उद्बोधक 4 – HCV & NAV

Hindi Contemporary Version

उद्बोधक 4:1-16

अत्याचार के दुष्प्रभाव

1धरती पर किए जा रहे अत्याचार को देखकर मैंने दोबारा सोचा:

मैंने अत्याचार सहने वाले व्यक्तियों के आंसुओं को देखा

और यह भी कि उन्हें शांति देने के लिए कोई भी नहीं है;

अत्याचारियों के पास तो उनका अधिकार था,

मगर अत्याचार सहने वालों के पास शांति देने के लिए कोई भी न था.

2सो मैंने जीवितों की तुलना में,

मरे हुओं को, जिनकी मृत्यु हो चुकी है, अधिक सराहा कि वे अधिक खुश हैं.

3मगर इन दोनों से बेहतर तो वह है

जो कभी आया ही नहीं

और जिसने इस धरती पर किए जा रहे

कुकर्मों को देखा ही नहीं.

4मैंने यह भी पाया कि सारी मेहनत और सारी कुशलता मनुष्य एवं उसके पड़ोसी के बीच जलन के कारण है. यह भी बेकार और हवा से झगड़ना है.

5मूर्ख अपने हाथ पर हाथ रखे बैठा रहता है,

और खुद को बर्बाद करता4:5 बर्बाद करता मूल में अपना ही मांस खाता है है.

6दो मुट्ठी भर मेहनत और हवा से संघर्ष की बजाय बेहतर है

जो कुछ मुट्ठी भर तुम्हारे पास है

उसमें आराम के साथ संतुष्ट रहना.

7तब मैंने धरती पर दोबारा बेकार की बात देखी:

8एक व्यक्ति जिसका कोई नहीं है;

न पुत्र, न भाई.

उसकी मेहनत का कोई अंत नहीं.

वह पर्याप्‍त धन कमा नहीं पाता,

फिर भी वह यह प्रश्न कभी नहीं करता,

“मैं अपने आपको सुख से दूर रखकर यह सब किसके लिए कर रहा हूं?”

यह भी बेकार,

और दुःख भरी स्थिति है!

9एक से बेहतर हैं दो,

क्योंकि उन्हें मेहनत का बेहतर प्रतिफल मिलता है:

10यदि उनमें से एक गिर भी जाए,

तो दूसरा अपने मित्र को उठा लेगा,

मगर शोक है उस व्यक्ति के लिए जो गिरता है

और उसे उठाने के लिए कोई दूसरा नहीं होता.

11अगर दो व्यक्ति साथ साथ सोते हैं तो वे एक दूसरे को गर्म रखते हैं.

मगर अकेला व्यक्ति अपने आपको कैसे गर्म रख सकता है?

12अकेले व्यक्ति पर तो हावी होना संभव है,

मगर दो व्यक्ति उसका सामना कर सकते हैं:

तीन डोरियों से बनी रस्सी को आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता.

उन्‍नति की व्यर्थता

13एक गरीब मगर बुद्धिमान नौजवान एक निर्बुद्धि बूढ़े राजा से बेहतर है, जिसे यह समझ नहीं रहा कि सलाह कैसे ली जाए. 14वह बंदीगृह से सिंहासन पर जा बैठा हालांकि वह अपने राज्य में गरीब ही जन्मा था. 15मैंने धरती पर घूमते हुए सभी प्राणियों को उस दूसरे नौजवान की ओर जाते देखा, जो पहले वालों की जगह लेगा. 16अनगिनत थे वे लोग जिनका वह राजा था. फिर भी जो इनके बाद आएंगे उससे खुश न होंगे. निश्चित ही यह भी बेकार और हवा से झगड़ना है.

New Arabic Version

الجامعة 4:1-16

الظلم، والتعب، وعدم وجود أصدقاء

1ثُمَّ تَأَمَّلْتُ حَوْلِي فَرَأَيْتُ جَمِيعَ الْمَظَالِمِ الَّتِي تُرْتَكَبُ تَحْتَ الشَّمْسِ. شَهِدْتُ دُمُوعَ الْمَظْلُومِينَ الَّذِينَ لَا مُعَزِّيَ لَهُمْ، أَمَّا ظَالِمُوهُمْ فَيَتَمَتَّعُونَ بِالْقُوَّةِ، غَيْرَ أَنَّ الْمَظْلُومِينَ لَا مُعَزِّيَ لَهُمْ. 2فَغَبَطْتُ الأَمْوَاتَ الَّذِينَ قَضَوْا مُنْذُ زَمَانٍ أَكْثَرَ مِنَ الأَحْيَاءِ الَّذِينَ مَا بَرِحُوا عَلَى قَيْدِ الْحَيَاةِ. 3وَأَفْضَلُ مِنْ كِلَيْهِمَا مَنْ لَمْ يُوْلَدْ بَعْدُ، الَّذِي لَمْ يَرَ الشَّرَّ الْمُرْتَكَبَ تَحْتَ الشَّمْسِ.

4وَأَدْرَكْتُ أَيْضاً أَنَّ كُلَّ تَعَبِ الإِنْسَانِ وَمُنْجَزَاتِهِ، نَاتِجَةٌ عَنْ حَسَدِهِ لِقَرِيبِهِ. هَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ كَمُلاحَقَةِ الرِّيحِ. 5يَطْوِي الْجَاهِلُ يَدَيْهِ وَيَأْكُلُ لَحْمَهُ. 6حُفْنَةُ رَاحَةٍ خَيْرٌ مِنْ حُفْنَتَيْ تَعَبٍ وَمُلاحَقَةِ الرِّيحِ.

7وَعُدْتُ أَتَأَمَّلُ فَرَأَيْتُ بَاطِلاً آخَرَ تَحْتَ الشَّمْسِ: 8وَاحِدٌ وَحِيدٌ، لَا ثَانِيَ لَهُ. لَا ابْنَ وَلا أَخَ. وَلا نِهَايَةَ لِتَعَبِهِ. عَيْنُهُ لَا تَشْبَعُ مِنَ الْغِنَى، وَلا يَقُولُ: لِمَنْ أَكْدَحُ وَأَحْرِمُ نَفْسِي مِنَ الْمَسَرَّاتِ؟ هَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ وَعَنَاءٌ شَاقٌّ! 9اثْنَانِ خَيْرٌ مِنْ وَاحِدٍ، لأَنَّ لَهُمَا حُسْنَ الثَّوَابِ عَلَى كَدِّهِمَا. 10لأَنَّهُ إِذَا سَقَطَ أَحَدُهُمَا يُنْهِضُهُ الآخَرُ. وَلَكِنْ وَيْلٌ لِمَنْ هُوَ وَحِيدٌ، لأَنَّهُ إِنْ سَقَطَ فَلا مُسْعِفَ لَهُ عَلَى النُّهُوضِ. 11كَذَلِكَ إِنْ رَقَدَ اثْنَانِ مَعاً يَدْفَآنِ، أَمَّا الرَّاقِدُ وَحْدَهُ فَكَيْفَ يَدْفَأُ؟ 12وَإِنْ كَانَ الْوَاحِدُ الْقَوِيُّ يَغْلِبُ وَاحِداً أَضْعَفَ مِنْهُ، فَإِنَّ اثْنَيْنِ قَادِرَانِ عَلَى مُقَاوَمَتِهِ. فَالْخَيْطُ الْمُثَلَّثُ يَتَعَذَّرُ قَطْعُهُ سَرِيعاً.

التقدم والنجاح باطلان

13شَابٌّ فَقِيرٌ حَكِيمٌ خَيْرٌ مِنْ مَلِكٍ شَيْخٍ جَاهِلٍ كَفَّ عَنْ قُبُولِ النَّصِيحَةِ، 14لأَنَّهُ قَدْ يَخْرُجُ مِنَ السِّجْنِ لِيَتَبَوَّأَ عَرْشَ الْمُلْكِ، وَإِنْ كَانَ مَوْلُوداً فِي عَائِلَةٍ فَقِيرَةٍ مِنْ عَائِلاتِ الْمَمْلَكَةِ. 15وَقَدْ رَأَيْتُ جَمِيعَ الأَحْيَاءِ السَّائِرِينَ تَحْتَ الشَّمْسِ يَلْتَفُّونَ حَوْلَ الشَّابِّ الَّذِي يَخْلُفُ الْمَلِكَ الشَّيْخَ. 16وَلَمْ يَكُنْ نِهَايَةٌ لِلْجَمَاهِيرِ الَّذِينَ سَارَ فِي طَلِيعَتِهِمْ، غَيْرَ أَنَّ الأَجْيَالَ اللّاحِقَةَ لَا تُسَرُّ بِهِ، فَهَذَا أَيْضاً بَاطِلٌ وَكَمُلاحَقَةِ الرِّيحِ.