الخروج 30 – NAV & HCV

New Arabic Version

الخروج 30:1-38

مذبح البخور

1وَتَصْنَعُ مَذْبَحاً مِنْ خَشَبِ السَّنْطِ لإِحْرَاقِ الْبَخُورِ، 2يَكُونُ ذَا سَطْحٍ مُرَبَّعٍ، طُولُهُ ذِرَاعٌ (نَحْوَ نِصْفِ الْمِتْرِ) وَعَرْضُهُ ذِرَاعٌ (نَحْوَ نِصْفِ الْمِتْرِ) وَيَكُونُ ارْتِفَاعُهُ ذِرَاعَينِ (نَحْوَ مِتْرٍ)، وَلَهُ قُرُونٌ مَنْحُوتَةٌ فِي ذَاتِ خَشَبِهِ. 3وَتُغَشِّي سَطْحَهُ وَجَوانِبَهُ وَقُرُونَهُ بِذَهَبٍ خَالِصٍ، وَطَوِّقْهُ بِإِطَارٍ مِنَ الذَّهَبِ. 4وَثَبِّتْ عَلَى كُلٍّ مِنْ جَانِبَيْهِ تَحْتَ الإِطَارِ، حَلْقَتَيْنِ مَصْنُوعَتَيْنِ مِنَ الذَّهَبِ، لِتَضَعَ فِيهِمَا عَصَوَيْنِ يُحْمَلُ الْمَذْبَحُ بِهِمَا. 5أَمَّا الْعَصَوَانِ فَاصْنَعْهُمَا مِنْ خَشَبِ السَّنْطِ الْمُغَشَّى بِذَهَبٍ. 6وَتَضَعُ هَذَا الْمَذْبَحَ أَمَامَ الْحِجَابِ الْمُوَاجِهِ لِتَابُوتِ الشَّهَادَةِ (الَّذِي فِيهِ لَوْحَا الْشَّرِيعَةِ) مُقَابِلَ الْغِطَاءِ الَّذِي فَوْقَ التَّابُوتِ حَيْثُ أَجْتَمِعُ بِكَ. 7فَيَحْرِقُ هَرُونُ عَلَيْهِ بَخُوراً عَطِراً فِي كُلِّ صَبَاحٍ، عِنْدَمَا يَدْخُلُ لإِصْلاحِ فَتَائِلِ الْمَنَارَةِ. 8وَكَذَلِكَ يَحْرِقُهُ أَيْضاً عِنْدَمَا يُضِيءُ هَرُونُ الْمَنَارَةَ فِي الْمَسَاءِ. فَيَظَلُّ الْبَخُورُ مُوْقَداً أَمَامَ الرَّبِّ مِنْ جِيلٍ إِلَى جِيلٍ. 9لَا تَحْرِقْ عَلَى هَذَا الْمَذْبَحِ بَخُوراً غَرِيباً وَلا مُحْرَقَةً أَوْ تَقْدِمَةً، وَلا تَسْكُبُوا عَلَيْهِ سَكِيباً. 10وَيُقَرِّبُ هَرُونُ كَفَّارَةً عَلَى قُرُونِهِ مَرَّةً فِي السَّنَةِ فَيَرُشُّ مِنْ دَمِ ذَبِيحَةِ الْخَطِيئَةِ الْكَفَّارِيَّةِ عَلَيْهِ مَرَّةً فِي السَّنَةِ مِنْ جِيلٍ إِلَى جِيلٍ، لأَنَّهُ هُوَ قُدْسُ أَقْدَاسٍ للرَّبِّ.

تقدمة الفدية

11وَخَاطَبَ الرَّبُّ مُوسَى: 12«عِنْدَمَا تَقُومُ بِإِحْصَاءِ بَنِي إِسْرَائِيلَ، يُقَدِّمُ كُلُّ مَنْ تُحْصِيهِ فِدْيَةً عَنْ نَفْسِهِ للرَّبِّ لِئَلّا يُصِيبَهُمْ وَبَأٌ عِنْدَ إحْصَائِهِمْ. 13فَيُعْطِي كُلُّ مُحْصىٍ نِصْفَ شَاقِلٍ (نَحْوَ سِتَّةِ جِرَامَاتٍ) مِنَ الْفِضَّةِ تَقْدِمَةً للرَّبِّ. 14كُلُّ مَنْ جَازَ عَلَيْهِ الإِحْصَاءُ مِنِ ابْنِ عِشْرِينَ سَنَةً فَمَا فَوْقُ، يُعْطِي تَقْدِمَةً للرَّبِّ. 15فَلا يُعْطِي الْغَنِيُّ أَكْثَرَ مِنْ نِصْفِ شَاقِلٍ (نَحْوِ سِتَّةِ جِرَامَاتٍ) وَلا يَدْفَعُ الْفَقِيرُ أَقَلَّ مِنْهَا لأَنَّهَا تَقْدِمَةُ الرَّبِّ، لِلتَّكْفِيرِ عَنْ نُفُوسِكُمْ. 16وَتَسْتَخْدِمُ فِضَّةَ الْكَفَّارَةِ هَذِهِ الَّتِي تَجْمَعُهَا مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ، لِنَفَقَاتِ خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ. فَتَكُونُ تَذْكَاراً. لِبَنِي إِسْرَائِيلَ أَمَامَ الرَّبِّ لِلتَّكْفِيرِ عَنْ نُفُوسِكُمْ».

حوض الاغتسال

17وَخَاطَبَ الرَّبُّ مُوسَى: 18«اصْنَعْ حَوْضاً نُحَاسِيًّا لِلاغْتِسَالِ ذَا قَاعِدَةٍ نُحَاسِيَّةٍ، وَأَقِمْهُ بَيْنَ خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ وَالْمَذْبَحِ، وَامْلأْهُ بِالْمَاءِ، 19لِيَغْسِلَ هَرُونُ وَبَنُوهُ أَيْدِيَهُمْ وَأَرْجُلَهُمْ مِنْهُ، 20لَدَى دُخُولِهِمْ إِلَى خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ، أَوْ عِنْدَ اقْتِرَابِهِمْ إِلَى الْمَذْبَحِ لِلْقِيَامِ بِخِدْمَةِ تَقْدِيمِ الْمُحْرَقَاتِ لِئَلّا يَمُوتُوا إِذَا لَمْ يَغْتَسِلُوا. 21لِيَغْسِلُوا أَيْدِيَهُمْ وَأَرْجُلَهُمْ لِئَلّا يَمُوتُوا. فَتَكُونُ هَذِهِ فَرِيضَةً أَبَدِيَّةً لِهَرُونَ وَنَسْلِهِ جِيلاً بَعْدَ جِيلٍ».

دهن المسحة

22ثُمَّ قَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: 23«خُذْ لَكَ أَطْيَبَ الْعُطُورِ: خَمْسَ مِئَةِ شَاقِلٍ (نَحْوَ سِتَّةَ كِيلو جِرَامَاتٍ) مِنَ الْمُرِّ النَّقِيِّ السَّائِلِ، وَمِئَتَيْنِ وَخَمْسِينَ شَاقِلاً (نَحْوَ ثَلاثَةِ كِيلو جِرَامَاتٍ) مِنَ الْقِرْفَةِ، وَمَئَتَيْنِ وَخَمْسِينَ شَاقِلاً (نَحْوَ ثَلاثَةِ كِيلو جِرَامَاتٍ) مِنْ قَصَبِ الذَّرِيرَةِ. 24وَخَمْسَ مِئَةِ شَاقِلٍ (نَحْوَ سِتَّةِ كِيلُو جِرَامَاتٍ) مِنَ السَّلِيخَةِ وَهِيناً (نَحْوَ سِتَّةِ لِتْرَاتٍ) مِنْ زَيْتِ الزَّيْتُونِ النَّقِيِّ. 25وَاصْنَعْ مِنْهَا دُهْنَ مَسْحَةٍ مُقَدَّساً طَيِّباً شَذِيًّا صَنْعَةَ عَطَّارٍ مَاهِرٍ، فَيَكُونَ دُهْنَ مَسْحَةٍ مُقَدَّساً. 26تَمْسَحُ بِهِ خَيْمَةَ الاجْتِمَاعِ، وَتَابُوتَ الشَّهَادَةِ، 27وَالْمَائِدَةَ مَعَ كُلِّ آنِيَتِهَا، وَالْمَنَارَةَ وَآنِيَتَهَا، وَمَذْبَحَ الْبَخُورِ، 28وَمَذْبَحَ الْمُحْرَقَةِ وَسَائِرَ آنِيَتِهِ، وَالْحَوْضَ وَقَاعِدَتَهُ. 29تُقَدِّسُهَا فَتُصْبِحُ قُدْسَ أَقْدَاسٍ، وَيُصْبِحُ كُلُّ مَا مَسَّهَا مُقَدَّساً. 30وَتَمْسَحُ هَرُونَ وَبَنِيهِ أَيْضاً وَتُقَدِّسُهُمْ لِيَكُونُوا كَهَنَةً لِي. 31وَتَقُولُ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ: إِنَّ هَذَا الدُّهْنَ يَكُونُ لِي دُهْناً مُقَدَّساً لِلْمَسْحَةِ عَلَى مَرِّ أَجْيَالِكُمْ 32لَا يُسْكَبُ عَلَى جَسَدِ إِنْسَانٍ، وَلا تَسْتَخْدِمُوا مَقَادِيرَهُ فِي صِنَاعَةِ طِيبٍ مِثْلِهِ، فَهُوَ مُقَدَّسٌ، وَيَجِبُ أَنْ يَكُونَ مُقَدَّساً عِنْدَكُمْ. 33كُلُّ مَنْ رَكَّبَ مِثْلَهُ أَوْ دَهَنَ بِهِ غَرِيباً مِنْ غَيْرِ الْكَهَنَةِ يُسْتَأْصَلُ مِنْ بَيْنِ قَوْمِهِ».

البخور

34وَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: «خُذْ لَكَ أَطْيَاباً، أَجْزَاءَ مُتَسَاوِيَةً مِنَ الْمَيْعَةِ وَالأَظْفَارِ وَالْقِنَّةِ الْعَطِرَةِ وَاللُّبَانِ الزَّكِيِّ، وَاخْلِطْهَا، 35صَانِعاً مِنْهَا بَخُوراً عَطِراً مُمَلَّحاً نَقِيًّا مُقَدَّساً، كَمَا يَفْعَلُ أَمْهَرُ الْعَطَّارِينَ. 36وَتَسْحَقُ بَعْضاً مِنْهُ وَتَجْعَلُهُ أَمَامَ التَّابُوتِ فِي خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ حَيْثُ أَجْتَمِعُ بِكَ. فَيَكُونُ قُدْسَ أَقْدَاسٍ عِنْدَكُمْ. 37وَلا يَسْتَخْدِمُ أَحَدٌ مَقَادِيرَهُ فِي صِنَاعَةِ بَخُورٍ مِثْلِهِ. يَكُونُ مُقَدَّساً عِنْدَكَ لِلرَّبِّ وَحْدَهُ. 38كُلُّ مَنْ يُرَكِّبُ مِثْلَهُ لِيَشُمَّهُ يُسْتَأْصَلُ مِنْ بَيْنِ قَوْمِهِ».

Hindi Contemporary Version

निर्गमन 30:1-38

धूप की वेदी

1“धूप जलाने के लिए बबूल की लकड़ी की एक वेदी बनाना. 2वेदी चौकोर हो, उसकी लंबाई तथा चौड़ाई पैंतालीस-पैंतालीस सेंटीमीटर तथा ऊंचाई नब्बे सेंटीमीटर की हो, उसकी सींग उसी टुकड़े में से बनाए. 3वेदी के अंदर-बाहर, ऊपर-नीचे, चारों ओर सोना लगवाना—सींग में भी सोना लगवाना. इसके चारों ओर तुम सोने की किनारी लगवाना. 4इसकी किनारियों के नीचे सोने के दो-दो कड़े लगवाना. और इसको इन डंडे के द्वारा उठाने के लिए ही दोनों तरफ कड़े लगवाना जो आमने-सामने हो. 5डंडे बबूल की लकड़ी से बनाकर उसमें सोना लगाना. 6वेदी को उस पर्दे के सामने रखना, जो साक्षी पट्टिया के संदूक के पास है, अर्थात् करुणासन के आगे जो साक्षी पत्र के ऊपर है, वहीं मैं तुमसे मिला करूंगा.

7“अहरोन इसी वेदी पर सुगंधधूप जलाया करे, वह हर रोज सुबह दीये को ठीक करके फिर दिया जलाए. 8अहरोन शाम के समय जब दीयों को जलाए तब धूप भी जलाए; यह धूप याहवेह के सामने पीढ़ी से पीढ़ी तक लगातार जलाया जाए. 9तुम उस वेदी पर और किसी प्रकार की धूप न जलाना और न उस पर होमबलि अथवा अन्‍नबलि चढ़ाना तथा न तुम इस वेदी पर कोई पेय बलि उण्डेलना. 10साल में एक बार अहरोन इस वेदी के सींगों पर प्रायश्चित किया करेगा. वह वर्ष में एक ही बार पीढ़ी से पीढ़ी तक पापबलि के लहू से प्रायश्चित किया करेगा. यह याहवेह के लिए परम पवित्र है.”

प्रायश्चित धन

11याहवेह ने मोशेह से कहा 12“जब तुम इस्राएलियों को गिनने लगो, और जिनकी गिनती हो चुकी हो वे अपने लिए याहवेह को प्रायश्चित दें ताकि गिनती करते समय कोई परेशानी न आ जाये. 13हर एक व्यक्ति, जिसको गिना जा रहा है, वह व्यक्ति पवित्र स्थान की नाप के अनुसार याहवेह के लिए चांदी का आधा शेकेल दे30:13 एक शेकेल बारह ग्राम का होता हैं. एक शेकेल बीस गेराह है. 14हर एक पुरुष, जो बीस वर्ष से ऊपर का हो चुका है, और जिसकी गिनती की जा रही है, वह याहवेह को भेंट दे. 15जब कभी तुम अपने प्रायश्चित के लिए याहवेह को भेंट दो तब न तो धनी व्यक्ति आधे शेकेल से ज्यादा दे और न गरीब आधे शेकेल से कम दे. 16तुम इस्राएलियों से प्रायश्चित का रुपया लेकर मिलनवाले तंबू के कामों में लेना ताकि यह इस्राएलियों के लिए याहवेह के सामने यादगार बन जाए, और अपने प्राण का प्रायश्चित भी हो जाए.”

धोने की चिलमची

17फिर याहवेह ने मोशेह से कहा, 18“तुम्हें कांसे की एक हौद भी बनानी होगी. उसका पाया कांसे का बनाना. यह हाथ-पैर धोने के लिए काम में लिया जायेगा. उसे मिलनवाले तंबू और वेदी के बीच में रखकर उसमें पानी भरना. 19अहरोन तथा उसके पुत्र इसी पानी में अपने हाथ एवं पांव धोया करें. 20जब-जब वे मिलनवाले तंबू में जायें तब-तब वे हाथ-पांव धोकर ही जाएं, और जब वे वेदी के समीप याहवेह की सेवा करने या धूप जलाने जाएं; 21तब वे हाथ-पांव धोकर ही जाएं ऐसा नहीं करने से वे मर जायेंगे. अहरोन एवं उसके वंश को पीढ़ी से पीढ़ी के लिए सदा यही विधि माननी है.”

अभिषेक का तेल

22और याहवेह ने मोशेह से कहा 23“तुम उत्तम से उत्तम सुगंध द्रव्य, पवित्र स्थान की माप के अनुसार साढ़े पांच किलो, गन्धरस, पौने तीन किलो सुगंधित दालचीनी, पौने तीन किलो सुगंधित अगर, 24साढ़े पांच किलो दालचीनी तथा पौने चार लीटर जैतून का तेल. 25इन सबको लेकर अभिषेक का पवित्र तेल तैयार करना, ऐसा कार्य जैसा इत्र बनानेवाले का हो; और यह अभिषेक का पवित्र तेल कहलायेगा. 26और इसी तेल से मिलनवाले तंबू, साक्षी पत्र के संदूक, 27मेज़ और उसकी सारी चीज़ें, दीया और उसकी सारी चीज़ें, तथा सुगंधधूप वेदी, 28होमबलि की वेदी, पाए के साथ हौदी का अभिषेक करना. 29तुम इन सबको पवित्र करना, ताकि ये सब अति पवित्र हो जाएं. जो कोई इनको छुएगा, वह पवित्र हो जाएगा.

30“तुम अहरोन एवं उसके पुत्रों को अभिषेक करके पवित्र करना, ताकि वे मेरे पुरोहित होकर मेरी सेवा किया करें. 31तुम इस्राएलियों से यह कहना, ‘यह पीढ़ी से पीढ़ी तक मेरे लिए पवित्र अभिषेक का तेल होगा. 32यह किसी भी मनुष्य के शरीर पर न डालना और न ही तुम कभी भी इसके समान कोई और तेल बनाना. यह पवित्र तेल है. यह तुम्हारे लिए पवित्र रहेगा. 33जो कोई उस पवित्र तेल के समान कोई और तेल बनाने की कोशिश करे या उसमें से किसी अन्य व्यक्ति को दे, तो उसे अपने लोगों के बीच से निकाल दिया जाये.’ ”

धूप

34फिर याहवेह ने मोशेह से कहा, “तुम गन्धरस, नखी, गन्धाबिरोजा, सुगंध द्रव्य तथा शुद्ध लोबान, ये सब बराबर मात्रा में लेना, और 35इन्हें लेकर एक सुगंधधूप बनाना—जैसे लवण के साथ, विशुद्ध तथा पवित्र हवन सामग्री को बनाता है. 36इसमें से छोटा टुकड़ा लेकर बारिक पीसकर थोड़ा मिलनवाले तंबू में साक्षी पत्र के आगे रखना, जहां मैं तुमसे भेंट करूंगा. वह तुम्हारे लिए परम पवित्र होगा. 37जो धूप तुम बनाओगे, उसमें अपनी इच्छा से कुछ मिलावट न करना बल्कि इसे याहवेह के लिए पवित्र रखना. 38जो कोई धूप के लिए अपनी मर्जी से कुछ भी मिलायेगा तो उसे निकाल दिया जाये.”