الْمَزْمُورُ الْمِئَةُ وَالثَّانِي وَالثَّلاثُونَ
تَرْنِيمَةُ الْمَصَاعِدِ
1اذْكُرْ يَا رَبُّ دَاوُدَ وَكُلَّ مُعَانَاتِهِ. 2اذْكُرْ كَيْفَ أَقْسَمَ لِلرَّبِّ وَنَذَرَ لإِلَهِ يَعْقُوبَ الْقَدِيرِ: 3«لَنْ أَدْخُلَ بَيْتَ سُكْنَايَ، وَلَنْ أَعْلُوَ فِرَاشِي، 4وَلَنْ أُعْطِيَ عَيْنَيَّ نَوْماً وَلَا أَجْفَانِي نُعَاساً، 5حَتَّى أَبْنِيَ مَقَاماً لِتَابُوتِ الرَّبِّ، وَمَسْكِناً لإِلَهِ يَعْقُوبَ الْقَدِيرِ». 6فِي أَفْرَاتَةَ سَمِعْنَا بِهِ، وَفِي حُقُولِ الْوَعْرِ وَجَدْنَاهُ، 7فَقُلْنَا: «لِنَدْخُلْ إِلَى بَيْتِ الرَّبِّ، وَلْنَسْجُدْ عِنْدَ مَوْطِئِ قَدَمَيْهِ».
8عُدْ إِلَى هَيْكَلِكَ يَا رَبُّ، أَنْتَ وَتَابُوتُ عِزَّتِكَ. 9لِيَرْتَدِ كَهَنَتُكَ البِرَّ ثَوْباً، وَلِيَهْتِفْ أَتْقِيَاؤُكَ فَرَحاً. 10مِنْ أَجْلِ دَاوُدَ عَبْدِكَ لَا تَرْفُضْ طَلَبَ مَلِكِكَ الْمَمْسُوحِ. 11قَدْ أَقْسَمَ الرَّبُّ لِدَاوُدَ قَسَماً صَادِقاً لَا يَرْجِعُ عَنْهُ: «مِنْ ثَمَرَةِ بَطْنِكَ أُقِيمُ مَلِكاً عَلَى عَرْشِكَ. 12إِذَا حَفِظَ بَنُوكَ عَهْدِي وَشَهَادَاتِي الَّتِي أُعَلِّمُهُمْ إِيَّاهَا، يَجْلِسُ بَنُوهُمْ أَيْضاً عَلَى عَرْشِكَ إِلَى الأَبَدِ». 13لأَنَّ الرَّبَّ قَدِ اخْتَارَ أُورُشَلِيمَ وَرَغِبَ أَن تَكُونَ لَهُ مَسْكَناً. 14وَقَالَ: «هَذِهِ مَقَرُّ رَاحَتِي إِلَى الأَبَدِ، فِيهَا أَسْكُنُ لأَنِّي أَحْبَبْتُهَا. 15أُبَارِكُ غَلَّاتِهَا بَرَكَةً جَزِيلَةً، وَأُشْبِعُ مَسَاكِينَهَا خُبْزاً. 16أُلْبِسُ كَهَنَتَهَا ثَوْبَ الْخَلاصِ، فَيَهْتِفُ قِدِّيسُوهَا مُتَرَنِّمِينَ. 17أُقِيمُ هُنَاكَ مَلِكاً عَظِيماً مِنْ أَصْلِ دَاوُدَ، وَأُعِدُّ سِرَاجاً مُنِيراً لِمَنْ أَمْسَحُهُ. 18أَكْسُو أَعْدَاءَهُ خِزْياً. أَمَّا هُوَ، فَعَلَى رَأْسِهِ يَتَأَلَّقُ تَاجُهُ».
स्तोत्र 132
आराधना के लिए यात्रियों का गीत.
1याहवेह, दावीद को और उनके द्वारा झेली गई
समस्त विषमताओं को स्मरण कीजिए.
2उन्होंने याहवेह की शपथ खाई,
तथा याकोब के सर्वशक्तिमान से शपथ की थी:
3“मैं न तो तब तक घर में प्रवेश करूंगा
और न मैं अपने बिछौने पर जाऊंगा,
4न तो मैं अपनी आंखों में नींद आने दूंगा
और न पलकों में झपकी,
5जब तक मुझे याहवेह के लिए एक स्थान उपलब्ध न हो जाए,
याकोब के सर्वशक्तिमान के आवास के लिए.”
6इसके विषय में हमने एफ़राथा में सुना,
याअर के मैदान में भी यही पाया गया:
7“आओ, हम उनके आवास को चलें;
हम उनके चरणों में जाकर आराधना करें.
8‘याहवेह, अब उठकर अपने विश्राम स्थल पर आ जाइए,
आप और आपकी सामर्थ्य का संदूक भी.
9आपके पुरोहित धर्म के वस्त्र पहिने हुए हों;
और आपके सात्विक हर्ष गीत गाएं.’ ”
10अपने सेवक दावीद के निमित्त,
अपने अभिषिक्त को न ठुकराईए.
11याहवेह ने दावीद से शपथ खाई थी,
एक ऐसी शपथ, जिसे वह तोड़ेंगे नहीं:
“तुम्हारे ही अपने वंशजों में से
एक को मैं तुम्हारे सिंहासन पर विराजमान करूंगा.
12यदि तुम्हारे वंशज मेरी वाचा का पालन करेंगे
तथा मेरे द्वारा सिखाए गए उपदेशों का पालन करेंगे,
तब उनकी संतान भी तुम्हारे सिंहासन पर
सदा-सर्वदा के लिए विराजमान होगी.”
13क्योंकि ज़ियोन याहवेह द्वारा ही निर्धारित किया गया है,
अपने आवास के लिए याहवेह की यही अभिलाषा है.
14“यह सदा-सर्वदा के लिए मेरा विश्रान्ति स्थल है;
मैं यहीं सिंहासन पर विराजमान रहूंगा, क्योंकि यही मेरी अभिलाषा है.
15उसके लिए मेरी आशीष बड़ी योजना होगी;
मैं इसके दरिद्रों को भोजन से तृप्त करूंगा.
16उसके पुरोहितों को मैं उद्धार के परिधानों से सुसज्जित करूंगा,
और उसके निवासी सात्विक सदैव हर्षगान गाते रहेंगे.
17“यहां मैं दावीद के वंश को बढाऊंगा,
मैं अपने अभिषिक्त के लिए एक दीप स्थापित करूंगा.
18मैं उसके शत्रुओं को लज्जा के वस्त्र पहनाऊंगा,
किंतु उसके अपने सिर का मुकुट उज्जवल रहेगा.”