1وَأَنَا، أَيُّهَا الإِخْوَةُ، لَمَّا جِئْتُ إِلَيْكُمْ لأُعْلِنَ لَكُمْ شَهَادَةَ اللهِ، مَا جِئْتُ بِالْكَلامِ الْبَلِيغِ أَوِ الْحِكْمَةِ. 2إِذْ كُنْتُ عَازِماً أَلّا أَعْرِفَ شَيْئاً بَيْنَكُمْ إِلّا يَسُوعَ الْمَسِيحَ، وَأَنْ أَعْرِفَهُ مَصْلُوباً. 3وَقَدْ كُنْتُ عِنْدَكُمْ فِي حَالَةٍ مِنَ الضَّعْفِ وَالْخَوْفِ وَالارْتِعَادِ الْكَثِيرِ. 4وَلَمْ يَقُمْ كَلامِي وَتَبْشِيرِي عَلَى الإِقْنَاعِ بِكَلامِ الْحِكْمَةِ، بَلْ عَلَى مَا يُعْلِنُهُ الرُّوحُ وَالْقُدْرَةُ. 5وَذلِكَ لِكَيْ يَتَأَسَّسَ إِيمَانُكُمْ، لَا عَلَى حِكْمَةِ النَّاسِ، بَلْ عَلَى قُدْرَةِ اللهِ.
الحكمة التي من الروح
6عَلَى أَنَّ لَنَا حِكْمَةً نَتَكَلَّمُ بِها بَيْنَ الْبَالِغِينَ. وَلَكِنَّهَا حِكْمَةٌ لَيْسَتْ مِنْ هَذَا الْعَالَمِ وَلا مِنْ رُؤَسَاءِ هَذَا الْعَالَمِ الزَّائِلِينَ. 7بَلْ إِنَّنَا نَتَكَلَّمُ بِحِكْمَةِ اللهِ السِّرَّيَّةِ، تِلْكَ الْحِكْمَةِ الْمَحْجُوبَةِ الَّتِي سَبَقَ اللهُ فَأَعَدَّهَا قَبْلَ الدُّهُورِ لأَجْلِ مَجْدِنَا 8وَهِيَ حِكْمَةٌ لَمْ يَعْرِفْهَا أَحَدٌ مِنْ رُؤَسَاءِ هَذَا الْعَالَمِ. فَلَوْ عَرَفُوهَا، 9لَمَا صَلَبُوا رَبَّ الْمَجْدِ! وَلَكِنْ، وَفْقاً لِمَا كُتِبَ: «إِنَّ مَا لَمْ تَرَهُ عَيْنٌ، وَلَمْ تَسْمَعْ بِهِ أُذُنٌ، وَلَمْ يَخْطُرْ عَلَى بَالِ بَشَرٍ قَدْ أَعَدَّهُ اللهُ لِمُحِبِّيهِ!» 10وَلَكِنَّ اللهَ كَشَفَ لَنَا ذَلِكَ بِالرُّوحِ. فَإِنَّ الرُّوحَ يَتَقَصَّى كُلَّ شَيْءٍ، حَتَّى أَعْمَاقَ اللهِ. 11فَمَنْ مِنَ النَّاسِ يَعْرِفُ مَا فِي الإِنْسَانِ إِلّا رُوحُ الإِنْسَانِ الَّذِي فِيهِ؛ وَكَذلِكَ فَإِنَّ مَا فِي اللهِ أَيْضاً لَا يَعْرِفُهُ أَحَدٌ إِلّا رُوحُ اللهِ. 12وَأَمَّا نَحْنُ فَقَدْ نِلْنَا لَا رُوحَ الْعَالَمِ بَلِ الرُّوحَ الَّذِي مِنَ اللهِ، لِنَعْرِفَ الأُمُورَ الَّتِي وُهِبَتْ لَنَا مِنْ قِبَلِ اللهِ. 13وَنَحْنُ نَتَكَلَّمُ بِهَذِهِ الأُمُورِ لَا فِي كَلامٍ تُعَلِّمُهُ الْحِكْمَةُ الْبَشَرِيَّةُ، بَلْ فِي كَلامٍ يُعَلِّمُهُ الرُّوحُ الْقُدُسُ، مُعَبِّرِينَ عَنِ الْحَقَائِقِ الرُّوحِيَّةِ بِوَسَائِلَ رُوحِيَّةٍ. 14غَيْرَ أَنَّ الإِنْسَانَ غَيْرَ الرُّوحِيِّ لَا يَتَقَبَّلُ أُمُورَ رُوحِ اللهِ إِذْ يَعْتَبِرُهَا جَهَالَةً، وَلا يَسْتَطِيعُ أَنْ يَعْرِفَهَا لأَنَّ تَمْيِيزَهَا إِنَّمَا يَحْتَاجُ إِلَى حِسٍّ رُوحِيٍّ. 15أَمَّا الإِنْسَانُ الرُّوحِيُّ، فَهُوَ يُمَيِّزُ كُلَّ شَيْءٍ، وَلا يُحْكَمُ فِيهِ مِنْ أَحَدٍ. 16فَإِنَّهُ «مَنْ عَرَفَ فِكْرَ الرَّبِّ؟» وَمَنْ يُعَلِّمُهُ؟ وَأَمَّا نَحْنُ، فَلَنَا فِكْرُ الْمَسِيحِ!
1प्रिय भाई बहिनो, मैं तुम्हारे यहां न तो बातों की चतुराई का उपयोग करने आया और न ही उत्तम ज्ञान का प्रदर्शन करने, परंतु मैं तुम्हारे यहां परमेश्वर के भेद का प्रकाशन करने आया था. 2क्योंकि तुम्हारे बीच मैं इस निश्चय के साथ आया था कि मैं मसीह येशु और उनकी क्रूस की मृत्यु के अलावा किसी भी अन्य विषय को न जानूं. 3जब मैं तुम्हारे बीच था, मैं निर्बल था—भयभीत और थरथराता हुआ. 4मेरा वचन तथा मेरा प्रचार मनुष्य के ज्ञान भरे शब्दों की लुभावनी शैली में नहीं परंतु पवित्र आत्मा तथा सामर्थ्य के प्रमाण में था, 5कि तुम्हारे विश्वास का आधार परमेश्वर का सामर्थ्य हो, न कि मनुष्य का ज्ञान.
पवित्र आत्मा द्वारा दिया गया ज्ञान
6फिर भी मैं उन्हें, जो मजबूत हैं, ज्ञान भरा संदेश देता हूं परंतु यह ज्ञान न इस युग का है और न इस युग के शासकों का, जिनका नाश होना तय है. 7हम परमेश्वर के ज्ञान का—उस रहस्यमय भेद का—जो गुप्त रखा गया है, प्रकट करते हैं, जिसे परमेश्वर ने युगों से पहले हमारी महिमा के लिए तय किया था. 8इस ज्ञान को इस युग के किसी भी राजा ने न पहचाना. यदि वे इसे पहचान लेते, वे ज्योतिर्मय प्रभु को क्रूसित न करते. 9किंतु, ठीक जैसा पवित्र शास्त्र का लेख है:
“जो कभी आंखों से दिखाई नहीं दिया,
जो कभी कानों से सुना नहीं गया,
और जो मनुष्य के हृदय में नहीं उतरा”
वह सब परमेश्वर ने उनके लिए जो उनसे प्रेम करते हैं, तैयार किया है.
10यह सब परमेश्वर ने हम पर आत्मा के माध्यम से प्रकट किया.
आत्मा सब की, यहां तक कि परमेश्वर की गूढ़ बातों की भी खोज करते हैं. 11मनुष्यों में मनुष्य की अंतरात्मा के अतिरिक्त अन्य कोई भी उनके मन की बातों को नहीं जानता. 12हमें संसार की आत्मा नहीं परंतु वह आत्मा प्राप्त हुई है, जो परमेश्वर की ओर से हैं कि हम वह सब जान सकें, जो परमेश्वर ने हमें उदारतापूर्वक प्रदान किया है. 13हम उनके लिए, जो आत्मिक हैं, आत्मिक बातों का वर्णन मनुष्य के ज्ञान के शब्दों के द्वारा नहीं परंतु आत्मिक शब्दों में करते हैं. 14बिना आत्मा का व्यक्ति परमेश्वर के आत्मा के विषय की बातों को स्वीकार नहीं करता क्योंकि इन्हें वह मूर्खता मानता है, ये सब उसकी समझ से परे हैं क्योंकि इनकी विवेचना पवित्र आत्मा द्वारा की जाती है. 15किंतु वह, जो आत्मिक है, प्रत्येक बात की जांच करता है किंतु स्वयं उसकी जांच कोई नहीं करता, 16क्योंकि,
“कौन है वह, जिसने प्रभु के मन को जान लिया है
कि वह उन्हें निर्देश दे सके?”2:16 यशा 40:13
किंतु हम वे हैं, जिनमें मसीह का मन मौजूद है.