2 राजा 17 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

2 राजा 17:1-41

इस्राएल पर होशिया का शासन

1यहूदिया के राजा आहाज़ के शासन के बारहवें साल में एलाह का पुत्र होशिया शमरिया में राजा बना. उसका शासन नौ साल का था. 2उसने वह किया, जो याहवेह की दृष्टि में गलत था, मगर उस सीमा तक नहीं, जैसा इस्राएल में उसके पहले के राजाओं ने किया था.

3अश्शूर के राजा शालमानेसर ने उस पर हमला कर दिया. होशिया को उसके अधीन, जागीरदार होकर उसे कर देना पड़ता था. 4मगर अश्शूर के राजा को होशिया के एक षड़्‍यंत्र के विषय में मालूम हो गया. होशिया ने मिस्र देश के राजा सोअ से संपर्क के लिए अपने दूत भेजे थे, और उसने अपने ठहराए गए कर का भुगतान भी नहीं किया था, जैसा वह हर साल किया करता था. तब अश्शूर के राजा ने उसे बंदी बनाकर बंदीगृह में डाल दिया. 5इसके बाद उसने सारी इस्राएल देश पर कब्जा किया, और तीन साल तक शमरिया नगर को अपनी अधीनता में रखा. 6होशिया के शासन के नवें साल में अश्शूर के राजा ने शमरिया को अपने अधिकार में ले लिया. उसने इस्राएल जनता को बंदी बनाकर अश्शूर ले जाकर वहां हालाह और हाबोर क्षेत्र में बसा दिया. ये दोनों क्षेत्र मेदिया प्रदेश के गोज़ान नदी के तट पर स्थित हैं.

इस्राएल के पतन का कारण

7यह सब इसलिये हुआ कि इस्राएल वंशजों ने याहवेह, अपने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया; उस परमेश्वर के विरुद्ध, जिन्होंने उन्हें मिस्र के राजा फ़रोह की बंधुआई से मुक्त कराया था. उनमें पराए देवताओं के लिए भय आ गया था. 8वे उन राष्ट्रों की प्रथाओं का पालन करने लगे थे, जिन जनताओं को याहवेह ने इस्राएल वंश के सामने से अलग कर दिया था. इसके अलावा वे इस्राएल के राजाओं द्वारा प्रचलित प्रथाओं का पालन करने लगे थे. 9इस्राएल के लोग याहवेह, उनके परमेश्वर के विरुद्ध गुप्‍त रूप से वह सब करते रहे, जो गलत था. उन्होंने अपने सारे नगरों में पहरेदारों के खंभों से लेकर गढ़नगर तक पूजा की जगहों को बनवाया. 10उन्होंने हर एक ऊंची पहाड़ी पर और हर एक हरे पेड़ के नीचे अशेराह के खंभे खड़े किए. 11वे सारे पूजा स्थलों पर धूप जलाते थे, उन्हीं जनताओं के समान, जिन्हें याहवेह ने उनके सामने से हटाकर अलग किया था. इस्राएली प्रजा दुष्टता से भरे कामों में लगी रही, जिससे याहवेह का गुस्सा भड़क उठता था. 12वे मूर्तियों की सेवा-उपासना करते रहे, जिनके विषय में याहवेह ने उन्हें चेताया था, “तुम यह न करना.” 13फिर भी याहवेह इस्राएल और यहूदिया को हर एक भविष्यद्वक्ता और दर्शी के द्वारा इस प्रकार चेतावनी देते रहेः “व्यवस्था के अनुसार अपनी बुराइयों से फिरकर मेरे आदेशों और नियमों का पालन करो, जिनका आदेश मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया था, और जिन्हें मैंने भविष्यवक्ताओं, मेरे सेवकों के माध्यम से तुम तक पहुंचाया.”

14मगर उन्होंने इसकी अवहेलना की, और अपने हृदय कठोर कर लिए; जैसा उनके पूर्वजों ने किया था, जिनकी याहवेह, उनके परमेश्वर में कोई श्रद्धा न थी. 15उन्होंने याहवेह के नियमों का तिरस्कार किया और उस वाचा को तुच्छ माना, जो याहवेह ने उनके पूर्वजों के साथ स्थापित की थी. उन्होंने उन चेतावनियों पर ध्यान न दिया, जिनके द्वारा याहवेह ने उन्हें सचेत करना चाहा था. वे बेकार के कामों का अनुसरण करते-करते खुद भी बेकार बन गए, और अपने पड़ोसी राष्ट्रों के समान हो गए. इन्हीं राष्ट्रों के बारे में याहवेह ने उन्हें साफ़ आदेश दिया था: “उनका अनुसरण नहीं करना.”

16उन्होंने याहवेह, अपने परमेश्वर के सभी आदेशों को त्याग दिया, और उन्होंने अपने लिए बछड़ों की धातु की मूर्तियां, हां, दो बछड़ों की मूर्तियां ढाल लीं. उन्होंने अशेराह को बनाया और आकाश की सारी शक्तियों और बाल देवता की उपासना की. 17इसके बाद उन्होंने अपनी संतान को आग के बीच से होकर निकलने की प्रथा पूरी करने के लिए मजबूर किया. वे भावी कहते थे और जादू-टोना भी करते थे. उन्होंने स्वयं को वह सब करने के लिए समर्पित कर दिया, जो याहवेह की दृष्टि में गलत है. इससे उन्होंने याहवेह के क्रोध को भड़का दिया.

18फलस्वरूप याहवेह इस्राएल पर बहुत ही क्रोधित हो गए, और उन्होंने इस्राएल को अपनी नज़रों से दूर कर दिया; सिवाय यहूदाह गोत्र के. 19यहूदिया ने भी याहवेह, अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन नहीं किया. उसने उन्हीं प्रथाओं का अनुसरण किया, जिनको इस्राएल द्वारा शुरू किया गया था. 20याहवेह ने इस्राएल के सारे वंशजों को त्याग दिया, उन्हें सताया, उन्हें लुटेरों को सौंप दिया, और अपनी दृष्टि से दूर कर दिया.

21जब याहवेह इस्राएल को दावीद के वंश से अलग कर चुके, इस्राएलियों ने नेबाथ के पुत्र यरोबोअम को राजा बनाकर प्रतिष्ठित किया. यरोबोअम ने इस्राएल से याहवेह का अनुसरण खत्म करवा दिया, और इस्राएल को अधम पाप के लिए उकसाया. 22इस्राएली प्रजा ने वे सारे पाप किए, जो यरोबोअम ने स्वयं किए थे. इन पापों से वे कभी दूर न हुए. 23तब याहवेह ने उन्हें अपनी दृष्टि से दूर कर दिया, जैसा उन्होंने भविष्यवक्ताओं, अपने सेवकों, के द्वारा पहले ही घोषित कर दिया था. तब इस्राएल वंशज अपने देश से अश्शूर को बंधुआई में भेज दिए गए, वे अब तक बंधुआई में ही हैं.

इस्राएल के नगरों में विदेशियों का बसाया जाना

24अश्शूर के राजा ने बाबेल, कूथाह, अव्वा, हामाथ और सेफरवाइम से लोगों को लाकर शमरिया के नगरों में बसा दिया, जहां इसके पहले इस्राएल का रहना था. उन्होंने शमरिया को अपने अधिकार में ले लिया, और उसके नगरों में रहने लगे. 25उनके वहां रहने के शुरुआती सालों में उनके मन में याहवेह के प्रति भय था ही नहीं. तब याहवेह ने उनके बीच शेर भेज दिए, जिन्होंने उनमें से कुछ को अपना कौर बना लिया. 26इसके बारे में अश्शूर के राजा को सूचित किया गया: “जिन राष्ट्रों को आपने ले जाकर शमरिया के नगरों में बसाया है, उन्हें इस देश के देवता की विधि पता नहीं है, इसलिये उसने उनके बीच शेर भेज दिए हैं. अब देखिए वे प्रजा को मार रहे हैं, क्योंकि प्रजा को इस देश के देवता का पता नहीं है.”

27यह सुन अश्शूर के राजा ने यह आदेश दिया, “जिन पुरोहितों को बंधुआई में लाया गया है, उनमें से एक पुरोहित को वहां भेज दिया जाए, कि वह वहां जाकर वहीं रहा करे, और वहां बसे इन लोगों को उस देश के देवता की व्यवस्था की शिक्षा दे.” 28तब शमरिया से निकले पुरोहितों में से एक पुरोहित बेथेल नगर में आकर निवास करने लगा, जो उन्हें याहवेह के प्रति भय रखने के विषय में शिक्षा देता था.

29मगर हर एक राष्ट्र अपने-अपने देवताओं की मूर्तियां बनाता रहा, और उन्हें अपने-अपने नगरों के पूजा स्थलों में प्रतिष्ठित करता रहा; उन पूजा स्थलों पर, जो शमरिया के मूलवासियों द्वारा बनाए गए थे. यह वे उन सभी नगरों में करते गए, जहां वे बसते जा रहे थे. 30जो लोग बाबेल से आए थे उन्होंने सुक्कोथ-बेनोथ की मूर्ति, कूथ से आए लोगों ने नेरगल की, हामाथ से बसे हुए विदेशियों ने आषिमा की, 31अब्बी प्रवासियों ने निभाज़ और तारतक की; इसके अलावा सेफारवी प्रवासियों ने अपने बालकों को अद्राम्मेलेख और अन्‍नाम्मेलेख के लिए आग में बलि करने सेफरवाइम देवता की प्रथा चालू रखी. 32हां, उन्होंने भय के कारण याहवेह के लिए सभी प्रकार के लोगों में से पुरोहित भी चुन लिए. ये पुरोहित उनके लिए पूजा की जगहों पर बलि चढ़ाया करते थे. 33संक्षेप में, वे याहवेह के प्रति भय रखते हुए भी अपने-अपने राष्ट्र के उन देवताओं की उपासना करते रहे, जिन राष्ट्रों से लाकर वे यहां बसाए गए थे.

34आज तक वे अपनी-अपनी पहले की प्रथाओं में लगे हैं. वे न तो याहवेह के प्रति भय दिखाते हैं, न ही वे याहवेह द्वारा दी गई विधियों या आदेशों या नियमों या व्यवस्था का पालन करते हैं, जिनके पालन करने का आदेश याहवेह द्वारा याकोब के वंशों को दिया गया था, जिन्हें वह इस्राएल नाम से बुलाते थे, 35जिनके साथ याहवेह ने वाचा स्थापित की थी, और उन्हें यह आदेश दिया था: “पराए देवताओं से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है और न ही आवश्यकता है उनके सामने झुकने की, न उन्हें बलि चढ़ाने की, और न उनकी सेवा-उपासना करने की. 36हां, भय उस याहवेह के लिए रखो, जिन्होंने मिस्र देश से तुम्हें अद्धुत सामर्थ्य और बढ़ाई हुई भुजा से तुमको निकालकर यहां ले आए हैं. भय उन्हीं के प्रति बनाए रखो, वंदना के लिए उन्हीं के सामने झुको, और बलि उन्हें ही चढ़ाओ. 37इसके अलावा जो विधियां, नियम, व्यवस्था और आदेश उन्होंने तुम्हारे लिए लिखवा दिए हैं, उन्हें तुम हमेशा पालन करते रहो. साथ ही, यह ज़रूरी नहीं कि तुम पराए देवताओं से डरो. 38तुम उस वाचा को न भूलना जो मैंने तुम्हारे साथ बांधी है और न पराए देवताओं का भय मानना. 39तुम सिर्फ याहवेह अपने परमेश्वर का भय मानना. याहवेह ही तुम्हें तुम्हारे सारी शत्रुओं से छुटकारा दिलाएंगे.”

40इतना सब होने पर भी उन्होंने याहवेह की बातों पर ध्यान न दिया, वे अपने पहले के आचरण पर ही चलते रहे. 41इन जातियों ने याहवेह का भय तो माना, मगर साथ ही वे अपनी गढ़ी हुई मूर्तियों की उपासना भी करते रहे. उनकी संतान भी यही करती रही. और उनके बाद उनकी संतान भी, जैसा जैसा उन्होंने अपने पिता को करते देखा, उन्होंने आज तक उसी के जैसा किया.

New Arabic Version

ملوك الثاني 17:1-41

هوشع آخر ملوك إسرائيل

1وَفِي السَّنَةِ الثَّانِيَةِ عَشْرَةَ مِنْ حُكْمِ آحَازَ مَلِكِ يَهُوذَا، اعْتَلَى هُوشَعُ بْنُ أَيْلَةَ عَرْشَ إِسْرَائِيلَ فِي السَّامِرَةِ، لِمُدَّةِ تِسْعِ سَنَوَاتٍ. 2وَارْتَكَبَ الشَّرَّ فِي عَيْنَيِ الرَّبِّ، إِلّا أَنَّهُ كَانَ أَفْضَلَ قَلِيلاً مِنْ أَسْلافِهِ مُلُوكِ إِسْرَائِيلَ. 3وَزَحَفَ عَلَيْهِ شَلْمَنْأَسَرُ مَلِكُ أَشُورَ فَصَارَ هُوشَعُ لَهُ تَابِعاً يَدْفَعُ لَهُ جِزْيَةً. 4وَمَالَبِثَ أَنِ اكْتَشَفَ مَلِكُ أَشُورَ خِيَانَةَ هُوشَعَ، الَّذِي أَرْسَلَ وَفْداً يَسْتَغِيثُ بِسَوَا مَلِكِ مِصْرَ، وَلَمْ يُؤَدِّ جِزْيَةً لِمَلِكِ أَشُورَ كَعَهْدِهِ فِي كُلِّ سَنَةٍ، فَقَبَضَ عَلَيْهِ مَلِكُ أَشُورَ وَزَجَّهُ مُوْثَقاً فِي السِّجْنِ. 5وَاجْتَاحَ مَلِكُ أَشُورَ أَرْضَ إِسْرَائِيلَ، وَحَاصَرَ السَّامِرَةَ ثَلاثَ سَنَوَاتٍ. 6وَفِي السَّنَةِ التَّاسِعَةِ مِنْ حُكْمِ هُوشَعَ سَقَطَتِ السَّامِرَةُ، فَسَبَى مَلِكُ أَشُورَ الإِسْرَائِيلِيِّينَ إِلَى أَشُورَ وَأَسْكَنَهُمْ فِي مَدِينَةِ حَلَحَ، وَعَلَى ضِفَافِ نَهْرِ خَابُورَ فِي مِنْطَقَةِ جُوزَانَ، وَفِي مُدُنِ مَادِي.

سبي إسرائيل بسبب الخطية

7وَقَدْ حَلَّتْ هَذِهِ النَّكْبَةُ بِبَنِي إِسْرَائِيلَ لأَنَّهُمْ أَثِمُوا فِي حَقِّ الرَّبِّ إِلَهِهِمِ الَّذِي أَخْرَجَهُمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ، مِنْ تَحْتِ نِيرِ فِرْعَوْنَ وَعَبَدُوا آلِهَةً أُخْرَى، 8سَالِكِينَ حَسَبَ فَرَائِضِ الأُمَمِ الَّذِينَ طَرَدَهُمُ الرَّبُّ مِنْ أَمَامِهِمْ، وَمِنْ أَمَامِ مُلُوكِهِمْ الَّذِينَ نَصَّبُوهُمْ عَلَيْهِمْ. 9وَارْتَكَبَ بَنُو إِسْرَائِيلَ فِي الْخَفَاءِ مَعَاصِيَ فِي حَقِّ الرَّبِّ إِلَهِهِمْ، وَشَيَّدُوا لأَنْفُسِهِمْ مُرْتَفَعَاتٍ فِي جَمِيعِ مُدُنِهِمْ مِنْ بُرْجِ النَّوَاطِيرِ إِلَى الْمَدِينَةِ الْمُحَصَّنَةِ، 10وَأَقَامُوا لأَنْفُسِهِمْ أَنْصَاباً وَتَمَاثِيلَ لِعَشْتَارُوثَ عَلَى كُلِّ تَلٍّ مُرْتَفِعٍ، وَتَحْتَ كُلِّ شَجَرَةٍ خَضْرَاءَ، 11وَقَرَّبُوا مُحْرَقَاتٍ عَلَى جَمِيعِ الْمُرْتَفَعَاتِ كَسَائِرِ الأُمَمِ الَّذِينَ نَفَاهُمُ الرَّبُّ مِنْ أَمَامِهِمْ، وَاقْتَرَفُوا الْمُوبِقَاتِ لإِغَاظَةِ الرَّبِّ، 12عَابِدِينَ الأَصْنَامَ الَّتِي حَذَّرَهُمْ وَنَهَاهُمُ الرَّبُّ عَنْهَا. 13وَقَدْ أَنْذَرَ الرَّبُّ إِسْرَائِيلَ وَيَهُوذَا عَنْ طَرِيقِ أَنْبِيَائِهِ وَرَائِيهِ قَائِلاً: «ارْجِعُوا عَنْ طُرُقِكُمُ الأَثِيمَةِ، وَأَطِيعُوا وَصَايَايَ وَفَرَائِضِي بِمُقْتَضَى كُلِّ الشَّرِيعَةِ الَّتِي أَوْصَيْتُ آبَاءَكُمْ بِتَطْبِيقِهَا، وَالَّتِي أَعْلَنْتُهَا لَكُمْ عَلَى لِسَانِ عَبِيدِي الأَنْبِيَاءِ». 14لَكِنَّهُمْ أَصَمُّوا أَذَانَهُمْ وَأَغْلَظُوا قُلُوبَهُمْ كَآبَائِهِمِ الَّذِينَ لَمْ يَثِقُوا بِالرَّبِّ إِلَهِهِمْ، 15وَتَنَكَّرُوا لِفَرَائِضِهِ وَعَهْدِهِ الَّذِي أَبْرَمَهُ مَعَ آبَائِهِمْ، وَتَجَاهَلُوا تَحْذِيرَاتِهِ وَنَوَاهِيَهُ لَهُمْ، وَضَلُّوا وَرَاءَ أَصْنَامٍ بَاطِلَةٍ، فَأَصْبَحُوا هُمْ أَنْفُسُهُمْ بَاطِلِينَ، وَتَمَثَّلُوا بِالأُمَمِ الَّذِينَ حَوْلَهُمْ، مَعَ أَنَّ الرَّبَّ أَمَرَهُمْ أَلّا يَفْعَلُوا مِثْلَهُمْ، وَارْتَكَبُوا أُمُوراً نَهَاهُمُ الرَّبُّ عَنْهَا، 16وَنَبَذُوا جَمِيعَ وَصَايَا الرَّبِّ إِلَهِهِمْ، وَصَنَعُوا لأَنْفُسِهِمْ عِجْلَيْنِ مَسْبُوكَيْنِ، وَأَقَامُوا تَمَاثِيلَ لِعَشْتَارُوثَ وَسَجَدُوا لِجَمِيعِ كَوَاكِبِ السَّمَاءِ وَعَبَدُوا الْبَعْلَ. 17وَأَجَازُوا أَبْنَاءَهُمْ وَبَنَاتِهِمْ فِي النَّارِ، وَتَعَاطَوْا العِرَافَةَ وَالْفَأْلَ وَبَاعُوا أَنْفُسَهُمْ لاِرْتِكَابِ الشَّرِّ فِي عَيْنَيِ الرَّبِّ لإِثَارَةِ غَيْظِهِ. 18فَاحْتَدَمَ غَضَبُ الرَّبِّ عَلَى إِسْرَائِيلَ، وَطَرَدَهُمْ مِنْ حَضْرَتِهِ، وَلَمْ يُبْقِ سِوَى سِبْطِ يَهُوذَا. 19وَلَكِنْ حَتَّى سِبْطُ يَهُوذَا لَمْ يَحْفَظْ وَصَايَا الرَّبِّ إِلَهِهِ بَلْ نَهَجَ فِي طُرُقِ إِسْرَائِيلَ الَّتِي سَلَكَتْهَا. 20فَنَبَذَ الرَّبُّ كُلَّ ذُرِّيَّةِ إِسْرَائِيلَ وَأَذَلَّهُمْ وَأَسْلَمَهُمْ لِيَدِ آسِرِيهِمْ، وَطَرَدَهُمْ مِنْ حَضْرَتِهِ. 21لأَنَّهُ شَقَّ إِسْرَائِيلَ عَنْ بَيْتِ دَاوُدَ، فَتَوَّجُوا يَرُبْعَامَ بْنَ نَبَاطَ مَلِكاً عَلَيْهِمْ، فَأَضَلَّ يَرُبْعَامُ بَنِي إِسْرَائِيلَ عَنْ طَرِيقِ الرَّبِّ وَاسْتَغْوَاهُمْ فَأَخْطَأُوا بِحَقِّ الرَّبِّ خَطِيئَةً عَظِيمَةً. 22وَلَمْ يَعْدِلِ الإِسْرَائِيلِيُّونَ عَنِ ارْتِكَابِ جَمِيعِ خَطَايَا يَرُبْعَامَ بَلْ أَمْعَنُوا فِي اقْتِرَافِهَا 23فَنَفَى الرَّبُّ إِسْرَائِيلَ مِنْ حَضْرَتِهِ كَمَا نَطَقَ عَلَى لِسَانِ جَمِيعِ عَبِيدِهِ الأَنْبِيَاءِ، فَسُبِيَ الإِسْرَائِيلِيُّونَ مِنْ أَرْضِهِمْ إِلَى أَشُّورَ إِلَى هَذَا الْيَوْمِ.

إعادة الاستيطان في السامرة

24وَنَقَلَ مَلِكُ أَشُّورَ أَقْوَاماً مِنْ بَابِلَ وَكُوثَ وَعَوَّا وَحَمَاةَ وَسَفَرْوَايِمَ، وَأَسْكَنَهُمْ مُدُنَ السَّامِرَةِ مَحَلَّ بَنِي إِسْرَائِيلَ، فَاسْتَوْلَوْا عَلَى السَّامِرَةِ وَأَقَامُوا فِي مُدُنِهَا. 25وَإِذْ لَمْ يَعْبُدِ الْمُسْتَوْطِنُونَ الْجُدَدُ الرَّبَّ فِي بَادِئِ الأَمْرِ، فَقَدْ أَطْلَقَ الرَّبُّ عَلَيْهِمِ السِّبَاعَ الْمُتَوَحِّشَةَ فَافْتَرَسَتْ بَعْضَهُمْ. 26فَبَعَثُوا إِلَى مَلِكِ أَشُّورَ رِسَالَةً قَائِلِينَ: «إِنَّ الأَقْوَامَ الَّذِينَ قُمْتَ بِسَبْيِهِمْ وَإِسْكَانِهِمْ فِي مُدُنِ السَّامِرَةِ يَجْهَلُونَ قَضَاءَ إِلَهِ هَذِهِ الأَرْضِ، فَأَطْلَقَ عَلَيْهِمِ السِّبَاعَ فَافْتَرَسَتْهُمْ، لأَنَّهُمْ يَجْهَلُونَ قَضَاءَهُ». 27فَأَمَرَ مَلِكُ أَشُورَ قَائِلاً: «ابْعَثُوا إِلَى هُنَاكَ أَحَدَ الْكَهَنَةِ الْمَسْبِيِّينَ فِي تِلْكَ الْبِلادِ، لِيُقِيمَ بَيْنَهُمْ، وَيُلَقِّنَهُمْ قَضَاءَ إِلَهِ الأَرْضِ». 28فَجَاءَ وَاحِدٌ مِنَ الْكَهَنَةِ الْمَسْبِيِّينَ مِنَ السَّامِرَةِ وَأَقَامَ فِي بَيْتِ إِيلَ، وَشَرَعَ يُلَقِّنُهُمْ كَيْفَ يَتَّقُونَ الرَّبَّ. 29وَمَعَ ذَلِكَ ظَلَّ كُلُّ قَوْمٍ يَصْنَعُونَ آلِهَتَهُمْ وَيَنْصِبُونَهَا فِي مَعَابِدِ الْمُرْتَفَعَاتِ الَّتِي شَيَّدَهَا السَّامِرِيُّونَ فِي الْمُدُنِ الَّتِي يُقِيمُونَ فِيهَا. 30فَعَبَدَ الْقَادِمُونَ مِنْ بَابِلَ أَصْنَامَ إِلَهِهِمْ سُكُّوثَ بَنُوثَ؛ وَعَبَدَ الْقَادِمُونَ مِنْ كُوثَ أَصْنَامَ إِلَهِهِمْ نَرْجَلَ، وَعَبَدَ الْقَادِمُونَ مِنْ حَمَاةَ أَصْنَامَ إِلَهِهِمْ أشِيمَا، 31كَمَا عَبَدَ أَهْلُ عَوَّا نِبْحَزَ وَتَرْتَاقَ. أَمَّا أَهْلُ سَفَرْوَايِمَ فَكَانُوا يُحْرِقُونَ أَبْنَاءَهُمْ بِالنَّارِ قَرَابِينَ لأَدْرَمَّلَكَ وَعَنَمَّلَكَ إِلَهَيْ سَفَرْوَايِمَ. 32فَكَانُوا يَعْبُدُونَ الرَّبَّ، وَلَكِنَّهُمْ أَيْضاً أَقَامُوا مِنْ بَيْنِهِمْ كَهَنَةً يَخْدُمُونَ فِي مَعَابِدِ الْمُرْتَفَعَاتِ، وَيُقَرِّبُونَ مُحْرَقَاتِهِمْ فِيهَا. 33وَهَكَذَا كَانُوا يَتَّقُونَ الرَّبَّ مِنْ نَاحِيَةٍ، وَيَعْبُدُونَ آلِهَتَهُمُ الَّتِي حَمَلُوهَا مَعَهُمْ مِنْ بَيْنِ الأُمَمِ الَّتِي سُبُوا مِنْهَا مِنْ نَاحِيَةٍ أُخْرَى.

34فَهُمْ إِلَى هَذَا الْيَوْمِ، يُمَارِسُونَ طُقُوسَهُمُ الأُولَى. فَأَصْبَحَتْ عِبَادَتُهُمْ خَلِيطاً مِنْ تَقْوَى الرَّبِّ وَمِنَ الطُّقُوسِ وَالْفَرَائِضِ الْوَثَنِيَّةِ، وَفْقاً لِتَقَالِيدِهِمْ، وَلَيْسَ بِمُقْتَضَى شَرِيعَةِ الرَّبِّ وَالْوَصِيَّةِ الَّتِي أَمَرَ بِها ذُرِّيَّةَ يَعْقُوبَ الَّذِي حَوَّلَ اسْمَهُ إِلَى إِسْرَائِيلَ. 35فَقَدْ قَطَعَ الرَّبُّ مَعَ بَنِي إِسْرَائِيلَ عَهْداً وَأَمَرَهُمْ أَلّا يَعْبُدُوا آلِهَةً أُخْرَى وَلا يَسْجُدُوا لَهَا وَلا يَتَّقُوهَا وَلا يُقَرِّبُوا لَهَا الذَّبَائِحَ، 36بَلْ يَتَّقُوا الرَّبَّ الَّذِي أَخْرَجَهُمْ مِنْ دِيَارِ مِصْرَ بِقُوَّةٍ عَظِيمَةٍ وَذِرَاعٍ مُقْتَدِرَةٍ، وَلَهُ وَحْدَهُ يَسْجُدُونَ وَيُقَرِّبُونَ الْمُحْرَقَاتِ، 37وَيُطِيعُونَ الْفَرَائِضَ وَالأَحْكَامَ وَالشَّرِيعَةَ وَالْوَصِيَّةَ الَّتِي كَتَبَهَا لَهُمْ لِيُمَارِسُوهَا كُلَّ حَيَاتِهِمْ وَلا يَتَّقُونَ آلِهَةً أُخْرَى. 38وَلا يَنْقُضُونَ الْعَهْدَ الَّذِي أَبْرَمَهُ مَعَهُمْ وَلا يَتَّقُونَ آلِهَةً أُخْرَى. 39إِنَّمَا يَتَّقُونَ الرَّبَّ إِلَهَهُمْ وَهُوَ يُنَجِّيهِمْ مِنْ جَمِيعِ أَعْدَائِهِمْ. 40وَلَكِنَّ هَؤُلاءِ السُّكَّانَ أَصَمُّوا آذَانَهُمْ وَمَارَسُوا طُقُوسَهُمُ الْقَدِيمَةَ، 41فَكَانُوا يَتَّقُونَ الرَّبَّ مِنْ نَاحِيَةٍ، وَيَعْبُدُونَ أَوْثَانَهُمْ مِنْ نَاحِيَةٍ أُخْرَى. وَاقْتَفَى بَنُوهُمْ خُطَاهُمْ فِي مُمَارَسَاتِهِمْ إِلَى هَذَا الْيَوْمِ.