الْمَزْمُورُ الرَّابِعُ وَالأَرْبَعُونَ
لِقَائِدِ الْمُنْشِدِينَ، مَزْمُورٌ تَعْلِيمِيٌّ لِبَنِي قُورَحَ
1يَا اللهُ، بِآذَانِنَا قَدْ سَمِعْنَا، وَآبَاؤُنَا أَخْبَرُونَا بِمَا عَمِلْتَهُ فِي أَيَّامِهِمِ الْقَدِيمَةِ. 2بِيَدِكَ اقْتَلَعْتَ الأُمَمَ، وَغَرَسْتَ آبَاءَنَا. حَطَّمْتَ الشُّعُوبَ وَأَنْمَيْتَهُمْ. 3لَمْ يَمْتَلِكُوا الأَرْضَ بِسَيْفِهِمْ وَلَا بِذِرَاعِهِمْ خَلُصُوا، وَلَكِنْ بِفَضْلِ يُمْنَاكَ وَذِرَاعِكَ وَنُورِ وَجْهِكَ، لأَنَّكَ رَضِيتَ عَنْهُمْ. 4أَنْتَ هُوَ مَلِكِي يَا اللهُ، فَمُرْ بِخَلاصِ شَعْبِكَ. 5بِعَوْنِكَ نَطْرَحُ خُصُومَنَا أَرْضاً، وَبِاسْمِكَ نَدُوسُ الْقَائِمِينَ عَلَيْنَا. 6فَإِنِّي لَنْ أَتَّكِلَ عَلَى قَوْسِي وَلَنْ يُخَلِّصَنِي سَيْفِي. 7فَأَنْتَ أَنْقَذْتَنَا مِنْ مُضَايِقِينَا وَأَلْحَقْتَ الْعَارَ بِمُبْغِضِينَا. 8بِاللهِ نَفْتَخِرُ الْيَوْمَ كُلَّهُ، وَنَحْمَدُ اسْمَكَ إِلَى الأَبَدِ.
9غَيْرَ أَنَّكَ قَدْ رَذَلْتَنَا وَأَخْجَلْتَنَا، وَلَمْ تَعُدْ تُرَافِقُ جُنُودَنَا إِلَى الْحَرْبِ. 10جَعَلْتَنَا نَتَقَهْقَرُ أَمَامَ عَدُوِّنَا. أَمَّا مُبْغِضُونَا فَيَغْنَمُونَ لأَنْفُسِهِمْ. 11أَسْلَمْتَنَا كَغَنَمٍ مُعَدَّةٍ لِلذَّبْحِ، وَبَدَّدْتَنَا بَيْنَ الأُمَمِ. 12بِعْتَ شَعْبَكَ بِلَا مَالٍ وَبِثَمَنِهِمْ لَمْ تَرْبَحْ. 13تَجْعَلُنَا عَاراً عِنْدَ جِيرَانِنَا، وَمَثَارَ هُزْءٍ وَسُخْرِيَةٍ لِمَنْ حَوْلَنَا. 14تَجْعَلُنَا مَثَلاً بَيْنَ الأُمَمِ وَأُضْحُوكَةً بَيْنَ الشُّعُوبِ. 15الْيَوْمَ كُلَّهُ خَجَلِي مَاثِلٌ أَمَامِي، وَخِزْيُ وَجْهِي قَدْ غَمَرَنِي 16مِنْ صَوْتِ الْمُعَيِّرِ وَالْمُجَدِّفِ وَمَرْأَى الْعَدُوِّ الْمُنْتَقِمِ.
17هَذَا كُلُّهُ وَقَعَ عَلَيْنَا، فَمَا نَسِينَاكَ وَلَا خُنَّا عَهْدَكَ. 18لَمْ يَرْتَدَّ قَلْبُنَا إِلَى الْوَرَاءِ، وَلَا حَادَتْ خُطْوَاتُنَا عَنْ طَرِيقِكَ. 19مَعَ أَنَّكَ سَحَقْتَنَا وَسَطَ الْوُحُوشِ، وَغَمَرْتَنَا بِظِلالِ الْمَوْتِ. 20إِنْ كُنَّا قَدْ نَسِينَا اسْمَ إِلَهِنَا، وَصَلَّيْنَا إِلَى إِلَهٍ غَرِيبٍ، 21أَلَا يَعْرِفُ اللهُ ذَلِكَ وَهُوَ عَلّامُ الغُيُوبِ؟ 22أَلَا أَنَّنَا مِنْ أَجْلِكَ نُعَانِي الْمَوْتَ طُولَ النَّهَارِ، وَقَدْ حُسِبْنَا مِثْلَ غَنَمٍ مُعَدَّةٍ لِلذَّبْحِ.
23قُمْ يَا رَبُّ. لِمَاذَا تَتَغَافَى؟ انْتَبِهْ وَلَا تَنْبِذْنَا إِلَى الأَبَدِ. 24لِمَاذَا تَحْجُبُ وَجْهَكَ وَتَنْسَى مَذَلَّتَنَا وَضِيقَنَا؟ 25إِنَّ نُفُوسَنَا قَدِ انْحَنَتْ إِلَى التُّرَابِ، وَبُطُونَنَا لَصِقَتْ بِالأَرْضِ. 26هُبَّ لِنَجْدَتِنَا وَافْدِنَا مِنْ أَجْلِ رَحْمَتِكَ.
स्तोत्र 44
संगीत निर्देशक के लिये. कोराह के पुत्रों की रचना. एक मसकील.44:0 शीर्षक: शायद साहित्यिक या संगीत संबंधित एक शब्द
1हे परमेश्वर, हमने अपने कानों से सुना है,
पूर्वजों ने उसका उल्लेख किया है,
कि प्राचीन काल में,
हमारे पूर्वजों के समय में
आपने जो कुछ किया है:
2अपने भुजबल से आपने जनताओं को निकाल दिया
और उनके स्थान पर हमारे पूर्वजों को बसा दिया;
आपने उन लोगों को कुचल दिया
और हमारे पूर्वजों को समृद्ध बना दिया.
3यह अधिकार उन्होंने अपनी तलवार के बल पर नहीं किया,
और न ही यह उनके भुजबल का परिणाम था;
यह परिणाम था आपके दायें हाथ,
उसकी सामर्थ्य तथा
आपके मुख के प्रकाश का, क्योंकि वे आपकी प्रीति के पात्र थे.
4मेरे परमेश्वर, आप मेरे राजा हैं,
याकोब की विजय का आदेश दीजिए.
5आपके द्वारा ही हम अपने शत्रुओं पर प्रबल हो सकेंगे;
आप ही के महिमामय नाम से हम अपने शत्रुओं को कुचल डालेंगे.
6मुझे अपने धनुष पर भरोसा नहीं है,
मेरी तलवार भी मेरी विजय का साधन नहीं है;
7हमें अपने शत्रुओं पर विजय आपने ही प्रदान की है,
आपने ही हमारे शत्रुओं को लज्जित किया है.
8हम निरंतर परमेश्वर में गर्व करते रहे,
हम सदा-सर्वदा आपकी महिमा का धन्यवाद करते रहेंगे.
9किंतु अब आपने हमें लज्जित होने के लिए शोकित छोड़ दिया है;
आप हमारी सेना के साथ भी नहीं चल रहे.
10आपके दूर होने के कारण, हमें शत्रुओं को पीठ दिखानी पड़ी.
यहां तक कि हमारे विरोधी हमें लूटकर चले गए.
11आपने हमें वध के लिए निर्धारित भेड़ों समान छोड़ दिया है.
आपने हमें अनेक राष्ट्रों में बिखेर दिया है.
12आपने अपनी प्रजा को मिट्टी के मोल बेच दिया,
और ऊपर से आपने इसमें लाभ मिलने की भी बात नहीं की.
13अपने पड़ोसियों के लिए अब हम निंदनीय हो गए हैं,
सबके सामने घृणित एवं उपहास पात्र.
14राष्ट्रों में हम उपमा होकर रह गए हैं;
हमारे नाम पर वे सिर हिलाने लगते हैं.
15सारे दिन मेरा अपमान मेरे सामने झूलता रहता है,
तथा मेरी लज्जा ने मुझे भयभीत कर रखा है.
16उस शत्रु की वाणी, जो मेरी निंदा एवं मुझे कलंकित करता है,
उसकी उपस्थिति के कारण जो शत्रु तथा बदला लेनेवाले है.
17हमने न तो आपको भुला दिया था,
और न हमने आपकी वाचा ही भंग की;
फिर भी हमें यह सब सहना पड़ा.
18हमारे हृदय आपसे बहके नहीं;
हमारे कदम आपके मार्ग से भटके नहीं.
19फिर भी आपने हमें उजाड़ कर गीदड़ों का बसेरा बना दिया;
और हमें गहन अंधकार में छिपा दिया.
20यदि हम अपने परमेश्वर को भूल ही जाते
अथवा हमने अन्य देवताओं की ओर हाथ बढ़ाया होता,
21क्या परमेश्वर को इसका पता न चल गया होता,
उन्हें तो हृदय के सभी रहस्यों का ज्ञान होता है?
22फिर भी आपके निमित्त हम दिन भर मृत्यु का सामना करते रहते हैं;
हमारी स्थिति वध के लिए निर्धारित भेड़ों के समान है.
23जागिए, प्रभु! सो क्यों रहे हैं?
उठ जाइए! हमें सदा के लिए शोकित न छोड़िए.
24आपने हमसे अपना मुख क्यों छिपा लिया है
हमारी दुर्दशा और उत्पीड़न को अनदेखा न कीजिए?
25हमारे प्राण धूल में मिल ही चुके हैं;
हमारा पेट भूमि से जा लगा है.
26उठकर हमारी सहायता कीजिए;
अपने करुणा-प्रेम के निमित्त हमें मुक्त कीजिए.