स्तोत्र 68 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 68:1-35

स्तोत्र 68

संगीत निर्देशक के लिये. दावीद की रचना. एक स्तोत्र. एक गीत.

1परमेश्वर उठे, कि उनके शत्रु बिखर जाएं;

उनके शत्रु उनके सम्मुख से भाग खड़े हों.

2आप उन्हें वैसे ही उड़ा दें, जैसे हवा धुएं को उड़ा ले जाती है,

वे परमेश्वर के सामने उसी प्रकार नष्ट हो जाएं

जिस प्रकार अग्नि के सम्मुख आने पर मोम.

3धर्मी हर्षित हों और वे परमेश्वर की उपस्थिति में

हर्षोल्लास में मगन हों;

वे आनंद में उल्‍लसित हों.

4परमेश्वर का गुणगान करो, जो मेघों पर विराजमान होकर आगे बढ़ते हैं,

उनकी महिमा का स्तवन करो, उनका नाम है याहवेह.

उपयुक्त है कि उनके सामने उल्‍लसित रहा जाए.

5परमेश्वर अपने पवित्र आवास में अनाथों

के पिता तथा विधवाओं के रक्षक हैं.

6वह एकाकियों के लिए स्थायी परिवार निर्धारित करते

तथा बंदियों को मुक्त कर देते हैं तब वे हर्ष गीत गाने लगते हैं;

किंतु हठीले तपते, सूखे भूमि में निवास करने के लिए छोड़ दिए जाते हैं.

7परमेश्वर, जब आप अपनी प्रजा के आगे-आगे चलने के लिए निकल पड़े,

जब आप बंजर ज़मीन में से होकर जा रहे थे,

8पृथ्वी कांप उठी, आकाश ने वृष्टि भेजी,

परमेश्वर के सामने, वह जो सीनायी पर्वत के परमेश्वर हैं,

परमेश्वर के सामने, जो इस्राएल के परमेश्वर हैं.

9परमेश्वर, आपने समृद्ध वृष्टि प्रदान की;

आपने अपने थके हुए विरासत को ताज़ा किया.

10आपकी प्रजा उस देश में बस गई;

हे परमेश्वर, आपने अपनी दया के भंडार से असहाय प्रजा की आवश्यकता की व्यवस्था की.

11प्रभु ने आदेश दिया और बड़ी संख्या में

स्त्रियों ने यह शुभ संदेश प्रसारित कर दिया:

12“राजा और सेना पलायन कर रहे हैं; हां, वे पलायन कर रहे हैं,

और वह जो घर पर रह गई है लूट की सामग्री को वितरित करेगी.

13जब तुम भेड़शाला में लेटते हो,

तुम ऐसे लगते हो, मानो कबूतरी के पंखों पर चांदी,

तथा उसके पैरों पर प्रकाशमान स्वर्ण मढ़ा गया हो.”

14जब सर्वशक्तिमान ने राजाओं को वहां तितर-बितर किया,

ज़लमोन में हिमपात हो रहा था.

15ओ देवताओं का68:15 देवताओं का परमेश्वर का पर्वत ऐसे भी अर्थ है पर्वत, बाशान पर्वत,

ओ अनेक शिखरयुक्त पर्वत, बाशान पर्वत,

16ओ अनेक शिखरयुक्त पर्वत, तुम उस पर्वत की ओर डाह की दृष्टि क्यों डाल रहे हो,

जिसे परमेश्वर ने अपना आवास बनाना चाहा है,

निश्चयतः वहां याहवेह सदा-सर्वदा निवास करेंगे?

17परमेश्वर के रथ दस दस हजार,

और हजारों हजार हैं;

प्रभु अपनी पवित्रता में उनके मध्य हैं, जैसे सीनायी पर्वत पर.

18जब आप ऊंचाइयों पर चढ़ गए,

और आप अपने साथ बड़ी संख्या में युद्धबन्दी ले गए;

आपने मनुष्यों से, हां,

हठीले मनुष्यों से भी भेंट स्वीकार की,

कि आप, याहवेह परमेश्वर वहां निवास करें.

19परमेश्वर, हमारे प्रभु, हमारे उद्धारक का स्तवन हो,

जो प्रतिदिन के जीवन में हमारे सहायक हैं.

20हमारे परमेश्वर वह परमेश्वर हैं, जो हमें उद्धार प्रदान करते हैं;

मृत्यु से उद्धार सर्वसत्ताधारी अधिराज याहवेह से ही होता है.

21इसमें कोई संदेह नहीं, कि परमेश्वर अपने शत्रुओं के सिर कुचल देंगे,

केश युक्त सिर, जो पापों में लिप्‍त रहते हैं.

22प्रभु ने घोषणा की, “मैं तुम्हारे शत्रुओं को बाशान से भी खींच लाऊंगा;

मैं उन्हें सागर की गहराइयों तक से निकाल लाऊंगा,

23कि तुम अपने पांव अपने शत्रुओं के रक्त में डूबा सको,

और तुम्हारे कुत्ते भी अपनी जीभ तृप्‍त कर सकें.”

24हे परमेश्वर, आपकी शोभायात्रा अब दिखने लगी है;

वह शोभायात्रा, जो मेरे परमेश्वर और मेरे राजा की है, जो मंदिर की ओर बढ़ रही है!

25इस शोभायात्रा में सबसे आगे चल रहा है गायक-वृन्द, उसके पीछे है वाद्य-वृन्द;

जिनमें युवतियां भी हैं जो डफ़ बजा रही हैं.

26विशाल जनसभा में परमेश्वर का स्तवन किया जाए;

इस्राएल राष्ट्र की महासभा में याहवेह का स्तवन किया जाए.

27बिन्यामिन का छोटा गोत्र उनके आगे-आगे चल रहा है,

वहीं यहूदी गोत्र के न्यायियों का विशाल समूह है,

ज़ेबुलून तथा नफताली गोत्र के प्रधान भी उनमें सम्मिलित हैं.

28हे परमेश्वर, अपनी सामर्थ्य को आदेश दीजिए,

हम पर अपनी शक्ति प्रदर्शित कीजिए, हे परमेश्वर, जैसा आपने पहले भी किये हैं!

29येरूशलेम में आपके मंदिर की महिमा के कारण,

राजा अपनी भेंटें आपको समर्पित करेंगे.

30सरकंडों के मध्य घूमते हिंसक पशुओं को,

राष्ट्रों के बछड़ों के मध्य सांड़ों के झुंड को आप फटकार लगाइए.

उन्हें रौंद डालिए, जिन्हें भेंट पाने की लालसा रहती है.

युद्ध के लिए प्रसन्‍न राष्ट्रों की एकता भंग कर दीजिए.

31मिस्र देश से राजदूत आएंगे;

तथा कूश देश परमेश्वर के सामने समर्पित हो जाएगा.

32पृथ्वी के समस्त राज्यो, परमेश्वर का गुणगान करो,

प्रभु का स्तवन करो.

33उन्हीं का स्तवन, जो सनातन काल से स्वर्ग में चलते फिरते रहे हैं,

जिनका स्वर मेघ के गर्जन समान है.

34उन परमेश्वर के सामर्थ्य की घोषणा करो,

जिनका वैभव इस्राएल राष्ट्र पर छाया है,

जिनका नियंत्रण समस्त स्वर्ग पर प्रगट है.

35परमेश्वर, अपने मंदिर में आप कितने शोभायमान लगते हैं;

इस्राएल के परमेश्वर अपनी प्रजा को अधिकार एवं सामर्थ्य प्रदान करते हैं.

परमेश्वर का स्तवन होता रहे!