योनाह 3 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

योनाह 3:1-10

योनाह नीनवेह जाता है

1तब याहवेह का वचन योनाह के पास दूसरी बार पहुंचा: 2“उठो और उस बड़े शहर नीनवेह को जाओ और वहां उस संदेश की घोषणा करो जिसे मैं तुम्हें देनेवाला हूं.”

3तब योनाह उठकर याहवेह की आज्ञा के अनुसार नीनवेह को गया. नीनवेह एक बड़ा शहर3:3 बड़ा शहर मूल में परमेश्वर के लिए महान अर्थात अतिमानवीय था; जिससे होकर जाने में तीन दिन लग जाते थे. 4योनाह ने नगर में प्रवेश किया और अपने पहले दिन की यात्रा में यह घोषणा करते गया, “अब से चालीस दिन के बाद नीनवेह को ध्वस्त कर दिया जाएगा.” 5नीनवेह के लोगों ने परमेश्वर में विश्वास किया. उपवास रखने की घोषणा की गई और साधारण से लेकर बड़े, सब लोगों ने टाट (शोक-वस्त्र) पहना.

6जब नीनवेह के राजा तक योनाह का समाचार पहुंचा, तो वह अपने सिंहासन से उठा, और अपने राजसी वस्त्र को उतारकर टाट को ओढ़ लिया और जाकर राख में बैठ गया. 7उसने नीनवेह में यह घोषणा करवायी:

“राजा और सामन्तों के फैसले के अनुसार:

“कोई भी मनुष्य या पशु, गाय-बैल या भेड़-बकरी कुछ भी न खाय; उन्हें कुछ भी खाने या पीने न दिया जाय. 8पर मनुष्य और पशु टाट ओढ़ें. हर एक जन तुरंत परमेश्वर की दोहाई दे और वे अपनी बुरे कामों तथा हिंसा के कार्यों को छोड़ दें. 9संभव है कि परमेश्वर अपने निर्णय को बदल दें और दया करके हम पर क्रोध न करें और हम नाश होने से बच जाएं.”

10जब परमेश्वर ने उनके काम को देखा कि कैसे वे अपने बुरे कार्यों से फिर गये हैं, तो उन्होंने अपनी इच्छा बदल दी और उनके ऊपर वह विनाश नहीं लाया जिसका निर्णय उन्होंने लिया था.

New Arabic Version

يونان 3:1-10

يونان يتوجه إلى نينوى

1وَأَمَرَ الرَّبُّ يُونَانَ ثَانِيَةً: 2«قُمِ امْضِ إِلَى نِينَوَى الْمَدِينَةِ الْعَظِيمَةِ، وَأَعْلِنْ لَهُمُ الرِّسَالَةَ الَّتِي أُبَلِّغُكَ إِيَّاهَا».

3فَهَبَّ يُونَانُ وَتَوَجَّهَ إِلَى نِينَوَى بِمُوجِبِ أَمْرِ الرَّبِّ. وَكَانَتْ نِينَوَى مَدِينَةً بَالِغَةَ الْعَظَمَةِ يَسْتَغْرِقُ اجْتِيَازُهَا ثَلاثَةَ أَيَّامٍ. 4فَدَخَلَ يُونَانُ الْمَدِينَةَ وَاجْتَازَ فِيهَا مَسِيرَةَ يَوْمٍ وَاحِدٍ، وَابْتَدَأَ يُنَادِي قَائِلاً: «بَعْدَ أَرْبَعِينَ يَوْماً تَتَدَمَّرُ الْمَدِينَةُ».

5فَآمَنَ شَعْبُ نِينَوَى بِالرَّبِّ، وَأَعْلَنُوا الصِّيَامَ وَارْتَدُوا الْمُسُوحَ مِنْ كَبِيرِهِمْ إِلَى صَغِيرِهِم. 6ثُمَّ بَلَغَ إِنْذَارُ النَّبِيِّ مَلِكَ نِينَوَى، فَقَامَ عَنْ عَرْشِهِ وَخَلَعَ عَنْهُ حُلَّتَهُ، وَارْتَدَى الْمِسْحَ وَجَلَسَ عَلَى الرَّمَادِ. 7وَأَذَاعَ فِي كُلِّ نِينَوَى مَرْسُوماً وَرَدَ فِيهِ: «بِأَمْرٍ مِنَ الْمَلِكِ وَنُبَلائِهِ، يَمْتَنِعُ النَّاسُ عَنِ الأَكْلِ وَالشُّرْبِ، وَكَذَلِكَ الْبَهَائِمُ وَالْغَنَمُ وَالْبَقَرُ، لَا تَرْعَ وَلا تَشْرَبْ مَاءً. 8وَعَلَى جَمِيعِ النَّاسِ وَالْبَهَائِمِ أَنْ يَرْتَدُوا الْمُسُوحَ، مُتَضَرِّعِينَ إِلَى اللهِ تَائِبِينَ عَنْ طُرُقِهِمِ الشِّرِّيرَةِ وَعَمَّا ارْتَكَبُوهُ مِنْ ظُلْمٍ. 9لَعَلَّ الرَّبَّ يَرْجِعُ فَيَعْدِلُ عَنِ احْتِدَامِ سَخَطِهِ فَلا نَهْلِكَ».

10فَلَمَّا رَأَى اللهُ أَعْمَالَهُمْ وَتَوْبَتَهُمْ عَنْ طُرُقِهِمِ الآثِمَةِ عَدَلَ عَنِ الْعِقَابِ الَّذِي كَانَ مُزْمِعاً أَنْ يُوْقِعَهُ بِهِمْ وَعَفَا عَنْهُمْ.