العبرانيين 4 – NAV & HCV

New Arabic Version

العبرانيين 4:1-16

راحة شعب الله

1وَمَادَامَ الْوَعْدُ بِالدُّخُولِ إِلَى الرَّاحَةِ الإِلَهِيَّةِ قَائِماً حَتَّى الآنَ، فَلْنَخَفْ: فَرُبَّمَا تَبَيَّنَ أَنَّ بَعْضاً مِنْكُمْ قَدْ فَشَلُوا فِي الدُّخُولِ. 2ذَلِكَ أَنَّ الْبِشَارَةَ بِالْوَعْدِ قَدْ وَصَلَتْ إِلَيْنَا، نَحْنُ أَيْضاً، كَمَا كَانَتْ قَدْ وَصَلَتْ إِلَى ذَلِكَ الشَّعْبِ. وَلَكِنَّ الْبِشَارَةَ لَمْ تَنْفَعْ سَامِعِيهَا شَيْئاً، لأَنَّهُمْ قَابَلُوهَا بِالرَّفْضِ فَلَمْ يُؤْمِنُوا بِها.

3أَمَّا نَحْنُ، الَّذِينَ آمَنَّا بِالْبِشَارَةِ، فَسَوْفَ نَدْخُلُ الرَّاحَةَ الإِلَهِيَّةَ. إِذْ قَالَ عَنِ الَّذِينَ لَمْ يُؤْمِنُوا: «وَهَكَذَا، فِي غَضَبِي، أَقْسَمْتُ قَائِلاً: إِنَّهُمْ لَنْ يَدْخُلُوا مَكَانَ رَاحَتِي!» هَذِهِ الرَّاحَةُ، كَانَتْ جَاهِزَةً مُنْذُ أَنْ أَتَمَّ اللهُ تَأْسِيسَ الْعَالَمِ. 4فَقَدْ قَالَ فِي مَوْضِعٍ مِنَ الْكِتَابِ مُشِيراً إِلَى الْيَوْمِ السَّابِعِ: «ثُمَّ اسْتَرَاحَ اللهُ مِنْ جَمِيعِ أَعْمَالِهِ فِي الْيَوْمِ السَّابِعِ». 5ثُمَّ عَادَ فَقَالَ: «لَنْ يَدْخُلُوا مَكَانَ رَاحَتِي!»

6وَهَكَذَا، يَتَبَيَّنُ أَنَّ الرَّاحَةَ الإِلَهِيَّةَ هِيَ فِي انْتِظَارِ مَنْ سَيَدْخُلُونَ إِلَيْهَا. وَبِمَا أَنَّ الَّذِينَ تَلَقَّوْا الْبِشَارَةَ بِها أَوَّلاً لَمْ يَدْخُلُوا إِلَيْهَا بِسَبَبِ تَمَرُّدِهِمْ، 7أَعْلَنَ اللهُ عَنْ فُرْصَةٍ جَدِيدَةٍ، إِذْ قَالَ: «الْيَوْمَ» بِلِسَانِ دَاوُدَ، بَعْدَمَا مَضَى زَمَانٌ طَوِيلٌ عَلَى مَا كَانَ قَدْ قَالَهُ قَدِيماً: «الْيَوْمَ، إِنْ سَمِعْتُمْ صَوْتَهُ، فَلا تُقَسُّوا قُلُوبَكُمْ». 8فَلَوْ كَانَ يَشُوعُ قَدْ أَدْخَلَ الشَّعْبَ إِلَى الرَّاحَةِ، لَمَا تَكَلَّمَ اللهُ بَعْدَ ذَلِكَ عَنْ مَوْعِدٍ جَدِيدٍ لِلدُّخُولِ بِقَوْلِهِ: «الْيَومَ». 9إِذَنْ، مَازَالَتِ الرَّاحَةُ الْحَقِيقِيَّةُ مَحْفُوظَةً لِشَعْبِ اللهِ. 10فَالَّذِي يَدْخُلُ تِلْكَ الرَّاحَةَ، يَسْتَرِيحُ هُوَ أَيْضاً مِنْ أَعْمَالِهِ، كَمَا اسْتَرَاحَ اللهُ مِنْ أَعْمَالِهِ. 11لِذَلِكَ، لِنَجْتَهِدْ جَمِيعاً لِلدُّخُولِ إِلَى تِلْكَ الرَّاحَةِ، لِكَيْ لَا يَسْقُطَ أَحَدٌ مِنَّا كَمَا سَقَطَ أُولَئِكَ الَّذِينَ عَصَوْا أَمْرَ اللهِ. 12ذَلِكَ لأَنَّ كَلِمَةَ اللهِ حَيَّةٌ، وَفَعَّالَهٌ، وَأَمْضَى مِنْ كُلِّ سَيْفٍ لَهُ حَدَّانِ، وَخَارِقَةٌ إِلَى مُفْتَرَقِ النَّفْسِ وَالرُّوحِ وَالْمَفَاصِلِ وَنُخَاعِ الْعِظَامِ، وَقَادِرَةٌ أَنْ تُمَيِّزَ أَفْكَارَ الْقَلْبِ وَنِيَّاتِهِ. 13وَلَيْسَ هُنَالِكَ مَخْلُوقٌ وَاحِدٌ مَحْجُوبٌ عَنْ نَظَرِ اللهِ، بَلْ كُلُّ شَيْءٍ عُرْيَانٌ وَمَكْشُوفٌ أَمَامَ عَيْنَيْهِ، هُوَ الَّذِي سَنُؤَدِّي لَهُ حِسَاباً.

يسوع الكاهن الأعلى

14فَمَادَامَ لَنَا رَئِيسَ كَهَنَتِنَا الْعَظِيمُ الَّذِي ارْتَفَعَ مُجْتَازاً السَّمَاوَاتِ، وَهُوَ يَسُوعُ ابْنُ اللهِ، فَلْنَتَمَسَّكْ دَائِماً بِالاعْتِرَافِ بِهِ. 15ذَلِكَ لأَنَّ رَئِيسَ الْكَهَنَةِ الَّذِي لَنَا، لَيْسَ عَاجِزاً عَنْ تَفَهُّمِ ضَعَفَاتِنَا، بَلْ إِنَّهُ قَدْ تَعَرَّضَ لِلتَّجَارِبِ الَّتِي نَتَعَرَّضُ نَحْنُ لَهَا، إِلّا أَنَّهُ بِلا خَطِيئةٍ. 16فَلْنَتَقَدَّمْ بِثِقَةٍ إِلَى عَرْشِ النِّعْمَةِ، لِنَنَالَ الرَّحْمَةَ وَنَجِدَ نِعْمَةً تُعِينُنَا عِنْدَ الْحَاجَةِ.

Hindi Contemporary Version

इब्री 4:1-16

परमेश्वर की प्रजा के लिए शब्बाथ-विश्राम

1इसलिये हम इस विषय में विशेष सावधान रहें कि जब तक उनके विश्राम में प्रवेश की प्रतिज्ञा मान्य है, आप में से कोई भी उसमें प्रवेश से चूक न जाए. 2हमें भी ईश्वरीय सुसमाचार उसी प्रकार सुनाया गया था जैसे उन्हें, किंतु सुना हुआ वह ईश्वरीय सुसमाचार उनके लिए लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने इसे विश्वास से ग्रहण नहीं किया था. 3हमने, जिन्होंने विश्वास किया, उस विश्राम में प्रवेश पाया, ठीक जैसा उनका कहना था,

“जैसे मैंने अपने क्रोध में शपथ खाई,

‘वे मेरे विश्राम में प्रवेश कभी न पाएंगे.’ ”4:3 स्तोत्र 95:11

यद्यपि उनके काम सृष्टि के प्रारंभ से ही पूरे हो चुके थे. 4उन्होंने सातवें दिन के संबंध में किसी स्थान पर इस प्रकार वर्णन किया था: “तब सातवें दिन परमेश्वर ने अपने सभी कामों से विश्राम किया.”4:4 उत्प 2:2 5एक बार फिर इसी भाग में, “वे मेरे विश्राम में प्रवेश कभी न करेंगे.”4:5 स्तोत्र 95:11

6इसलिये कि कुछ के लिए यह प्रवेश अब भी खुला आमंत्रण है तथा उनके लिए भी, जिन्हें इसके पूर्व ईश्वरीय सुसमाचार सुनाया तो गया किंतु वे अपनी अनाज्ञाकारिता के कारण प्रवेश न कर पाए, 7परमेश्वर ने एक दिन दोबारा तय किया, “आज.” इसी दिन के विषय में एक लंबे समय के बाद उन्होंने दावीद के मुख से यह कहा था, ठीक जैसा कि पहले भी कहा था:

“यदि आज तुम उनकी आवाज सुनो

तो अपने हृदय कठोर न कर लेना.”4:7 स्तोत्र 95:7, 8

8यदि उन्हें यहोशू द्वारा विश्राम प्रदान किया गया होता तो परमेश्वर इसके बाद एक अन्य दिन का वर्णन न करते. 9इसलिये परमेश्वर की प्रजा के लिए अब भी एक शब्बाथ का विश्राम तय है; 10क्योंकि वह, जो परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करता है, अपने कामों से भी विश्राम करता है, जिस प्रकार स्वयं परमेश्वर ने विश्राम किया था. 11इसलिये हम उस विश्राम में प्रवेश का पूरे साहस से प्रयास करें, कि किसी को भी उसी प्रकार अनाज्ञाकारिता का दंड भोगना न पड़े.

12परमेश्वर का वचन जीवित, सक्रिय तथा किसी भी दोधारी तलवार से कहीं अधिक धारदार है, जो हमारे भीतर में प्रवेश कर हमारी आत्मा, प्राण, जोड़ों तथा मज्जा को भेद देता है. यह हमारे हृदय के उद्धेश्यों तथा विचारों को पहचानने में सक्षम है. 13जिन्हें हमें हिसाब देना है, उनकी दृष्टि से कोई भी प्राणी छिपा नहीं है—सभी वस्तुएं उनके सामने साफ़ और खुली हुई हैं.

महापुरोहित परमेश्वर-पुत्र: मसीह येशु

14इसलिये कि वह, जो आकाशमंडल में से होकर पहुंच गए, जब वह महापुरोहित—परमेश्वर-पुत्र, मसीह येशु—हमारी ओर हैं; हम अपने विश्वास में स्थिर बने रहें. 15वह ऐसे महापुरोहित नहीं हैं, जो हमारी दुर्बलताओं में सहानुभूति न रख सकें परंतु वह ऐसे महापुरोहित हैं, जो प्रत्येक पक्ष में हमारे समान ही परखे गए फिर भी निष्पाप ही रहे; 16इसलिये हम अनुग्रह के सिंहासन के सामने निडर होकर जाएं, कि हमें ज़रूरत के अवसर पर कृपा तथा अनुग्रह प्राप्‍त हो.