लेवी 1 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

लेवी 1:1-17

होमबलि के लिए विधान

1याहवेह ने मोशेह को आह्वान कर उन्हें मिलनवाले तंबू में से यह आदेश दिया, 2“इस्राएल की प्रजा को यह आदेश दो: ‘जब कभी तुममें से कोई व्यक्ति याहवेह के लिए बलि अर्पण करें, वह यह बलि किसी गाय-बैलों या भेड़-बकरियों में से लेकर आए.

3“ ‘यदि उसकी होमबलि ढोरों से है, तो वह एक निर्दोष नर पशु को बलि करे, वह इस निर्दोष नर पशु को मिलनवाले तंबू के प्रवेश द्वार पर बलि करे कि वह याहवेह द्वारा स्वीकृत हो. 4वह व्यक्ति अपना हाथ इस पशु के सिर पर रखे कि यह उसके पक्ष में प्रायश्चित बलि के रूप में स्वीकार की जाए. 5वह याहवेह के सामने इस बछड़े को बलि करे और अहरोन के पुत्र, जो पुरोहित हैं, इसके रक्त को उस वेदी के चारों ओर छिड़क दें, जो मिलनवाले तंबू के प्रवेश पर स्थित है. 6फिर तुम इस पशु की खाल उतारकर इसे टुकड़ों में काट देना. 7अहरोन के पुत्र, जो पुरोहित हैं, वेदी पर अग्नि रखें और इस अग्नि पर लकड़ियों को सजाकर रखें. 8अहरोन के पुत्र, जो पुरोहित हैं; टुकड़ों, सिर और चर्बी को जलती हुई लकड़ियों पर, जो वेदी पर हैं, सजाकर रखें. 9किंतु तुम उस पशु की आंतों और टांगों को जल से धोना और पुरोहित इन सभी को होमबलि के लिए वेदी पर दहन करे. यह याहवेह के लिए सुखद-सुगंध की होमबलि होगी.

10“ ‘किंतु यदि उसकी होमबलि भेड़-बकरियों में से है, तो वह एक निर्दोष नर पशु को अर्पण करे. 11वह उसका वध याहवेह के सामने वेदी के उस ओर करे, जो उत्तरी दिशा की ओर है, और अहरोन के पुत्र, जो पुरोहित हैं, इसके रक्त को वेदी के चारों ओर छिड़क दें. 12फिर वह इसके सिर और इसकी चर्बी को टुकड़ों में काट दे, और पुरोहित इन्हें उन लकड़ियों पर जो अग्नि पर हैं, सजाकर रखें, 13किंतु आंतों और पैरों को वह जल से धोए और पुरोहित इन सभी को होमबलि के लिए वेदी पर जलाए, यह याहवेह के लिए सुखद-सुगंध की होमबलि होगी.

14“ ‘किंतु यदि वह याहवेह के लिए पक्षियों की होमबलि चढ़ाता है, तो वह अपनी बलि के लिए कपोत अथवा कबूतर के बच्‍चे लेकर आए. 15पुरोहित इसे वेदी पर लाए; उसका सिर मरोड़ कर उसका वध करे, तथा उसे वेदी पर जलाए. इसका रक्त वेदी की एक ओर बहाए जाए. 16वह उसके गले की थैली और परों को वेदी के पूर्वी ओर, जो राख डालने का स्थान है, फेंक दे. 17फिर वह उसके पंख पकड़कर फाड़े, किंतु उसे अलग न करे और पुरोहित इन सभी को होमबलि के लिए वेदी पर जलाए. यह याहवेह के लिए सुखद-सुगंध की होमबलि होगी.

New Arabic Version

اللاويين 1:1-17

المحرقة

1وَاسْتَدْعَى الرَّبُّ مُوسَى، وَخَاطَبَهُ مِنْ خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ قَائِلاً:

2«أَوْصِ بَنِي إِسْرَائِيلَ: إِذَا قَدَّمَ أَحَدُكُمْ ذَبِيحَةً مِنَ الْبَهَائِمِ لِلرَّبِّ، فَلْيَكُنْ ذَلِكَ الْقُرْبَانُ مِنَ الْبَقَرِ وَالْغَنَمِ. 3إِنْ كَانَتْ تَقْدِمَتُهُ مُحْرَقَةً مِنَ الْبَقَرِ، فَلْيُقَرِّبْ ثَوْراً سَلِيماً، يُحْضِرُهُ عِنْدَ مَدْخَلِ خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ، وَيُقَدِّمُهُ أَمَامَ الرَّبِّ طَلَباً لِرِضَاهُ عَنْهُ. 4فَيَضَعُ يَدَهُ عَلَى رَأْسِ الْمُحْرَقَةِ، فَيَرْضَى الرَّبُّ بِمَوْتِ الثَّوْرِ بَدِيلاً عَنْ صَاحِبِهِ، لِلتَّكْفِيرِ عَنْ خَطَايَاهُ. 5ثُمَّ يَذْبَحُ الْمُقَرِّبُ الْعِجْلَ أَمَامَ الرَّبِّ. وَيُقَدِّمُ بَنُو هَرُونَ، الْكَهَنَةُ، الدَّمَ وَيَرُشُّونَهُ عَلَى جَوَانِبِ الْمَذْبَحِ الْقَائِمِ عِنْدَ مَدْخَلِ خَيْمَةِ الاجْتِمَاعِ. 6وَعَلَى الْمُقَرِّبِ أَيْضاً أَنْ يَسْلُخَ الْمُحْرَقَةَ وَيُقَطِّعَهَا إِلَى أَجْزَاءَ. 7وَيُوْقِدُ أَبْنَاءُ هَرُونَ نَاراً عَلَى الْمَذْبَحِ وَيُرَتِّبُونَ عَلَيْهَا حَطَباً 8ثُمَّ يُرَتِّبُونَ فَوْقَ حَطَبِ نَارِ الْمَذْبَحِ أَجْزَاءَ الثَّوْرِ وَرَأْسَهُ وَشَحْمَهُ. 9أَمَّا أَعْضَاؤُهُ الدَّاخِلِيَّةُ وَأَكَارِعُهُ فَيَغْسِلُهَا الْمُقَرِّبُ بِمَاءٍ، ثُمَّ يُحْرِقُهَا الْكَاهِنُ جَمِيعاً عَلَى الْمَذْبَحِ، فَتَكُونُ مُحْرَقَةً، وَقُودَ رِضًى تَسُرُّ الرَّبَّ.

10وَإِنْ كَانَتْ مُحْرَقَتُهُ مِنَ الْمَاشِيَةِ: الضَّأْنِ أَوِ الْمَعَزِ، فَلْتَكُنْ ذَكَراً سَلِيماً. 11وَعَلَى الْمُقَرِّبِ أَنْ يَذْبَحَهُ فِي حَضْرَةِ الرَّبِّ، عِنْدَ الْجَانِبِ الشَّمَالِيِّ لِلْمَذْبَحِ، ثُمَّ يَقُومُ أَبْنَاءُ هَرُونَ الْكَهَنَةُ بِرَشِّ دَمِهِ عَلَى جَوَانِبِ الْمَذْبَحِ. 12وَيُقَطِّعُهُ الْمُقَرِّبُ إِلَى أَجْزَاءَ مَعَ رَأْسِهِ وَشَحْمِهِ، فَيُرَتِّبُهَا الْكَاهِنُ فَوْقَ حَطَبِ نَارِ الْمَذْبَحِ، 13وَأَمَّا الأَعْضَاءُ الدَّاخِلِيَّةُ وَالأَكَارِعُ فَيَغْسِلُهَا بِمَاءٍ، ثُمَّ يُحْرِقُهَا الْكَاهِنُ جَمِيعَهَا فَتَكُونُ مُحْرَقَةً وَوَقُودَ رِضًى تَسُرُّ الرَّبَّ.

14وَإِنْ كَانَتْ تَقْدِمَتُهُ لِلرَّبِّ مُحْرَقَةً مِنَ الطَّيْرِ، فَلْتَكُنْ مِنَ الْيَمَامِ أَوْ مِنْ أَفْرَاخِ الْحَمَامِ. 15فَيُقَدِّمُ الْكَاهِنُ الْقُرْبَانَ إِلَى الْمَذْبَحِ وَيَحُزُّ رَأْسَهُ وَيُصَفِّي دَمَهُ عَلَى حَائِطِ الْمَذْبَحِ بَعْدَ إِيْقَادِ النَّارِ عَلَى الْمَذْبَحِ، 16وَيَنْزِعُ حَوْصَلَتَهُ بِكُلِّ مَا بِها وَيَطْرَحُهُمَا إِلَى جَانِبِ الْمَذْبَحِ الشَّرْقِيِّ، حَيْثُ يُجْمَعُ الرَّمَادُ. 17وَيَشُقُّ الْكَاهِنُ الطَّائِرَ مِنْ بَيْنِ جَنَاحَيْهِ، مِنْ غَيْرِ أَنْ يَفْصِلَهُ إِلَى قِطْعَتَيْنِ، وَيُحْرِقُهُ عَلَى الْمَذْبَحِ فَوْقَ حَطَبِ النَّارِ، فَيَكُونُ مُحْرَقَةً وَوَقُودَ رِضًى تَسُرُّ الرَّبَّ.