सूक्ति संग्रह 17 – Hindi Contemporary Version HCV

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 17:1-28

1सुख-शांति के वातावरण में सूखी रोटी का भोजन

कलहपूर्ण उत्सव-भोज से कहीं अधिक उत्तम है.

2चतुर, बुद्धिमान सेवक उस पुत्र पर शासन करेगा,

जिसका चालचलन लज्जास्पद है.

3चांदी की परख कुठाली से तथा स्वर्ण की भट्टी से की जाती है,

किंतु हृदयों की परख याहवेह करते हैं.

4दुष्ट अनर्थ में रुचि लेता रहता है;

झूठा व्यक्ति विनाशकारी जीभ पर ध्यान देता है.

5जो निर्धन को उपहास का पात्र बनाता है, वह उसके सृजनहार का उपहास करता है;

और जो दूसरों की विपत्ति को देख आनंदित होता है, निश्चयतः दंड प्राप्‍त करता है.

6वयोवृद्धों का गौरव उनके नाती-पोतों में होता है,

तथा संतान का गौरव उनके माता-पिता में.

7अशोभनीय होती है मूर्ख द्वारा की गई दीर्घ बात;

इससे कहीं अधिक अशोभनीय होती है प्रशासक द्वारा की गई झूठी बात.

8वह, जो घूस देता है, उसकी दृष्टि में घूस जादू-समान प्रभाव डालता है;

इसके द्वारा वह अपना कार्य पूर्ण कर ही लेता है.

9प्रेम का खोजी अन्य के अपराध पर आवरण डालता है,

किंतु वह, जो अप्रिय घटना का उल्लेख बार-बार करता है, परम मित्रों तक में फूट डाल देता है.

10बुद्धिमान व्यक्ति पर एक डांट का जैसा गहरा प्रभाव पड़ता है,

मूर्ख पर वैसा प्रभाव सौ लाठी के प्रहारों से भी संभव नहीं है.

11दुष्ट का लक्ष्य मात्र विद्रोह ही हुआ करता है;

इसके दमन के लिए क्रूर दूत भेजा जाना अनिवार्य हो जाता है.

12किसी मूर्ख की मूर्खता में उलझने से उत्तम यह होगा,

कि उस रीछनी से सामना हो जाए, जिसके बच्‍चे छीन लिए गए हैं.

13जो व्यक्ति किसी हितकार्य का प्रतिफल बुराई कार्य के द्वारा देता है,

उसके परिवार में बुराई का स्थायी वास हो जाता है.

14कलह का प्रारंभ वैसा ही होता है, जैसा विशाल जल राशि का छोड़ा जाना;

तब उपयुक्त यही होता है कि कलह के प्रारंभ होते ही वहां से पलायन कर दिया जाए.

15याहवेह की दृष्टि में दोनों ही घृणित हैं;

वह, जो दोषी को छोड़ देता है तथा जो धर्मी को दोषी घोषित कर देता है.

16ज्ञानवर्धन के लिए किसी मूर्ख के धन का क्या लाभ?

जब उसे ज्ञान का मूल्य ही ज्ञात नहीं है.

17मित्र वह है, जिसका प्रेम चिरस्थायी रहता है,

और भाई का अस्तित्व विषम परिस्थिति में सहायता के लिए ही होता है.

18वह मूर्ख ही होता है, जो हाथ पर हाथ मारकर शपथ करता

तथा अपने पड़ोसी के लिए आर्थिक ज़मानत देता है.

19जो कोई झगड़े से प्यार रखता है, वह पाप से प्यार करता है;

जो भी एक ऊंचा फाटक बनाता है विनाश को आमंत्रित करता है.

20कुटिल प्रवृत्ति का व्यक्ति अवश्य ही विपत्ति में जा पड़ेगा;

वैसे ही वह भी, जो झूठ बोलने वाला है.

21वह, जो मन्दबुद्धि पुत्र को जन्म देता है, अपने ही ऊपर शोक ले आता है;

मूर्ख के पिता के समक्ष आनंद का कोई विषय नहीं रह जाता.

22आनंदित हृदय स्वास्थ्य देनेवाली औषधि है,

किंतु टूटा दिल अस्थियों को तक सुखा देता है.

23दुष्ट गुप्‍त रूप से घूस लेता रहता है,

कि न्याय की नीति को कुटिल कर दे.

24बुद्धिमान सदैव ज्ञान की ही खोज करता रहता है,

किंतु मूर्ख का मस्तिष्क विचलित होकर सर्वत्र भटकता रहता है.

25मूर्ख पुत्र अपने पिता के लिए शोक का कारण होता है

और जिसने उसे जन्म दिया है उसके हृदय की कड़वाहट का कारण.

26यह कदापि उपयुक्त नहीं है कि किसी धर्मी को दंड दिया जाए,

और न किसी सज्जन पर प्रहार किया जाए.

27ज्ञानी जन शब्दों पर नियंत्रण रखता है,

और समझदार जन शांत बना रहता है.

28जब तक मूर्ख मौन रहता है, बुद्धिमान माना जाता है,

उसे उस समय तक बुद्धिमान समझा जाता है, जब तक वह वार्तालाप में सम्मिलित नहीं होता.