:1-13
धर्मी व्यक्ति नाश होते हैं,
और कोई इस बात की चिंता नहीं करता;
भक्त उठा लिये जाते हैं,
परंतु कोई नहीं सोचता.
धर्मी जन आनेवाली परेशानी से
बचने के लिये उठा लिये जाते हैं.
वे शांति पहचानते हैं,
वे अपने बिछौने57:2 बिछौने मृत्यु का भी हो सकता है पर आराम पाते हैं;
जो सीधी चाल चलते हैं.
“परंतु हे जादूगरनी,
व्यभिचारी और उसकी संतान यहां आओ!
तुम किस पर हंसते हो?
किसके लिए तुम्हारा मुंह ऐसा खुल रहा है
किस पर जीभ निकालते हो?
क्या तुम अत्याचार
व झूठ की संतान नहीं हो?
सब हरे वृक्ष के नीचे कामातुर होते हो और नालों में
तथा चट्टानों की गुफाओं में अपने बालकों का वध करते रहते हो.
तुम्हारा संबंध तो चट्टान के उन चिकने पत्थरों से है;
वही तुम्हारा भाग और अंश है.
तुम उन्हीं को अन्नबलि और पेय बलि चढ़ाते हो.
क्या इन सबसे मेरा मन शांत हो जाएगा?
ऊंचे पर्वत पर तुमने अपना बिछौना लगाया है;
और तुमने वहीं जाकर बलि चढ़ाई है.
द्वार तथा द्वार के चौखट के पीछे
तुमने अपने अन्य देवताओं का चिन्ह बनाया है, तुमने अपने आपको मुझसे दूर कर लिया है.
तुमने वहां अपनी देह दिखाई,
तब तुमने अपने बिछौने के स्थान को बढ़ा लिया;
तुमने उनके साथ अपने लिए एक संबंध बना लिया,
तुम्हारे लिए उनका बिछौना प्रिय हो गया,
और उनकी नग्न शरीरों पर आसक्ति से नज़र डाली!
राजा से मिलने के लिए तुमने यात्रा की
तथा सुगंध द्रव्य से श्रृंगार कर उसे तेल भेंट किया.
तुमने दूर देशों
और अधोलोक में अपना दूत भेजा!
तुम तो लंबे मार्ग के कारण थक चुके थे,
फिर भी तुमने यह न कहा कि, ‘व्यर्थ ही है यह.’
तुममें नए बल का संचार हुआ,
तब तुम थके नहीं.
“कौन था वह जिससे तुम डरती थी
जब तुमने मुझसे झूठ कहा,
तथा मुझे भूल गई,
तुमने तो मेरे बारे में सोचना ही छोड़ दिया था?
क्या मैं बहुत समय तक चुप न रहा
तुम इस कारण मेरा भय नहीं मानती?
मैं तुम्हारे धर्म एवं कामों को बता दूंगा,
लेकिन यह तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा.
बुलाने पर,
तुम्हारी मूर्तियां ही तुम्हारी रक्षा करें!
किंतु होगा यह कि हवा उन्हें उड़ा ले जाएगी,
केवल श्वास उन्हें दूर कर देगी.
परंतु वे जो मुझ पर भरोसा रखते हैं,
वह देश के अधिकारी होंगे,
तथा वह मेरे पवित्र पर्वत का स्वामी हो जाएगा.”