الخروج 20 – NAV & HCV

New Arabic Version

الخروج 20:1-26

الوصايا العشر

1ثُمَّ نَطَقَ اللهُ بِجَمِيعِ هَذِهِ الأَقْوَالِ: 2«أَنَا هُوَ الرَّبُّ إِلَهُكَ الَّذِي أَخْرَجَكَ مِنْ أَرْضِ مِصْرَ دِيَارِ عُبُودِيَّتِكَ. 3لَا يَكُنْ لَكَ آلِهَةٌ أُخْرَى سِوَايَ. 4لَا تَنْحَتْ لَكَ تِمْثَالاً، وَلا تَصْنَعْ صُورَةً مَّا مِمَّا فِي السَّمَاءِ مِنْ فَوْقُ، وَمَا فِي الأَرْضِ مِنْ تَحْتُ، وَمَا فِي الْمَاءِ مِنْ أَسْفَلِ الأَرْضِ. 5لَا تَسْجُدْ لَهُنَّ وَلا تَعْبُدْهُنَّ، لأَنِّي أَنَا الرَّبَّ إِلَهَكَ، إِلَهٌ غَيُورٌ، أَفْتَقِدُ آثَامَ الآبَاءِ فِي البَنِينَ حَتَّى الْجِيلِ الثَّالِثِ وَالرَّابِعِ مِنْ مُبْغِضِيَّ، 6وَأَبْدِي إحْسَاناً نَحْوَ أُلُوفٍ مِنْ مُحِبِّيَّ الَّذِينَ يُطِيعُونَ وَصَايَايَ. 7لَا تَنْطِقْ بِاسْمِ الرَّبِّ إِلَهِكَ بَاطِلاً، لأَنَّ الرَّبَّ يُعَاقِبُ مَنْ نَطَقَ بِاسْمِهِ بَاطِلاً. 8اذْكُرْ يَوْمَ السَّبْتِ لِتُقَدِّسَهُ، 9سِتَّةَ أَيَّامٍ تَعْمَلُ وَتَقُومُ بِجَمِيعِ مَشَاغِلِكَ، 10أَمَّا الْيَوْمُ السَّابِعُ فَتَجْعَلُهُ سَبْتاً لِلرَّبِّ إِلَهِكَ، فَلا تَقُمْ فِيهِ بِأَيِّ عَمَلٍ أَنْتَ أَوِ ابْنُكَ أَوْ ابْنَتُكَ أَوِ عَبْدُكَ أَوْ أَمَتُكَ أَوْ بَهِيمَتُكَ أَوِ النَّزِيلُ الْمُقِيمُ دَاخِلَ أَبْوَابِكَ. 11لأَنَّ الرَّبَّ قَدْ صَنَعَ السَّمَاءَ وَالأَرْضَ وَالْبَحْرَ وَكُلَّ مَا فِيهَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ، ثُمَّ اسْتَراحَ فِي الْيَوْمِ الْسَّابِعِ. لِهَذَا بَارَكَ الرَّبُّ يَوْمَ السَّبْتِ وَجَعَلَهُ مُقَدَّساً. 12أَكْرِمْ أَبَاكَ وَأُمَّكَ لِكَيْ يَطُولَ عُمْرُكَ فِي الأَرْضِ الَّتِي يَهَبُكَ إِيَّاهَا الرَّبُّ إِلَهُكَ. 13لَا تَقْتُلْ. 14لَا تَزْنِ. 15لَا تَسْرِقْ. 16لَا تَشْهَدْ زُوراً عَلَى جَارِكَ. 17لَا تَشْتَهِ بَيْتَ جَارِكَ، وَلا زَوْجَتَهُ، وَلا عَبْدَهُ، وَلا أَمَتَهُ، وَلا ثَوْرَهُ، وَلا حِمَارَهُ، وَلا شَيْئاً مِمَّا لَهُ».

ارتعاب الشعب

18وَعِنْدَمَا عَايَنَ الشَّعْبُ كُلُّهُ الرُّعُودَ وَالْبُرُوقَ، وَسَمِعُوا دَوِيَّ صَوْتِ الْبُوقِ، وَرَأَوْا الجَبَلَ يُدَخِّنُ ارْتَجَفُوا خَوْفاً وَوَقَفُوا مِنْ بَعِيدٍ، 19وَقَالُوا لِمُوسَى: «كَلِّمْنَا أَنْتَ بِنَفْسِكَ فَنَسْمَعَ، لِئَلّا نَمُوتَ إذَا ظَلَّ اللهُ يُخَاطِبُنَا». 20فَأَجَابَ مُوسَى: «لا تَخَافُوا. إِنَّمَا الرَّبُّ قَدْ جَاءَ لِيَمْتَحِنَكُمْ حَتَّى تَظَلَّ مَخَافَةُ الرَّبِّ تُلازِمُكُمْ فَلا تُخْطِئُوا». 21وَبَيْنَمَا كَانَ الشَّعْبُ وَاقِفاً مِنْ بَعِيدٍ، اقْتَرَبَ مُوسَى مِنَ الظَّلامِ المُتَكَاثِفِ حَيْثُ كَانَ اللهُ.

أوثان ومذابح

22فَقَالَ الرَّبُّ لِمُوسَى: «تَقُولُ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ: أَنْتُمْ رَأَيْتُمْ بِأَنْفُسِكُمْ كَيْفَ كَلَّمْتُكُمْ مِنَ السَّمَاءِ. 23فَامْتَنِعُوا عَنْ صُنْعِ آلِهَةِ فِضَّةٍ أَوْ آلِهَةِ ذَهَبٍ لَكُمْ لِتُشْرِكُوهَا مَعِي. 24أَقِمْ لِي مَذْبَحاً مِنْ تُرَابٍ تُقَدِّمُ عَلَيْهِ مُحْرَقَاتِكَ وَقَرَابِينَ سَلامَتِكَ مِنْ غَنَمِكَ وَبَقَرِكَ. وَآتِي إِلَيْكَ وَأُبَارِكُكَ فِي جَمِيعِ الأَمَاكِنِ الَّتِي أُقِيمُ فِيهَا لاِسْمِي ذِكْراً. 25وَإِنْ بَنَيْتَ لِي مَذْبَحاً مِنْ حِجَارَةٍ، فَلا تَبْنِهِ مِنْ حِجَارَةٍ مَنْحُوتَةٍ، لأَنَّ اسْتِعْمَالَكَ لِلإِزْمِيلِ يُدَنِّسُهَا 26وَلا تَرْتَقِ إِلَى مَذْبَحِي بِدَرَجٍ لِئَلّا تَنْكَشِفَ عَوْرَتُكَ عَلَيْهِ».

Hindi Contemporary Version

निर्गमन 20:1-26

दस आदेश

1तब परमेश्वर ने कहा:

2“मैं ही हूं याहवेह, तुम्हारा परमेश्वर, जिसने तुम्हें मिस्र देश के बंधन से छुड़ाया.

3“मेरे अलावा तुम किसी दूसरे को ईश्वर नहीं मानोगे.

4तुम अपने लिए न तो आकाश की, न पृथ्वी की, और न जल की किसी वस्तु की मूर्ति बनाना. 5न इनमें से किसी को दंडवत करना और न उसकी आराधना करना—मैं, याहवेह, जो तुम्हारा परमेश्वर हूं, जलन रखनेवाला परमेश्वर हूं, जो मुझे अस्वीकार करते हैं, मैं उनके पापों का प्रतिफल उनके बेटों को, पोतों और परपोतों को तक दूंगा, 6किंतु उन हजारों पीढ़ियों पर, जिन्हें मुझसे प्रेम है तथा जो मेरे आदेशों का पालन करते हैं, अपनी करुणा प्रकट करता रहूंगा.

7तुम याहवेह, अपने परमेश्वर के नाम का गलत इस्तेमाल नहीं करोगे, क्योंकि याहवेह उस व्यक्ति को बिना दंड दिए नहीं छोड़ेंगे, जो याहवेह का नाम व्यर्थ में लेता है.

8शब्बाथ को पवित्र दिन के रूप में मानने को याद रखो. 9छः दिन मेहनत करते हुए तुम अपने सारे काम पूरे कर लोगे, 10मगर सातवां दिन याहवेह तुम्हारे परमेश्वर का शब्बाथ है; इस दिन तुम कोई भी काम नहीं करोगे; तुम, तुम्हारे पुत्र-पुत्रियां, तुम्हारे पुरुष अथवा महिला सेवक न तुम्हारे सारे पशु अथवा तुम्हारे यहां रहनेवाले विदेशी, तुम्हारे सेवक-सेविकाएं भी तुम्हारे समान विश्राम करें. 11क्योंकि याहवेह ने इन छः दिनों में आकाशमंडल और पृथ्वी, तथा समुद्र और सभी की सृष्टि की, तथा सातवें दिन याहवेह ने कोई काम नहीं किया; तब याहवेह ने सातवें दिन को पवित्र ठहराया.

12तुम अपने पिता एवं अपनी माता का आदर करना, ताकि वह देश, जो याहवेह तुम्हारे परमेश्वर, तुम्हें देनेवाले हैं, उसमें तुम बहुत समय तक रह पाओ.

13तुम मानव हत्या नहीं करना.

14तुम व्यभिचार नहीं करना.

15तुम चोरी नहीं करना.

16तुम अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही नहीं देना.

17तुम अपने पड़ोसी के घर का लालच नहीं करना; तुम अपने पड़ोसी की पत्नी का लालच नहीं करना; न किसी सेवक, सेविका का; अथवा उसके बैल अथवा गधे का—उसकी किसी भी वस्तु का लालच नहीं करना.”

18सभी इस्राएली बादल के गरजने तथा बिजली के चमकने तथा नरसिंगे के शब्द एवं पर्वत से धुंआ उठते हुए देखते रहे, और डरते और कांपते हुए दूर खड़े रहे. 19उन्होंने मोशेह से कहा, “स्वयं आप ही हमसे बात कीजिए, किंतु परमेश्वर को हमसे बात न करने दीजिए. कहीं ऐसा न हो, कि हम मर जाएं.”

20मोशेह ने लोगों से कहा, “डरो मत; क्योंकि परमेश्वर यहां इसलिये आए हैं कि वह तुम्हें जांचें, ताकि उनके प्रति तुम्हारे मन में भय और श्रद्धा हो और तुम पाप न करो.”

21तब लोग दूर ही खड़े रहे, किंतु मोशेह उस घने बादल की ओर बढ़ते गए, जहां परमेश्वर की उपस्थिति थी.

मूर्तियां और वेदियां

22तब याहवेह ने मोशेह से कहा, “इस्राएलियों से यह कहना कि तुमने देखा कि याहवेह ने स्वर्ग से कैसे बात की है. 23तुम मेरे सिवाय किसी भी अन्य देवता को न मानना, और अपने लिए न चांदी की, न सोने की मूर्ति बनाना.

24“ मेरे लिए तुम मिट्टी से वेदी बनाना. इसी पर तुम गाय-बैलों तथा बछड़ों की होमबलि एवं मेल बलि चढ़ाना. और मेरी महिमा करना और मैं आकर तुम्हें आशीष दूंगा. 25यदि तुम्हें पत्थर से वेदी बनानी पड़े, तो ऐसा पत्थर लेना जिस पर कभी हथियार नहीं चलाया गया हो, 26सीढ़ियों से वेदी पर चढ़ना नहीं, चढ़े तो लोग तुम्हारी नग्नता को देख सकेंगे.”