صموئيل الأول 9 – NAV & HCV

New Arabic Version

صموئيل الأول 9:1-27

صموئيل يمسح شاول ملكاً

1وَكَانَ رَجُلٌ مِنْ سِبْطِ بِنْيَامِينَ مِنْ ذَوِي النُّفُوذِ يُدْعَى قَيْساً بْنَ أَبِيئِيلَ بْنِ صَرُورَ بْنِ بَكُورَةَ بْنِ أَفِيحَ، 2وَكَانَ لَهُ ابْنٌ اسْمُهُ شَاوُلُ مِنْ أَكْثَرِ شُبَّانِ إِسْرَائِيلَ وَسَامَةً وَأَكْثَرَهُمْ طُولاً، لَمْ يَزِدْ طُولُ قَامَةِ أَحَدٍ مِنَ الشَّعْبِ عَنِ ارْتِفَاعِ كَتِفَيْهِ. 3وَحَدَثَ أَنْ ضَلَّتْ حَمِيرُ قَيْسَ أَبِي شَاوُلَ، فَقَالَ لَهُ: «خُذْ مَعَكَ وَاحِداً مِنَ الْغِلْمَانِ وَامْضِ بَاحِثاً عَنِ الْحَمِيرِ». 4فَرَاحَ يَبْحَثُ عَنْهَا فِي جَبَلِ أَفْرَايِمَ وَفِي أَرْضِ شَلِيشَةَ، فَلَمْ يَعْثُرْ عَلَيْهَا. فَاجْتَازَ مَعَ غُلَامِهِ إِلَى أَرْضِ شَعَلِيمَ، ثُمَّ إِلَى أَرْضِ بِنْيَامِينَ فَلَمْ يَجِدَا لَهَا أَثَراً. 5وَعِنْدَمَا بَلَغَا أَرْضَ صُوفٍ قَالَ شَاوُلُ لِرَفِيقِهِ الْغُلامِ: «تَعَالَ نَرْجِعُ لِئَلّا يَقْلَقَ أَبِي عَلَيْنَا أَكْثَرَ مِنْ قَلَقِهِ عَلَى الْحَمِيرِ». 6فَأَجَابَهُ: «فِي هَذِهِ الْمَدِينَةِ يُقِيمُ نَبِيٌّ يَتَمَتَّعُ بِالإِكْرَامِ، وَكُلُّ مَا يُنْبِئُ بِهِ يَتَحَقَّقُ، فَلْنَذْهَبْ إِلَيْهِ لَعَلَّهُ يُخْبِرُنَا عَنِ الطَّرِيقِ الَّتِي عَلَيْنَا سُلُوكُهَا». 7فَقَالَ شَاوُلُ لِلْغُلامِ: «كَيْفَ نَذْهَبُ إِلَيْهِ وَنَحْنُ لَا نَحْمِلُ مَعَنَا هَدِيَّةً نُقَدِّمُهَا إِلَيْهِ حَتَّى الْخُبْزُ الَّذِي كَانَ مَعَنَا قَدْ نَفَدَ. إِنَّنَا لَا نَمْلِكُ شَيْئاً». 8فَقَالَ الْغُلامُ: «مَعِي رُبْعُ شَاقِلِ (أَيْ ثَلاثَةُ جِرَامَاتٍ) مِنَ الْفِضَّةِ، نُقَدِّمُهَا لَهُ فَيُخْبِرُنَا عَنِ الطَّرِيقِ الَّتِي نَتَّخِذُهَا». 9وَكَانَ النَّبِيُّ حِينَذَاكَ يُدْعَى الرَّائِيَ، فَكَانَ الرَّجُلُ يَقُولُ عِنْدَ ذِهَابِهِ لِيَسْتَشِيرَ الرَّبَّ: «هَيَّا نَذْهَبْ إِلَى الرَّائِي» 10فَقَالَ شَاوُلُ لِغُلامِهِ: «حَسَناً مَا تَقُولُ. هَلُمَّ نَذْهَبُ». وَانْطَلَقَا إِلَى الْمَدِينَةِ الَّتِي فِيهَا رَجُلُ اللهِ.

11وَعِنْدَمَا بَلَغَا مَشَارِفَ الْمَدِينَةِ صَادَفَا فَتَيَاتٍ خَارِجَاتٍ لاِسْتِقَاءِ الْمَاءِ، فَسَأَلاهُنَّ: «أَهُنَا الرَّائِي؟» 12فَأَجَبْنَهُمَا: «نَعَمْ. هَا هُوَ أَمَامَكُمَا. أَسْرِعَا الآنَ لأَنَّهُ قَدِمَ الْيَوْمَ إِلَى الْمَدِينَةِ لأَنَّ الشَّعْبَ يُقَرِّبُ الْيَوْمَ ذَبِيحَةً عَلَى التَّلِّ. 13فَإِنْ دَخَلْتُمَا الْمَدِينَةَ عَلَى التَّوِّ، تَلْحَقَانِ بِهِ قَبْلَ صُعُودِهِ إِلَى التَّلِّ لِيَأْكُلَ، لأَنَّ الشَّعْبَ لَا يَأْكُلُ مِنَ الذَّبِيحَةِ حَتَّى يَأْتِيَ وَيُبَارِكَهَا. بَعْدَ ذَلِكَ يَتَنَاوَلُ الْمَدْعُوُّونَ مِنْهَا. فَأَسْرِعَا الآنَ خَلْفَهُ إِنْ شِئْتُمَا اليَوْمَ لِقَاءَهُ». 14فَتَوَجَّهَا نَحْوَ الْمَدِينَةِ. وَفِيمَا هُمَا يَجْتَازَانِ فِي وَسَطِهَا، إِذَا بِصَمُوئِيلَ مُقْبِلٌ لِلِقَائِهِمَا فِي طَرِيقِ صُعُودِهِ إِلَى التَّلِّ.

15وَكَانَ الرَّبُّ قَدْ أَعْلَنَ لِصَمُوئِيلَ فِي الْيَوْمِ السَّابِقِ لِحُضُورِ شَاوُلَ: 16«غَداً فِي مِثْلِ هَذَا الْوَقْتِ أَبْعَثُ إِلَيْكَ رَجُلاً مِنْ أَرْضِ بِنْيَامِينَ. فَامْسَحْهُ حَاكِماً عَلَى شَعْبِي إِسْرَائِيلَ، فَيُخَلِّصَهُمْ مِنْ قَبْضَةِ الْفِلِسْطِينِيِّينَ، فَقَدْ رَقَّ قَلْبِي لِشَعْبِي، لأَنَّ اسْتِغَاثَتَهُمْ قَدِ ارْتَفَعَتْ إِلَيَّ». 17فَمَا إِنْ شَاهَدَ صَمُوئِيلُ شَاوُلَ حَتَّى قَالَ لَهُ الرَّبُّ: «هَا هُوَ الرَّجُلُ الَّذِي أَخْبَرْتُكَ عَنْهُ. هَذَا الَّذِي يَحْكُمُ شَعْبِي». 18وَتَقَدَّمَ شَاوُلُ إِلَى صَمُوئِيلَ وَقَالَ: «أَخْبِرْنِي، أَيْنَ بَيْتُ الرَّائِي؟» 19فَأَجَابَ صَمُوئِيلُ: «أَنَا هُوَ الرَّائِي. اصْعَدْ أَمَامِي إِلَى التَّلِّ حَيْثُ نَتَنَاوَلُ الطَّعَامَ مَعاً، ثُمَّ أُطْلِقُكَ صَبَاحاً بَعْدَ أَنْ أُخْبِرَكَ بِكُلِّ مَا تَوَدُّ مَعْرِفَتَهُ. 20أَمَّا الْحَمِيرُ الَّتِي ضَلَّتْ مُنْذُ ثَلاثَةِ أَيَّامٍ فَلا تَقْلَقْ بِشَأْنِهَا، لأَنَّهُ قَدْ تَمَّ الْعُثُورُ عَلَيْهَا. أَلَيْسَ كُلُّ نَفِيسٍ فِي إِسْرَائِيلَ، هُوَ لَكَ وَلِكُلِّ بَيْتِ أَبِيكَ؟» 21فَأَجَابَ شَاوُلُ: «يَا سَيِّدِي، أَنَا أَنْتَمِي لِسِبْطِ بِنْيَامِينَ، أَصْغَرِ أَسْبَاطِ إِسْرَائِيلَ، وَعَشِيرَتِي أَصْغَرُ عَشَائِرِ بِنْيَامِينَ شَأْناً، فَلِمَاذَا تُحَدِّثُنِي بِمِثْلِ هَذَا الْكَلامِ؟».

22فَأَخَذَ صَمُوئِيلُ شَاوُلَ وَغُلامَهُ وَأَدْخَلَهُمَا إِلَى قَاعَةِ الطَّعَامِ، وَأَجْلَسَهُمَا عَلَى رَأْسِ الْمَائِدَةِ الَّتِي الْتَفَّ حَوْلَهَا نَحْوَ ثلاثِينَ رَجُلاً، 23وَقَالَ لِلطَّبَّاخِ: «أَحْضِرْ قِطْعَةَ اللَّحْمِ الَّتِي أَعْطَيْتُكَ إِيَّاهَا وَطَلَبْتُ مِنْكَ أَنْ تَحْتَفِظَ بِها عِنْدَكَ». 24فَتَنَاوَلَ الطَّبَّاخُ السَّاقَ وَمَا عَلَيْهَا وَوَضَعَهَا أَمَامَ شَاوُلَ، وَقَالَ صَمُوئِيلُ: «هَذَا مَا احْتَفَظْتُ بِهِ لَكَ. كُلْ مِنْهُ لأَنَّهُ قَدِ احْتُفِظَ بِهِ خَصِيصاً لَكَ مُنْذُ أَنْ قُلْتُ: إِنَّنِي دَعَوْتُ ضُيُوفاً». فَأَكَلَ شَاوُلُ مَعَ صَمُوئِيلَ فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ.

25وَعِنْدَمَا انْحَدَرُوا مِنَ التَّلِّ إِلَى الْمَدِينَةِ تَحَادَثَ صَمُوئِيلُ وَشَاوُلُ عَلَى السَّطْحِ. 26وَفِي فَجْرِ الْيَوْمِ التَّالِي اسْتَدْعَى صَمُوئِيلُ شَاوُلَ لِيَصْعَدَ إِلَى سَطْحِ الْبَيْتِ قَائِلاً: «انْهَضْ لأَصْرِفَكَ». فَتَهَيَّأَ شَاوُلُ لِلانْصِرَافِ، وَشَيَّعَهُ صَمُوئِيلُ إِلَى الْخَارِجِ. 27وَعِنْدَمَا بَلَغَا طَرَفَ الْمَدِينَةِ قَالَ صَمُوئِيلُ لِشَاوُلَ: «قُلْ لِلْغُلامِ أَنْ يَسْبِقَنَا». وَعِنْدَمَا سَبَقَهُمَا قَالَ صَمُوئِيلُ لِشَاوُلَ: «قِفْ لأَتْلُوَ عَلَيْكَ رِسَالَةَ اللهِ لَكَ».

Hindi Contemporary Version

1 शमुएल 9:1-27

शाऊल शमुएल से मिलता है

1बिन्यामिन गोत्र से कीश नामक एक व्यक्ति था. उसके पिता का नाम था अबीएल, जो ज़ीरोर का पुत्र था. ज़ीरोर बीकोराथ का, बीकोराथ अपियाह का पुत्र था, जो बिन्यामिन के वंशज थे. कीश एक प्रतिष्ठित व्यक्ति था. 2उनको शाऊल नामक एक पुत्र था; एक सुंदर युवा! सारे इस्राएल में उनसे अधिक सुंदर कोई भी न था. वह डीलडौल में सभी इस्राएली युवाओं से बढ़कर था सभी उसके कंधों तक ही पहुंचते थे.

3शाऊल का पिता कीश के गधे एक दिन खो गए. तब कीश ने अपने पुत्र शाऊल से कहा, “उठो अपने साथ एक सेवक को लेकर जाओ और गधों को खोज कर लाओ.” 4शाऊल खोजते-खोजते एफ्राईम के पर्वतीय क्षेत्र के पार निकल गए. उन्होंने शालीशा प्रदेश में भी उन्हें खोजा मगर वे उन्हें वहां भी न मिले. तब वे खोजते हुए शालीम देश भी पार कर गए; मगर गधे वहां भी न थे. तब उन्होंने बिन्यामिन देश में उनकी खोज की, मगर गधे वहां भी न थे.

5जब वे इन्हें खोजते हुए सूफ़ देश पहुंचे, शाऊल ने अपने साथ के सेवक से कहा, “अब ऐसा करें कि हम घर लौट चलें, ऐसा न हो कि मेरे पिता गधों की चिंता करना छोड़ हमारे विषय में चिंतित होने लगें.”

6मगर उनके सेवक ने उन्हें यह सूचना दी, “सुनिए, इस नगर में परमेश्वर के एक जन रहते हैं; वह बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं. वह जो कुछ कह देते हैं, होकर ही रहता है. आइए हम उनके पास चलें. संभव है कि वह हमें मार्गदर्शन दें, कि यहां से हमारा कहां जाना सही होगा.”

7शाऊल ने अपने सेवक को उत्तर दिया, “ठीक है; मगर हम उन्हें भेंट स्वरूप क्या देंगे? हमारे झोले में अब रोटी शेष नहीं रही! परमेश्वर के इस जन को हम भेंट में क्या देंगे?”

8सेवक ने शाऊल को उत्तर दिया, “ऐसा है, मेरे पास इस समय एक चौथाई शकेल9:8 एक चौथाई शकेल लगभग तीन ग्राम चांदी है. यह मैं परमेश्वर के जन को दे दूंगा, कि वह हमें बताएं हमारा कहां जाना उचित होगा.” 9(उन दिनों में इस्राएल में रीति यह थी कि जब कभी किसी को किसी विषय में परमेश्वर की इच्छा मालूम करने की आवश्यकता होती थी, वह कहा करता था, “चलो, दर्शी से पूछताछ करें,” क्योंकि आज जिन्हें हम भविष्यद्वक्ता कहते हैं. उन्हें उस समय लोग दर्शी कहकर ही पुकारते थे.)

10तब शाऊल ने कहा, “उत्तम सुझाव है यह! चलो, वहीं चलें.” तब वे उस नगर को चले गए जहां परमेश्वर के जन रहते थे.

11जब वे नगर के ढाल पर चढ़ रहे थे, उन्हें जल भरते जा रही कुछ युवतियां मिलीं. उन्होंने उनसे पूछा, “क्या दर्शी आज यहां मिलेंगे?”

12उन्होंने उत्तर दिया, “जी हां, सीधे चलते जाइए; मगर देर न कीजिए. वह आज ही यहां आए हैं, और लोग पर्वत शिखर की वेदी पर बलि चढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं. 13जैसे ही आप नगर में प्रवेश करें, उसके पूर्व कि वह पवर्त शिखर पर भोजन के लिए जाए, आप उनसे मिल सकेंगे. जब तक वह वहां न पहुंचे, लोग भोजन शुरू न करेंगे, क्योंकि बलि पर आशीर्वचन दर्शी ही को कहना होता है. अब शीघ्र जाइए. यही उनके मिलने का सर्वोत्तम मौका है.”

14तब वे नगर में चले गए. जब वे नगर के केंद्र की ओर बढ़ रहे थे, शमुएल उन्हीं की दिशा में आगे बढ़ रहे थे, कि वह पर्वत शिखर पर जाएं.

15शाऊल के यहां पहुंचने के एक दिन पूर्व याहवेह ने शमुएल को यह संकेत दे दिया था: 16“कल इसी समय में बिन्यामिन प्रदेश से तुमसे भेंटकरने एक युवक को भेजूंगा. तुम उसे ही इस्राएल के प्रधान के पद के लिए अभिषिक्त कर देना. वही होगा, जो मेरी प्रजा को फिलिस्तीनियों के अत्याचारों से छुड़ाने वाला. मैंने अपनी प्रजा पर कृपादृष्टि की है. मैंने उनकी दोहाई सुन ली है.”

17जैसे ही शमुएल की दृष्टि शाऊल पर पड़ी, याहवेह ने उनसे कहा, “यही है वह व्यक्ति जिसके विषय में मैंने तुम्हें संकेत दिया था; यही मेरी प्रजा का शासक होगा.”

18शाऊल द्वार के पास, शमुएल के निकट आया. शाऊल ने शमुएल से पूछा, “कृपया बताये दर्शी का घर कहां है?”

19शमुएल ने शाऊल को उत्तर दिया, “दर्शी मैं ही हूं. मेरे आगे-आगे जाकर पर्वत शिखर पर पहुंचो. आज तुम्हें मेरे साथ भोजन करना है, प्रातःकाल ही मैं तुम्हें विदा कर दूंगा. तुम्हारे मन में उठ रहे सभी प्रश्नों का उत्तर भी तुम्हें प्राप्‍त हो जाएगा. 20गधों की चिंता छोड़ दो, जो तीन दिन पूर्व खो गए थे—वे मिल गए हैं. सारे इस्राएल राष्ट्र में जो कुछ हो सकता है, वह किसके लिए है? क्या तुम्हारे तथा तुम्हारे सारा परिवार ही के लिए नहीं?”

21शाऊल ने उन्हें उत्तर दिया, “मगर मैं तो इस्राएल के सबसे छोटे गोत्र बिन्यामिन से हूं, और इसके अलावा मेरा परिवार तो बिन्यामिन गोत्र में सबसे छोटा है. तब आप मुझसे यह सब कैसे कह रहे हैं?”

22इसी समय शमुएल शाऊल और उनके सेवक को एक विशाल कक्ष में ले गए, जहां लगभग तीस अतिथि उपस्थित थे. यहां शमुएल ने शाऊल को उन सबसे अधिक सम्माननीय स्थान पर बैठा दिया. 23और फिर शमुएल ने रसोइए को आदेश दिया, “व्यंजन का वह विशेष अंश, जिसे मैंने तुम्हें अलग रखने का आदेश दिया था, यहां ले आओ.”

24तब रसोइए ने व्यंजन में से अलग किया हुआ सर्वोत्तम अंश शाऊल को परोस दिया. तब शमुएल ने कहा, “यही है वह अंश, जो तुम्हारे लिए अलग रखा गया था, जो अब तुम्हें परोस दिया गया है. यह तुम्हारा ही भोजन है, जो इस विशेष मौके पर तुम्हारे ही लिए रखा गया है, कि तुम उसे इन विशेष अतिथियों के साथ खाओ.” तब उस दिन शाऊल ने शमुएल के साथ भोजन किया.

25जब वे पर्वत शिखर परिसर से उतरकर नगर में आए, शाऊल के लिए उस आवास की छत पर बिछौना लगाया गया, जहां वह सो गए.9:25 कुछ मूल पाण्डुलिपियों में उन्होंने वहां उसके साथ बात की 26प्रातःकाल शमुएल ने छत पर सोए हुए शाऊल को यह कहते हुए जगाया, “उठो, मुझे तुम्हें विदा करना है.” तब शाऊल जाग गए, बाद में वह शमुएल के साथ बाहर चले गए. 27जब वे नगर की बाहरी सीमा पर पहुंचे, शमुएल ने शाऊल से कहा, “अपने सेवक से कहो, कि वह आगे बढ़ता जाए.” सेवक ने वैसा ही किया. शमुएल ने शाऊल से और कहा, “मगर तुम स्वयं यहीं ठहरे रहना कि मैं तुम पर परमेश्वर द्वारा दिया गया संदेश प्रकाशित कर सकूं.”