व्यवस्था 10 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

व्यवस्था 10:1-22

शिला पटलों का पुनर्लेखन

1फिर याहवेह ने मुझसे कहा: “पहले की पट्टियों के समान दो पट्टियां और बनाओ और मेरे सामने इस पर्वत पर आ जाओ. लकड़ी का एक संदूक भी बनाओ. 2मैं इन पत्थर की पट्टियों पर वही सब लिख दूंगा, जो उन पटलों पर लिखा गया था, जिन्हें तुमने तोड़ दिया है. इन पटलों को तुम उस संदूक में रख दोगे.”

3फिर मैंने बबूल की लकड़ी से एक संदूक बनाया फिर दो पट्टियां काटी और अपने हाथों में वे दो पट्टियां लेकर पर्वत पर चढ़ गया. 4याहवेह ने उन दो पट्टियों पर वही लिख दिया, जो उन पहले की पट्टियों पर लिखा गया था: वे दस आदेश, जो तुम्हारे वहां इकट्ठा होने के अवसर पर पर्वत पर अग्नि में से गए थे. ये पटल याहवेह ने मुझे सौंप दिए. 5फिर मैं पर्वत से लौट आया और दोनों पट्टियों को उस संदूक में रख दिया, जिसे मैंने बनाया था. याहवेह के आदेश के अनुसार वे वही हैं.

6(इस अवसर पर इस्राएलियों ने बेने-जआकन के कुंओं से मोसेराह की ओर कूच किया. यहां अहरोन की मृत्यु हो गई और उसे वहीं गाड़ दिया गया. उसके स्थान पर उसके पुत्र एलिएज़र ने पौरोहितिक सेवा शुरू की. 7वहां से वे गुदगोदाह की दिशा में आगे बढ़े, फिर गुदगोदाह से योतबाथाह की ओर. यह नदियों की भूमि थी. 8इस अवसर पर याहवेह ने यह तय कर दिया की लेवी गोत्र के लोग ही याहवेह की वाचा का संदूक उठाया करेंगे, वे ही याहवेह की उपस्थिति में ठहरे रहेंगे, कि उनकी सेवा करें और उनकी महिमा में उनके गीत गाया करें, जो आज तक होता आया है. 9यही कारण है कि लेवी गोत्र के लिए न तो कोई भाग दिया गया है और न ही उनके भाइयों के साथ उनकी कोई मीरास है. खुद याहवेह इस वंश की मीरास हैं, जैसी प्रतिज्ञा याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर द्वारा की गई थी.)

10पहले की अवधि के समान मैं पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात ठहरा रहा. इस अवसर पर भी याहवेह ने मेरी प्रार्थना सुन ली; उन्होंने तुम्हें नाश करने का विचार ही त्याग दिया. 11तब याहवेह ने मुझे आदेश दिया, “इन लोगों के अगुए होकर यात्रा शुरू करो, कि वे उस देश में प्रवेश करके उस पर अधिकार कर लें, जो देश इन्हें देने की प्रतिज्ञा मैंने शपथ के साथ उनके पूर्वजों से की थी.”

याहवेह के प्रति श्रद्धा और भय

12तब इस्राएल, तुमसे याहवेह की क्या अपेक्षा है, इसके अलावा कि तुम याहवेह, अपने परमेश्वर के प्रति श्रद्धा और भय का भाव रखो, उनसे प्रेम करो, याहवेह, अपने परमेश्वर की सेवा अपने पूरे हृदय और अपने पूरे प्राण से करो, 13और याहवेह के आदेशों और नियमों का पालन करो, जो तुम्हारी ही भलाई के उद्देश्य से मैं तुम्हें दे रहा हूं?

14याद रहे, आकाश, सबसे ऊंचा स्वर्ग, पृथ्वी और वह सब, जो पृथ्वी में है, याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर का ही है. 15फिर भी, याहवेह ने तुम्हारे पूर्वजों पर अपना प्रेम बनाए रखा. उनके बाद उनके वंशजों को उन्होंने चुना, अर्थात् अन्य सभी की अपेक्षा तुम सबको, जैसा आज तुम्हारे सामने स्पष्ट है. 16इसलिये अपने हृदय का ख़तना करो और अब तो हठ करना छोड़ दो. 17क्योंकि याहवेह तुम्हारे परमेश्वर ही देवताओं से अति महान परमेश्वर हैं. वह अधिराजों के अधिराज हैं, महान, सर्वशक्तिमान, भय-योग्य परमेश्वर. उनके व्यवहार में न तो भेद-भाव है और न ही घूस की कोई संभावना. 18वह अनाथों और विधवाओं का न्याय करते हैं. वह परदेशी के प्रति अपने प्रेम के निमित्त उसे भोजन और वस्त्र प्रदान करते हैं. 19तब तुम भी परदेशी के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करो; क्योंकि तुम खुद मिस्र देश में परदेशी ही थे. 20तुममें याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर के प्रति श्रद्धा हो. तुम उन्हीं की सेवा करोगे, उन्हीं के अनुरूप रहोगे और शपथ सिर्फ उन्हीं के नाम की लिया करोगे. 21याहवेह ही तुम्हारी स्तुति के योग्य हैं, वही तुम्हारे परमेश्वर हैं, जिन्होंने तुम्हारे लिए ये अद्धुत और अचंभे के काम किए हैं, जिनके तुम गवाह हो. 22जब तुम्हारे पूर्वज मिस्र में गए थे, तब वे गिनती में कुल सिर्फ सत्तर व्यक्ति ही थे, मगर अब याहवेह, तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हें ऐसे अनगिनत बना दिया है, जैसे आकाश के तारे.

New Arabic Version

التثنية 10:1-22

لوحا شريعة جديدان

1وَقَالَ لِيَ الرَّبُّ: انْحَتْ لَكَ لَوْحَيْنِ مِنْ حَجَرٍ مِثْلَ اللَّوْحَيْنِ الأَوَّلَيْنِ، وَاصْعَدْ إِلَى الْجَبَلِ، وَاصْنَعْ لَكَ تَابُوتاً مِنْ خَشَبٍ، 2فَأَخُطَّ عَلَى اللَّوْحَيْنِ الْوَصَايَا الَّتِي كَانَتْ مَكْتُوبَةً عَلَى اللَّوْحَيْنِ الأَوَّلَيْنِ اللَّذَيْنِ حَطَّمْتَهُمَا، فَتَضَعَهُمَا فِي التَّابُوتِ. 3فَصَنَعْتُ تَابُوتاً مِنْ خَشَبِ السَّنْطِ، وَنَحَتُّ لَوْحَيْنِ مِنْ حَجَرٍ مِثْلَ اللَّوْحَيْنِ الأَوَّلَيْنِ، وَصَعِدْتُ إِلَى الْجَبَلِ وَاللَّوْحَانِ فِي يَدَيَّ. 4فَخَطَّ الرَّبُّ عَلَى اللَّوْحَيْنِ مَا كَانَ قَدْ خَطَّهُ سَابِقاً، الْوَصَايَا الْعَشَرَ الَّتِي كَلَّمَكُمْ بِها الرَّبُّ فِي الْجَبَلِ مِنْ وَسَطِ النَّارِ فِي يَوْمِ الاجْتِمَاعِ، وَسَلَّمَنِي إِيَّاهَا. 5ثُمَّ انْصَرَفْتُ، وَانْحَدَرْتُ مِنَ الْجَبَلِ، وَوَضَعْتُ اللَّوْحَيْنِ فِي التَّابُوتِ الَّذِي صَنَعْتُهُ. وَهَا هُمَا هُنَاكَ، كَمَا أَمَرَ الرَّبُّ.

6ثُمَّ ارْتَحَلَ الإِسْرَائِيلِيُّونَ مِنْ جِوَارِ آبَارِ بَنِي يَعْقَانَ إِلَى مُوسِيرَ، حَيْثُ مَاتَ هرُونُ وَدُفِنَ هُنَاكَ. فَتَوَلَّى أَلِعَازَارُ ابْنُهُ رَئَاسَةَ الْكَهَنُوتِ عِوَضاً عَنْهُ. 7وَمِنْ هُنَاكَ انْتَقَلَ الإِسْرَائِيلِيُّونَ إِلَى الْجِدْجُودِ، وَمِنْهَا إِلَى يُطْبَاتَ، وَهِيَ أَرْضٌ عَامِرَةٌ بِالأَنْهَارِ.

8فِي ذَلِكَ الْوَقْتِ خَصَّصَ الرَّبُّ سِبْطَ لاوِي لِحَمْلِ تَابُوتِ عَهْدِ الرَّبِّ وَالْمُثُولِ أَمَامَ الرَّبِّ لِيَخْدِمُوهُ وَيُبَارِكُوا اسْمَهُ إِلَى هَذَا الْيَوْمِ. 9لِهَذَا لَمْ يَرِثِ اللّاوِيُّونَ مَعَ بَقِيَّةِ إِخْوَتِهِمْ لأَنَّ الرَّبَّ هُوَ نَصِيبُهُمْ كَمَا وَعَدَهُمْ.

10أَمَّا أَنَا فَقَدْ مَكَثْتُ فِي الْجَبَلِ أَرْبَعِينَ نَهَاراً وَأَرْبَعِينَ لَيْلَةً، كَمَا حَدَثَ فِي الْمَرَّةِ الأُولَى وَاسْتَجَابَ لِيَ الرَّبُّ أَيْضاً فَلَمْ يُهْلِكْكُمْ 11ثُمَّ قَالَ لِيَ الرَّبُّ: قُمْ وَامْضِ لِلارْتِحَالِ أَمَامَ الشَّعْبِ، لِلدُّخُولِ وَامْتِلاكِ الأَرْضِ الَّتِي حَلَفْتُ لِآبَائِهِمْ أَنْ أَهَبَهَا لَهُمْ.

تقوى الرب

12فَالآنَ أَيُّهَا الإِسْرَائِيلِيُّونَ مَاذَا يَطْلُبُ مِنْكُمُ الرَّبُّ إِلَهُكُمْ سِوَى أَنْ تَتَّقُوهُ وَتَسْلُكُوا فِي كُلِّ طُرُقِهِ، وَتُحِبُّوهُ وَتَعْبُدُوهُ مِنْ كُلِّ قُلُوبِكُمْ وَمِنْ كُلِّ نُفُوسِكُمْ، 13وَتُطِيعُوا وَصَايَاهُ وَفَرَائِضَهُ، الَّتِي أَنَا أُوصِيكُمْ بِها الْيَوْمَ لِخَيْرِكُمْ؟ 14فَالرَّبُّ إِلَهُكُمْ هُوَ مَالِكُ السَّمَاوَاتِ وَسَمَاءِ السَّمَاوَاتِ وَكُلِّ مَا فِيهَا. 15غَيْرَ أَنَّ الرَّبَّ فَضَّلَ آبَاءَكُمْ وَاصْطَفَى ذُرِّيَّتَهُمْ مِنْ بَعْدِهِمْ، الَّتِي هِيَ أَنْتُمْ، لِتَكُونُوا فَوْقَ جَمِيعِ أُمَمِ الأَرْضِ، كَمَا هُوَ حَادِثٌ الْيَوْمَ. 16فَطَهِّرُوا قُلُوبَكُمُ الأَثِيمَةَ، وَأَقْلِعُوا عَنْ عِنَادِكُمْ، 17لأَنَّ الرَّبَّ إِلَهَكُمْ هُوَ إِلَهُ الآلِهَةِ وَرَبُّ الأَرْبَابِ، الإِلَهُ الْعَظِيمُ الْجَبَّارُ الْمَهِيبُ، الَّذِي لَا يُحَابِي وَجْهَ أَحَدٍ، وَلا يَرْتَشِي. 18إِنَّهُ يَقْضِي حَقَّ الْيَتِيمِ وَالأَرْمَلَةِ، وَيُحِبُّ الْغَرِيبَ فَيُوَفِّرُ لَهُ طَعَاماً وَكِسَاءً 19فَأَحِبُّوا الْغَرِيبَ لأَنَّكُمْ كُنْتُمْ غُرَبَاءَ فِي دِيَارِ مِصْرَ. 20اتَّقُوا الرَّبَّ إِلَهَكُمْ وَإِيَّاهُ اعْبُدُوا وَبِهِ اعْتَصِمُوا وَبِاسْمِهِ احْلِفُوا، 21فَهُوَ فَخْرُكُمْ وَإِلَهُكُمُ الَّذِي أَجْرَى مَعَكُمْ تِلْكَ الْمُعْجِزَاتِ الْعَظِيمَةَ الَّتِي شَهِدَتْهَا أَعْيُنُكُمْ. 22فَعِنْدَمَا انْحَدَرَ آبَاؤُكُمْ إِلَى مِصْرَ كَانُوا سَبْعِينَ نَفْساً، وَالآنَ قَدْ جَعَلَكُمُ الرَّبُّ إِلَهُكُمْ فِي كَثْرَةِ النُّجُومِ.