أيوب 10 – NAV & HCV

New Arabic Version

أيوب 10:1-22

1قَدْ كَرِهْتُ حَيَاتِي، لِهَذَا أُطْلِقُ الْعَنَانَ لِشَكْوَايَ، وَأَتَحَدَّثُ عَنْ أَشْجَانِي فِي مَرَارَةِ نَفْسِي، 2قَائِلاً لِلهِ: لَا تَسْتَذْنِبْنِي. فَهِّمْنِي لِمَاذَا تُخَاصِمُنِي؟ 3أَيَحْلُو لَكَ أَنْ تَظْلِمَ وَتَنْبِذَ عَمَلَ يَدِكَ، وَتُحَبِّذَ مَشُورَةَ الأَشْرَارِ؟ 4أَلَكَ عَيْنَا بَشَرٍ، أَمْ كَنَظَرِ الإِنْسَانِ تَنْظُرُ؟ 5هَلْ أَيَّامُكَ مِثْلُ أَيَّامِ الإِنْسَانِ، أَمْ سِنُوكَ فِي قِصَرِ سِنِيِ الْبَشَرِ، 6حَتَّى تَبْحَثَ عَنْ إِثْمِي وَتُنَقِّبَ عَنْ خَطَايَايَ؟ 7فَأَنْتَ عَالِمٌ أَنِّي لَسْتُ مُذْنِباً، وَأَنَّهُ لَا مُنْقِذَ مِنْ يَدِكَ.

8قَدْ كَوَّنَتْنِي يَدَاكَ وَصَنَعَتَانِي بِجُمْلَتِي، وَالآنَ الْتَفَتَّ إِلَيَّ لِتَسْحَقَنِي! 9اذْكُرْ أَنَّكَ جَبَلْتَنِي مِنْ طِينٍ، أَتُرْجِعُنِي بَعْدُ إِلَى التُّرَابِ؟ 10أَلَمْ تَصُبَّنِي كَاللَّبَنِ وَتُخَثِّرْنِي كَالْجُبْنِ؟ 11كَسَوْتَنِي جِلْداً وَلَحْماً، فَنَسَجْتَنِي بِعِظَامٍ وَعَصَبٍ. 12مَنَحْتَنِي حَيَاةً وَرَحْمَةً، وَحَفِظَتْ عِنَايَتُكَ رُوحِي. 13كَتَمْتَ هَذِهِ الأُمُورَ فِي قَلْبِكَ، إِلّا أَنِّي عَلِمْتُ أَنَّ هَذَا قَصْدُكَ.

14إِنْ أَخْطَأْتُ فَأَنْتَ تُرَاقِبُنِي، وَلا تُبْرِئُنِي مِنْ إِثْمِي. 15إِنْ أَذْنَبْتُ فَوَيْلٌ لِي. وَإِنْ كُنْتُ بَارّاً لَا أَرْفَعُ رَأْسِي، لأَنِّي مُمْتَلِئٌ هَوَاناً وَنَاظِرٌ مَذَلَّتِي، 16وَإِنْ شَمَخْتُ بِرَأْسِي تَقْتَنِصُنِي كَالأَسَدِ، ثُمَّ تَعُودُ فَتَصُولُ عَلَيَّ. 17تُجَدِّدُ شُهُودَكَ ضِدِّي، وَتُضْرِمُ غَضَبَكَ عَلَيَّ، وَتُؤَلِّبُ جُيُوشاً تَتَنَاوَبُ ضِدِّي.

18لِمَاذَا أَخْرَجْتَنِي مِنَ الرَّحِمِ؟ أَلَمْ يَكُنْ خَيْراً لَوْ أَسْلَمْتُ الرُّوحَ وَلَمْ تَرَنِي عَيْنٌ؟ 19فَأَكُونُ كَأَنِّي لَمْ أَكُنْ فَأُنْقَلُ مِنَ الرَّحِمِ إِلَى الْقَبْرِ. 20أَلَيْسَتْ أَيَّامِي قَلِيلَةً؟ كُفَّ عَنِّي لَعَلِّي أَتَمَتَّعُ بِبَعْضِ الْبَهْجَةِ، 21قَبْلَ أَنْ أَمْضِيَ إِلَى حَيْثُ لَا أَعُودُ، إِلَى أَرْضِ الظُّلْمَةِ وَظِلِّ الْمَوْتِ، 22إِلَى أَرْضِ الظُّلْمَةِ الْمُتَكَاثِفَةِ وَالْفَوْضَى، حَيْثُ الإِشْرَاقُ فِيهَا كَاللَّيْلِ الْبَهِيمِ».

Hindi Contemporary Version

अय्योब 10:1-22

1“अपने जीवन से मुझे घृणा है;

मैं खुलकर अपनी शिकायत प्रस्तुत करूंगा.

मेरे शब्दों का मूल है मेरी आत्मा की कड़वाहट.

2परमेश्वर से मेरा आग्रह है: मुझ पर दोषारोपण न कीजिए,

मुझ पर यह प्रकट कर दीजिए, कि मेरे साथ अमरता का मूल क्या है.

3क्या आपके लिए यह उपयुक्त है कि आप अत्याचार करें,

कि आप अपनी ही कृति को त्याग दें,

तथा दुर्वृत्तों की योजना को समर्थन दें?

4क्या आपके नेत्र मनुष्यों के नेत्र-समान हैं?

क्या आपका देखना मनुष्यों-समान होता है?

5क्या आपका जीवनकाल मनुष्यों-समान है,

अथवा आपके जीवन के वर्ष मनुष्यों-समान हैं,

6कि आप मुझमें दोष खोज रहे हैं,

कि आप मेरे पाप की छानबीन कर रहे हैं?

7आपके ज्ञान के अनुसार सत्य यही है मैं दोषी नहीं हूं,

फिर भी आपकी ओर से मेरे लिए कोई भी मुक्ति नहीं है.

8“मेरी संपूर्ण संरचना आपकी ही कृति है,

क्या आप मुझे नष्ट कर देंगे?

9स्मरण कीजिए, मेरी रचना आपने मिट्टी से की है.

क्या आप फिर मुझे मिट्टी में शामिल कर देंगे?

10आपने क्या मुझे दूध के समान नहीं उंडेला

तथा दही-समान नहीं जमा दिया था?

11क्या आपने मुझे मांस तथा खाल का आवरण नहीं पहनाया

तथा मुझे हड्डियों तथा मांसपेशियों से बुना था?

12आपने मुझे जीवन एवं करुणा-प्रेम10:12 करुणा-प्रेम मूल में ख़ेसेद इस हिब्री शब्द का अर्थ में अनुग्रह, दया, प्रेम, करुणा ये शामिल हैं का अनुदान दिया

तथा आपकी कृपा में मेरी आत्मा सुरक्षित रही है.

13“फिर भी ये सत्य आपने अपने हृदय में गोपनीय रख लिए,

मुझे यह मालूम है कि यह आप में सुरक्षित है:

14यदि मैं कोई पाप कर बैठूं तो आपका ध्यान मेरी ओर जाएगा.

तब आप मुझे निर्दोष न छोड़ेंगे.

15धिक्कार है मुझ पर—यदि मैं दोषी हूं!

और यद्यपि मैं बेकसूर हूं, मुझमें सिर ऊंचा करने का साहस नहीं है.

मैं तो लज्जा से भरा हुआ हूं,

क्योंकि मुझे मेरी दयनीय दुर्दशा का बोध है.

16यदि मैं अपना सिर ऊंचा कर लूं, तो आप मेरा पीछा ऐसे करेंगे, जैसे सिंह अपने आहार का पीछा करता है;

एक बार फिर आप मुझ पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे.

17आप मेरे विरुद्ध नए-नए साक्षी लेकर आते हैं

तथा मेरे विरुद्ध अपने कोप की वृद्धि करते हैं;

मुझ पर तो कष्टों पर कष्ट चले आ रहे हैं.

18“तब आपने मुझे गर्भ से बाहर क्यों आने दिया?

उत्तम तो यही होता कि वहीं मेरी मृत्यु हो जाती कि मुझ पर किसी की दृष्टि न पड़ती.

19मुझे तो ऐसा हो जाना था,

मानो मैं हुआ ही नहीं; या सीधे गर्भ से कब्र में!

20क्या परमेश्वर मुझे मेरे इन थोड़े से दिनों में शांति से रहने न देंगे?

आप अपना यह स्थान छोड़ दीजिए, कि मैं कुछ देर के लिए आनंदित रह सकूं.

21इसके पूर्व कि मैं वहां के लिए उड़ जाऊं, जहां से कोई लौटकर नहीं आता,

उस अंधकार तथा मृत्यु के स्थान को,

22उस घोर अंधकार के स्थान को,

जहां कुछ गड़बड़ी नहीं है,

उस स्थान में अंधकार भी प्रकाश समान है.”