إنجيل مرقس 2 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

إنجيل مرقس 2:1-28

يسوع يشفي مشلولاً

1وَبَعْدَ بِضْعَةِ أَيَّامٍ، رَجَعَ يَسُوعُ إِلَى بَلْدَةِ كَفْرَنَاحُومَ. وَانْتَشَرَ الْخَبَرُ أَنَّهُ فِي الْبَيْتِ، 2فَاجْتَمَعَ عَدَدٌ كَبِيرٌ مِنَ النَّاسِ، حَتَّى لَمْ يَبْقَ مَكَانٌ لأَحَدٍ، وَلا أَمَامَ الْبَابِ. فَأَخَذَ يُلْقِي عَلَيْهِمْ كَلِمَةَ اللهِ. 3وَجَاءَهُ بَعْضُهُمْ بِمَشْلُولٍ يَحْمِلُهُ أَرْبَعَةُ رِجَالٍ. 4وَلكِنَّهُمْ لَمْ يَقْدِرُوا أَنْ يَقْتَرِبُوا إِلَيْهِ بِسَبَبِ الزِّحَامِ. فَنَقَبُوا السَّقْفَ فَوْقَ الْمَكَانِ الَّذِي كَانَ يَسُوعُ فِيهِ حَتَّى كَشَفُوهُ، ثُمَّ دَلَّوْا الْفِرَاشَ الَّذِي كَانَ الْمَشْلُولُ رَاقِداً عَلَيْهِ. 5فَلَمَّا رَأَى يَسُوعُ إِيمَانَهُمْ، قَالَ لِلْمَشْلُولِ: «يَا بُنَيَّ، قَدْ غُفِرَتْ لَكَ خَطَايَاكَ!» 6وَكَانَ بَيْنَ الْجَالِسِينَ بَعْضُ الْكَتَبَةِ، فَأَخَذُوا يُفَكِّرُونَ فِي قُلُوبِهِمْ: 7«لِمَاذَا يَتَكَلَّمُ هَذَا الرَّجُلُ هكَذَا؟ إِنَّهُ يَتَكَلَّمُ كُفْرَاً! مَنْ يَقْدِرُ أَنْ يَغْفِرَ الْخَطَايَا إِلّا اللهُ وَحْدَهُ؟» 8وَفِي الْحَالِ أَدْرَكَ يَسُوعُ بِرُوحِهِ مَا يُفَكِّرُونَ فِيهِ فِي قُلُوبِهِمْ، فَسَأَلَهُمْ: «لِمَاذَا تُفَكِّرُونَ بِهذَا الأَمْرِ فِي قُلُوبِكُمْ؟ 9أَيُّ الأَمْرَيْنِ أَسْهَلُ أَنْ يُقَالَ لِلْمَشْلُولِ: قَدْ غُفِرَتْ لَكَ خَطَايَاكَ، أَوْ أَنْ يُقَالَ لَهُ: قُمِ احْمِلْ فِرَاشَكَ وَامْشِ؟ 10وَلكِنِّي قُلْتُ ذلِكَ لِتَعْلَمُوا أَنَّ لابْنِ الإِنْسَانِ عَلَى الأَرْضِ سُلْطَةَ غُفْرَانِ الْخَطَايَا». ثُمَّ قَالَ لِلْمَشْلُولِ: 11«لَكَ أَقُولُ: قُمِ احْمِلْ فِرَاشَكَ، وَاذْهَبْ إِلَى بَيْتِكَ!» 12فَقَامَ فِي الْحَالِ، وَحَمَلَ فِرَاشَهُ، وَمَشَى أَمَامَ الْجَمِيعِ. فَذُهِلُوا جَمِيعاً وَعَظَّمُوا اللهَ قَائِلِينَ: «مَا رَأَيْنَا مِثْلَ هَذَا قَطُّ!»

يسوع يدعو لاوي ويأكل مع الخطاة

13وَخَرَجَ يَسُوعُ ثَانِيَةً إِلَى شَاطِئِ الْبُحَيْرَةِ، فَلَحِقَ بِهِ الْجَمْعُ كُلُّهُ. فَأَخَذَ يُعَلِّمُهُمْ. 14وَفِيمَا هُوَ سَائِرٌ، رَأَى لاوِيَ بْنَ حَلْفَى جَالِساً فِي مَكْتَبِ الْجِبَايَةِ، فَقَالَ لَهُ: «اتْبَعْنِي!» فَقَامَ وَتَبِعَهُ. 15وَبَيْنَمَا كَانَ يَسُوعُ مُتَّكِئاً فِي بَيْتِ لاوِي، أَخَذَ كَثِيرُونَ مِنَ الْجُبَاةِ وَالْخَاطِئِينَ يَتَّكِئُونَ مَعَهُ وَمَعَ تَلامِيذِهِ، لأَنَّ كَثِيرِينَ مِنْهُمْ كَانُوا هُنَاكَ فَلَحِقُوا بِهِ. 16فَلَمَّا رَأَى الْكَتَبَةُ وَالْفَرِّيسِيُّونَ يَسُوعَ يَأْكُلُ مَعَ الْجُبَاةِ وَالْخَاطِئِينَ، قَالُوا لِتَلامِيذِهِ: «لِمَاذَا يَأْكُلُ مَعَ الْجُبَاةِ وَالْخَاطِئِينَ؟» 17فَسَمِعَ يَسُوعُ، وَأَجَابَ: «لَيْسَ الأَصِحَّاءُ هُمُ الْمُحْتَاجُونَ إِلَى الطَّبِيبِ، بَلِ الْمَرْضَى. مَا جِئْتُ لأَدْعُوَ صالِحِينَ بَلْ خَاطِئِينَ!»

الحوار حول الصوم

18وَكَانَ تَلامِيذُ يُوحَنَّا وَالْفَرِّيسِيُّونَ صَائِمِينَ، فَجَاءَ بَعْضُهُمْ إِلَى يَسُوعَ يَسْأَلُونَهُ: «لِمَاذَا يَصُومُ تَلامِيذُ يُوحَنَّا وَتَلامِيذُ الْفَرِّيسِيِّينَ، وَأَمَّا تَلامِيذُكَ فَلا يَصُومُونَ؟» 19فَأَجَابَهُمْ: «هَلْ يَقْدِرُ أَهْلُ الْعُرْسِ أَنْ يَصُومُوا وَالْعَرِيسُ بَيْنَهُمْ؟ مَادَامَ الْعَرِيسُ بَيْنَهُمْ لَا يَقْدِرُونَ أَنْ يَصُومُوا. 20وَلكِنْ سَتَأْتِي أَيَّامٌ يَكُونُ الْعَرِيسُ فِيهَا قَدْ رُفِعَ مِنْ بَيْنِهِمْ. فِي تِلْكَ الأيَّامِ يَصُومُونَ. 21لَا أَحَدَ يَرْقَعُ ثَوْباً عَتِيقاً بِرُقْعَةٍ مِنْ قُمَاشٍ جَدِيدٍ وَإلَّا، فَإِنَّ الرُّقْعَةَ الْجَدِيدَةَ تَنْكَمِشُ فَتَأْكُلُ مِنَ الثَّوْبِ الْعَتِيقِ، وَيَصِيرُ الْخَرْقُ أَسْوَأَ! 22وَلا أَحَدَ يَضَعُ خَمْراً جَدِيدَةً فِي قِرَبٍ عَتِيقَةٍ، حَتَّى لَا تُفَجِّرَ الْخَمْرُ الْجَدِيدَةُ الْقِرَبَ، فَتُرَاقَ الْخَمْرُ وَتَتْلَفَ الْقِرَبُ. إِنَّمَا الْخَمْرُ الْجَدِيدَةُ تُوْضَعُ فِي قِرَبٍ جَدِيدَةٍ».

رب السبت

23وَمَرَّ يَسُوعُ ذَاتَ سَبْتٍ بَيْنَ الْحُقُولِ، فَأَخَذَ التَّلامِيذُ يَشُقُّونَ طَرِيقَهُمْ وَهُمْ يَقْطِفُونَ السَّنَابِلَ. 24فَقَالَ الْفَرِّيسِيُّونَ لِيَسُوعَ: «انْظُرْ! لِمَاذَا يَفْعَلُ تَلامِيذُكَ مَا لَا يَحِلُّ فِعْلُهُ يَوْمَ السَّبْتِ؟» 25فَأَجَابَهُمْ: «أَمَا قَرَأْتُمْ مَا فَعَلَهُ دَاوُدُ وَمُرَافِقُوهُ عِنْدَمَا احْتَاجُوا وَجَاعُوا؟ 26كَيْفَ دَخَلَ بَيْتَ اللهِ، فِي زَمَانِ أَبِيأَثَارَ رَئِيسِ الْكَهَنَةِ، وَأَكَلَ خُبْزَ التَّقْدِمَةِ الَّذِي لَا يَحِلُّ الأَكْلُ مِنْهُ إِلّا لِلْكَهَنَةِ وَحْدَهُمْ، بَلْ أَعْطَى مُرَافِقِيهِ أَيْضاً فَأَكَلُوا؟» 27ثُمَّ قَالَ لَهُمْ: «إِنَّمَا جُعِلَ السَّبْتُ لِفَائِدَةِ الإِنْسَانِ، وَلَمْ يُجْعَلِ الإِنْسَانُ عَبْداً لِلسَّبْتِ. 28فَابْنُ الإِنْسَانِ هُوَ رَبُّ السَّبْتِ أَيْضاً!»

Hindi Contemporary Version

मार्कास 2:1-28

लकवे के रोगी को स्वास्थ्यदान

1कुछ दिन बाद मसीह येशु के कफ़रनहूम नगर लौटने पर वहां यह समाचार फैल गया कि वह लौट आए हैं. 2वहां इतनी विशाल भीड़ इकट्ठी हो गई कि कहीं कोई स्थान शेष न रहा—यहां तक कि द्वार के सामने भी नहीं और मसीह येशु पवित्र शास्त्र की शिक्षा दे रहे थे. 3कुछ लोग एक लकवे के रोगी को उनके पास लाए, जिसे चार व्यक्तियों ने उठाया हुआ था. 4भीड़ के कारण वे मसीह येशु के पास पहुंचने में असमर्थ थे, इसलिये उन्होंने जहां मसीह येशु थे, वहां की कच्ची छत को हटाकर वहां से उस रोगी को बिछौने सहित नीचे उतार दिया. 5उनके इस विश्वास को देख मसीह येशु ने लकवे के रोगी से कहा, “पुत्र, तुम्हारे पाप क्षमा हो चुके हैं.”

6वहां मौज़ूद कुछ शास्त्री अपने मन में यह विचार करने लगे, 7“यह व्यक्ति ऐसा क्यों कह रहा है? यह तो परमेश्वर की निंदा कर रहा है! परमेश्वर के अतिरिक्त कौन पापों को क्षमा कर सकता है?”

8मसीह येशु को अपनी आत्मा में उसी क्षण यह मालूम हो गया कि वे इस प्रकार सोच-विचार कर रहे हैं. मसीह येशु ने उन्हें ही संबोधित करते हुए प्रश्न किया, “आप अपने मन में इस प्रकार सोच-विचार क्यों कर रहे हैं? 9लकवे के रोगी से क्या कहना सरल है, ‘तुम्हारे पाप क्षमा हुए’ या यह, ‘उठो! अपना बिछौना उठाकर चले जाओ’? 10किंतु इसका उद्देश्य यह है कि तुम्हें यह मालूम हो जाए कि मनुष्य के पुत्र2:10 मनुष्य के पुत्र प्रभु येशु अपने ही बारे में कहने का एक तरीका को पृथ्वी पर पाप क्षमा का अधिकार सौंपा गया है.” तब रोगी से येशु ने कहा, 11“उठो, अपना बिछौना उठाओ और अपने घर जाओ.” 12वह उठा और तत्काल अपना बिछौना समेटकर उन सबके देखते-देखते वहां से चला गया. इस पर वे सभी चकित रह गए तथा परमेश्वर की वंदना करते हुए कहने लगे, “ऐसा हमने कभी नहीं देखा.”

अपराधियों के साथ मसीह येशु की संगति

13तब मसीह येशु दोबारा सागर तट पर चले गए. एक विशाल भीड़ उनके पास आ गयी और वह उन्हें शिक्षा देने लगे. 14मार्ग में मसीह येशु ने हलफ़ेयॉस के पुत्र लेवी को कर-चौकी पर बैठा देखा. उन्होंने उन्हें आज्ञा दी, “मेरे पीछे आओ.” वह उठे और उनके साथ हो लिए.

15जब मसीह येशु लेवी के घर पर भोजन के लिए बैठे थे, अनेक चुंगी लेनेवाले तथा अपराधी व्यक्ति मसीह येशु तथा उनके शिष्यों के साथ भोजन कर रहे थे. एक बड़ी संख्या में लोग उनके पीछे हो लिए थे. 16मसीह येशु को अपराधी व्यक्तियों के साथ भोजन करते देख व्यवस्था के शिक्षकों ने, जो वास्तव में फ़रीसी2:16 फ़रीसी यहूदियों के एक संप्रदाय ये लोग कानून-व्यवस्था के सख्त पालन में विश्वास करते थे थे, उनके शिष्यों से प्रश्न किया, “यह चुंगी लेनेवाले तथा अपराधी व्यक्तियों के साथ क्यों खाता-पीता है?”

17यह सुन मसीह येशु ने उन्हें ही संबोधित कर कहा, “वैद्य की ज़रूरत रोगी को होती है, स्वस्थ व्यक्ति को नहीं. मैं धर्मियों का नहीं परंतु पापियों का उद्धार करने आया हूं.”

उपवास के प्रश्न का हल

18योहन के शिष्य तथा फ़रीसी उपवास कर रहे थे. कुछ ने आकर मसीह येशु से प्रश्न किया, “ऐसा क्यों है कि योहन तथा फ़रीसियों के शिष्य तो उपवास करते हैं किंतु आपके शिष्य नहीं?”

19मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या कभी वर के रहते हुए उसके साथी उपवास करते हैं? जब तक वर उनके साथ है, वे उपवास कर ही नहीं सकते. 20किंतु वह समय आएगा, जब वर उनके मध्य से हटा लिया जाएगा, वे उस समय उपवास करेंगे.

21“किसी पुराने वस्त्र पर नये वस्त्र का जोड़ नहीं लगाया जाता क्योंकि ऐसा करने पर नये वस्त्र का जोड़ सिकुड़ कर उस पुराने वस्त्र की पहले से अधिक दुर्दशा कर देता है. 22कोई भी नये दाखरस को पुरानी मश्कों में नहीं रखता अन्यथा खमीर होकर दाखरस मश्कों को फाड़ देती है. इससे दाखरस भी नाश हो जाता है और मश्कें भी—नया दाखरस नए मटके में ही डाला जाता है.”

शिष्यों का शब्बाथ पर बालें तोड़ना

23एक शब्बाथ पर मसीह येशु अन्‍न के खेतों में से होकर जा रहे थे. चलते हुए उनके शिष्य बालें तोड़ने लगे. 24इस पर फ़रीसियों ने मसीह येशु से कहा, “देखो! वे लोग वह काम क्यों कर रहे हैं, जो शब्बाथ पर व्यवस्था के अनुसार नहीं है?”

25मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या आपने कभी पढ़ा नहीं? क्या किया था दावीद ने जब वह तथा उनके साथी भूखे और भोजन की कमी में थे? 26महापुरोहित अबीयाथर के समय में उन्होंने परमेश्वर के भवन में प्रवेश किया तथा समर्पित पवित्र रोटी खाई जिसे खाना पुरोहित के अतिरिक्त अन्य किसी के लिए व्यवस्था के अनुसार नहीं था. यही रोटी उन्होंने अपने साथियों को भी दी.”2:26 लेवी 24:9; 1 शमु 21:1-6 देखें

27तब उन्होंने आगे कहा, “शब्बाथ की स्थापना मनुष्य के लिए की गई है न कि मनुष्य की शब्बाथ के लिए. 28इसलिये, मनुष्य का पुत्र शब्बाथ का भी स्वामी है.”