उद्बोधक 1:1-18, उद्बोधक 2:1-26, उद्बोधक 3:1-22 HCV

उद्बोधक 1:1-18

सब कुछ व्यर्थ है

दावीद के पुत्र, येरूशलेम में राजा, दार्शनिक के वचन:

“बेकार ही बेकार!”

दार्शनिक का कहना है.

“बेकार ही बेकार!

बेकार है सब कुछ.”

सूरज के नीचे मनुष्य द्वारा किए गए कामों से उसे क्या मिलता है?

एक पीढ़ी खत्म होती है और दूसरी आती है,

मगर पृथ्वी हमेशा बनी रहती है.

सूरज उगता है, सूरज डूबता है,

और बिना देर किए अपने निकलने की जगह पर पहुंच दोबारा उगता है.

दक्षिण की ओर बहती हुई हवा

उत्तर दिशा में मुड़कर निरंतर घूमते हुए अपने घेरे में लौट आती है.

हालांकि सारी नदियां सागर में मिल जाती हैं,

मगर इससे सागर भर नहीं जाता.

नदियां दोबारा उसी जगह पर बहने लगती हैं,

जहां वे बह रही थीं.

इतना थकाने वाला है सभी कुछ,

कि मनुष्य के लिए इसका वर्णन संभव नहीं.

आंखें देखने से तृप्‍त नहीं होतीं,

और न कान सुनने से संतुष्ट.

जो हो चुका है, वही है जो दोबारा होगा,

और जो किया जा चुका है, वही है जो दोबारा किया जाएगा;

इसलिये धरती पर नया कुछ भी नहीं.

क्या कुछ ऐसा है जिसके बारे में कोई यह कह सके,

“इसे देखो! यह है नया?”

यह तो हमसे पहले के युगों से होता आ रहा है.

कुछ याद नहीं कि पहले क्या हुआ,

और न यह कि जो होनेवाला है.

और न ही उनके लिए कोई याद बची रह जाएगी

जो उनके भी बाद आनेवाले हैं.

बुद्धि की व्यर्थता

मैं, दार्शनिक, येरूशलेम में इस्राएल का राजा रहा हूं. धरती पर जो सारे काम किए जाते हैं, मैंने बुद्धि द्वारा उन सभी कामों के जांचने और अध्ययन करने में अपना मन लगाया. यह बड़े दुःख का काम है, जिसे परमेश्वर ने मनुष्य के लिए इसलिये ठहराया है कि वह इसमें उलझा रहे! मैंने इन सभी कामों को जो इस धरती पर किए जाते हैं, देखा है, और मैंने यही पाया कि यह बेकार और हवा से झगड़ना है.

जो टेढ़ा है, उसे सीधा नहीं किया जा सकता;

और जो है ही नहीं, उसकी गिनती कैसे हो सकती है.

“मैं सोच रहा था, येरूशलेम में मुझसे पहले जितने भी राजा हुए हैं, मैंने उन सबसे ज्यादा बुद्धि पाई है तथा उन्‍नति की है; मैंने बुद्धि और ज्ञान के धन का अनुभव किया है.” मैंने अपना हृदय बुद्धि को और बावलेपन और मूर्खता को जानने में लगाया, किंतु मुझे अहसास हुआ कि यह भी हवा से झगड़ना ही है.

क्योंकि ज्यादा बुद्धि में बहुत दुःख होता है;

ज्ञान बढ़ाने से दर्द भी बढ़ता है.

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उद्बोधक 2:1-26

समृद्धि और सुख-विलास भी बेकार

मैंने अपने आपसे कहा, “चलो, मैं आनंद के द्वारा तुम्हें परखूंगा.” इसलिये आनंदित और मगन हो जाओ. मगर मैंने यही पाया कि यह भी बेकार ही है. मैंने हंसी के बारे में कहा, “यह बावलापन है” और आनंद के बारे में, “इससे क्या मिला?” जब मेरा मन यह सोच रहा था कि किस प्रकार मेरी बुद्धि बनी रहे, मैंने अपने पूरे मन से इसके बारे में खोज कर डाली कि किस प्रकार दाखमधु से शरीर को बहलाया जा सकता है और किस प्रकार मूर्खता को काबू में किया जा सकता है, कि मैं यह समझ सकूं कि पृथ्वी पर मनुष्यों के लिए उनके छोटे से जीवन में क्या करना अच्छा है.

मैंने अपने कामों को बढ़ाया: मैंने अपने लिए घरों को बनाया, मैंने अपने लिए अंगूर के बगीचे लगाए. मैंने बगीचे और फलों के बागों को बनाया और उनमें सब प्रकार के फलों के पेड़ लगाए. वनों में सिंचाई के लिए मैंने तालाब बनवाए ताकि उससे पेड़ बढ़ सकें. मैंने दास-दासी खरीदें जिनकी मेरे यहां ही संतानें भी पैदा हुईं. मैं बहुत से गाय-बैलों का स्वामी हो गया. जो मुझसे पहले थे उनसे कहीं अधिक मेरे गाय-बैल थे. मैंने अपने आपके लिए सोने, चांदी तथा राज्यों व राजाओं से धन इकट्ठा किया, गायक-गायिकाएं चुन लिए और उपपत्नियां भी रखीं जिससे पुरुषों को सुख मिलता है. मैं येरूशलेम में अपने से पहले वालों से बहुत अधिक महान हो गया. मेरी बुद्धि ने हमेशा ही मेरा साथ दिया.

मेरी आंखों ने जिस किसी चीज़ की इच्छा की;

मैंने उन्हें उससे दूर न रखा और न अपने मन को किसी आनंद से;

क्योंकि मेरी उपलब्धियों में मेरी संतुष्टि थी,

और यही था मेरे परिश्रम का पुरुस्कार.

इसलिये मैंने अपने द्वारा किए गए सभी कामों को,

और अपने द्वारा की गई मेहनत को नापा,

और यही पाया कि यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना था;

और धरती पर इसका कोई फायदा नहीं.

बुद्धि मूर्खता से बड़ी

सो मैंने बुद्धि, बावलेपन

तथा मूर्खता के बारे में विचार किया.

राजा के बाद आनेवाला इसके अलावा और क्या कर सकता है?

केवल वह जो पहले से होता आया है.

मैंने यह देख लिया कि बुद्धि मूर्खता से बेहतर है,

जैसे रोशनी अंधकार से.

बुद्धिमान अपने मन की आंखों से व्यवहार करता है,

जबकि मूर्ख अंधकार में चलता है.

यह सब होने पर भी मैं जानता हूं

कि दोनों का अंतिम परिणाम एक ही है.

मैंने मन में विचार किया,

जो दशा मूर्ख की है वही मेरी भी होगी.

तो मैं अधिक बुद्धिमान क्यों रहा?

“मैंने स्वयं को याद दिलाया,

यह भी बेकार ही है.”

बुद्धिमान को हमेशा याद नहीं किया जाएगा जैसे मूर्ख को;

कुछ दिनों में ही वे भुला दिए जाएंगे.

बुद्धिमान की मृत्यु कैसे होती है? मूर्ख के समान ही न!

मेहनत की व्यर्थता

इसलिये मुझे जीवन से घृणा हो गई क्योंकि धरती पर जो कुछ किया गया था वह मेरे लिए तकलीफ़ देनेवाला था; क्योंकि सब कुछ बेकार और हवा से झगड़ना था. इसलिये मैंने जो भी मेहनत इस धरती पर की थी उससे मुझे नफ़रत हो गई, क्योंकि इसे मुझे अपने बाद आनेवाले के लिए छोड़ना पड़ेगा. और यह किसे मालूम है कि वह बुद्धिमान होगा या मूर्ख. मगर वह उन सभी वस्तुओं का अधिकारी बन जाएगा जिनके लिए मैंने धरती पर बुद्धिमानी से मेहनत की. यह भी बेकार ही है. इसलिये धरती पर मेरे द्वारा की गई मेहनत के प्रतिफल से मुझे घोर निराशा हो गई. कभी एक व्यक्ति बुद्धि, ज्ञान और कुशलता के साथ मेहनत करता है और उसे हर एक वस्तु उस व्यक्ति के आनंद के लिए त्यागनी पड़ती है जिसने उसके लिए मेहनत ही नहीं की. यह भी बेकार और बहुत बुरा है. मनुष्य को अपनी सारी मेहनत और कामों से, जो वह धरती पर करता है, क्या मिलता है? वास्तव में सारे जीवन में उसकी पूरी मेहनत दुःखों और कष्टों से भरी होती है; यहां तक की रात में भी उसके मन को और दिमाग को आराम नहीं मिल पाता. यह भी बेकार ही है.

मनुष्य के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं है कि वह खाए, पिए और खुद को विश्वास दिलाए कि उसकी मेहनत उपयोगी है. मैंने यह भी पाया है कि इसमें परमेश्वर का योगदान होता है, नहीं तो कौन परमेश्वर से अलग हो खा-पीकर सुखी रह सकता है? क्योंकि जो मनुष्य परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है, उसे परमेश्वर ने बुद्धि, ज्ञान और आनंद दिया है, मगर पापी को परमेश्वर ने इकट्ठा करने और बटोरने का काम दिया है सिर्फ इसलिये कि वह उस व्यक्ति को दे दे जो परमेश्वर की नज़रों में अच्छा है. यह सब भी बेकार और हवा से झगड़ना है.

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उद्बोधक 3:1-22

हर एक काम के लिए तय समय

हर एक काम के लिए एक तय समय है,

और धरती पर हर एक काम करने का एक समय होता है:

जन्म का समय और मृत्यु का समय;

बोने का समय और बोए हुए को उखाड़ने का समय.

मार डालने का समय और स्वस्थ करने का समय;

गिराने का समय और बनाने का समय;

रोने का समय और हंसने का समय;

शोक करने का समय और नाचने का समय.

पत्थर फेंकने का समय और पत्थर इकट्ठा करने का समय;

गले लगाने का समय और गले न लगाने का समय.

खोजने का समय और छोड़ देने का समय;

बचाकर रखने का समय और फेंक देने का समय.

फाड़ने का समय और सीने का समय;

चुप रहने का समय और बोलने का समय.

प्रेम का समय और नफरत का समय;

युद्ध का समय और शांति का समय.

मेहनत करनेवाले को उससे क्या लाभ जिसके लिए वह मेहनत करता है? मनुष्य को व्यस्त रखने के लिए परमेश्वर द्वारा ठहराए गए कामों का अनुभव मैंने किया है. उन्होंने हर एक वस्तु को उसके लिए सही समय में ही बनाया है. उन्होंने मनुष्य के हृदय में अनंत काल का अहसास जगाया, फिर भी मनुष्य नहीं समझ पाता कि परमेश्वर ने शुरू से अंत तक क्या किया है. मैं जानता हूं कि मनुष्य के लिए इससे सही और कुछ नहीं कि वह जीवन में खुश रहे तथा दूसरों के साथ भलाई करने में लगा रहे. हर एक व्यक्ति खाते-पीते अपनी मेहनत के कामों में संतुष्ट रहे—यह मनुष्य के लिए परमेश्वर द्वारा दिया गया वरदान है. मुझे मालूम है कि परमेश्वर द्वारा किया गया-हर-एक काम सदा बना रहेगा; ऐसा कुछ भी नहीं कि इसमें जोड़ा नहीं जा सकता या इससे अलग किया जा सके. परमेश्वर ने ऐसा इसलिये किया है कि लोग उनके सामने श्रद्धा और भय में रहें.

वह जो है, पहले ही हो चुका तथा वह भी जो होने पर है,

पहले ही हो चुका;

क्योंकि परमेश्वर बीती हुई बातों को फिर से दोहराते हैं.

इसके अलावा मैंने धरती पर यह भी देखा कि:

न्याय की जगह दुष्टता है,

तथा अच्छाई की जगह में भी दुष्टता ही होती है.

मैंने सोचा,

“परमेश्वर धर्मी और दुष्ट दोनों का ही न्याय करेंगे,

क्योंकि हर एक काम और हर एक आरंभ का एक समय तय है.”

मनुष्यों के बारे में मैंने सोचा, “परमेश्वर निश्चित ही उनको परखते हैं कि मनुष्य यह समझ लें कि वे पशु के अलावा और कुछ नहीं. क्योंकि मनुष्य तथा पशु का अंत एक ही है: जैसे एक की मृत्यु होती है वैसे दूसरे की भी. उनकी सांस एक जैसी है; मनुष्य पशु से किसी भी तरह से बेहतर नहीं, क्योंकि सब कुछ बेकार है. सब की मंज़िल एक है. सभी मिट्टी से बने हैं और मिट्टी में मिल भी जाते हैं. किसे मालूम है कि मनुष्य के प्राण ऊपरी लोक में जाते हैं तथा पशु के प्राण पाताल में?”

मैंने यह पाया कि मनुष्य के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं है कि वह अपने कामों में संतुष्ट रहे, यही है उसकी मंज़िल. उसे कौन इस स्थिति में ला सकता है कि वह देख पाए कि क्या होगा उसके बाद?

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