2 इतिहास 6 – HCV & CCB

Hindi Contemporary Version

2 इतिहास 6:1-42

1तब शलोमोन ने यह कहा: “याहवेह ने यह प्रकट किया है कि वह घने बादल में रहना सही समझते हैं. 2आपके लिए मैंने एक ऐसा भव्य भवन बनवाया है कि आप उसमें हमेशा रहें.”

3यह कहकर राजा ने सारी इस्राएली प्रजा की ओर होकर उनको आशीर्वाद दिया, इस अवसर पर सारी इस्राएली सभा खड़ी हुई थी. 4राजा ने यह कहा:

“धन्य हैं याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर! उन्होंने मेरे पिता दावीद से अपने मुख से कहे गए इस वचन को अपने हाथों से पूरा कर दिया है 5‘जिस दिन मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र देश से बाहर लाया हूं, उसी दिन से मैंने इस्राएल के सभी गोत्रों में से ऐसे किसी भी नगर को नहीं चुना, जहां एक ऐसा भवन बनाया जाए जहां मेरी महिमा का वास हो; वैसे ही मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का प्रधान होने के लिए किसी व्यक्ति को भी नहीं चुना; 6हां, मैंने येरूशलेम को चुना कि वहां मेरी महिमा ठहरे और मैंने दावीद को चुना कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का राजा हो.’

7“मेरे पिता दावीद की इच्छा थी कि वह याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की महिमा के लिए भवन बनवाएं. 8किंतु याहवेह ने मेरे पिता दावीद से कहा, ‘तुम्हारे मन में मेरे लिए भवन के निर्माण का आना एक उत्तम विचार है, 9फिर भी, इस भवन को तुम नहीं, बल्कि वह पुत्र, जो तुमसे पैदा होगा, मेरी महिमा के लिए भवन बनाएगा.’

10“आज याहवेह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की है. क्योंकि अब, जैसी याहवेह ने प्रतिज्ञा की थी, मैं दावीद मेरे पिता का उत्तराधिकारी बनकर इस्राएल के राज सिंहासन पर बैठा हूं, और मैंने याहवेह इस्राएल के परमेश्वर की महिमा के लिए इस भवन को बनवाया है. 11मैंने इस भवन में वह संदूक स्थापित कर दिया है, जिसमें याहवेह की वह वाचा है, जो उन्होंने इस्राएल के वंश से स्थापित की थी.”

शलोमोन की समर्पण की प्रार्थना

12इसके बाद शलोमोन सारी इस्राएल की सभा के देखते हाथों को फैलाकर याहवेह की वेदी के सामने खड़े हो गए. 13शलोमोन ने सवा दो मीटर लंबा, सवा दो मीटर चौड़ा और एक मीटर पैंतीस सेंटीमीटर ऊंचा कांसे का एक मंच बनाया था, जिसे उन्होंने आंगन के बीच में स्थापित कर रखा था. वह इसी पर जा खड़े हुए, उन्होंने इस्राएल की सारी प्रजा के सामने इस पर घुटने टेक अपने हाथ स्वर्ग की दिशा में फैला दिए. 14तब शलोमोन ने विनती की:

“याहवेह इस्राएल के परमेश्वर, आपके तुल्य परमेश्वर न तो कोई ऊपर स्वर्ग में है और न यहां नीचे धरती पर, जो अपने उन सेवकों पर अपना अपार प्रेम दिखाते हुए अपनी वाचा को पूर्ण करता है, जिनका जीवन आपके प्रति पूरी तरह समर्पित है. 15आपने अपने सेवक, मेरे पिता दावीद को जो वचन दिया था, उसे पूरा किया है. वस्तुतः आज आपने अपने शब्द को सच्चाई में बदल दिया है. आपके सेवक दावीद से की गई अपनी वह प्रतिज्ञा पूरी करें, जो आपने उनसे इन शब्दों में की थी.

16“तब अब इस्राएल के परमेश्वर, याहवेह, आपके सेवक मेरे पिता दावीद के लिए अपनी यह प्रतिज्ञा पूरी कीजिए. ‘मेरे सामने इस्राएल के सिंहासन पर तुम्हारे उत्तराधिकारी की कोई कमी न होगी, सिर्फ यदि तुम्हारे पुत्र सावधानीपूर्वक मेरे सामने अपने आचरण के विषय में सच्चे रहें—ठीक जिस प्रकार तुम्हारा आचरण मेरे सामने सच्चा रहा है.’ 17इसलिये अब, याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो जाए, जो आपने अपने सेवक दावीद से की है.

18“मगर क्या यह संभव है कि परमेश्वर पृथ्वी पर मनुष्यों के बीच निवास करें? देखिए, आकाश और ऊंचे स्वर्ग तक आपको अपने में समा नहीं सकते; तो फिर यह भवन क्या है, जिसको मैंने बनवाया है? 19फिर भी अपने सेवक की विनती और प्रार्थना का ध्यान रखिए. याहवेह, मेरे परमेश्वर, इस दोहाई को, इस गिड़गिड़ाहट को सुन लीजिए जो आज आपका सेवक आपके सामने प्रस्तुत कर रहा है. 20कि यह भवन दिन-रात हमेशा आपकी दृष्टि में बना रहे, उस स्थान पर, जिसके बारे में आपने कहा था कि आप वहां अपनी महिमा की स्थापना करेंगे, कि आप उस प्रार्थना पर ध्यान दें, जो आपका सेवक इसकी ओर फिरकर करेगा. 21अपने सेवक और अपनी प्रजा इस्राएल की विनतियों को सुन लीजिए जब वे इस स्थान की ओर मुंह कर आपसे करते हैं, और स्वर्ग, अपने घर से इसे सुनें और जब आप यह सुनें, आप उन्हें क्षमा प्रदान करें.

22“यदि कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी के विरुद्ध पाप करता है, और उसे शपथ लेने के लिए विवश किया जाता है और वह आकर इस भवन में आपकी वेदी के सामने शपथ लेता है, 23तब आप स्वर्ग से सुनें, और अपने सेवकों का न्याय करें, दुराचारी का दंड उसके दुराचार को उसी पर प्रभावी करने के द्वारा दें और सदाचारी को उसके सदाचार का प्रतिफल देने के द्वारा.

24“यदि आपकी प्रजा इस्राएल शत्रुओं द्वारा इसलिये हार जाए, कि उन्होंने आपके विरुद्ध पाप किया है और तब वे लौटकर आपकी ओर फिरते हैं, आपके प्रति दोबारा सच्चे होकर इस भवन में आपके सामने आकर विनती और प्रार्थना करते हैं, 25तब स्वर्ग से यह सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा कर दीजिए और उन्हें उस देश में लौटा ले आइए, जो आपने उन्हें और उनके पूर्वजों को दिया है.

26“जब आप बारिश इसलिये रोक दें कि आपकी प्रजा ने आपके विरुद्ध पाप किया है और फिर, जब वे इस स्थान की ओर फिरकर प्रार्थना करें और आपके प्रति सच्चे हो, जब आप उन्हें सताएं, और वे पाप से फिर जाएं; 27तब स्वर्ग में अपने सेवकों और अपनी प्रजा इस्राएल की दोहाई सुनकर उनका पाप क्षमा कर दें. वस्तुतः आप उन्हें उन अच्छे मार्ग पर चलने की शिक्षा दें. फिर अपनी भूमि पर बारिश भेजें—उस भूमि पर जिसे आपने उत्तराधिकार के रूप में अपनी प्रजा को प्रदान किया है.

28“यदि देश में अकाल आता है, यदि यहां महामारी फैली हुई हो, यदि यहां उपज में गेरुआ अथवा फफूंदी लगे, यदि यहां टिड्डियों अथवा टिड्डों का हमला हो जाए, यदि उनके शत्रु उन्हें उन्हीं के देश में उन्हीं के नगरों में घेर लें, यहां कोई भी महामारी या रोग का हमला हो, 29किसी व्यक्ति या आपकी प्रजा इस्राएल के द्वारा उनके दुःख और पीड़ा की स्थिति में इस भवन की ओर हाथ फैलाकर कैसी भी प्रार्थना या विनती की जाए, 30आप अपने घर, स्वर्ग से इसे सुनिए और क्षमा दीजिए और हर एक को, जिसके मन को आप भली-भांति जानते हैं, क्योंकि सिर्फ आपके ही सामने मानव का मन उघाड़ा रहता है, उसके आचरण के अनुसार प्रतिफल दीजिए, 31कि वे आपके प्रति इस देश में रहते हुए जो आपने उनके पूर्वजों को प्रदान किया है, आजीवन श्रद्धा बनाए रखें, और अपने जीवन भर आपकी नीतियों का पालन करते रहें.

32“इसी प्रकार जब कोई परदेशी, जो आपकी प्रजा इस्राएल में से नहीं है, आपकी महिमा आपके महाकार्य और आपकी महाशक्ति के विषय में सुनकर वे यहां ज़रूर आएंगे; तब, जब वह विदेशी यहां आकर इस भवन की ओर होकर प्रार्थना करे, 33तब अपने आवास स्वर्ग में सुनकर उन सभी विनतियों को पूरा करें, जिसकी याचना उस परदेशी ने की है, कि पृथ्वी के सभी मनुष्यों को आपकी महिमा का ज्ञान हो जाए, उनमें आपके प्रति भय जाग जाए—जैसा आपकी प्रजा इस्राएल में है और उन्हें यह अहसास हो जाए कि यह आपकी महिमा में मेरे द्वारा बनाया गया भवन है.

34“जब आपकी प्रजा उनके शत्रुओं से युद्ध के लिए आपके द्वारा भेजी जाए-आप उन्हें चाहे कहीं भी भेजें-वे आपके ही द्वारा चुने इस नगर और इस भवन की ओर, जिसको मैंने बनवाया है, मुख करके प्रार्थना करें, 35तब स्वर्ग में उनकी प्रार्थना और अनुरोध सुनकर उनके पक्ष में निर्णय करें.

36“जब वे आपके विरुद्ध पाप करें-वास्तव में तो कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं जिसने पाप किया ही न हो और आप उन पर क्रोधित हो जाएं और उन्हें किसी शत्रु के अधीन कर दें, कि शत्रु उन्हें बंदी बनाकर किसी दूर या पास के देश में ले जाए; 37फिर भी यदि वे उस बंदिता के देश में चेत कर पश्चाताप करें, और अपने बंधुआई के देश में यह कहते हुए दोहाई दें, ‘हमने पाप किया है, हमने कुटिलता और दुष्टता भरे काम किए हैं’; 38यदि वे बंधुआई के उस देश में, जहां उन्हें ले जाया गया है, सच्चे हृदय और संपूर्ण प्राणों से इस देश की ओर, जिसे आपने उनके पूर्वजों को दिया है, उस नगर की ओर जिसे आपने चुना है और इस भवन की ओर, जिसको मैंने आपके लिए बनवाया है, मुंह करके प्रार्थना करें; 39तब अपने घर स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और विनती सुनिए और वही होने दीजिए, जो सही है और अपनी प्रजा को, जिसने आपके विरुद्ध पाप किया है, क्षमा कर दीजिए.

40“अब, मेरे परमेश्वर, मेरी विनती है कि इस स्थान में की गई प्रार्थना के प्रति आपकी आंखें खुली और आपके कान सचेत बने रहें.

41“इसलिये अब, याहवेह परमेश्वर, खुद आप और आपकी शक्ति संदूक,

अपने विश्राम स्थल में आएं.

याहवेह परमेश्वर, आपके पुरोहित उद्धार को कपड़ों के समान धारण करें.

आपके श्रद्धालु उसी में आनंद लें, जो सही है.

42याहवेह परमेश्वर अपने अभिषिक्त की प्रार्थना अनसुनी न कीजिए.

अपने सेवक दावीद के प्रति अपने अपार प्रेम को याद रखिए.”

Chinese Contemporary Bible 2022 (Simplified)

历代志下 6:1-42

1那时,所罗门说:

“耶和华啊,

你曾说你要住在密云中,

2现在我为你建造了雄伟的殿宇,

作你永远的居所。”

所罗门为民众祝福

3然后,王转身为站立在那里的以色列全体会众祝福。 4他说:“以色列的上帝耶和华当受称颂!祂亲口给我父大卫的应许,现在祂亲手成就了! 5祂曾说,‘自从我带我的子民出埃及以来,我并没有在以色列各支派中选出一座城来建造殿宇,作为我名所在之地,也没有选立一人做我以色列子民的君王。 6但如今,我拣选了耶路撒冷作为我名所在之地,又拣选了大卫来治理我的以色列子民。’”

7所罗门又说:“我父大卫曾想为以色列的上帝耶和华的名建一座殿, 8但耶和华对我父大卫说,‘你想为我的名建造殿宇,这番心意是好的, 9但你不可建,要由你的亲生儿子为我的名建殿。’ 10现在耶和华已经成就祂的应许。我继承了我父大卫的王位统治以色列,又为以色列的上帝耶和华的名建了殿。 11我把约柜安放在里面,约柜里有耶和华与以色列人所立的约。”

所罗门的祷告

12所罗门当着以色列会众的面,站在耶和华的坛前,向天伸出双手。 13他曾造一个长两米二,宽两米二,高一米半的铜台,放在院子中间。他站在台上,当着以色列会众的面双膝跪下,向天伸出双手, 14祷告说:“以色列的上帝耶和华啊,天上地下没有神明可以与你相比!你向尽心遵行你旨意的仆人守约、施慈爱。 15你持守对你仆人——我父大卫的应许,你曾亲口应许,你今天亲手成就了。 16以色列的上帝耶和华啊,你曾对你仆人——我父大卫说,‘若你的子孙像你一样谨慎行事,遵行我的律法,你的王朝就不会中断。’求你信守这应许。 17以色列的上帝耶和华啊,求你实现你对你仆人大卫的应许。

18“然而,上帝啊,你真会住在人间吗?看啊,至高的诸天尚且容不下你,更何况我建造的这殿呢? 19可是,我的上帝耶和华啊,求你垂顾你仆人的祷告和祈求,垂听你仆人在你面前的呼求和祷告。 20愿你昼夜看顾这殿,就是你应许立你名的地方!你仆人向着这地方祷告的时候,求你垂听。 21你仆人和你的以色列子民向这地方祈祷的时候,求你从你天上的居所垂听,赦免我们的罪。

22“如果有人得罪邻舍,被叫到这殿中,在你的坛前起誓, 23求你从天上垂听,在你众仆人当中施行审判,按他们的行为罚恶赏善。

24“当你的以色列子民因得罪你而败在敌人手中时,如果他们回心转意归向你,承认你的名,在这殿里向你祈祷, 25求你从天上垂听,赦免他们的罪,带领他们回到你赐给他们和他们祖先的土地上。

26“当你的子民得罪你,你惩罚他们,让天不降雨时,如果他们向着这地方祷告,承认你的名,并离开罪恶, 27求你在天上垂听,赦免你仆人以色列子民的罪,教导他们走正道,降下甘霖滋润你赐给你子民作产业的土地。

28“如果国中有饥荒、瘟疫、旱灾、霉病、蝗灾、虫灾,或是城邑被敌人围困,无论遭遇什么灾祸疾病, 29只要你的以色列子民,或个人或全体,自知心中痛苦并向着这殿伸手祷告,无论祈求什么, 30求你从天上的居所垂听,赦免他们。唯独你能洞察人心,你必按各人的行为施行赏罚, 31使你的子民在你赐给我们祖先的土地上终生敬畏你,遵行你的道。

32“如果远方有不属于你以色列子民的外族人听说你的大能大力,慕名而来,向着这殿祷告, 33求你从天上的居所垂听,应允他们的祈求,好叫天下万民都像你的以色列子民一样认识你的名、敬畏你,并知道我建造的这殿属于你的名下。

34“你的子民奉你的命令上阵与敌人作战,无论他们在哪里,如果他们向着你选择的这城和我为你名建造的这殿祷告, 35求你从天上垂听他们的祈祷,为他们伸张正义。

36“世上没有不犯罪的人,如果你的子民得罪你,以致你向他们发怒,让敌人把他们掳走,不论远近, 37若他们在被掳之地回心转意,向你恳求,承认自己犯罪作恶了; 38若他们全心全意地归向你,在被掳之地朝着你赐给他们祖先的这片土地、你选择的这城和我为你建的这殿向你祷告, 39求你从天上的居所垂听他们的祈祷,为他们伸张正义,赦免得罪你的子民。

40“我的上帝啊,

求你睁眼看、侧耳听在这殿里献上的祷告。

41耶和华上帝啊,

求你起来和你大能的约柜一同进入你的安息之所!

耶和华上帝啊,

愿你的祭司披上救恩,

愿你忠心的子民蒙福欢乐!

42耶和华上帝啊,

求你不要弃绝你所膏立的人,

顾念你曾应许以慈爱待你的仆人大卫。”