列王纪下 6 – CCB & HCV

Chinese Contemporary Bible 2022 (Simplified)

列王纪下 6:1-33

以利沙找回斧头

1一群先知对以利沙说:“你看,我们住的地方实在太小了。 2请让我们去约旦河吧,我们每人都可以从那里砍一根木头盖房子居住。”以利沙说:“你们去吧。” 3其中一人请以利沙一起去,以利沙答应了, 4便和他们一起去约旦河砍伐树木。 5有个人砍树的时候,斧头掉进了水里。他大喊:“唉!师傅,这把斧头是借来的。” 6上帝的仆人问:“斧头掉在哪里了?”他就指给以利沙看。以利沙砍了一根树枝抛进水里,斧头便浮了上来。 7以利沙说:“你去拿上来吧!”他便伸手拿起了斧头。

以利沙使亚兰军败退

8亚兰王与以色列人交战,他和臣仆商议要在某处安营。 9上帝的仆人传信给以色列王,说:“你要小心,不要经过那个地方,因为亚兰人埋伏在那里。” 10以色列王派人到上帝的仆人所说的地方,警告那里的人要小心防备。这样的事情发生了好几次。

11亚兰王因此十分恼怒,召来臣仆质问他们:“你们当中谁向以色列王泄露了我们的计划?” 12一位臣仆说:“我主我王啊,没有人泄露。是以色列的先知以利沙将王在寝宫所谈的事告诉了以色列王。” 13王说:“去找出他在哪里,我派人去捉拿他。”王得知以利沙多坍后, 14便派出大队人马和战车前往那里,他们在夜间抵达多坍,把城围住。 15上帝仆人的侍者清早起来,走到外面,看见城被军队、车马包围,就对上帝的仆人说:“唉!我主啊,我们该怎么办呢?” 16上帝的仆人说:“不要害怕!我们的兵马比他们的还要多。” 17他随后祷告:“耶和华啊,求你开他的眼睛,让他看见。”于是,耶和华开那个侍者的眼睛,他就看见山上到处都是火车火马围绕着以利沙18亚兰人向以利沙冲来,以利沙祈求耶和华说:“求你使他们瞎眼。”耶和华听了以利沙的祷告,使他们瞎了眼。 19以利沙对他们说:“不是这条路,也不是这座城。跟我来,我带你们到你们要找的人那里。”以利沙把他们领到撒玛利亚

20他们进城后,以利沙祷告:“耶和华啊,求你开他们的眼睛,让他们看见。”耶和华开了他们的眼睛,他们就看见了,发现自己在撒玛利亚城中。 21以色列王看见他们,问以利沙说:“我父啊,我可以杀他们吗?” 22以利沙答道:“不可杀他们。岂可杀用刀和弓抓来的俘虏呢?给他们吃的喝的,让他们吃喝完了回自己主人那里吧。” 23于是,以色列王为他们大摆宴席,等他们吃喝完毕,便放他们回自己主人那里。之后,亚兰人不再侵犯以色列

撒玛利亚城被围困

24后来,亚兰便·哈达召集全军围困撒玛利亚25撒玛利亚被困后,城里陷入严重饥荒,以致一个驴头可卖二十两银子,二百克鸽子粪可卖一两银子。 26一天,以色列王从城墙上走过,一个妇人向他呼喊:“我主我王啊,求你帮帮我!” 27王说:“如果耶和华不帮助你,我怎能帮助你呢?我岂有麦子和酒? 28你有什么难处呢?”妇人说:“这个女人对我说,‘我们今天吃你儿子,明天再吃我儿子。’ 29于是我们把我儿子煮了吃。第二天我叫她把她儿子交出来,她却把儿子藏了起来。” 30王听了妇人的话,就撕裂衣服。王走在城墙上,人们都看见他贴身穿着麻衣。 31王说:“如果今天沙法的儿子以利沙的头颅还留在他颈项上,愿上帝重重地惩罚我!”

32王派使者去以利沙那里。那时,以利沙正与长老们坐在他家中。使者到达之前,以利沙对长老说:“你们看,这凶手派人来斩我的头。使者到达时,你们要把他关在门外。他后面不就是他主人的脚步声吗?” 33话音未落,使者已经到了,说:“既然这祸是从耶和华来的,我何必再仰望祂呢?”

Hindi Contemporary Version

2 राजा 6:1-33

कुल्हाड़ी की पुनर्प्राप्ति

1भविष्यवक्ताओं के दल ने एलीशा से विनती की, “सुनिए, आपके द्वारा हमारे लिए ठहराया गया घर अब छोटा पड़ रहा है! 2हमें आज्ञा दीजिए कि हम सब यरदन नदी के तट पर जाएं और हममें से हर एक वहां से एक-एक बल्ली काटे और हम वहां अपने लिए घर बनाएंगे.”

एलीशा ने आज्ञा दे दी, “जाओ.”

3उनमें से एक ने एलीशा से विनती की, “अपने सेवकों के साथ चलने की कृपा कीजिए.”

एलीशा ने हां कह दिया, “अच्छा, मैं तुम्हारे साथ चलूंगा.” 4तब वह उनके साथ चले गए.

जब वे यरदन के तट पर आए, उन्होंने पेड़ काटना शुरू किया. 5उनमें से एक भविष्यद्वक्ता बल्ली काट रहा था तब उसकी कुल्हाड़ी की फाल पानी में जा गिरी. वह भविष्यद्वक्ता चिल्ला उठा, “ओह, मेरे स्वामी! वह तो उधार की फाल थी.”

6इस पर परमेश्वर के जन ने उससे पूछा, “किस जगह पर गिरी है वह?” जब उसने उन्हें वह जगह दिखाई, भविष्यद्वक्ता ने एक छड़ी काटी और उस जगह पर फेंक दी. लोहे की वह फाल पानी पर तैरने लगी. 7एलीशा ने उसे आदेश दिया, “इसे उठा लो.” तब उसने हाथ बढ़ाकर उसे उठा लिया.

घोड़े और अग्निरथ

8उस मौके पर, जब अराम का राजा इस्राएल से युद्ध करता था, उसने अपने सेवकों की सलाह के अनुसार निर्णय लिया, “मेरा तंबू अमुक जगह पर होगा.”

9परमेश्वर के जन ने इस्राएल के राजा को यह संदेश भेजा: “सावधान रहिए! अरामी सेना वहीं पहुंच रही है, तब उस स्थान के निकट से होकर न जाइएगा.” 10इस्राएल का राजा उसी स्थान को अपनी सेना भेजा करता था, जिसके विषय में उसे परमेश्वर के जन द्वारा सूचना मिली थी. इस प्रकार उसे चेतावनी मिलती रहती थी, फलस्वरूप वह अपने आपकी सुरक्षा कर लेता था. यह अनेक बार हुआ.

11इससे अराम के राजा का मन बहुत ही घबरा गया. उसने अपने सेवकों की सभा बुलाकर उनसे प्रश्न किया, “क्या, आप लोग मुझे यह बताएंगे कि हममें से कौन है, जो इस्राएल के राजा की ओर है?”

12एक सेवक ने उत्तर दिया, “कोई भी नहीं, महाराज. हां, इस्राएल में एक भविष्यद्वक्ता है—एलीशा, वह इस्राएल के राजा को आपके द्वारा आपके कमरे में कहे गए शब्दों तक की सूचना दे देता है.”

13अराम के राजा ने आदेश दिया, “जाओ. मालूम करो कहां है यह भविष्यद्वक्ता, कि मैं सैनिक भेज उसे पकड़वा सकूं.” राजा को सूचित किया गया, 14“महाराज, वह भविष्यद्वक्ता दोथान में छिपा हुआ है.” राजा ने उस स्थान के लिए घोड़े, रथ और एक बड़ी सैनिक टुकड़ी भेज दी. रात में वहां पहुंचकर उन्होंने उस नगर को घेर लिया.

15तड़के जब परमेश्वर के जन का सेवक जागा, उसने बाहर जाकर देखा कि सेना, घोड़े और रथ नगर को घेरे हुए हैं. सेवक कह उठा, “हाय, मेरे स्वामी! अब हम क्या करें?”

16एलीशा ने उत्तर दिया, “डरो मत! क्योंकि वे, जो हमारे साथ हैं, गिनती में उनसे अधिक हैं, जो उनके साथ हैं.”

17तब एलीशा ने यह प्रार्थना की: “याहवेह, कृपा कर इसे दृष्टि दीजिए, कि यह देख सके.” तब याहवेह ने उस युवा सेवक को दृष्टि दी और उसने देखा एलीशा के चारों ओर पहाड़ घोड़ों और अग्निरथों से भरा हुआ था.

18जब अरामी सेना एलीशा को पकड़ने के लिए आगे बढ़ी, एलीशा ने याहवेह से यह प्रार्थना की: “कृपा कर इन लोगों की दृष्टि छीन लीजिए.” तब एलीशा की प्रार्थना के अनुसार याहवेह ने उन्हें अंधा कर दिया.

19उन्हें एलीशा ने कहा, “न तो यह वह मार्ग है और न ही यह वह नगर. मेरे पीछे आओ, मैं तुम्हें उस व्यक्ति तक ले जाऊंगा, जिसे तुम खोज रहे हो.” तब एलीशा ने उन्हें शमरिया पहुंचा दिया.

20जैसे ही उन्होंने शमरिया में प्रवेश किया, एलीशा ने प्रार्थना की, “याहवेह इन व्यक्तियों की दृष्टि लौटा दीजिए कि अब ये देख सकें.” तब याहवेह ने उन्हें दृष्टि प्रदान की. उन्होंने देखा और पाया कि वे शमरिया में हैं.

21जैसे ही इस्राएल के राजा ने उन्हें देखा, वह एलीशा से कहने लगा, “मेरे पिताजी, क्या, हम उन पर वार करें? बताइए, क्या हम उन पर वार करें?”

22एलीशा ने उत्तर दिया, “तुम्हारा उन पर हमला करना सही न होगा. क्या, उन बंदियों की हत्या की जाती है, जिन्हें तुम तलवार और धनुष के द्वारा बंदी बनाते हो? उन्हें भोजन परोसो कि वे खा-पीकर तृप्‍त हो जाएं, और अपने स्वामी के पास लौट जाएं.” 23तब उनके लिए एक उत्तम भोज तैयार किया गया. जब वे खा-पीकर तृप्‍त हो गए, इस्राएल के राजा ने उन्हें विदा किया, और वे अपने स्वामी के पास लौट गए. इस घटना के बाद अरामी फिर कभी इस्राएल पर हमला करने नहीं आए.

बेन-हदद द्वारा शमरिया की घेराबंदी

24कुछ समय के बाद, अराम के राजा बेन-हदद ने अपनी सारी सेना तैयार की और शमरिया पर हमला किया और नगर की घेराबंदी कर ली. 25शमरिया में इस समय भयंकर अकाल फैल गया. शत्रु सेना ने इसे घेर रखा था. स्थिति ऐसी हो चुकी थी कि गधे का सिर चांदी के अस्सी शेकेलों में और एक चौथाई कबूतर की बीट6:25 कबूतर की बीट एक किस्म की सब्जी हो सकती है पांच शेकेल में बेची जा रही थी.

26एक दिन इस्राएल का राजा नगर की शहरपनाह पर चलता हुआ जा रहा था, एक स्त्री ने उससे ऊंचे स्वर में कहा, “महाराज, मेरे स्वामी, सहायता कीजिए.”

27राजा ने उत्तर दिया, “यदि याहवेह ही तुम्हारी सहायता नहीं करते, तो मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूं, क्या, खलिहान से या अंगूर-रस के कुंड से?” 28राजा ने फिर आगे यह भी पूछा, “क्या तकलीफ़ है तुम्हें?”

स्त्री ने उत्तर दिया, “इस स्त्री ने मुझसे कहा था, ‘आज मुझे अपना पुत्र दे दो कि वह हमारा आज का भोजन हो जाए, कल मेरा पुत्र हमारा भोजन हो जाएगा.’ 29तब हमने मेरे पुत्र को पकाकर खा लिया. दूसरे दिन मैंने इसे याद दिलाया, ‘लाओ अपना पुत्र को, ताकि वह हमारा भोजन हो जाए.’ मगर इसने तो अपना पुत्र छिपा दिया है.”

30जब राजा ने उस स्त्री के ये शब्द सुने, उसने अपने कपड़े फाड़ दिए. इस समय वह शहरपनाह पर टहल रहा था. लोगों ने यह सब देखा. उन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिया कि वह राजसी वस्त्रों के भीतर टाट पहना हुआ था. 31राजा ने घोषणा की, “परमेश्वर मेरे साथ ऐसा ही, बल्कि इससे भी कड़ा व्यवहार करें, यदि आज शाफात के पुत्र एलीशा का सिर उसके धड़ से लगा रह जाए.”

32एलीशा अपने घर में बैठे हुए थे, उनके साथ नगर पुरनिए भी बैठे हुए थे. इस समय राजा द्वारा भेजा दूत यहीं आ रहा था. अभी वह व्यक्ति यहां नहीं पहुंचा था, मगर एलीशा अपने साथ के पुरनियों से कह रहे थे, “देखो, इस हत्यारे को, उसने मेरा सिर उड़ाने के लिए एक दूत भेजा है! ऐसा कीजिए, जैसे ही वह दूत यहां पहुंचे, दरवाजा बंद कर लें और उसे अच्छी तरह से बंद किए रखें. उसका स्वामी उससे अधिक दूर नहीं होगा.”

33एलीशा उनसे यह कह ही रहे थे, कि उस दूत ने उनके पास आकर उनसे कहा, “यह मुसीबत याहवेह की ओर से है. अब मैं आगे याहवेह का इंतजार और क्यों करता रहूं?”