प्रकाशन 6 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

प्रकाशन 6:1-17

पहली मोहर

1तब मैंने मेमने को सात मोहरों में से एक को तोड़ते देखा तथा उन चार प्राणियों में से एक को गर्जन से शब्द में यह कहते सुना: “आओ!” 2तभी वहां मुझे एक घोड़ा दिखाई दिया, जो सफ़ेद रंग का था. उसके हाथ में, जो घोड़े पर बैठा हुआ था, एक धनुष था. उसे एक मुकुट पहनाया गया और वह एक विजेता के समान विजय प्राप्‍त करने निकल पड़ा.

3जब उसने दूसरी मोहर तोड़ी तो मैंने दूसरे प्राणी को यह कहते सुना: “यहां आओ!” 4तब मैंने वहां एक अन्य घोड़े को निकलते हुए देखा, जो आग के समान लाल रंग का था. उसे, जो उस पर बैठा हुआ था, एक बड़ी तलवार दी गई थी तथा उसे पृथ्वी पर से शांति उठा लेने की आज्ञा दी गई कि लोग एक दूसरे का वध करें.

5जब उसने तीसरी मोहर तोड़ी तो मैंने तीसरे प्राणी को यह कहते हुए सुना: “यहां आओ!” तब मुझे वहां एक घोड़ा दिखाई दिया, जो काले रंग का था. उसके हाथ में, जो उस पर बैठा हुआ था, एक तराज़ू था. 6तब मैंने मानो उन चारों प्राणियों के बीच से यह शब्द सुना, “एक दिन की मज़दूरी6:6 दिन की मज़दूरी मूल में एक दीनार का एक किलो गेहूं, एक दिन की मज़दूरी का तीन किलो जौ, किंतु तेल और दाखरस की हानि न होने देना.”

7जब उसने चौथी मोहर खोली, तब मैंने चौथे प्राणी को यह कहते हुए सुना “यहां आओ!” 8तब मुझे वहां एक घोड़ा दिखाई दिया, जो गंदले हरे रंग का था. जो उस पर बैठा था, उसका नाम था मृत्यु. अधोलोक उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था. उसे पृथ्वी के एक चौथाई भाग को तलवार, अकाल, महामारी तथा जंगली पशुओं द्वारा नाश करने का अधिकार दिया गया.

9जब उसने पांचवीं मोहर तोड़ी तो मैंने वेदी के नीचे उनकी आत्माओं को देखा, जिनका परमेश्वर के वचन के कारण तथा स्वयं उनमें दी गई गवाही के कारण वध कर दिया गया था. 10वे आत्माएं ऊंचे शब्द में पुकार उठीं, “कब तक, सबसे महान प्रभु! सच पर चलनेवाले और पवित्र! आप न्याय शुरू करने के लिए कब तक ठहरे रहेंगे और पृथ्वी पर रहनेवालों से हमारे लहू का बदला कब तक न लेंगे?” 11उनमें से प्रत्येक को सफ़ेद वस्त्र देकर उनसे कहा गया कि वे कुछ और प्रतीक्षा करें, जब तक उनके उन सहकर्मियों और भाई बहनों की तय की गई संख्या पूरी न हो जाए, जिनकी हत्या उन्हीं की तरह की जाएगी.

12मैंने उसे छठी मोहर तोड़ते हुए देखा. तभी एक भीषण भूकंप आया. सूर्य ऐसा काला पड़ गया, जैसे बालों से बनाया हुआ कंबल और पूरा चंद्रमा ऐसा लाल हो गया जैसे लहू. 13तारे पृथ्वी पर ऐसे आ गिरे जैसे आंधी आने पर कच्चे अंजीर भूमि पर आ गिरते हैं. 14आकाश फटकर ऐसा हो गया जैसे चमड़े का पत्र लिपट जाता है. हर एक पहाड़ और द्वीप अपने स्थान से हटा दिये गये.

15तब पृथ्वी के राजा, महापुरुष, सेनानायक, सम्पन्‍न तथा बलवंत, सभी दास तथा स्वतंत्र व्यक्ति गुफाओं तथा पहाड़ों के पत्थरों में जा छिपे, 16वे पहाड़ों तथा पत्थरों से कहने लगे, “हम पर आ गिरो और हमें मेमने के क्रोध से बचा लो तथा उनकी उपस्थिति से छिपा लो,6:16 होशे 10:8 जो सिंहासन पर बैठे हैं, 17क्योंकि उनके क्रोध का भयानक दिन आ पहुंचा है और कौन इसे सह सकेगा?”

New Arabic Version

رؤيا يوحنا 6:1-17

الختوم

1وَرَأَيْتُ الْحَمَلَ وَهُوَ يَفُكُّ أَوَّلَ الْخُتُومِ السَّبْعَةِ، وَسَمِعْتُ وَاحِداً مِنَ الْكَائِنَاتِ الْحَيَّةِ الأَرْبَعَةِ يُنَادِي بِصَوْتٍ كَالرَّعْدِ: «تَعَالَ!» 2فَنَظَرْتُ وَإذَا أَمَامِي حِصَانٌ أَبْيَضُ، يَحْمِلُ رَاكِبُهُ قَوْساً، وَعَلَى رَأْسِهِ إِكْلِيلٌ، وَقَدْ خَرَجَ مُنْتَصِراً وَلِكَيْ يَنْتَصِرَ.

3ثُمَّ فَكَّ الْحَمَلُ الْخَتْمَ الثَّانِي، فَسَمِعْتُ الْكَائِنَ الثَّانِي يُنَادِي: «تَعَالَ!» 4فَخَرَجَ حِصَانٌ أَحْمَرُ، أُعْطِيَ رَاكِبُهُ سَيْفاً عَظِيماً، وَمُنِحَ سُلْطَةَ نَزْعِ السَّلامِ مِنَ الأَرْضِ وَجَعْلِ النَّاسِ يَقْتُلُونَ بَعْضُهُمْ بَعْضاً.

5وَعِنْدَمَا فَكَّ الْحَمَلُ الْخَتْمَ الثَّالِثَ سَمِعْتُ الْكَائِنَ الثَّالِثَ يُنَادِي: «تَعَالَ!» فَرَأَيْتُ حِصَاناً أَسْوَدَ، يَحْمِلُ رَاكِبُهُ مِيزَاناً بِيَدِهِ. 6وَسَمِعْتُ صَوْتاً مِنْ بَيْنِ الْكَائِنَاتِ الْحَيَّةِ الأَرْبَعَةِ يَقُولُ: «كَيْلَةُ قَمْحٍ بِدِينَارٍ، وَثَلاثُ كَيْلاتِ شَعِيرٍ بِدِينَارٍ. أَمَّا الزَّيْتُ وَالْخَمْرُ فَلا تَمَسَّهُمَا».

7ثُمَّ فَكَّ الْحَمَلُ الْخَتْمَ الرَّابِعَ فَسَمِعْتُ الْكَائِنَ الرَّابِعَ يُنَادِي: «تَعَالَ!» 8فَرَأَيْتُ حِصَاناً لَوْنُهُ أَخْضَرُ «بَاهِتُ اللَّوْنِ»، اسْمُ رَاكِبِهِ «الْمَوْتُ» يَتْبَعُهُ حِصَانٌ آخَرُ اسْمُ رَاكِبِهِ «الْهَاوِيَةُ»، وَأُعْطِيَا سُلْطَةَ إِبَادَةِ رُبْعِ الأَرْضِ بِالسَّيْفِ وَالْجُوعِ وَالْوَبَاءِ وَوُحُوشِ الأَرْضِ الضَّارِيَةِ!

9ثُمَّ فَكَّ الْحَمَلُ الْخَتْمَ الْخَامِسَ، فَرَأَيْتُ مَذْبَحاً تَحْتَهُ أَرْوَاحُ الَّذِينَ سُفِكَتْ دِمَاؤُهُمْ مِنْ أَجْلِ كَلِمَةِ اللهِ، وَمِنْ أَجْلِ الشَّهَادَةِ الَّتِي أَدَّوْهَا، 10وَهُمْ يَصْرُخُونَ لِلرَّبِّ بِأَعْلَى صَوْتِهِمْ: «حَتَّى مَتَى، أَيُّهَا السَّيِّدُ الْقُدُّوسُ وَالْحَقُّ، تُؤَخِّرُ مُعَاقَبَةَ أَهْلِ الأَرْضِ عَلَى مَا فَعَلُوهُ بِنَا؟ مَتَى تَنْتَقِمُ مِنْهُمْ لِدِمَائِنَا؟» 11فَأُعْطِيَ كُلٌّ مِنْهُمْ ثَوْباً أَبْيَضَ، وَقِيلَ لَهُمْ أَنْ يَصْبِرُوا قَلِيلاً إِلَى أَنْ يَكْمُلَ عَدَدُ شُرَكَائِهِمِ الْعَبِيدِ وَإِخْوَتِهِمِ الَّذِينَ سَيُقْتَلُونَ مِثْلَهُمْ.

12ثُمَّ نَظَرْتُ، فَرَأَيْتُ الْحَمَلَ يَفُكُّ الْخَتْمَ السَّادِسَ، وَإذَا الأَرْضُ قَدْ زُلْزِلَتْ زِلْزَالاً عَظِيماً، وَالشَّمْسُ اسْوَدَّتْ فَصَارَتْ كَخِرْقَةٍ مِنْ شَعْرٍ، وَصَارَ الْقَمَرُ أَحْمَرَ كَالدَّمِ، 13وَسَقَطَتْ نُجُومُ السَّمَاءِ عَلَى الأَرْضِ كَمَا تَطْرَحُ شَجَرَةُ التِّينِ ثِمَارَهَا الْفَجَّةَ، إِذَا هَزَّتْهَا رِيحٌ عَاصِفَةٌ. 14وَطُوِيَتِ السَّمَاءُ كَمَا تُطْوَى لِفَافَةٌ مِنْ وَرَقٍ، فَتَزَحْزَحَتِ الْجِبَالُ وَالْجُزُرُ كُلُّهَا مِنْ مَوَاضِعِهَا. 15وَمُلُوكُ الأَرْضِ وَالْعُظَمَاءُ وَالْقُوَّادُ وَالأَغْنِيَاءُ وَالأَقْوِيَاءُ وَالْعَبِيدُ وَالأَحْرَارُ كُلُّهُمُ اخْتَبَأُوا فِي الْمَغَاوِرِ وَصُخُورِ الْجِبَالِ، 16وَهُمْ يَقُولُونَ لِلْجِبَالِ وَالصُّخُورِ: «اُسْقُطِي عَلَيْنَا، وَأَخْفِينَا مِنْ وَجْهِ الْجَالِسِ عَلَى الْعَرْشِ وَمِنْ غَضَبِ الْحَمَلِ!» 17فَإِنَّ يَوْمَ الْغَضَبِ الْعَظِيمَ قَدْ جَاءَهُمْ، وَمَنْ يَقْوَى عَلَى الْوُقُوفِ أَمَامَهُ؟