إنجيل يوحنا 16 – NAV & NCA

Ketab El Hayat

إنجيل يوحنا 16:1-33

1قُلْتُ لَكُمْ هَذَا لِكَيْ لَا تَتَزَعْزَعُوا. 2سَتُطْرَدُونَ خَارِجَ الْمَجَامِعِ، بَلْ سَيَأْتِي وَقْتٌ يَظُنُّ فِيهِ مَنْ يَقْتُلُكُمْ أَنَّهُ يُؤَدِّي خِدْمَةً لِلهِ. 3وَهُمْ يَفْعَلُونَ هَذَا بِكُمْ لأَنَّهُمْ لَمْ يَعْرِفُوا أَبِي، وَلا عَرَفُونِي.

عمل الروح القدس المعين

4قُلْتُ لَكُمْ هَذَا حَتَّى مَتَى جَاءَ وَقْتُ حُدُوثِهِ تَذْكُرُونَ أَنَّهُ سَبَقَ أَنْ أَخْبَرْتُكُمْ بِهِ. وَلَمْ أَقُلْ لَكُمْ هَذَا مُنْذُ الْبَدَايَةِ لأَنِّي كُنْتُ مَعَكُمْ؛ 5أَمَّا الآنَ فَإِنِّي عَائِدٌ إِلَى الَّذِي أَرْسَلَنِي، وَلا أَحَدَ مِنْكُمْ يَسْأَلُنِي: أَيْنَ تَذْهَبُ؟ 6عِنْدَمَا أَخْبَرْتُكُمْ بِهَذَا مَلأَ الْحُزْنُ قُلُوبَكُمْ. 7وَلكِنِّي أَقُولُ لَكُمُ الْحَقَّ: مِنَ الأَفْضَلِ لَكُمْ أَنْ أَذْهَبَ، لأَنِّي إِنْ كُنْتُ لَا أَذْهَبُ، لَا يَأْتِيكُمُ الْمُعِينُ. وَلكِنِّي إِذَا ذَهَبْتُ أُرْسِلُهُ إِلَيْكُمْ. 8وَعِنْدَمَا يَجِيءُ يُبَكِّتُ الْعَالَمَ عَلَى الْخَطِيئَةِ وَعَلَى الْبِرِّ وَعَلَى الدَّيْنُونَةِ: 9أَمَّا عَلَى الْخَطِيئَةِ، فَلأَنَّهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ بِي، 10وَأَمَّا عَلَى الْبِرِّ، فَلأَنِّي عَائِدٌ إِلَى الآبِ فَلا تَرَوْنَنِي بَعْدُ؛ 11وَأَمَّا عَلَى الدَّيْنُونَةِ، فَلأَنَّ سَيِّدَ هَذَا الْعَالَمِ قَدْ صَدَرَ عَلَيْهِ حُكْمُ الدَّيْنُونَةِ.

12مَازَالَ عِنْدِي أُمُورٌ كَثِيرَةٌ أَقُولُهَا لَكُمْ، وَلكِنَّكُمُ الآنَ تَعْجَزُونَ عَنِ احْتِمَالِهَا. 13وَلكِنْ، عِنْدَمَا يَأْتِيكُمْ رُوحُ الْحَقِّ يُرْشِدُكُمْ إِلَى الْحَقِّ كُلِّهِ، لأَنَّهُ لَا يَقُولُ شَيْئاً مِنْ عِنْدِهِ، بَلْ يُخْبِرُكُمْ بِمَا يَسْمَعُهُ، وَيُطْلِعُكُمْ عَلَى مَا سَوْفَ يَحْدُثُ. 14وَهُوَ سَيُمَجِّدُنِي لأَنَّ كُلَّ مَا سَيُحَدِّثُكُمْ بِهِ صَادِرٌ عَنِّي. 15كُلُّ مَا هُوَ لِلآبِ، فَهُوَ لِي. وَلِذلِكَ قُلْتُ لَكُمْ إِنَّ مَا سَيُحَدِّثُكُمْ بِهِ صَادِرٌ عَنِّي.

حزن التلاميذ يتحول فرحاً

16بَعْدَ قَلِيلٍ لَا تَرَوْنَنِي، وَبَعْدَ ذلِكَ بِقَلِيلٍ تَرَوْنَنِي!» 17فَتَسَاءَلَ بَعْضُ التَّلامِيذِ: «تُرَى، مَا مَعْنَى قَوْلِهِ: بَعْدَ قَلِيلٍ لَا تَرَوْنَنِي، وَبَعْدَ ذلِكَ بِقَلِيلٍ تَرَوْنَنِي، وَأَيْضاً: لأَنِّي عَائِدٌ إِلَى الآبِ؟» 18وَقَالُوا: «مَا هُوَ هَذَا الْقَلِيلُ الَّذِي يَتَحَدَّثُ عَنْهُ؟ لَسْنَا نَفْهَمُ مَا يَقُولُهُ!» 19وَعَلِمَ يَسُوعُ أَنَّهُمْ يَرْغَبُونَ فِي أَنْ يَسْأَلُوهُ، فَقَالَ لَهُمْ: «تَتَسَاءَلُونَ عَنْ مَعْنَى قَوْلِي: بَعْدَ قَلِيلٍ لَا تَرَوْنَنِي ثُمَّ بَعْدَ قَلِيلٍ تَرَوْنَنِي أَيْضاً. 20الْحَقَّ الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّكُمْ سَتَبْكُونَ وَتَنُوحُونَ، أَمَّا الْعَالَمُ فَيَفْرَحُ. إِنَّكُمْ سَتَحْزَنُونَ، وَلكِنَّ حُزْنَكُمْ سَيَتَحَوَّلُ إِلَى فَرَحٍ. 21الْمَرْأَةُ تَحْزَنُ إِذَا حَانَتْ سَاعَتُهَا لِتَلِدَ. وَلكِنَّهَا حَالَمَا تَلِدُ طِفْلَهَا، لَا تَعُودُ تَتَذَكَّرُ عَنَاءَهَا، لِفَرَحِهَا بِأَنَّ إِنْسَاناً قَدْ وُلِدَ فِي الْعَالَمِ. 22فَكَذلِكَ أَنْتُمْ، تَحْزَنُونَ الآنَ؛ وَلكِنْ عِنْدَمَا أَعُودُ لِلِقَائِكُمْ، تَبْتَهِجُ قُلُوبُكُمْ، وَلا أَحَدَ يَسْلُبُكُمْ فَرَحَكُمْ. 23وَفِي ذلِكَ الْيَوْمِ لَا تَسْأَلُونَنِي عَنْ شَيْءٍ. الْحَقَّ الْحَقَّ أَقُولُ لَكُمْ: إِنَّ الآبَ سَيُعْطِيكُمْ كُلَّ مَا تَطْلُبُونَ مِنْهُ بِاسْمِي. 24حَتَّى الآنَ لَمْ تَطْلُبُوا بِاسْمِي شَيْئاً. اطْلُبُوا تَنَالُوا، فَيَكُونَ فَرَحُكُمْ كَامِلاً.

25ضَرَبْتُ لَكُمْ أَمْثَالاً فِي كَلامِي عَنْ هَذِهِ الأُمُورِ، وَلكِنْ سَيَأْتِي وَقْتٌ أُحَدِّثُكُمْ فِيهِ عَنِ الآبِ بِكَلامٍ صَرِيحٍ، دُونَ أَمْثَالٍ. 26فِي ذَلِكَ الْيَوْمِ تَطْلُبُونَ مِنَ الآبِ بِاسْمِي. وَلَسْتُ أَقُولُ لَكُمْ إِنِّي أَطْلُبُ إِلَيْهِ عَنْكُمْ. 27فَإِنَّ الآبَ نَفْسَهُ يُحِبُّكُمْ، لأَنَّكُمْ أَحْبَبْتُمُونِي، وَآمَنْتُمْ بِأَنِّي مِنْ عِنْدِ اللهِ خَرَجْتُ. 28خَرَجْتُ مِنْ عِنْدِ الآبِ، وَأَتَيْتُ إِلَى الْعَالَمِ. وَهَا أَنَا أَتْرُكُ الْعَالَمَ وَأَعُودُ إِلَى الآبِ».

29فَقَالَ لَهُ تَلامِيذُهُ: «هَا أَنْتَ الآنَ تُكَلِّمُنَا كَلاماً صَرِيحاً بِغَيْرِ أَمْثَالٍ. 30فَالآنَ نَعْرِفُ أَنَّكَ تَعْلَمُ كُلَّ شَيْءٍ، وَلا تَحْتَاجُ إِلَى أَنْ يَسْأَلَكَ أَحَدٌ. لِذلِكَ نُؤْمِنُ أَنَّكَ جِئْتَ مِنْ عِنْدِ اللهِ». 31فَرَدَّ يَسُوعُ: «أَفَالآنَ تُؤْمِنُونَ؟ 32سَتَأْتِي سَاعَةٌ وَهَا قَدْ حَانَتِ الآنَ فِيهَا تَتَفَرَّقُونَ كُلُّ وَاحِدٍ إِلَى بَيْتِهِ، وَتَتْرُكُونَنِي وَحْدِي. وَلكِنِّي لَسْتُ وَحْدِي، لأَنَّ الآبَ مَعِي. 33أَخْبَرْتُكُمْ بِهَذَا كُلِّهِ لِيَكُونَ لَكُمْ فِيَّ سَلامٌ. فَإِنَّكُمْ فِي الْعَالَمِ سَتُقَاسُونَ الضِّيقَ. وَلكِنْ تَشَجَّعُوا، فَأَنَا قَدِ انْتَصَرْتُ عَلَى الْعَالَمِ!»

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

यूहन्ना 16:1-33

1मेंह तुमन ला ए जम्मो बात एकरसेति कहे हवंव कि तुम्‍हर बिसवास ह झन टूटय। 2ओमन तुमन ला सभा घर ले निकार दिहीं। अऊ ओ समय ह आवत हवय, जब तुम्‍हर हतिया करइया ह ए समझही कि ओह परमेसर के सेवा करत हवय। 3ओमन ए काममन ला एकरसेति करहीं काबरकि ओमन न तो ददा ला जानय अऊ न ही मोला। 4पर मेंह तुमन ला ए बात एकरसेति कहेंव ताकि जब ओ समय ह आवय, त तुमन ला सुरता रहय कि मेंह तुमन ला चेताय रहेंव। मेंह तुमन ला ए बात सुरू म एकरसेति नइं बताएंव काबरकि मेंह तुम्‍हर संग म रहेंव।”

पबितर आतमा के काम

5“अब मेंह ओकर करा जावत हंव जऊन ह मोला पठोय हवय, पर तुमन ले कोनो नइं पुछत हव कि मेंह कहां जावत हंव। 6मेंह तुमन ला ए बात कहेंव, एकरसेति तुम्‍हर हिरदय ह दुःख ले भर गे हवय। 7पर मेंह तुमन ला सच कहथंव: एह तुम्‍हर बर बने ए कि मेंह जावथंव; काबरकि यदि मेंह नइं जावंव, त मददगार ह तुम्‍हर करा नइं आवय, पर यदि मेंह जाहूं, त मेंह ओला तुम्‍हर करा पठोहूं। 8अऊ जब ओह आही, त संसार के मनखेमन ला पाप अऊ धरमीपन अऊ नियाय के बारे म दोसी ठहराही16:8 पबितर आतमा ह साबित करही कि ओमन गलत अंय।9ओह पाप के बारे म दोसी ठहराही, काबरकि ओमन मोर ऊपर बिसवास नइं करंय। 10ओह धरमीपन के बारे म दोसी ठहराही, काबरकि मेंह ददा करा जावत हंव अऊ तुमन मोला फेर नइं देखहू। 11अऊ ओह नियाय के बारे म दोसी ठहराही, काबरकि ए संसार के राजकुमार (सैतान) ला पहिली ले दोसी ठहराय गे हवय।

12तुमन ला कहे बर मोर करा बहुंत कुछू हवय, पर अभी तुमन ओ बातमन ला सहन नइं कर सकव। 13पर जब ओ सत के आतमा ह आही, त ओह तुमन ला सत के जम्मो बात म अगुवई करही। ओह अपन तरफ से कुछू नइं कहिही; जऊन कुछू ओह सुनही, सिरिप ओहीच बात ला कहिही, अऊ ओह तुमन ला ओ बातमन ला बताही, जऊन ह अवइया हवय। 14ओह मोर महिमा करही, काबरकि ओह मोर बातमन ला लिही अऊ ओला तुमन ला बताही। 15जऊन कुछू ददा के अय, ओ जम्मो मोर अय। एकरसेति मेंह कहेंव कि आतमा ह मोर म ले लिही अऊ ओला तुमन ला बताही।

16थोरकन देर बाद तुमन मोला नइं देखहू अऊ फेर थोरकन देर बाद तुमन मोला देखहू।”

चेलामन के दुःख ह आनंद म बदल जाही

17यीसू के कुछू चेलामन एक-दूसर ले कहिन, “ओकर ए कहे के का मतलब ए – ‘थोरकन देर बाद तुमन मोला नइं देखहू अऊ फेर थोरकन देर बाद तुमन मोला देखहू;’ अऊ ‘काबरकि मेंह ददा करा जावत हंव।’ ” 18चेलामन बार-बार पुछन लगिन, “ए थोरकन देर के का मतलब ए? हमन नइं समझत हवन कि ओह का कहत हवय।”

19यीसू ह ए जानके कि ओमन ओकर ले पुछे चाहत हवंय, ओह ओमन ला कहिस, “का तुमन एक-दूसर ले पुछत हव कि मोर ए कहे के का मतलब ए – थोरकन देर बाद तुमन मोला नइं देखहू अऊ फेर थोरकन देर बाद तुमन मोला देखहू? 20मेंह तुमन ला सच कहथंव, तुमन रोहू अऊ बिलाप करहू, जबकि संसार ह आनंद मनाही। तुमन ला दुःख होही, पर तुम्‍हर दुःख ह आनंद म बदल जाही। 21जब एक माईलोगन ह लइका जनथे, त ओला पीरा होथे काबरकि ओकर बेरा ह आ गे हवय; पर जब ओला लइका हो जाथे, त आनंद के मारे कि एक लइका ह संसार म पैदा होईस, ओह पीरा ला भुला जाथे। 22एही किसम ले, अभी तुमन ला दुःख होवथे, पर मेंह तुमन ला फेर देखहूं, अऊ तुमन आनंद मनाहू, अऊ तुम्‍हर आनंद ला कोनो नइं छीन सकही। 23ओ दिन म तुमन मोर ले कुछू नइं पुछहू। मेंह तुमन ला सच-सच कहथंव, जऊन कुछू तुमन मोर नांव म मांगहू, ओ चीज ददा ह तुमन ला दिही। 24अभी तक तुमन मोर नांव म कुछू नइं मांगे हवव। मांगव, त तुमन पाहू अऊ तुम्‍हर आनंद ह पूरा हो जाही।

25मेंह तुमन ला ए बात पटं‍तर म कहे हवंव, पर ओ समय ह आवत हवय, जब मेंह तुम्‍हर ले पटं‍तर म नइं गोठियावंव, पर मेंह तुमन ला अपन ददा के बारे म साफ-साफ बताहूं। 26ओ दिन तुमन मोर नांव म मांगहू, अऊ मेंह ए नइं कहथंव कि मेंह तुम्‍हर बर ददा ले बिनती करहूं। 27ददा ह खुदे तुम्‍हर ले मया करथे, काबरकि तुमन मोर ले मया करे हवव अऊ बिसवास करे हवव कि मेंह परमेसर करा ले आय हवंव। 28मेंह ददा म ले निकरके संसार म आय हवंव; अऊ अब मेंह संसार ला छोंड़के वापिस ददा करा जावत हंव।”

29यीसू के चेलामन कहिन, “अब तेंह साफ-साफ बिगर पटं‍तर के गोठियावत हस। 30अब हमन जान डारेन कि तेंह जम्मो बात ला जानथस अऊ एकर जरूरत नइं ए कि कोनो तोर ले सवाल पुछय। एकर दुवारा हमन बिसवास करथन कि तेंह परमेसर करा ले आय हवस।”

31यीसू ह ओमन ला जबाब दीस, “आखिर म तुमन बिसवास करेव। 32पर देखव, ओ बेरा ह आवत हवय अऊ आ घलो गे हवय, जब तुमन तितिर-बितिर हो जाहू; हर एक झन अपन-अपन घर चल दिहीं। तुमन मोला एकदम अकेला छोंड़ दूहू। तभो ले मेंह अकेला नइं अंव, काबरकि मोर ददा ह मोर संग हवय।

33मेंह तुमन ला ए बात एकरसेति कहेंव ताकि तुमन ला मोर म सांति मिलय। ए संसार म तुमन तकलीफ पाहू। पर हिम्मत रखव! मेंह संसार ऊपर जय पाय हवंव।”