مزمور 7 – NAV & HCV

New Arabic Version

مزمور 7:1-17

الْمَزْمُورُ السَّابِعُ

قَصِيدَةُ حُزْنٍ نَظَمَهَا دَاوُدُ وَرَنَّمَهَا لِلرَّبِّ رَدّاً لِلتُّهْمَةِ الَّتِي رَمَاهُ بِها كُوشُ الْبَنْيَامِينِيُّ

1أَيُّهَا الرَّبُّ إِلَهِي، إِلَيْكَ الْتَجَأْتُ، فَأَنْقِذْنِي وَنَجِّنِي مِنْ جَمِيعِ مُطَارِدِيَّ، 2لِئَلّا يَفْتَرِسَ الْعَدُوُّ نَفْسِي كَالأَسَدِ، وَلَيْسَ مَنْ يُنْقِذُنِي.

3أَيُّهَا الرَّبُّ إِلَهِي، إِنْ كُنْتُ قَدِ اقْتَرَفْتُ هَذِهِ الإِسَاءَةَ، وَكَانَتْ يَدَايَ قَدِ ارْتَكَبَتَا هَذَا الإِثْمَ، 4إِنْ كُنْتُ قَدْ أَسَأْتُ لِمَنْ أَحْسَنَ إِلَيَّ وَسَلَبْتُ عَدُوِّي مِنْ غَيْرِ سَبَبٍ، 5إِذَنْ فَلْيُطَارِدِ الْعَدُوُّ نَفْسِي ويَنْزِعْهَا مِنِّي، وَلْيَدُسْ فِي الأَرْضِ حَيَاتِي، وَيُعَفِّرْ فِي التُّرَابِ شَرَفِي.

6انْهَضْ يَا رَبُّ فِي احْتِدَامِ غَضَبِكَ، وَانْتَصِبْ فِي وَجْهِ سَخَطِ خُصُومِي، يَا مَنْ أَوْصَيْتَ بِالْعَدْلِ. 7لِتُحِطْ بِكَ جَمَاعَةُ الشُّعُوبِ فَتَحْكُمَهَا مِنْ مَنَصَّةِ الْقَضَاءِ الْعَالِيَةِ. 8إِنَّ الرَّبَّ يَدِينُ الأُمَمَ. اقضِ لِي يَا رَبُّ كَحَقِّي، بِحَسَبِ مَا فِيَّ مِنْ كَمَالٍ. 9ضَعْ حَدّاً لِشَرِّ الأَشْرَارِ، وَأَثْبِتْ بَرَاءَةَ الأَبْرَارِ، أَيُّهَا الإِلَهُ الْعَادِلُ فَاحِصُ الْقُلُوبِ وَالدَّخَائِلِ. 10مَلْجَإِي عِنْدَ اللهِ مُخَلِّصِ مُسْتَقِيمِي الْقُلُوبِ.

11اللهُ قَاضٍ عَادِلٌ، وَهُوَ إِلَهٌ يَسْخَطُ عَلَى الأَشْرَارِ فِي كُلِّ يَوْمٍ. 12صَقَلَ سَيْفَهُ لِيَضْرِبَ بِهِ الشِّرِّيرَ الَّذِي لَا يَتُوبُ. وَتَّرَ قَوْسَهُ وَهَيَّأَهَا. 13أَعَدَّ لَهُ الأَسْلِحَةَ الْقَتَّالَةَ، وَجَعَلَ سِهَامَهُ مُحْرِقَةً.

14هُوَذَا الْعَدُوُّ يَتَمَخَّضُ بِالإِثْمِ، يَحْبَلُ بِالأَذَى، وَيَلِدُ كَذِباً. 15حَفَرَ بِئْراً وَعَمَّقَهَا، فَسَقَطَ فِيهَا. 16شَرُّهُ يَرْتَدُّ عَلَى رَأْسِهِ، وَظُلْمُهُ يَهْبِطُ عَلَى هَامَتِهِ. 17إِنِّي أَحْمَدُ الرَّبَّ مِنْ أَجْلِ عَدَالَتِهِ، وَأَتَرَنَّمُ لاسْمِ الرَّبِّ العَلِيِّ.

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 7:1-17

स्तोत्र 7

दावीद का शिग्गायोन7:0 शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द जिसे दावीद ने बिन्यामिन गोत्र के कूश के संदर्भ में याहवेह के सामने गाया.

1याहवेह, मेरे परमेश्वर! मैं आपके ही आश्रय में आया हूं;

उन सबसे मुझे बचा लीजिए, जो मेरा पीछा कर रहे हैं, उन सबसे मेरी रक्षा कीजिए,

2अन्यथा वे मेरे प्राण को सिंह की नाई फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे,

जबकि मुझे छुड़ाने के लिए वहां कोई भी न होगा.

3याहवेह, मेरे परमेश्वर, यदि मैंने वह किया है, जैसा वे कह रहे हैं,

यदि मैं किसी अनुचित कार्य का दोषी हूं,

4यदि मैंने उसकी बुराई की है, जिसके साथ मेरे शान्तिपूर्ण संबंध थे,

अथवा मैंने अपने शत्रु को अकारण ही मुक्त कर दिया है,

5तो शत्रु मेरा पीछा करे और मुझे पकड़ ले;

वह मुझे पैरों से कुचलकर मार डाले

और मेरी महिमा को धूल में मिला दे.

6याहवेह, कोप में उठिए;

मेरे शत्रुओं के विरुद्ध अत्यंत झुंझलाहट के साथ उठिये.

अपने निर्धारित न्याय-दंड के अनुरूप मेरे पक्ष में सहायता कीजिए.

7आपके चारों ओर विश्व के समस्त राष्ट्र एकत्र हों

और आप पुनः उनके मध्य अपने निर्धारित उच्चासन पर विराजमान हो जाइए,

8याहवेह ही राष्ट्रों के न्यायाध्यक्ष हैं.

याहवेह, मेरी सच्चाई,

एवं ईमानदारी के कारण मेरा न्याय करें,

9दुष्ट के दुष्कर्म समाप्‍त हो जाएं

आप ईमानदारी को स्थिर करें,

आप ही युक्त परमेश्वर हैं.

आप ही हैं, जो मन के विचारों एवं मर्म की विवेचना करते हैं.

10परमेश्वर मेरी सुरक्षा की ढाल हैं,

वही सीधे मनवालों को बचाते हैं.

11परमेश्वर युक्त न्यायाध्यक्ष हैं, ऐसे परमेश्वर,

जो सदैव ही बुराई से क्रोध करते हैं.

12यदि मनुष्य पश्चात्ताप न करे,

परमेश्वर अपनी तलवार की धार तीक्ष्ण करते हैं;

वह अपना धनुष साध बाण डोरी पर चढ़ा लेते हैं.

13परमेश्वर ने अपने घातक शस्त्र तैयार कर लिए हैं;

उन्होंने अपने बाणों को अग्निबाण बना लिया है.

14दुष्ट जन विनाश की योजनाओं को अपने गर्भ में धारण किए हुए हैं,

वे झूठ का जन्म देते हैं.

15उसने भूमि खोदी और गड्ढा बनाया और

वह अपने ही खोदे हुए गड्ढे में जा गिरा.

16उसकी विनाशक युक्तियां लौटकर उसी के सिर पर आ पड़ेंगी;

उसकी हिंसा उसी की खोपड़ी पर आ उतरेगी.

17मैं याहवेह को उनके धर्म के अनुसार धन्यवाद दूंगा;

मैं सर्वोच्च याहवेह के नाम का स्तवन करूंगा.