يوحنا الأولى 4 – NAV & HCV

New Arabic Version

يوحنا الأولى 4:1-21

امتحنوا الأرواح

1أَيُّهَا الأَحِبَّاءُ، لَا تُصَدِّقُوا كُلَّ رُوحٍ، بَلِ امْتَحِنُوا الأَرْوَاحَ لِتَعْرِفُوا مَا إِذَا كَانَتْ مِنْ عِنْدِ اللهِ أَمْ لا، لأَنَّ عَدَداً كَبِيراً مِنَ الأَنْبِيَاءِ الدَّجَّالِينَ قَدِ انْتَشَرَ فِي الْعَالَمِ. 2وَهذِهِ هِيَ الطَّرِيقَةُ الَّتِي تَعْرِفُونَ بِها كَوْنَ الرُّوحِ مِنْ عِنْدِ اللهِ فِعْلاً: إِذَا كَانَ ذَلِكَ الرُّوحُ يَعْتَرِفُ بِأَنَّ يَسُوعَ الْمَسِيحَ قَدْ جَاءَ إِلَى الأَرْضِ فِي الْجَسَدِ، فَهُوَ مِنْ عِنْدِ اللهِ. 3وَإِنْ كَانَ يُنْكِرُ ذَلِكَ لَا يَكُونُ مِنْ عِنْدِ اللهِ، بَلْ مِنْ عِنْدِ ضِدِّ الْمَسِيحِ الَّذِي سَمِعْتُمْ أَنَّهُ سَوْفَ يَأْتِي، وَهُوَ الآنَ مَوْجُودٌ فِي الْعَالَمِ.

4أَيُّهَا الأَوْلادُ الصِّغَارُ، أَنْتُمْ مِنَ اللهِ، وَقَدْ غَلَبْتُمُ الَّذِينَ يُقَاوِمُونَ الْمَسِيحَ: لأَنَّ الرُّوحَ الْقُدُسَ السَّاكِنَ فِيكُمْ أَقْوَى مِنَ الرُّوحِ الشِّرِّيرِ الْمُنْتَشِرِ فِي الْعَالَمِ. 5هؤُلاءِ الْمُقَاوِمُونَ هُمْ مِنَ الْعَالَمِ، وَلِذَلِكَ يَسْتَمِدُّونَ كَلامَهُمْ مِنَ الْعَالَمِ، فَيُصْغِي أَهْلُ الْعَالَمِ إِلَيْهِمْ. 6أَمَّا نَحْنُ، فَإِنَّنَا مِنَ اللهِ، وَلِذلِكَ يُصْغِي إِلَيْنَا فَقَطْ مَنْ يَعْرِفُ اللهَ. أَمَّا الَّذِي لَيْسَ مِنَ اللهِ، فَلا يُصْغِي إِلَيْنَا. وَبِهَذَا، نُمَيِّزُ بَيْنَ رُوحِ الْحَقِّ وَرُوحِ الضَّلالِ.

محبة الله ومحبتنا

7أَيُّهَا الأَحِبَّاءُ، لِنُحِبَّ بَعْضُنَا بَعْضاً: لأَنَّ الْمَحَبَّةَ تَصْدُرُ مِنَ اللهِ. إِذَنْ، كُلُّ مَنْ يُحِبُّ، يَكُونُ مَوْلُوداً مِنَ اللهِ وَيَعْرِفُ اللهَ. 8أَمَّا مَنْ لَا يُحِبُّ، فَهُوَ لَمْ يَتَعَرَّفْ بِاللهِ قَطُّ لأَنَّ اللهَ مَحَبَّةٌ! 9وَقَدْ أَظْهَرَ اللهُ مَحَبَّتَهُ لَنَا إِذْ أَرْسَلَ ابْنَهُ الْوَحِيدَ إِلَى الْعَالَمِ لِكَيْ نَحْيَا بِهِ. 10وَفِي هَذَا نَرَى الْمَحَبَّةَ الْحَقِيقِيَّةَ، لَا مَحَبَّتَنَا نَحْنُ لِلهِ، بَلْ مَحَبَّتَهُ هُوَ لَنَا. فَبِدَافِعِ مَحَبَّتِهِ، أَرْسَلَ ابْنَهُ كَفَّارَةً لِخَطَايَانَا.

11وَمَادَامَ اللهُ قَدْ أَحَبَّنَا هَذِهِ الْمَحَبَّةَ الْعَظِيمَةَ، أَيُّهَا الأَحِبَّاءُ، فَعَلَيْنَا نَحْنُ أَيْضاً أَنْ نُحِبَّ بَعْضُنَا بَعْضاً.

12إِنَّ اللهَ لَمْ يَرَهُ أَحَدٌ مِنَ النَّاسِ قَطُّ. وَلكِنْ، حِينَ نُحِبُّ بَعْضُنَا بَعْضاً، نُبَيِّنُ أَنَّ اللهَ يَحْيَا فِي دَاخِلِنَا، وَأَنَّ مَحَبَّتَهُ قَدِ اكْتَمَلَتْ فِي دَاخِلِنَا. 13وَمَا يُؤَكِّدُ لَنَا أَنَّنَا نَثْبُتُ فِي اللهِ، وَأَنَّهُ يَثْبُتُ فِينَا هُوَ أَنَّهُ وَهَبَ لَنَا مِنْ رُوحِهِ. 14وَنَحْنُ أَنْفُسُنَا نَشْهَدُ أَنَّ الآبَ قَدْ أَرْسَلَ الابْنَ مُخَلِّصاً لِلْعَالَمِ، لأَنَّنَا رَأَيْنَاهُ بِعُيُونِنَا.

15مَنْ يَعْتَرِفْ بِأَنَّ يَسُوعَ هُوَ ابْنُ اللهِ، فَإِنَّ اللهَ يَثْبُتُ فِيهِ، وَهُوَ يَثْبُتُ فِي اللهِ، 16وَنَحْنُ أَنْفُسُنَا اخْتَبَرْنَا الْمَحَبَّةَ الَّتِي خَصَّنَا اللهُ بِها، وَوَضَعْنَا ثِقَتَنَا فِيهَا. إِنَّ اللهَ مَحَبَّةٌ. وَمَنْ يَثْبُتْ فِي الْمَحَبَّةِ، فَإِنَّهُ يَثْبُتُ فِي اللهِ، وَاللهُ يَثْبُتُ فِيهِ. 17وَتَكُونُ مَحَبَّةُ اللهِ قَدِ اكْتَمَلَتْ فِي دَاخِلِنَا حِينَ تُوَلِّدُ فِينَا ثِقَةً كَامِلَةً مِنْ جِهَةِ يَوْمِ الدَّيْنُونَةِ: لأَنَّهُ كَمَا الْمَسِيحُ، هكَذَا نَحْنُ أَيْضاً فِي هَذَا الْعَالَمِ.

18لَيْسَ فِي الْمَحَبَّةِ أَيُّ خَوْفٍ. بَلِ الْمَحَبَّةُ الْكَامِلَةُ تَطْرُدُ الْخَوْفَ خَارِجاً. فَإِنَّ الْخَوْفَ يَكُونُ مِنَ الْعِقَابِ. وَالْخَائِفُ لَا تَكُونُ مَحَبَّةُ اللهِ قَدِ اكْتَمَلَتْ فِيهِ. 19وَنَحْنُ نُحِبُّ، لأَنَّ اللهَ أَحَبَّنَا أَوَّلاً. 20فَإِنْ قَالَ أَحَدٌ: «أَنَا أُحِبُّ اللهَ!» وَلكِنَّهُ يُبْغِضُ أَخاً لَهُ، فَهُوَ كَاذِبٌ، لأَنَّهُ إِنْ كَانَ لَا يُحِبُّ أَخَاهُ الَّذِي يَرَاهُ، فَكَيْفَ يَقْدِرُ أَنْ يُحِبَّ اللهَ الَّذِي لَمْ يَرَهُ قَطُّ؟ 21فَهَذِهِ الْوَصِيَّةُ جَاءَتْنَا مِنَ الْمَسِيحِ نَفْسِهِ: مَنْ يُحِبُّ اللهَ، يُحِبُّ أَخَاهُ!

Hindi Contemporary Version

1 योहन 4:1-21

आत्माओं को परखना

1प्रिय भाई बहनो, हर एक आत्मा का विश्वास न करो परंतु आत्माओं को परखकर देखो कि वे परमेश्वर की ओर से हैं भी या नहीं, क्योंकि संसार में अनेक झूठे भविष्यवक्ता पवित्र आत्मा के वक्ता होने का दावा करते हुए कार्य कर रहे हैं. 2परमेश्वर के आत्मा को तुम इस प्रकार पहचान सकते हो: ऐसी हर एक आत्मा, जो परमेश्वर की ओर से है, यह स्वीकार करती है कि मसीह येशु का अवतार मानव के शरीर में हुआ. 3ऐसी हर एक आत्मा, जो मसीह येशु को स्वीकार नहीं करती परमेश्वर की ओर से नहीं है. यह मसीह विरोधी की आत्मा है, जिसके विषय में तुमने सुना था कि वह आने पर है और अब तो वह संसार में आ ही चुकी है.

4प्रिय भाई बहनो, तुम परमेश्वर के हो. तुमने झूठे भविष्यद्वक्ताओं को हराया है; श्रेष्ठ वह हैं, जो तुम्हारे अंदर में हैं, बजाय उसके जो संसार में है. 5वे संसार के हैं इसलिये उनकी बातचीत के विषय भी सांसारिक ही होते हैं तथा संसार उनकी बातों पर मन लगाता है. 6हम परमेश्वर की ओर से हैं. वे जो परमेश्वर को जानते है, हमारी सुनते हैं. जो परमेश्वर के नहीं है, वह हमारी नहीं सुनते. इसी से हम सत्य के आत्मा तथा असत्य के आत्मा की पहचानकर सकते हैं.

सच्चा प्रेम

7प्रिय भाई बहनो, हममें आपसी प्रेम रहे: प्रेम परमेश्वर से उत्पन्‍न हुआ है. हर एक, जिसमें प्रेम है, परमेश्वर से जन्मा है तथा उन्हें जानता है. 8वह जिसमें प्रेम नहीं, परमेश्वर से अनजान है क्योंकि परमेश्वर प्रेम हैं. 9हममें परमेश्वर का प्रेम इस प्रकार प्रकट हुआ: परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा कि हम उनके द्वारा जीवन प्राप्‍त करें. 10प्रेम वस्तुतः यह है: परमेश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम के कारण अपने पुत्र को हमारे पापों के लिए प्रायश्चित बलि होने के लिए भेज दिया—यह नहीं कि हमने परमेश्वर से प्रेम किया है. 11प्रिय भाई बहनो, यदि हमारे प्रति परमेश्वर का प्रेम इतना अधिक है तो सही है कि हममें भी आपस में प्रेम हो. 12परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा. यदि हममें आपस में प्रेम है तो हमारे भीतर परमेश्वर का वास है तथा उनके प्रेम ने हममें पूरी सिद्धता प्राप्‍त कर ली है.

13हमें यह अहसास होता है कि हमारा उनमें और उनका हममें वास है क्योंकि उन्होंने हमें अपना आत्मा दिया है. 14हमने यह देखा है और हम इसके गवाह हैं कि पिता ने पुत्र को संसार का उद्धारकर्ता होने के लिए भेज दिया. 15जो कोई यह स्वीकार करता है कि मसीह येशु परमेश्वर-पुत्र हैं, परमेश्वर का उसमें और उसका परमेश्वर में वास है. 16हमने अपने प्रति परमेश्वर के प्रेम को जान लिया और उसमें विश्वास किया है.

परमेश्वर प्रेम हैं. वह, जो प्रेम में स्थिर है, परमेश्वर में बना रहता है तथा स्वयं परमेश्वर उसमें बना रहता हैं. 17तब हमें न्याय के दिन के संदर्भ में निर्भयता प्राप्‍त हो जाती है क्योंकि संसार में हमारा स्वभाव मसीह के स्वभाव के समान हो गया है, परिणामस्वरूप हमारा आपसी प्रेम सिद्धता की स्थिति में पहुंच जाता है. 18इस प्रेम में भय का कोई भाग नहीं होता क्योंकि सिद्ध प्रेम भय को निकाल फेंकता है. भय का संबंध दंड से है और उसने, जो भयभीत है प्रेम में यथार्थ सम्पन्‍नता प्राप्‍त नहीं की.

19हम प्रेम इसलिये करते हैं कि पहले उन्होंने हमसे प्रेम किया है. 20यदि कोई दावा करे, “मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूं” परंतु साथी विश्वासी से घृणा करे, वह झूठा है, क्योंकि जिसने साथी विश्वासी को देखा है और उससे प्रेम नहीं करता तो वह परमेश्वर से, जिन्हें उसने देखा ही नहीं, प्रेम कर ही नहीं सकता, 21यह आज्ञा हमें उन्हीं से प्राप्‍त हुई है कि वह, जो परमेश्वर से प्रेम करता है, साथी विश्वासी से भी प्रेम करे.