الكرمة والأغصان
1أَنَا الْكَرْمَةُ الْحَقِيقِيَّةُ، وَأَبِي هُوَ الْكَرَّامُ. 2كُلُّ غُصْنٍ فِيَّ لَا يُنْتِجُ ثَمَراً يَقْطَعُهُ؛ وَكُلُّ غُصْنٍ يُنْتِجُ ثَمَراً يُنَقِّيهِ لِيُنْتِجَ مَزِيداً مِنَ الثَّمَرِ. 3أَنْتُمُ الآنَ أَنْقِيَاءُ بِسَبَبِ الْكَلِمَةِ الَّتِي خَاطَبْتُكُمْ بِها. 4فَاثْبُتُوا فِيَّ وَأَنَا فِيكُمْ. كَمَا أَنَّ الْغُصْنَ لَا يَقْدِرُ أَنْ يُنْتِجَ ثَمَراً إِلّا إِذَا ثَبَتَ فِي الْكَرْمَةِ؛ فَكَذلِكَ أَنْتُمْ، إِلّا إِذَا ثَبَتُّمْ فِيَّ. 5أَنَا الْكَرْمَةُ وَأَنْتُمُ الأَغْصَانُ. مَنْ يَثْبُتُ فِيَّ وَأَنَا فِيهِ، فَذَاكَ يُنْتِجُ ثَمَراً كَثِيراً. فَإِنَّكُمْ بِمَعْزِلٍ عَنِّي لَا تَقْدِرُونَ أَنْ تَفْعَلُوا شَيْئاً. 6إِنْ كَانَ أَحَدٌ لَا يَثْبُتُ فِيَّ يُطْرَحُ خَارِجاً كَالْغُصْنِ فَيَجِفُّ؛ ثُمَّ تُجْمَعُ الأَغْصَانُ الْجَافَّةُ، وَتُطْرَحُ فِي النَّارِ فَتَحْتَرِقُ. 7وَلكِنْ، إِنْ ثَبَتُّمْ فِيَّ، وَثَبَتَ كَلامِي فِيكُمْ، فَاطْلُبُوا مَا تُرِيدُونَ يَكُنْ لَكُمْ. 8بِهَذَا يَتَمَجَّدُ أَبِي: أَنْ تُنْتِجُوا ثَمَراً كَثِيراً فَتَكُونُوا حَقّاً تَلامِيذِي. 9مِثْلَمَا أَحَبَّنِي الآبُ، أَحْبَبْتُكُمْ أَنَا، فَاثْبُتُوا فِي مَحَبَّتِي. 10إِنْ عَمِلْتُمْ بِوَصَايَايَ، تَثْبُتُونَ فِي مَحَبَّتِي، كَمَا عَمِلْتُ أَنَا بِوَصَايَا أَبِي وَأَثْبُتُ فِي مَحَبَّتِهِ! 11قُلْتُ لَكُمْ هَذَا لِيَكُونَ فِيكُمْ فَرَحِي، وَيَكُونَ فَرَحُكُمْ كَامِلاً.
12وَصِيَّتِي لَكُمْ هِيَ هذِهِ: أَنْ يُحِبَّ بَعْضُكُمْ بَعْضاً كَمَا أَنَا أَحْبَبْتُكُمْ. 13لَيْسَ لأَحَدٍ مَحَبَّةٌ أَعْظَمُ مِنْ هذِهِ: أَنْ يَبْذِلَ أَحَدٌ حَيَاتَهُ فِدَى أَحِبَّائِهِ. 14وَأَنْتُمْ أَحِبَّائِي إِنْ عَمِلْتُمْ بِمَا أُوصِيكُمْ بِهِ. 15لَا أُسَمِّيكُمْ عَبِيداً بَعْدُ، لأَنَّ الْعَبْدَ لَا يُطْلِعُهُ سَيِّدُهُ عَلَى مَا يَفْعَلُهُ. وَلكِنِّي قَدْ سَمَّيْتُكُمْ أَحِبَّاءَ لأَنِّي أَطْلَعْتُكُمْ عَلَى كُلِّ مَا سَمِعْتُهُ مِنْ أَبِي. 16لَيْسَ أَنْتُمُ اخْتَرْتُمُونِي، بَلْ أَنَا اخْتَرْتُكُمْ وَعَيَّنْتُكُمْ لِتَنْطَلِقُوا وَتُنْتِجُوا ثَمَراً وَيَدُومَ ثَمَرُكُمْ، فَيُعْطِيَكُمُ الآبُ كُلَّ مَا تَطْلُبُونَهُ بِاسْمِي. 17فَبِهَذَا أُوصِيكُمْ إِذَنْ: أَنْ تُحِبُّوا بَعْضُكُمْ بَعْضاً.
العالم يبغض التلاميذ
18إِنْ أَبْغَضَكُمُ الْعَالَمُ، فَاعْلَمُوا أَنَّهُ قَدْ أَبْغَضَنِي مِنْ قَبْلِكُمْ. 19لَوْ كُنْتُمْ مِنْ أَهْلِ الْعَالَمِ، لَكَانَ الْعَالَمُ يُحِبُّ أَهْلَهُ، وَلكِنْ لأَنَّكُمْ لَسْتُمْ مِنْ أَهْلِ الْعَالَمِ، بَلْ إِنِّي اخْتَرْتُكُمْ مِنْ وَسْطِ الْعَالَمِ، لِذَلِكَ يُبْغِضُكُمُ الْعَالَمُ. 20اذْكُرُوا الْكَلِمَةَ الَّتِي قُلْتُهَا لَكُمْ: لَيْسَ عَبْدٌ أَعْظَمَ مِنْ سَيِّدِهِ. فَإِنْ كَانَ أَهْلُ الْعَالَمِ قَدِ اضْطَهَدُونِي، فَسَوْفَ يَضْطَهِدُونَكُمْ؛ وَإِنْ كَانُوا قَدْ عَمِلُوا بِكَلِمَتِي، فَسَوْفَ يَعْمَلُونَ بِكَلِمَتِكُمْ. 21وَلكِنَّهُمْ سَيَفْعَلُونَ هَذَا كُلَّهُ بِكُمْ مِنْ أَجْلِ اسْمِي، لأَنَّهُمْ لَا يَعْرِفُونَ الَّذِي أَرْسَلَنِي. 22لَوْ لَمْ آتِ وَأُكَلِّمْهُمْ، لَمَا كَانَتْ لَهُمْ خَطِيئَةٌ؛ وَلكِنْ لَا عُذْرَ لَهُمُ الآنَ فِي خَطِيئَتِهِمْ. 23الَّذِي يُبْغِضُنِي، يُبْغِضُ أَبِي أَيْضاً. 24وَلَوْ لَمْ أَعْمَلْ بَيْنَهُمْ أَعْمَالاً لَمْ يَعْمَلْهَا أَحَدٌ غَيْرِي، لَمَا كَانَتْ لَهُمْ خَطِيئَةٌ. وَلكِنَّهُمْ أَبْغَضُونِي وَأَبْغَضُوا أَبِي، مَعَ أَنَّهُمْ رَأَوْا تِلْكَ الأَعْمَالَ. 25وَقَدْ صَارَ ذلِكَ لِتَتِمَّ الْكَلِمَةُ الْمَكْتُوبَةُ فِي شَرِيعَتِهِمْ: أَبْغَضُونِي بِلا سَبَبٍ!
26وَعِنْدَمَا يَأْتِي الْمُعِينُ، الَّذِي سَأُرْسِلُهُ لَكُمْ مِنْ عِنْدِ الآبِ، رُوحُ الْحَقِّ الَّذِي يَنْبَثِقُ مِنَ الآبِ، فَهُوَ يَشْهَد لِي، 27وَتَشْهَدون لِي أَنْتُمْ أَيْضاً، لأَنَّكُمْ مَعِي مِنَ الْبَدَايَةِ.
अंगूर के नार अऊ डंगालीमन
1“सही अंगूर के नार मेंह अंव अऊ मोर ददा ह किसान ए। 2ओ डंगाल जऊन ह मोर म हवय अऊ नइं फरय, ओह ओला काट डारथे; अऊ ओ डंगाल जऊन ह फरथे, ओला ओह छांटथे, ताकि ओह अऊ फरय। 3जऊन बचन मेंह तुमन ला कहे हवंव, ओकर कारन तुमन पहिली ले सुध हो गे हवव। 4तुमन मोर म बने रहव अऊ मेंह तुमन म बने रहिहूं। जइसने डंगाल ह यदि अंगूर के नार म बने नइं रहय, त ओ डंगाल ह अपन-आप म नइं फर सकय, वइसने यदि तुमन मोर म बने नइं रहव, त तुमन घलो नइं फर सकव।
5मेंह अंगूर के नार अंव अऊ तुमन डंगाल अव। जऊन मनखे ह मोर म बने रहिथे अऊ मेंह ओम, त ओह बहुंत फरथे, काबरकि मोर ले अलग होके तुमन कुछू नइं कर सकव। 6कहूं कोनो मनखे मोर म बने नइं रहय, त ओह ओ डंगाल सहीं अय, जऊन ला फटिक दिये जाथे अऊ ओह सूखा जाथे; अइसने डारामन ला मनखेमन संकेलथें अऊ आगी म झोंक के जरा देथें। 7यदि तुमन मोर म बने रहव अऊ मोर बचन ह तुमन म बने रहय, त जऊन कुछू तुमन चाहव अऊ मांगव; ओह तुमन ला दिये जाही। 8मोर ददा के महिमा इही म होथे कि तुमन ह बहुंत फर लानव अऊ अपन-आप ला देखा दव कि तुमन मोर चेला अव।
9जइसने ददा ह मोला मया करिस, वइसने मेंह तुमन ले मया करे हवंव। अब तुमन मोर मया म बने रहव। 10यदि तुमन मोर हुकूममन ला मानहू, त मोर मया म बने रहिहू; जइसने मेंह अपन ददा के हुकूममन ला माने हवंव अऊ ओकर मया म बने रहिथंव। 11मेंह ए बात तुमन ला ए खातिर कहे हवंव, ताकि मोर आनंद ह तुमन म रहय अऊ तुम्हर आनंद ह पूरा हो जावय। 12मोर हुकूम ए अय: जइसने मेंह तुमन ला मया करे हवंव, वइसनेच तुमन घलो एक-दूसर ले मया करव। 13एकर ले बड़े मया अऊ काकरो नइं ए कि कोनो मनखे अपन संगवारीमन बर अपन परान देवय। 14जऊन हुकूम मेंह देवत हंव, ओला यदि तुमन मानव, त तुमन मोर संगवारी अव। 15अब ले मेंह तुमन ला सेवक नइं कहंव, काबरकि सेवक ह नइं जानय कि ओकर मालिक ह का करथे। पर मेंह तुमन ला संगवारी कहे हवंव काबरकि जऊन कुछू मेंह अपन ददा ले सुनेंव, ओ जम्मो बात तुमन ला बता दे हवंव। 16तुमन मोला नइं चुनेव, पर मेंह तुमन ला चुने अऊ ठहराय हवंव कि तुमन जावव अऊ फरव – अइसने फर जऊन ह बने रहय। तब जऊन कुछू तुमन मोर नांव म ददा ले मांगहू, ओह तुमन ला दिही। 17मोर हुकूम ए अय: एक-दूसर ले मया करव।”
संसार ह चेलामन ले घिन करथे
18“यदि संसार ह तुम्हर ले घिन करथे, त ए बात ला जान लेवव कि एह तुम्हर ले पहिली मोर ले घिन करिस। 19यदि तुमन संसार के होतेव, त संसार ह तुमन ला अपन समझके मया करतिस। पर तुमन संसार के नो हव, पर मेंह तुमन ला संसार म ले चुन ले हवंव। एकरसेति संसार ह तुम्हर ले घिन करथे। 20जऊन बचन मेंह तुमन ला कहे हवंव, ओला सुरता रखव: ‘एक सेवक ह अपन मालिक ले बड़े नइं होवय।’15:20 यूहन्ना 13:16 जब ओमन मोला सताईन, त तुमन ला घलो सताहीं। अऊ यदि ओमन मोर बचन ला मानिन, त तुम्हर बचन ला घलो मानहीं। 21मोर नांव के सेति ओमन तुम्हर संग अइसने बरताव करहीं, काबरकि ओमन ओला नइं जानंय, जऊन ह मोला पठोय हवय। 22कहूं मेंह नइं आतेंव अऊ ओमन ले नइं गोठियातेंव, त ओमन पाप के दोसीदार नइं होतिन, पर अब ओमन करा अपन पाप के कोनो बहाना नइं ए। 23जऊन ह मोर ले घिन करथे, ओह मोर ददा ले घलो घिन करथे। 24ओमन पाप के दोसीदार नइं होतिन, कहूं मेंह ओमन के आघू म ओ काममन ला नइं करे होतेंव, जऊन ला कोनो कभू नइं करिन। पर अब ओमन ए चमतकार के काममन ला देखके घलो मोर अऊ मोर ददा दूनों ले घिन करे हवंय। 25एह एकरसेति होईस ताकि ओमन के कानून म लिखे ए बचन ह पूरा होवय: ‘ओमन मोर ले बिगर कोनो कारन के घिन करिन।’15:25 भजन-संहिता 35:19; 69:4
26पर मददगार ह आही, जऊन ला मेंह ददा के इहां ले तुमन करा पठोहूं। ओह सत के आतमा ए, जऊन ह ददा म ले निकरथे। ओह मोर बारे म गवाही दिही। 27अऊ तुमन ला घलो मोर बारे म गवाही देना जरूरी ए, काबरकि तुमन सुरू ले मोर संग रहे हवव।