1 शमुएल 25 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

1 शमुएल 25:1-44

शमुएल का देहांत

1शमुएल की मृत्यु हो गई. सारा इस्राएलियों ने एकत्र होकर उनके लिए विलाप किया; उन्हें उनके गृहनगर रामाह में गाड़ दिया. इसके बाद दावीद पारान25:1 पारान कुछ पाण्डुलिपियों में माओन के निर्जन प्रदेश में जाकर रहने लगे.

2कालेब के कुल का एक व्यक्ति था, वह माओन नगर का निवासी था. कर्मेल नगर के निकट वह एक भूखण्ड का स्वामी था. वह बहुत ही धनी व्यक्ति था. उसके तीन हज़ार भेड़ें, तथा एक हज़ार बकरियां थी. 3उसका नाम नाबाल था और उसकी अबीगइल नामक पत्नी थी, जो बहुत ही रूपवती एवं विदुषी थी. मगर वह स्वयं बहुत ही नीच, क्रूर तथा क्रुद्ध प्रकृति का था.

4इस समय दावीद निर्जन प्रदेश में थे, और उन्हें मालूम हुआ कि नाबाल भेड़ों का ऊन क़तर रहा है. 5तब दावीद ने वहां दस नवयुवक भेज दिए और उन्हें यह आदेश दिया, “नाबाल से भेंटकरने कर्मेल नगर चले जाओ और उसे मेरी ओर से शुभकामनाएं तथा अभिवंदन प्रस्तुत करना. 6तब तुम उससे कहना: ‘आप पर तथा आपके परिवार पर शांति स्थिर रहें! आप चिरायु हों! आपकी सारी संपत्ति पर समृद्धि बनी रहे!

7“ ‘मुझे यह समाचार प्राप्‍त हुआ है कि आपकी भेड़ों का ऊन क़तरा जा रहा है. जब आपके चरवाहे हमारे साथ थे, सारे समय जब वे कर्मेल में थे, हमने न तो उन्हें अपमानित किया, न उन्हें कोई हानि पहुंचाई है. 8आप स्वयं अपने सेवकों से इस विषय में पूछ सकते हैं. आपकी कृपा हम पर बनी रहे. हम आपकी सेवा में उत्सव के मौके पर आए हैं. कृपया अपने सेवकों को, तथा अपने पुत्र समान सेवक दावीद को, जो कुछ आपको सही लगे, दे दीजिए.’ ”

9दावीद के नवयुवक साथी वहां गए, और दावीद की ओर से नाबाल को यह संदेश दे दिया, और वे नाबाल के प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा करने लगे.

10“कौन है यह दावीद?” नाबाल ने दावीद के साथियों को उत्तर दिया, “और कौन है यह यिशै का पुत्र? कैसा समय आ गया है, जो सारे दास अपने स्वामियों को छोड़-छोड़कर भाग रहे हैं. 11अब क्या मेरे लिए यही शेष रह गया है कि मैं अपने सेवकों के हिस्से का भोजन लेकर इन लोगों को दे दूं? मुझे तो यही समझ नहीं आ रहा कि ये लोग कौन हैं, और कहां से आए हैं?”

12तब दावीद के साथी लौट गए. लौटकर उन्होंने दावीद को यह सब सुना दिया. 13दावीद ने अपने साथियों को आदेश दिया, “हर एक व्यक्ति अपनी तलवार उठा ले!” तब सबने अपनी तलवार धारण कर ली. दावीद ने भी अपनी तलवार धारण कर ली. ये सब लगभग चार सौ व्यक्ति थे, जो इस अभियान में दावीद के साथ थे, शेष लगभग दो सौ उनके विभिन्‍न उपकरणों तथा आवश्यक सामग्री की रक्षा के लिए ठहर गए.

14इसी बीच नाबाल के एक सेवक ने नाबाल की पत्नी अबीगइल को संपूर्ण घटना का वृत्तांत सुना दिया, “दावीद ने हमारे स्वामी के पास मरुभूमि से अपने प्रतिनिधि भेजे थे, कि वे उन्हें अपनी शुभकामनाएं प्रस्तुत करें, मगर स्वामी ने उन्हें घोर अपमान करके लौटा दिया है. 15ये सभी व्यक्ति हमारे साथ बहुत ही सौहार्दपूर्ण रीति से व्यवहार करते रहे थे. उन्होंने न कभी हमारा अपमान किया, न कभी हमारी कोई हानि ही की. जब हम मैदानों में भेड़ें चराया करते थे हमारी कोई भी भेड़ नहीं खोई. हम सदैव साथ साथ रहे. 16दिन और रात संपूर्ण समय वे मानो हमारे लिए सुरक्षा की दीवार बने रहते थे, जब हम उनके साथ मिलकर भेड़ें चराया करते थे. 17अब आप स्थिति की गंभीरता को पहचान लीजिए और विचार कीजिए, कि अब आपका क्या करना सही होगा, क्योंकि अब हमारे स्वामी और उनके संपूर्ण परिवार के लिए बुरा योजित हो चुका है. वह ऐसा दुष्ट व्यक्ति हैं, कि कोई उन्हें सुझाव भी नहीं दे सकता.”

18यह सुनते ही अबीगइल ने तत्काल दो सौ रोटियां, दो छागलें द्राक्षारस, पांच भेड़ें, जो पकाई जा चुकी थी, पांच माप भुना हुआ अन्‍न, किशमिश के सौ पिंड तथा दो सौ पिंड अंजीरों को लेकर गधों पर लाद दिया. 19“उसने अपने सेवकों को आदेश दिया, मेरे आगे-आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे आऊंगी.” मगर स्वयं उसने इसकी सूचना अपने पति नाबाल को नहीं दी.

20जब वह अपने गधे पर बैठी हुई पर्वत के उस गुप्‍त मार्ग पर थी, उसने देखा कि दावीद तथा उनके साथी उसी की ओर बढ़े चले आ रहे थे, और वे आमने-सामने आ गए. 21इस समय दावीद विचार कर ही रहे थे, “निर्जन प्रदेश में हमने व्यर्थ ही इस व्यक्ति की संपत्ति की ऐसी रक्षा की, कि उसकी कुछ भी हानि नहीं हुई, मगर उसने इस उपकार का प्रतिफल हमें इस बुराई से दिया है. 22यदि प्रातःकाल तक उसके संबंधियों में से एक भी नर जीवित छोड़ दूं, तो परमेश्वर दावीद के शत्रुओं से ऐसा ही, एवं इससे भी बढ़कर करें!”

23दावीद को पहचानते ही अबीगइल तत्काल अपने गधे से उतर पड़ीं, उनके सामने मुख के बल गिर दंडवत हुई. 24तब उन्होंने दावीद के चरणों पर गिरकर उनसे कहा, “दोष सिर्फ मेरा ही है, मेरे स्वामी, अपनी सेविका को बोलने की अनुमति दें, तथा आप मेरा पक्ष सुन लें. 25मेरे स्वामी, कृपया आप इस निकम्मे व्यक्ति नाबाल के कड़वे वचनों पर ध्यान न दें. उसकी प्रकृति ठीक उसके नाम के ही अनुरूप है. उसका नाम है नाबाल और मूर्खता उसमें सचमुच व्याप्‍त है. खेद है कि उस समय मैं वहां न थी, जब आपके साथी वहां आए हुए थे. 26और अब मेरे स्वामी, याहवेह की शपथ, आप चिरायु हों, क्योंकि याहवेह ने ही आपको रक्तपात के दोष से बचा लिया है, और आपको यह काम अपने हाथों से करने से रोक दिया है. अब मेरी कामना है कि आपके शत्रुओं की, जो आपकी हानि करने पर उतारू हैं, उनकी स्थिति वैसी ही हो, जैसी नाबाल की. 27अब आपकी सेविका द्वारा लाई गई इस भेंट को हे स्वामी, आप स्वीकार करें कि इन्हें अपने साथियों में बाट दें.

28“कृपया अपनी सेविका की इस भूल को क्षमा कर दें. याहवेह आपके परिवार को प्रतिष्ठित करेंगे, क्योंकि मेरे स्वामी याहवेह के प्रतिनिधि होकर युद्ध कर रहे हैं. अपने संपूर्ण जीवन में अपने किसी का बुरा नहीं चाहा है. 29यदि कोई आपके प्राण लेने के उद्देश्य से आपका पीछा करना शुरू कर दे, तब मेरे स्वामी का जीवन याहवेह, आपके परमेश्वर की सुरक्षा में जीवितों की झोली में संचित कर लिया जाएगा, मगर आपके शत्रुओं के जीवन को इस प्रकार दूर प्रक्षेपित कर देंगे, जैसे गोफन के द्वारा पत्थर फेंक दिया जाता है. 30याहवेह मेरे स्वामी के लिए वह सब करेंगे, जिसकी उन्होंने आपसे प्रतिज्ञा की है. वह आपको इस्राएल के शासक बनाएंगे, 31अब आपकी अंतरात्मा निर्दोष के लहू बहाने के दोष से न भरेगी, और न आपको इस विषय में कोई खेद होगा कि आपने स्वयं बदला ले लिया. मेरे स्वामी, जब याहवेह आपको उन्‍नत करें, कृपया अपनी सेविका को अवश्य याद रखियेगा.”

32अबीगइल से ये उद्गार सुनकर दावीद ने उन्हें संबोधित कर कहा, “याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर की स्तुति हो, जिन्होंने आपको मुझसे भेंटकरने भेज दिया है. 33सराहनीय है आपका उत्तम अनुमान! आज मुझे रक्तपात से रोक देने के कारण आप स्वयं सराहना की पात्र हैं. आपने मुझे आज स्वयं बदला लेने की भूल से भी बचा लिया है. 34याहवेह, इस्राएल के जीवन्त परमेश्वर की शपथ, जिन्होंने मुझे आपका बुरा करने से रोक दिया है, यदि आप आज इतने शीघ्र मुझसे भेंटकरने न आयी होती, सबेरे, दिन का प्रकाश होते-होते, नाबाल परिवार का एक भी नर जीवित न रहता.”

35तब दावीद ने उसके हाथ से उसके द्वारा लाई गई भेंटें स्वीकार की और उसे इस आश्वासन के साथ विदा किया, “शांति से अपने घर लौट जाओ, मैंने तुम्हारी बात मान ली और तुम्हारी विनती स्वीकार कर लिया.”

36जब अबीगइल घर पहुंची, नाबाल ने अपने आवास पर एक भव्य भोज आयोजित किया हुआ था. ऐसा भोज, मानो वह राजा हो. उस समय वह बहुत ही उत्तेजित था तथा बहुत ही नशे में था. तब अबीगइल ने सुबह तक कोई बात न की. 37सुबह, जब नाबाल से शराब का नशा उतर चुका था, उसकी पत्नी ने उसे इस विषय से संबंधित सारा विवरण सुना दिया. यह सुनते ही नाबाल को पक्षाघात हो गया, और वह सुन्‍न रह गया. 38लगभग दस दिन बाद याहवेह ने नाबाल पर ऐसा प्रहार किया कि उसकी मृत्यु हो गई.

39जब दावीद ने नाबाल की मृत्यु का समाचार सुना, वह कह उठे, “धन्य हैं याहवेह, जिन्होंने नाबाल द्वारा किए गए मेरे अपमान का बदला ले लिया है. याहवेह अपने सेवक को बुरा करने से रोके रहे तथा नाबाल को उसके दुराचार का प्रतिफल दे दिया.”

दावीद ने संदेशवाहकों द्वारा अबीगइल के पास विवाह का प्रस्ताव भेजा. 40दावीद के संदेशवाहकों ने कर्मेल नगर जाकर अबीगइल को कहा: “हमें दावीद ने आपके पास भेजा है कि हम आपको अपने साथ उनके पास ले जाएं, कि वे आपसे विवाह कर सकें.”

41वह तत्काल उठी, भूमि पर दंडवत होकर उनसे कहा, “आपकी सेविका मेरे स्वामी के सेवकों के चरण धोने के लिए तत्पर दासी हूं.” 42अबीगइल विलंब न करते उठकर तैयार हो गई. वह अपने गधे पर बैठी और दावीद के संदेशवाहकों के साथ चली गई. उसके साथ उसकी पांच सेविकाएं थी. वहां वह दावीद की पत्नी हो गई. 43दावीद ने येज़्रील नगरवासी अहीनोअम से भी विवाह किया. ये दोनों ही उनकी पत्नी बन गईं. 44इस समय तक शाऊल ने अपनी बेटी मीखल, जो वस्तुतः दावीद की पत्नी थी, लायीश के पुत्र पालतिएल को, जो गल्लीम नगर का वासी था, सौंप दी थी.

New Arabic Version

صموئيل الأول 25:1-44

داود ونابال وأبيجايل

1وَمَاتَ صَمُوئِيلُ، فَاجْتَمَعَ جَمِيعُ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَنَاحُوا عَلَيْهِ وَدَفَنُوهُ فِي بَيْتِهِ فِي الرَّامَةِ. فَانْتَقَلَ دَاوُدُ إِلَى صَحْرَاءِ فَارَانَ.

2وَكَانَ هُنَاكَ رَجُلٌ ثَرِيٌّ مُقِيمٌ فِي مَدِينَةِ مَعُونَ ذُو أَمْلاكٍ فِي الْكَرْمَلِ حَيْثُ كَانَ يَجُزُّ غَنَمَهُ، وَكَانَتْ ثَرْوَتُهُ طَائِلَةً جِدّاً، إِذْ كَانَ يَمْتَلِكُ ثَلاثَةَ آلافِ رَأْسٍ مِنَ الْغَنَمِ وَأَلْفاً مِنَ الْمَعْزِ. 3وَكَانَ اسْمُ الرَّجُلِ نَابَالَ، وَاسْمُ امْرَأَتِهِ أَبِيجَايِلَ. وَكَانَتِ الْمَرْأَةُ فَاتِنَةَ الْجَمَالِ رَاجِحَةَ الْعَقْلِ، أَمَّا الرَّجُلُ فَكَانَ قَاسِياً سَيِّئَ الأَعْمَالِ، وَهُوَ يَنْتَمِي إِلَى عَشِيرَةِ كَالَبَ. 4فَبَلَغَ دَاوُدَ، وَهُوَ لَا يَزَالُ فِي الصَّحْرَاءِ، أَنَّ نَابَالَ يَجُزُّ غَنَمَهُ. 5فَبَعَثَ دَاوُدُ بِعَشَرَةِ غِلْمَانٍ أَوْصَاهُمْ أَنْ يَنْطَلِقُوا إِلَى الْكَرْمَلِ وَيَدْخُلُوا بَيْتَ نَابَالَ وَيُبْلِغُوهُ تَمَنِّيَاتِ دَاوُدَ، وَيَقُولُوا لَهُ: 6«أَطَالَ اللهُ بَقَاءَكَ، وَجَعَلَكَ أَنْتَ وَبَيْتَكَ وَكُلَّ مَالَكَ سَالِماً. 7لَقَدْ سَمِعْتُ أَنَّ عِنْدَكَ جَزَّازِينَ. حِينَ كَانَ رُعَاتُكَ بَيْنَنَا لَمْ نُؤْذِهِمْ وَلَمْ يُفْقَدْ لَهُمْ شَيْءٌ طَوَالَ الأَيَّامِ الَّتِي كَانُوا فِيهَا فِي الْكَرْمَلِ. 8تَحَرَّ الأَمْرَ مِنْ غِلْمَانِكَ فَيُخْبِرُوكَ. لِذَلِكَ لِيَحْظَ غِلْمَانِي بِرِضَاكَ، فَقَدْ جِئْنَا إِلَيْكَ فِي يَوْمِ عِيدٍ، فَهَبْ عَبِيدَكَ وَابْنَكَ دَاوُدَ مَا تَجُودُ بِهِ نَفْسُكَ». 9فَقَدِمَ الْغِلْمَانُ إِلَى نَابَالَ وَأَبْلَغُوهُ هَذَا الْكَلامَ بِاسْمِ دَاوُدَ وَصَمَتُوا. 10فَأَجَابَهُمْ نَابَالُ: «مَنْ هُوَ دَاوُدُ؟ وَمَنْ هُوَ ابْنُ يَسَّى؟ قَدْ كَثُرَ الْيَوْمَ الْعَبِيدُ الْهَارِبُونَ مِنْ أَسْيَادِهِمْ. 11هَلْ آخُذُ خُبْزِي وَمَائِي وَذَبِيحَتِي الَّتِي جَهَّزْتُهَا لِجَازِّيَّ وَأُعْطِيهَا لِقَوْمٍ لَا أَعْلَمُ مِنْ أَيْنَ هُمْ؟» 12فَانْصَرَفَ غِلْمَانُ دَاوُدَ وَرَجَعُوا إِلَى دَاوُدَ فَأَخْبَرُوهُ بِكَلامِ نَابَالَ. 13فَقَالَ دَاوُدُ لِرِجَالِهِ: «لِيَتَقَلَّدْ كُلٌّ مِنْكُمْ سَيْفَهُ». فَتَقَلَّدُوا سُيُوفَهُمْ، وَكَذَلِكَ فَعَلَ دَاوُدُ، وَسَارَ عَلَى رَأْسِ أَرْبَعِ مِئَةِ رَجُلٍ بَعْدَ أَنْ مَكَثَ مِئَتَانِ لِحِرَاسَةِ الأَمْتِعَةِ.

14فَقَالَ أَحَدُ الْغِلْمَانِ لأَبِيجَايِلَ امْرَأَةِ نَابَالَ: «بَعَثَ دَاوُدُ مِنَ الصَّحْرَاءِ رُسُلاً بِتَحِيَّاتٍ إِلَى سَيِّدِنَا فَأَهَانَهُمْ، 15مَعَ أَنَّ الرِّجَالَ أَحْسَنُوا إِلَيْنَا جِدّاً فَلَمْ نُصَبْ بِأَذىً أَوْ يُفْقَدْ لَنَا شَيْءٌ طَوَالَ الْمُدَّةِ الَّتِي تَجَاوَرْنَا فِيهَا مَعَهُمْ وَنَحْنُ فِي الْمَرْعَى. 16كَانُوا سِيَاجَ أَمَانٍ لَنَا نَهَاراً وَلَيْلاً فِي كُلِّ الأَيَّامِ الَّتِي كُنَّا نَرْعَى فِيهَا الْغَنَمَ فِي جِوَارِهِمْ. 17فَفَكِّرِي بِالأَمْرِ وَانْظُرِي مَاذَا يُمْكِنُ أَنْ تَصْنَعِي، لأَنَّ كَارِثَةً سَتَحُلُّ عَلَى سَيِّدِنَا وَعَلَى بَيْتِهِ، فَهُوَ رَجُلٌ شِرِّيرٌ لَا يُمْكِنُ التَّفَاهُمُ مَعَهُ».

18فَأَسْرَعَتْ أَبِيجَايِلُ وَأَخَذَتْ مِئَتَيْ رَغِيفِ خُبْزٍ وَزِقَّيْ خَمْرٍ وَخَمْسَةَ خِرْفَانٍ مُجَهَّزَةٍ مُطَيَّبَةٍ وَخَمْسَ كَيْلاتٍ مِنَ الْفَرِيكِ وَمِئَتَيْ عُنْقُودِ زَبِيبٍ وَمِئَتَيْ قُرْصِ تِينٍ، وَحَمَّلَتْهَا عَلَى الْحَمِيرِ. 19وَقَالَتْ لِخُدَّامِهَا: «اسْبِقُونِي، هَا أَنَا قَادِمَةٌ وَرَاءَكُمْ». وَلَمْ تُخْبِرْ رَجُلَهَا نَابَالَ بِمَا فَعَلَتْ. 20وَبَيْنَمَا كَانَتْ رَاكِبَةً عَلَى حِمَارِهَا عِنْدَ مُنْعَطَفِ الْجَبَلِ صَادَفَتْ دَاوُدَ وَرِجَالَهُ قَادِمِينَ لِلِقَائِهَا. 21وَكَانَ دَاوُدُ آنَئِذٍ يُحَدِّثُ نَفْسَهُ: «لَقَدْ حَافَظْتُ عَلَى كُلِّ قُطْعَانِ هَذَا الرَّجُلِ فِي الصَّحْرَاءِ، فَكَافَأَنِي شَرّاً بَدَلَ الْخَيْرِ. 22فَلْيُضَاعِفِ الرَّبُّ مِنْ عِقَابِ دَاوُدَ، إِنْ لَمْ أَقْضِ عَلَى كُلِّ رِجَالِهِ قَبْلَ طُلُوعِ ضَوْءِ الصَّبَاحِ».

23وَعِنْدَمَا شَاهَدَتْ أَبِيجَايِلُ دَاوُدَ أَسْرَعَتْ وَتَرَجَّلَتْ عَنِ الْحِمَارِ وَخَرَّتْ أَمَامَهُ سَاجِدَةً، 24وَانْطَرَحَتْ عِنْدَ رِجْلَيْهِ قَائِلَةً: «ضَعِ اللَّوْمَ عَلَيَّ وَحْدِي يَا سَيِّدِي، وَدَعْ أَمَتَكَ تَتَكَلَّمُ فِي مَسَامِعِكَ وَأَصْغِ إِلَى حَدِيثِهَا. 25لَا يَضْغَنْ قَلْبُ سَيِّدِي عَلَى هَذَا الرَّجُلِ اللَّئِيمِ نَابَالَ، فَهُوَ فَظٌّ كَاسْمِهِ وَالْحَمَاقَةُ مَقْرُونَةٌ بِهِ، أَمَّا أَنَا فَلَمْ أَرَ رِجَالَ سَيِّدِي حِينَ أَرْسَلْتَهُمْ. 26وَالآنَ أُقْسِمُ لَكَ بِالرَّبِّ الْحَيِّ وَبِحَيَاتِكَ، إِنَّ الرَّبَّ قَدْ جَنَّبَكَ سَفْكَ الدِّمَاءِ وَالثَّأْرَ لِنَفْسِكَ، وَلْيَكُنْ أَعْدَاؤُكَ وَمَنْ يَسْعَوْنَ فِي هَلاكِكَ، كَنَابَالَ. 27فَتَقَبَّلِ الآنَ هَذِهِ الْبَرَكَةَ الَّتِي أَحْضَرَتْهَا جَارِيَتُكَ يَا سَيِّدِي وَأَعْطِهَا لِرِجَالِكَ الْمُلْتَفِّينَ حَوْلَكَ. 28وَاعْفُ عَنْ ذَنْبِ أَمَتِكَ، لأَنَّ الرَّبَّ لابُدَّ أَنْ يُثَبِّتَ كُرْسِيَّ مُلْكِ سَيِّدِي إِلَى الأَبَدِ، لأَنَّ سَيِّدِي يُحَارِبُ حُرُوبَ الرَّبِّ، فَلا يُوْجَدُ فِيكَ شَرٌّ كُلَّ أَيَّامِكَ. 29وَإِنْ قَامَ مَنْ يَتَعَقَّبُكَ لِيَقْتُلَكَ، فَلْتَكُنْ نَفْسُ سَيِّدِي مَحْزُومَةً فِي حُزْمَةِ الأَحْيَاءِ مَعَ الرَّبِّ إِلَهِكَ. وَأَمَّا نَفْسُ أَعْدَائِكَ فَلْيُقْذَفْ بِها كَمَا يُقْذَفُ حَجَرٌ مِنْ وَسَطِ كَفَّةِ مِقْلاعٍ. 30وَعِنْدَمَا يُحَقِّقُ الرَّبُّ لِسَيِّدِي كُلَّ هَذَا الْخَيْرِ الَّذِي وَعَدَ بِهِ وَيُنَصِّبُكَ رَئِيساً عَلَى إِسْرَائِيلَ، 31فَلَنْ تُقَاسِيَ مِنْ عَذَابِ الضَّمِيرِ لأَنَّكَ سَفَكْتَ دِمَاءً اعْتِبَاطاً أَوِ انْتَقَمْتَ لِنَفْسِكَ. وَمَتَى حَقَّقَ لَكَ الرَّبُّ وَعْدَهُ فَاذْكُرْ أَمَتَكَ».

32فَقَالَ دَاوُدُ لأَبِيجَايِلَ: «مُبَارَكٌ الرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ الَّذِي أَرْسَلَكِ الْيَوْمَ لِلِقَائِي، 33وَمُبَارَكَةٌ فِطْنَتُكِ، وَمُبَارَكَةٌ أَنْتِ لأَنَّكِ جَنَّبْتِنِي الْيَوْمَ سَفْكَ الدِّمَاءِ وَالانْتِقَامَ لِنَفْسِي. 34وَلَكِنْ حَيٌّ هُوَ الرَّبُّ الَّذِي مَنَعَنِي مِنَ الإِسَاءَةِ إِلَيْكِ، فَلَوْ لَمْ تُبَادِرِي وَتَأْتِي لاِسْتِقْبَالِي لَمَا بَقِيَ لِنَابَالَ رَجُلٌ عَلَى قَيْدِ الْحَيَاةِ عِنْدَ مَطْلَعِ ضَوْءِ الصَّبَاحِ». 35وَقَبِلَ دَاوُدُ مِنْهَا مَا حَمَلَتْهُ إِلَيْهِ قَائِلاً لَهَا: «امْضِي إِلَى بَيْتِكِ بِسَلامٍ، فَهَا أَنَا قَدِ اسْتَمَعْتُ لِتَوَسُّلِكِ وَاسْتَجَبْتُ طِلْبَتَكِ».

36فَأَقْبَلَتْ أَبِيجَايِلُ إِلَى نَابَالَ، فَوَجَدَتْ أَنَّهُ قَدْ أَقَامَ مَأْدُبَةً فِي بَيْتِهِ كَمَأْدُبَةِ مَلِكٍ، وَقَدْ أَخَذَتْهُ النَّشْوَةُ بَعْدَ أَنْ أَكْثَرَ مِنِ احْتِسَاءِ الْخَمْرِ حَتَّى سَكِرَ، فَلَمْ تُخْبِرْهُ بِشَيْءٍ إِطْلاقاً حَتَّى صَبَاحِ الْيَوْمِ التَّالِي. 37وَفِي الصَّبَاحِ، بَعْدَ أَنْ صَحَا نَابَالُ مِنْ سَكْرَتِهِ، أَخْبَرَتْهُ بِمَا جَرَى، فَأَصَابَهُ الشَّلَلُ وَتَجَمَّدَ كَحَجَرٍ. 38وَبَعْدَ عَشَرَةِ أَيَّامٍ ضَرَبَهُ اللهُ فَمَاتَ.

39فَلَمَّا سَمِعَ دَاوُدُ بِمَوْتِ نَابَالَ قَالَ: «مُبَارَكٌ الرَّبُّ الَّذِي انْتَقَمَ لِي بِذَاتِهِ مِنْ إِهَانَةِ نَابَالَ، وَجَنَّبَنِي ارْتِكَابَ الشَّرِّ وَعَاقَبَ نَابَالَ عَلَى إِثْمِهِ». وَأَرْسَلَ دَاوُدُ إِلَى أَبِيجَايِلَ يَسْأَلُهَا الزَّوَاجَ مِنْهُ. 40فَوَفَدَ رُسُلُ دَاوُدَ إِلَى أَبِيجَايِلَ إِلَى الْكَرْمَلِ وَقَالُوا لَهَا: «أَرْسَلَنَا دَاوُدُ إِلَيْكِ لِنَسْأَلَكِ الزَّوَاجَ مِنْهُ». 41فَقَامَتْ وَسَجَدَتْ بِوَجْهِهَا إِلَى الأَرْضِ وَقَالَتْ: «أَنَا أَمَتُهُ الْمُسْتَعِدَّةُ لِخِدْمَتِهِ وَلِغَسْلِ أَرْجُلِ عَبِيدِ سَيِّدِي». 42ثُمَّ أَسْرَعَتْ أَبِيجَايِلُ وَرَكِبَتْ حِمَارَهَا بَعْدَ أَنْ صَحَبَتْ مَعَهَا خَمْسَ فَتَيَاتٍ مِنْ جَوَارِيهَا سِرْنَ وَرَاءَهَا، وَتَبِعَتْ رُسُلَ دَاوُدَ، وَصَارَتْ لَهُ زَوْجَةً.

43ثُمَّ تَزَوَّجَ دَاوُدُ أَخِينُوعَمَ مِنْ يَزْرَعِيلَ فَكَانَتَا لَهُ زَوْجَتَيْنِ. 44عِنْدَئِذٍ زَوَّجَ شَاوُلُ مِيكَالَ ابْنَتَهُ امْرَأَةَ دَاوُدَ مِنْ فَلْطِي بْنِ لايِشَ الَّذِي مِنْ جَلِّيمَ.