मत्तियाह 26 – HCV & CCBT

Hindi Contemporary Version

मत्तियाह 26:1-75

येशु की हत्या का षड़्‍यंत्र

1इस रहस्य के खुलने के बाद येशु ने शिष्यों को देखकर कहा, 2“यह तो तुम्हें मालूम ही है कि दो दिन बाद फ़सह26:2 फ़सह यहूदियों का सबसे बड़ा त्योहार जब मिस्र में उनकी 430 साल की ग़ुलामी से उनके छुटकारे को वे स्मरण करते हैं उत्सव है. इस समय मनुष्य के पुत्र को क्रूस पर चढ़ाए जाने के लिए सौंप दिया जाएगा.”

3दूसरी ओर प्रधान पुरोहित और वरिष्ठ नागरिक कायाफ़स नामक महापुरोहित के घर के आंगन में इकट्ठा हुए. 4उन्होंने मिलकर येशु को छलपूर्वक पकड़कर उनकी हत्या कर देने का विचार किया. 5वे यह विचार भी कर रहे थे: “यह फ़सह उत्सव के अवसर पर न किया जाए—कहीं इससे लोगों में बलवा न भड़क उठे.”

बैथनियाह नगर में येशु का अभ्यंजन

6जब येशु बैथनियाह गांव में शिमओन के घर पर थे—वही शिमओन, जिसे पहले कोढ़ रोग हुआ था, 7एक स्त्री उनके पास संगमरमर के बर्तन में कीमती इत्र लेकर आई. उसे उसने भोजन के लिए बैठे येशु के सिर पर उंडेल दिया.

8यह देख शिष्य गुस्सा हो कहने लगे, “यह फिज़ूलखर्ची किस लिए? 9यह इत्र तो ऊंचे दाम पर बिक सकता था और प्राप्‍त धनराशि गरीबों में बांटी जा सकती थी.”

10इस विषय को जानकर येशु ने उन्हें झिड़कते हुए कहा, “क्यों सता रहे हो इस स्त्री को? इसने मेरे हित में एक सराहनीय काम किया है. 11निर्धन तुम्हारे साथ हमेशा रहेंगे किंतु मैं तुम्हारे साथ हमेशा नहीं रहूंगा. 12मुझे मेरे अंतिम संस्कार के लिए तैयार करने के लिए इसने यह इत्र मेरे शरीर पर उंडेला है. 13सच तो यह है कि सारे जगत में जहां कहीं यह सुसमाचार प्रचार किया जाएगा, इस स्त्री के इस कार्य का वर्णन भी इसकी याद में किया जाएगा.”

यहूदाह का धोखा

14तब कारियोतवासी यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रधान पुरोहितों के पास गया 15और उनसे विचार-विमर्श करने लगा, “यदि मैं येशु को पकड़वा दूं तो आप मुझे क्या देंगे?” उन्होंने उसे गिन कर चांदी के तीस सिक्‍के दे दिए. 16उस समय से वह येशु को पकड़वाने के लिए सही अवसर की ताक में रहने लगा.

फ़सह भोज की तैयारी

17अखमीरी रोटी के उत्सव26:17 अखमीरी रोटी के उत्सव यह उत्सव सात दिनों तक चलता है. (निसान महीना तारीख 15–22), फ़सह पर्व से शुरू होकर सात दिनों के दौरान यहूदी लोग बिना खमीर की रोटी खाते हैं. के पहले दिन शिष्यों ने येशु के पास आकर पूछा, “हम आपके लिए फ़सह भोज की तैयारी कहां करें? आप क्या चाहते हैं?”

18येशु ने उन्हें निर्देश दिया, “नगर में एक व्यक्ति विशेष के पास जाना और उससे कहना, ‘गुरुवर ने कहा है, मेरा समय पास है. मुझे अपने शिष्यों के साथ आपके घर में फ़सह उत्सव मनाना है.’ ” 19शिष्यों ने वैसा ही किया, जैसा येशु ने निर्देश दिया था और उन्होंने फ़सह भोज तैयार किया.

20संध्या समय येशु अपने बारह शिष्यों के साथ बैठे हुए थे. 21जब वे भोजन कर रहे थे येशु ने उनसे कहा, “मैं तुम पर एक सच प्रकट कर रहा हूं: तुम्हीं में एक है, जो मेरे साथ धोखा करेगा.”

22बहुत उदास मन से हर एक शिष्य येशु से पूछने लगा, “प्रभु, वह मैं तो नहीं हूं?”

23येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “जिसने मेरे साथ कटोरे में अपना कौर डुबोया था, वही है, जो मेरे साथ धोखा करेगा. 24मनुष्य के पुत्र को तो जैसा कि उसके विषय में पवित्र शास्त्र में लिखा है, जाना ही है; किंतु धिक्कार है उस व्यक्ति पर, जो मनुष्य के पुत्र के साथ धोखा करेगा. उस व्यक्ति के लिए अच्छा तो यही होता कि उसका जन्म ही न होता.”

25यहूदाह ने, जो येशु के साथ धोखा कर रहा था, उनसे प्रश्न किया, “रब्बी, वह मैं तो नहीं हूं न?”26:25 अथवा: यह तुमने स्वयं कह दिया.

येशु ने उसे उत्तर दिया, “यह तुमने स्वयं ही कह दिया है.”

26जब वे भोजन के लिए बैठे, येशु ने रोटी ली, उसके लिए आशीष विनती की, उसे तोड़ी और शिष्यों को देते हुए कहा, “यह लो, खाओ; यह मेरा शरीर है.”

27तब येशु ने प्याला लिया, उसके लिए धन्यवाद दिया तथा शिष्यों को देते हुए कहा, “तुम सब इसमें से पियो. 28यह वाचा का26:28 कुछ पाण्डुलिपियों मूल हस्तलेखों में: नई वाचा का. मेरा लहू है जो अनेकों की पाप क्षमा के लिए उंडेला जा रहा है. 29मैं यह बताना चाहता हूं कि मैं दाख का रस उस दिन तक नहीं पिऊंगा जब तक मैं अपने पिता के राज्य में तुम्हारे साथ दाखरस दोबारा नहीं पिऊं.”

30एक भक्ति गीत गाने के बाद वे ज़ैतून पर्वत पर चले गए.

शिष्यों की भावी निर्बलता की भविष्यवाणी

31येशु ने शिष्यों से कहा, “आज रात तुम सभी मेरा साथ छोड़कर चले जाओगे, जैसा कि इस संबंध में पवित्र शास्त्र का लेख है:

“ ‘मैं चरवाहे का संहार करूंगा और,

झुंड की सभी भेड़ें तितर-बितर हो जाएंगी.’26:31 ज़कर 13:7

32हां, पुनर्जीवित किए जाने के बाद मैं तुमसे पहले गलील प्रदेश पहुंच जाऊंगा.”

33किंतु पेतरॉस ने येशु से कहा, “सभी शिष्य आपका साथ छोड़कर जाएं तो जाएं किंतु मैं आपका साथ कभी न छोड़ूंगा.”

34येशु ने उनसे कहा, “सच्चाई तो यह है कि आज ही रात में, इसके पहले कि मुर्ग बांग दे, तुम मुझे तीन बार नकार चुके होंगे.”

35पेतरॉस ने दोबारा उनसे कहा, “मुझे आपके साथ यदि मृत्यु को भी गले लगाना पड़े तो भी मैं आपको नहीं नकारूंगा.” अन्य सभी शिष्यों ने यही दोहराया.

गेतसेमनी बगीचे में येशु की अवर्णनीय वेदना

36तब येशु उनके साथ गेतसेमनी नामक स्थान पर पहुंचे. उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “तुम यहीं बैठो जब तक मैं वहां जाकर प्रार्थना करता हूं.” 37फिर वह पेतरॉस और ज़ेबेदियॉस के दोनों पुत्रों को अपने साथ ले आगे चले गए. वहां येशु अत्यंत उदास और व्याकुल होने लगे. 38उन्होंने शिष्यों से कहा, “मेरे प्राण इतने अधिक उदास हैं, मानो मेरी मृत्यु हो रही हो. मेरे साथ तुम भी जागते रहो.”

39तब येशु उनसे थोड़ी ही दूर जा मुख के बल गिरकर प्रार्थना करने लगे. उन्होंने परमेश्वर से निवेदन किया, “मेरे पिता, यदि संभव हो तो यह प्याला मुझसे टल जाए; फिर भी मेरी नहीं परंतु आपकी इच्छा के अनुरूप हो.”

40जब वह अपने शिष्यों के पास लौटे तो उन्हें सोया हुआ देख उन्होंने पेतरॉस से कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ एक घंटा भी सजग न रह सके! 41सजग रहो, प्रार्थना करते रहो, ऐसा न हो कि तुम परीक्षा में पड़ जाओ. हां, निःसंदेह आत्मा तो तैयार है किंतु शरीर दुर्बल.”

42तब येशु ने दूसरी बार जाकर प्रार्थना की, “मेरे पिता, यदि यह प्याला मेरे पिए बिना मुझसे टल नहीं सकता तो आप ही की इच्छा पूरी हो.”

43वह दोबारा लौटकर आए तो देखा कि शिष्य सोए हुए हैं—क्योंकि उनकी पलकें बोझिल थी. 44एक बार फिर वह उन्हें छोड़ आगे चले गए और तीसरी बार प्रार्थना की और उन्होंने प्रार्थना में वही सब दोहराया.

45तब वह शिष्यों के पास लौटे और उनसे कहा, “क्या तुम अभी भी सो रहे और आराम कर रहे हो? बहुत हो गया! देखो! आ गया है वह क्षण! मनुष्य का पुत्र पापियों के हाथों पकड़वाया जा रहा है. 46उठो! यहां से चलें. देखो, जो मुझे पकड़वाने पर है, वह आ गया!”

येशु का बंदी बनाया जाना

47येशु अपना कथन समाप्‍त भी न कर पाए थे कि यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, वहां आ पहुंचा. उसके साथ एक बड़ी भीड़ थी, जो तलवारें और लाठियां लिए हुए थी. ये सब प्रधान पुरोहितों और पुरनियों की ओर से भेजे गए थे. 48येशु के विश्वासघाती ने उन्हें यह संकेत दिया था: “मैं जिसे चूमूं, वही होगा वह. उसे ही पकड़ लेना.” 49वहां पहुंचते ही यहूदाह सीधे मसीह येशु के पास गया और उनसे कहा, “प्रणाम, रब्बी!” और उन्हें चूम लिया.

50येशु ने यहूदाह से कहा,

“मेरे मित्र, जिस काम के लिए आए हो, उसे पूरा कर लो.” उन्होंने आकर येशु को पकड़ लिया. 51येशु के शिष्यों में से एक ने तलवार खींची और महापुरोहित के दास पर चला दी जिससे उसका कान कट गया.

52येशु ने उस शिष्य से कहा, “अपनी तलवार को म्यान में रखो! जो तलवार उठाते हैं, वे तलवार से ही नाश किए जाएंगे. 53क्या तुम यह तो सोच रहे कि मैं अपने पिता से विनती नहीं कर सकता और वह मेरे लिए स्वर्गदूतों के बारह या उससे अधिक लेगिओन (बड़ी सेना) नहीं भेज सकते? 54फिर भला पवित्र शास्त्र के लेख कैसे पूरे होंगे, जिनमें लिखा है कि यह सब इसी प्रकार होना अवश्य है?”

55तब येशु ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा, “क्या तुम्हें मुझे पकड़ने के लिए तलवारें और लाठियां लेकर आने की ज़रूरत थी, जैसे किसी डाकू को पकड़ने के लिए होती है? मैं तो प्रतिदिन मंदिर में बैठकर शिक्षा दिया करता था! तब तुमने मुझे नहीं पकड़ा! 56यह सब इसलिये हुआ है कि भविष्यद्वक्ताओं के लेख पूरे हों.” इस समय सभी शिष्य उन्हें छोड़कर भाग चुके थे.

येशु महासभा के सामने

57जिन्होंने येशु को पकड़ा था वे उन्हें महापुरोहित कायाफ़स के यहां ले गए, जहां शास्त्री तथा पुरनिये इकट्ठा थे. 58पेतरॉस कुछ दूरी पर येशु के पीछे-पीछे चलते हुए महापुरोहित के आंगन में आ पहुंचे और वहां वह प्रहरियों के साथ बैठ गए कि देखें आगे क्या-क्या होता है.

59मसीह येशु को मृत्यु दंड देने की इच्छा लिए हुए प्रधान पुरोहित तथा पूरी महासभा मसीह येशु के विरुद्ध झूठे गवाह खोजने का यत्न कर रही थी, 60किंतु इसमें वे विफल ही रहे. यद्यपि अनेक झूठे गवाह सामने आए, किंतु मृत्यु दंड के लिए आवश्यक दो सहमत गवाह उन्हें फिर भी न मिले.

आखिर दो गवाह सामने आए 61जिन्होंने कहा, “यह व्यक्ति कहता था, ‘मैं परमेश्वर के मंदिर को नाश करके उसे तीन दिन में दोबारा खड़ा करने में समर्थ हूं.’ ”

62तब महापुरोहित खड़े हुए तथा मसीह येशु से पूछा, “क्या तुम्हें अपने बचाव में कुछ नहीं कहना है? ये सब तुम्हारे विरुद्ध क्या-क्या गवाही दे रहे हैं!” 63येशु मौन ही रहे.

तब महापुरोहित ने येशु से कहा, “मैं तुम्हें जीवित परमेश्वर की शपथ देता हूं कि तुम हमें बताओ, क्या तुम ही मसीह, परमेश्वर के पुत्र हो?” 64येशु ने उसे उत्तर दिया, “आपने यह स्वयं कह दिया है, फिर भी, मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि इसके बाद आप मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दायीं ओर बैठे तथा आकाश के बादलों पर आता हुआ देखेंगे.”26:64 स्तोत्र 110:1; दानि 7:13

65यह सुनना था कि महापुरोहित ने अपने वस्त्र फाड़ डाले और कहा, “परमेश्वर-निंदा की है इसने! क्या अब भी गवाहों की ज़रूरत है? आप सभी ने स्वयं यह परमेश्वर-निंदा सुनी है. 66अब क्या विचार है आपका?”

सभी परिषद ने उत्तर दिया, “यह मृत्यु दंड के योग्य है.”

67तब उन्होंने येशु के मुख पर थूका, उन पर घूंसों से प्रहार किया, कुछ ने उन्हें थप्पड़ भी मारे और फिर उनसे प्रश्न किया, 68“मसीह! भविष्यवाणी कीजिए, कि आपको किसने मारा है?”

पेतरॉस का नकारना

69पेतरॉस आंगन में बैठे हुए थे. एक दासी वहां से निकली और पेतरॉस से पूछने लगी, “तुम भी तो उस गलीलवासी येशु के साथ थे न?”

70किंतु पेतरॉस ने सबके सामने यह कहते हुए इस सच को नकार दिया: “क्या कह रही हो? मैं समझा नहीं!”

71जब पेतरॉस द्वार से बाहर निकले, एक दूसरी दासी ने पेतरॉस को देख वहां उपस्थित लोगों से कहा, “यह व्यक्ति नाज़रेथ के येशु के साथ था.”

72एक बार फिर पेतरॉस ने शपथ खाकर नकारते हुए कहा, “मैं उस व्यक्ति को नहीं जानता.”

73कुछ समय बाद एक व्यक्ति ने पेतरॉस के पास आकर कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं कि तुम भी उनमें से एक हो. तुम्हारी भाषा-शैली से यह स्पष्ट हो रहा है.”

74पेतरॉस अपशब्द कहते हुए शपथ खाकर कहने लगे, “मैं उस व्यक्ति को नहीं जानता!”

उनका यह कहना था कि मुर्ग ने बांग दी. 75पेतरॉस को येशु की वह कही हुई बात याद आई, “इसके पूर्व कि मुर्ग बांग दे तुम मुझे तीन बार नकार चुके होगे.” पेतरॉस बाहर गए और फूट-फूटकर रोने लगे.

Chinese Contemporary Bible 2023 (Traditional)

馬太福音 26:1-75

謀害耶穌

1耶穌講完了這番話後,對門徒說: 2「你們知道,兩天後就是逾越節,到時人子會被出賣,被釘在十字架上。」 3那時,祭司長和百姓的長老正聚集在大祭司該亞法的府裡, 4策劃暗中逮捕、殺害耶穌。 5但他們認為在節日期間不宜下手,因為可能會在百姓中引起騷亂。

耶穌受膏

6當耶穌在伯大尼患過痲瘋病的西門家裡時, 7有個女人趁著祂坐席的時候,把一玉瓶珍貴的香膏倒在祂頭上。

8門徒看見後,生氣地說:「何必這樣浪費? 9這瓶香膏能賣很多錢來賙濟窮人。」

10耶穌知道他們的心思,便說:「何必為難這女子?她在我身上做的是一件美事。 11因為你們身邊總會有窮人,可是你們身邊不會總有我。 12她把香膏澆在我身上是為我的安葬做準備。 13我實在告訴你們,無論福音傳到世界哪個角落,人們都會傳揚這女人的事蹟,記念她。」

猶大出賣耶穌

14後來,十二使徒中的加略猶大去見祭司長, 15說:「如果我把耶穌交給你們,你們肯出多少錢?」他們就給了他三十塊銀子。 16從那時起,猶大就伺機出賣耶穌。

最後的晚餐

17除酵節的第一天,門徒來問耶穌:「你想讓我們在哪裡為你預備逾越節吃的晚餐呢?」

18耶穌說:「你們進城去,到某人那裡對他說,『老師說祂的時候快到了,祂要與門徒在你家中過逾越節。』」 19門徒照耶穌的吩咐預備了逾越節的晚餐。

20傍晚,耶穌和十二使徒吃晚餐。 21席間,耶穌說:「我實在告訴你們,你們中間有一個人要出賣我。」

22他們都非常憂愁,相繼追問耶穌,說:「主啊,肯定不是我吧?」

23祂說:「那和我一同在碗裡蘸餅吃的就是要出賣我的人。 24人子要離世了,正如聖經對祂的記載,但那出賣人子的人有禍了,他還不如不生在這世上!」

25出賣耶穌的猶大問祂:「老師,是我嗎?」

耶穌說:「你自己說了。」

26他們吃的時候,耶穌拿起餅來,祝謝後,掰開分給門徒,說:「拿去吃吧,這是我的身體。」

27接著祂又拿起杯來,祝謝後遞給他們,說:「你們都喝吧, 28這是我為萬人所流的立約之血,為了使罪得到赦免。 29我告訴你們,從今天起,一直到我在我父的國與你們共飲新酒的那一天之前,我不會再喝這葡萄酒。」 30他們唱完聖詩,就出門去了橄欖山。

預言彼得不認主

31耶穌對門徒說:「今天晚上,你們都要背棄我。因為聖經上說,『我要擊打牧人,羊群將四散。』26·31 撒迦利亞書13·7 32但我復活後,要先你們一步去加利利。」

33彼得說:「即使所有的人都背棄你,我也永遠不會背棄你!」

34耶穌說:「我實在告訴你,今夜雞叫以前,你會三次不認我。」

35彼得說:「就算我必須跟你一起死,我也不會不認你!」其他門徒也都這樣說。

在客西馬尼禱告

36耶穌和門徒到了一個叫客西馬尼的地方,祂對門徒說:「你們坐在這裡,我到那邊去禱告。」 37祂帶了彼得西庇太的兩個兒子一起去。祂感到憂傷和痛苦, 38就對他們說:「我心裡非常憂傷,幾乎要死,你們留在這裡跟我一起警醒。」

39祂稍往前走,俯伏在地上禱告:「我父啊!如果可以,求你撤去此杯。然而,願你的旨意成就,而非我的意願。」

40耶穌回到三個門徒那裡,見他們都睡著了,就對彼得說:「難道你們不能跟我一同警醒半個時辰嗎? 41你們要警醒禱告,免得陷入誘惑。你們的心靈雖然願意,肉體卻很軟弱。」

42祂第二次去禱告說:「我父啊!如果此杯不能撤去,必須我喝,願你的旨意成就。」 43祂回來時見他們又睡著了,因為他們睏得眼皮發沉。 44耶穌再次離開他們,第三次去禱告,說了同樣的話。

45然後,祂回到門徒那裡,對他們說:「你們還在睡覺,還在休息嗎?看啊!時候到了,人子要被交在罪人手中了。 46起來,我們走吧。看啊,出賣我的人已經來了!」

耶穌被捕

47耶穌還在說話的時候,十二使徒中的猶大來了,同來的還有祭司長和百姓的長老派來的一大群拿著刀棍的人。 48出賣耶穌的猶大預先和他們定了暗號,說:「我親吻誰,誰就是耶穌,你們把祂抓起來。」 49猶大隨即走到耶穌跟前,說:「老師,你好!」然後親吻耶穌。

50耶穌對他說:「朋友,你要做的事,動手吧。」於是那些人上前,下手捉拿耶穌。 51耶穌的跟隨者中有人伸手拔出刀朝大祭司的奴僕砍去,削掉了他一隻耳朵。

52耶穌對他說:「收刀入鞘吧!因為動刀的必死在刀下。 53難道你不知道,我可以請求我父馬上派超過十二營的天使來保護我嗎? 54我若這樣做,聖經上有關此事必這樣發生的話又怎能應驗呢?」

55那時,耶穌對眾人說:「你們像對付強盜一樣拿著刀棍來抓我嗎?我天天在聖殿裡教導人,你們沒有抓我。 56不過這一切事的發生,是要應驗先知書上的話。」那時,所有門徒都丟下祂逃走了。

大祭司審問耶穌

57捉拿耶穌的人把祂押到大祭司該亞法那裡。律法教師和長老已聚集在那裡。 58彼得遠遠地跟著耶穌,一直進到大祭司的院子裡。他坐在衛兵當中,想知道事情的結果。

59祭司長和全公會的人正在尋找假證據來控告耶穌,好定祂死罪。 60很多假證人誣告祂,但都找不到真憑實據。最後有兩個人上前說:

61「這個人曾經說過,『我能拆毀上帝的殿,三天內把它重建起來。』」

62大祭司站起來質問耶穌:「你不回答嗎?這些人作證控告你的是什麼呢?」 63耶穌還是沉默不語。

大祭司又對祂說:「我奉永活上帝的名命令你起誓告訴我們,你是不是上帝的兒子基督?」

64耶穌說:「如你所言。但我告訴你們,將來你們要看見人子坐在大能者的右邊,駕著天上的雲降臨。」

65大祭司撕裂衣服,說:「祂褻瀆了上帝!我們還需要什麼證人呢?你們現在親耳聽見了祂說褻瀆的話, 66你們看怎麼辦?」

他們回應說:「祂該死!」

67他們就吐唾沫在祂臉上,揮拳打祂。還有人一邊打祂耳光,一邊說: 68「基督啊!給我們說預言吧,是誰在打你?」

彼得三次不認主

69當時,彼得還坐在外面的院子裡,有一個婢女走過來對他說:「你也跟那個加利利人耶穌是一夥的。」

70彼得卻當眾否認:「我不知道你在說什麼。」

71正當他走到門口要離開時,另一個婢女看見他,就對旁邊的人說:「這個人跟拿撒勒人耶穌是一夥的!」

72彼得再次否認,並發誓說:「我不認識那個人。」 73過了一會兒,旁邊站著的人過來對彼得說:「你肯定也跟他們是一夥的,聽你的口音就知道了。」

74彼得又賭咒又發誓,說:「我不認識那個人!」就在這時候,雞叫了。 75彼得想起耶穌說的話:「在雞叫以前,你會三次不認我。」他就出去,失聲痛哭。