القضاة 14 – NAV & HCV

New Arabic Version

القضاة 14:1-20

زواج شمشون

1وَذَهَبَ شَمْشُونُ إِلَى تِمْنَةَ حَيْثُ رَاقَتْهُ فَتَاةٌ مِنْ بَنَاتِ الْفِلِسْطِينِيِّينَ 2فَرَجَعَ إِلَى وَالِدَيْهِ وَأَخْبَرَهُمَا قَائِلاً: «رَاقَتْنِي امْرَأَةٌ فِي تِمْنَةَ مِنْ بَنَاتِ الْفِلِسْطِينِيِّينَ فَزَوِّجَانِي مِنْهَا». 3فَقَالَ لَهُ وَالِدَاهُ: «أَلَمْ تَجِدْ بَيْنَ بَنَاتِ أَقْرِبَائِكَ وَفِي قَوْمِنَا فَتَاةً، حَتَّى تَذْهَبَ وَتَتَزَوَّجَ مِنْ بَنَاتِ الْفِلِسْطِينِيِّينَ الْغُلْفِ؟» فَأَجَابَ شَمْشُونُ أَبَاهُ: «هَذِهِ هِيَ الْفَتَاةُ الَّتِي رَاقَتْنِي فَزَوِّجْنِي إِيَّاهَا». 4وَلَمْ يُدْرِكْ وَالِدَاهُ أَنَّ ذَلِكَ الأَمْرَ كَانَ مِنَ الرَّبِّ، الَّذِي كَانَ يَلْتَمِسُ عِلَّةً ضِدَّ الْفِلِسْطِينِيِّينَ الَّذِينَ كَانُوا آنَئِذٍ مُتَسَلِّطِينَ عَلَى إِسْرَائِيلَ.

5فَانْحَدَرَ شَمْشُونُ وَوَالِدَاهُ إِلَى تِمْنَةَ حَتَّى بَلَغُوا كُرُومَهَا، وَإذَا بِشِبْلِ أَسَدٍ يَتَحَفَّزُ مُزَمْجِراً لِلانْقِضَاضِ عَلَيْهِ، 6فَحَلَّ عَلَيْهِ رُوحُ الرَّبِّ فَقَبَضَ عَلَى الأَسَدِ وَشَقَّهُ إِلَى نِصْفَيْنِ وَكَأَنَّهُ جَدْيٌ صَغِيرٌ، مِنْ غَيْرِ أَنْ يَكُونَ مَعَهُ سِلاحٌ. وَلَمْ يُنْبِئْ وَالِدَيْهِ بِمَا فَعَلَ. 7ثُمَّ مَضَى إِلَى الْفَتَاةِ وَخَاطَبَهَا فَازْدَادَ بِها إِعْجَاباً. 8وَعِنْدَمَا رَجَعَ شَمْشُونُ بَعْدَ أَيَّامٍ لِيَتَزَوَّجَ مِنْهَا مَالَ لِيُلْقِيَ نَظْرَةً عَلَى جُثَّةِ الأَسَدِ، فَوَجَدَ فِي جَوْفِهَا سَرْباً مِنَ النَّحْلِ وَبَعْضَ الْعَسَلِ، 9فَتَنَاوَلَ مِنْهُ قَدْراً عَلَى كَفِّهِ وَمَضَى وَهُوَ يَأْكُلُ. ثُمَّ أَقْبَلَ عَلَى وَالِدَيْهِ فَأَعْطَاهُمَا فَأَكَلا، وَلَمْ يُخْبِرْهُمَا أَنَّهُ اشْتَارَ الْعَسَلَ مِنْ جَوْفِ الأَسْدِ.

10وَذَهَبَ وَالِدُهُ إِلَى بَيْتِ الْعَرُوسِ، فَأَقَامَ شَمْشُونُ هُنَاكَ وَلِيمَةً كَمَا تَقْتَضِي أَعْرَافُ الزَّوَاجِ. 11وَدَعَا الْفِلِسْطِينِيُّونَ ثَلاثِينَ شَابّاً لِيُنَادِمُوهُ (فِي فَتْرَةِ الاحْتِفَالِ بِزَوَاجِهِ). 12فَقَالَ لَهُمْ شَمْشُونُ: «سَأُلْقِي عَلَيْكُمْ أُحْجِيَّةً، فَإِنْ وَجَدْتُمْ حَلَّهَا الصَّحِيحَ فِي سَبْعَةِ أَيَّامِ الْوَلِيمَةِ أُعْطِيكُمْ ثَلاثِينَ قَمِيصاً وَثَلاثِينَ حُلَّةَ ثِيَابٍ. 13أَمَّا إِنْ عَجَزْتُمْ عَنْهَا فَسَتُعْطُونِي أَنْتُمْ ثَلاثِينَ قَمِيصاً وَثَلاثِينَ حُلَّةَ ثِيَابٍ». فَقَالُوا لَهُ: «هَاتِ أُحْجِيَّتَكَ فَنَسْمَعَهَا». 14فَقَالَ لَهُمْ: «مِنَ الآكِلِ خَرَجَ أُكْلٌ، وَمِنَ الْقَوِيِّ خَرَجَتْ حَلاوَةٌ». وَانْقَضَتْ ثَلاثَةُ أَيَّامٍ مِنْ غَيْرِ أَنْ يَجِدُوا لَهَا حَلاً.

15وَفِي الْيَوْمِ الرَّابِعِ قَالُوا لِزَوْجَةِ شَمْشُونَ: «تَمَلَّقِي زَوْجَكِ لِيَكْشِفَ لَنَا عَنْ حَلِّ الأُحْجِيَّةِ، لِئَلّا نُضْرِمَ النَّارَ فِيكِ وَفِي بَيْتِ أَبِيكِ. أَدَعَوْتُمُونَا إِلَى الْوَلِيمَةِ لِتَسْلِبُونَا؟» 16فَبَكَتِ امْرَأَةُ شَمْشُونَ لَدَيْهِ قَائِلَةً: «أَنْتَ تَمْقُتُنِي وَلا تُحِبُّنِي حَقّاً. فَقَدْ طَرَحْتَ عَلَى بَنِي قَوْمِي أُحْجِيَّةً وَلَمْ تُطْلِعْنِي عَلَى حَلِّهَا». فَقَالَ لَهَا: «هُوَذَا أَبِي وَأُمِّي لَمْ أُطْلِعْهُمَا عَلَى حَلِّهَا، فَلِمَاذَا أُخْبِرُكِ أَنْتِ بِهِ؟» 17فَظَلَّتْ تَبْكِي لَدَيْهِ طَوَالَ سَبْعَةِ أَيَّامِ الْوَلِيمَةِ. وَفِي الْيَوْمِ السَّابِعِ أَطْلَعَهَا عَلَى الْحَلِّ لِفَرْطِ مَا ضَايَقَتْهُ، فَأَسَرَّتْ بِهِ لِبَنِي قَوْمِهَا. 18وَقَبْلَ غُرُوبِ شَمْسِ الْيَوْمِ السَّابِعِ قَالَ لَهُ رِجَالُ الْمَدِينَةِ: «أَيُّ شَيْءٍ أَحْلَى مِنَ الْعَسَلِ، وَمَا هُوَ أَقْوَى مِنَ الأَسَدِ؟» فَقَالَ لَهُمْ شَمْشُونُ: «لَوْلا أَنَّكُمْ حَرَثْتُمْ عَلَى عِجْلَتِي لَمَا وَجَدْتُمْ حَلَّ أُحْجِيِّتِي».

19وَحَلَّ عَلَيْهِ رُوحُ الرَّبِّ فَانْحَدَرَ إِلَى مَدِينَةِ أَشْقَلُونَ وَقَتَلَ ثَلاثِينَ رَجُلاً مِنْهُمْ، وَأَخَذَ ثِيَابَهُمْ وَأَعْطَاهَا لِلرِّجَالِ الَّذِينَ حَلُّوا لُغْزَهُ. وَلَكِنْ، إِذِ احْتَدَمَ غَضَبُهُ مَضَى إِلَى بَيْتِ وَالِدَيْهِ. 20وَمَا لَبِثَتِ امْرَأَةُ شَمْشُونَ أَنْ أَصْبَحَتْ زَوْجَةً لِصَاحِبِهِ الَّذِي كَانَ نَدِيماً لَهُ.

Hindi Contemporary Version

प्रशासक 14:1-20

शिमशोन का विवाह

1एक समय पर, जब शिमशोन तिमनाह नगर को गया हुआ था, उसने वहां एक फिलिस्तीनी कन्या देखी. 2वहां से लौटने पर उसने अपने माता-पिता से कहा, “तिमनाह में मैंने एक फिलिस्तीनी लड़की देखी है; उससे मेरा विवाह कर दीजिए.”

3उसके माता-पिता ने उत्तर में उससे कहा, “तुम्हारे संबंधियों में, अथवा हमारे सजातियों में क्या कोई भी लड़की नहीं है, कि तुम्हें ख़तना रहित फिलिस्तीनियों में की पुत्री से विवाह करने की सूझी है?”

किंतु शिमशोन ने उन्हें उत्तर दिया, “मेरा विवाह उसी से कर दीजिए, मुझे वही भा गई है.” 4यद्यपि उसके माता-पिता को यह मालूम न था कि यह याहवेह की योजना थी, क्योंकि वह फिलिस्तीनियों से बदले का अवसर खोज रहा था, इस समय फिलिस्ती इस्राएल पर शासन कर रहे थे.

5शिमशोन अपने माता-पिता के साथ तिमनाह गया. जब वे तिमनाह के अंगूरों के बगीचों तक पहुंचे, एक जवान शेर दहाड़ता हुआ उस पर लपका. 6बड़ी सामर्थ्य के साथ याहवेह का आत्मा उस पर उतरा. शिमशोन ने उसे इस रीति से फाड़ डाला, जैसे कोई एक मेमने को फाड़ देता है, जबकि शिमशोन के हाथों में कोई भी हथियार न था. इस काम की चर्चा उसने अपने माता-पिता से नहीं की. 7उसने जाकर उस स्त्री से बातचीत की. वह उसे प्रिय लगी.

8कुछ समय बाद उस कन्या से विवाह करने के लिए वह तिमनाह लौटा. शेर का शव देखने के लिए मार्ग से मुड़ा. उसने देखा कि शेर के शव में मधुमक्खियों का छत्ता तथा उसमें शहद लगा हुआ था. 9उसने अपने हाथों में वह शहद ले लिया और उसे खाता हुआ आगे बढ़ गया. जब वह अपने माता-पिता के पास पहुंचा, उसने उन्हें भी वह शहद दिया और उन्होंने भी उसे खाया, किंतु शिमशोन ने उन्हें यह न बताया कि उसने यह मधु शेर के शव में से निकाला था.

10तब उसका पिता उस स्त्री के घर पर पहुंचा. शिमशोन ने वहां एक भोज आयोजित किया, जैसा कि वहां के युवकों की रीति थी. 11जब उन्होंने देखा और उन्होंने उसके साथ साथ रहने के लिए तीस युवक चुन दिए.

12शिमशोन ने उनसे कहा, “मैं तुम्हारे विचारने के लिए एक पहेली देता हूं; यदि तुम विवाहोत्सव के सात दिन के भीतर यह पहेली का समझ बूझ कर मुझे इसका उत्तर दे दोगे, तो मैं तुम्हें मलमल के तीस बाहरी वस्त्र और तीस जोड़े कपड़े दूंगा. 13मगर, यदि तुम इसका उत्तर न दे सको, तो तुम्हें मुझे तीस बाहरी वस्त्र और तीस जोड़े कपड़े देना पड़ेंगे.”

उन्होंने उत्तर दिया, “पेश करो अपनी पहेली, हम सुन रहे हैं.”

14शिमशोन ने कहा,

“खानेवाले में से भोजन,

तथा बलवंत में से मिठास.”

तीन दिन बीत गए मगर इस पहेली का उत्तर वे न दे सके.

15चौथे दिन उन्होंने शिमशोन की पत्नी से कहा, “अपने पति को फुसलाओ, कि वह उस पहेली का मतलब हमें बता दे. अगर नहीं, तो हम तुम्हें और तुम्हारे पिता के घर को आग लगा देंगे, क्या हमें आमंत्रित करने में तुम्हारी मंशा हमें कंगाल कर देने की थी? क्या यही सच नहीं?”

16शिमशोन की पत्नी उसके सामने रोने लगी. और उसने शिमशोन से कहा, “तुम तो मुझसे नफरत करते हो. तुम्हें मुझसे प्रेम है ही नहीं. मेरे जाति वाले युवाओं के सामने तुमने पहेली प्रस्तुत की, और मुझे इसका हल नहीं बताया.”

शिमशोन ने साफ़ किया, “देखो, इसका हल तो मैंने अपने माता-पिता तक को नहीं बताया है, क्या मैं यह तुम्हें बता दूं?” 17फिर भी सातों दिन, जब तक विवाहोत्सव चलता रहा, वह रोती रही. अंत में सातवें दिन शिमशोन ने उसे पहेली का हल बता ही दिया; उसकी पत्नी ने उसे इस सीमा तक तंग कर दिया था. उसने जाकर अपने जाति वाले युवकों को पहेली का उत्तर जा सुनाया.

18सातवें दिन सूरज डूबने के पहले, उन नगरवासियों ने जाकर शिमशोन से कहा,

“क्या हो सकता है शहद से मीठा?

कौन है शेर से अधिक बलवान?

“शिमशोन ने उनसे कहा,

“यदि तुमने मेरी बछिया से खेत न जोता होता,

तो मेरी पहेली का उत्तर बिन सुलझा ही रहता.”

19तब बड़ी ही सामर्थ्य के साथ याहवेह का आत्मा शिमशोन पर उतरी. वह अश्कलोन गया, तीस व्यक्तियों को मार गिराया, उनका सामान इकट्ठा कर उसने वे कपड़े उन्हें दिए, जिन्होंने उस पहेली का उत्तर दे दिया था. उसका क्रोध भड़कता हुआ वह अपने पिता के घर को लौट गया. 20शिमशोन की पत्नी उसके उस साथी को दे दी गई, जो उसका मित्र था.