2 ነገሥት 18 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

2 ነገሥት 18:1-37

የይሁዳ ንጉሥ ሕዝቅያስ

18፥2-4 ተጓ ምብ – 2ዜና 29፥1-231፥1

18፥5-7 ተጓ ምብ – 2ዜና 31፥20-21

18፥9-12 ተጓ ምብ – 2ነገ 17፥3-7

1የእስራኤል ንጉሥ የኤላ ልጅ ሆሴዕ በነገሠ በሦስተኛው ዓመት የይሁዳ ንጉሥ የአካዝ ልጅ ሕዝቅያስ ነገሠ። 2በነገሠም ጊዜ ዕድሜው ሃያ አምስት ዓመት ነበር፤ በኢየሩሳሌም ተቀምጦም ሃያ ዘጠኝ ዓመት ገዛ። እናቱ የዘካርያስ ልጅ ስትሆን ስሟ አቢያ18፥2 በዕብራይስጡ አብያ ማለት አብግያ ማለት ነው። ይባል ነበር። 3አባቱ ዳዊት እንዳደረገው ሁሉ፣ እርሱም በእግዚአብሔር ፊት መልካም ነገር አደረገ። 4በየኰረብታው ላይ ያሉትን ማምለኪያዎች አስወገደ፤ አዕማደ ጣዖታትን ሰባበረ፤ የአሼራን ምስል ዐምዶች ቈራረጠ፤ ሙሴ የሠራውን የናስ እባብ፣ እስራኤላውያን እስከዚያች ጊዜ ድረስ ዕጣን ያጤሱለት ስለ ነበር ሰባበረው፤ ይህም ነሑሽታን18፥4 ነሑሽታን የሚለው ቃል ድምፅ ነሖስ፣ እባብ እንዲሁም ርኩስ ነገር ከሚለው የቃል ድምፅ ጋር አንድ ዐይነት ነው። ይባል ነበር።

5ሕዝቅያስም በእስራኤል አምላክ በእግዚአብሔር ታመነ፤ ከእርሱ በፊትም ሆነ ከእርሱ በኋላ ከይሁዳ ነገሥታት ሁሉ፣ እንደ እርሱ ያለ አልነበረም። 6ከእግዚአብሔር ጋር ተጣበቀ፤ እርሱን ከመከተል ወደ ኋላ አላለም፤ እግዚአብሔር ለሙሴ የሰጠውንም ትእዛዞች ጠበቀ። 7እግዚአብሔር ከእርሱ ጋር ስለ ነበር የሚያደርገው ሁሉ ተከናወነለት። በአሦር ንጉሥ ላይ ዐመፀ፤ ግብር መገበሩንም ተወ። 8እስከ ጋዛና እስከ ግዛቷ ዳርቻ በመዝለቅ ፍልስጥኤማውያንን ከመጠበቂያ ማማ እስከ ተመሸገችው ከተማ ድረስ ድል አደረጋቸው።

9ሕዝቅያስ በነገሠ በአራተኛው ዓመት፣ የእስራኤልም ንጉሥ የኤላ ልጅ ሆሴዕ በነገሠ በሰባተኛው ዓመት፣ የአሦር ንጉሥ ስልምናሶር ወደ ሰማርያ ገሥግሦ ከተማዪቱን ከበባት፤ 10በሦስተኛውም ዓመት መጨረሻ ያዛት። ሰማርያ የተያዘችውም ሕዝቅያስ በነገሠ በስድስተኛው ዓመት፣ ሆሴዕ በእስራኤል ላይ በነገሠ በዘጠነኛው ዓመት ነበር። 11የአሦር ንጉሥ እስራኤልን ማርኮ ወደ አሦር በማፍለስ በአላሔ፣ በጎዛን ውስጥ በአቦር ወንዝ አጠገብና በሜዶን ከተሞች አሰፈራቸው። 12ይህ የደረሰባቸውም የእግዚአብሔር ባሪያ ሙሴ ያዘዘውን የአምላካቸውን የእግዚአብሔርን ቃል ሁሉ ከመስማት ይልቅ ኪዳኑን ስላፈረሱ ነበር፤ ትእዛዞቹን አላደመጡም፤ ደግሞም አልፈጸሙም።

13ሕዝቅያስ በነገሠ በዐሥራ አራተኛው ዓመት፣ የአሦር ንጉሥ ሰናክሬም የተመሸጉትን የይሁዳን ከተሞች ሁሉ አደጋ ጥሎ ያዛቸው። 14ስለዚህ የይሁዳ ንጉሥ ሕዝቅያስ፣ “በደለኛው እኔ ነኝ፤ ተመለስልኝ፤ እኔም የምትጠይቀኝን ሁሉ እከፍላለሁ፤” ሲል በለኪሶ ወደ ሰፈረው ወደ አሦር ንጉሥ ይህን መልእክት ላከ። የአሦርም ንጉሥ፣ የይሁዳን ንጉሥ ሕዝቅያስን ሦስት መቶ መክሊት18፥14 10 ሜትሪክ ቶን ያህል ነው። ብርና ሠላሳ መክሊት18፥14 ሜትሪክ ቶን ያህል ነው። ወርቅ እንዲያገባለት ጠየቀው።

15ስለዚህ ሕዝቅያስ በእግዚአብሔር ቤተ መቅደስና በቤተ መንግሥቱ ግምጃ ቤቶች የሚገኘውን ብር ሁሉ ሰጠው።

16በዚህ ጊዜም የይሁዳ ንጉሥ ሕዝቅያስ፣ በእግዚአብሔር ቤተ መቅደስ መዝጊያዎችና መቃኖች ላይ የለበጠውን ወርቅ ነቃቅሎ ለአሦር ንጉሥ ሰጠው።

ሰናክሬም ኢየሩሳሌምን አስፈራራ

18፥1317-37 ተጓ ምብ – ኢሳ 36፥1-22

18፥17-35 ተጓ ምብ – 2ዜና 32፥9-19

17የአሦርም ንጉሥ ከለኪሶ የጦሩን ጠቅላይ አዛዥ፣ ዋና አዛዡንና የጦር መሪውን ከታላቅ ሰራዊት ጋር የይሁዳ ንጉሥ ወዳለበት ወደ ኢየሩሳሌም ላከ፤ እነርሱም ወደ ኢየሩሳሌም መጥተው፣ ወደ ልብስ ዐጣቢው ዕርሻ በሚወስደው መንገድ ላይ የሚገኘው የላይኛው ኵሬ ውሃ በመስኖ የሚወርድበትን ስፍራ ያዙ። 18ወደ ንጉሡም ላኩበት፤ ከዚያም የቤተ መንግሥቱ አዛዥ የሆነው የኬልቅያስ ልጅ ኤልያቄም፣ ጸሓፊው ሳምናስ እንዲሁም ታሪክ ጸሐፊው የአሳፍ ልጅ ዮአስ ወደ እነርሱ ሄዱ።

19የጦር መሪውም እንዲህ አላቸው፤ “ሕዝቅያስን እንዲህ በሉት፤

“ ‘ታላቁ የአሦር ንጉሥ የሚለው ይህ ነው፤ “ለመሆኑ እንዲህ የልብ ልብ እንድታገኝ ያደረገህ ምንድን ነው? 20የጦር ስልትና ኀይል አለኝ ትላለህ፣ ነገር ግን ወሬ ብቻ ነው። በእኔ ላይ እንዲህ ያመፅኸውስ በማን ተመክተህ ነው? 21እነሆ፤ እንዲህ የምትመካባት ግብፅ የሚደገፍባትን ሰው እጅ ወግታ የምታቈስል የተቀጠቀጠች ሸንበቆ ናት። የግብፅ ንጉሥ ፈርዖንም ለሚመኩበት ሁሉ እንደዚሁ ነው።” 22ደግሞም፣ “የምንመካው በአምላካችን በእግዚአብሔር ነው” የምትለኝ ከሆነም፣ ሕዝቅያስ ይሁዳንና ኢየሩሳሌምን፣ “ማምለክ ያለባችሁ ኢየሩሳሌም ባለው በዚህ መሠዊያ ፊት ነው” ብሎ የኰረብታ ላይ መመለኪያዎቹንና መሠዊያዎቹን ያስፈረሰበት እርሱ አይደለምን? 23ከሆነልህ ከጌታዬ ከአሦር ንጉሥ ጋር ውርርድ ግጠም፤ የሚጋልቧቸው ሰዎች ማግኘት የምትችል ከሆነ፣ ሁለት ሺሕ ፈረሶች እሰጥሃለሁ። 24የምትመካው በግብፅ ሠረገሎችና18፥24 ወይም፣ ሠረገለኞች ፈረሶች ሆኖ ሳለ ከጌታዬ የበታች የጦር ሹማምት እንኳ አንዱን እንዴት መመለስ ትችላለህ? 25ከዚህም በቀር አደጋ ጥዬ ይህችን ስፍራ ለማጥፋት የመጣሁት፣ ያለ እግዚአብሔር ፈቃድ ይመስልሃል? በዚህች አገር ላይ ዘምቼ እንዳጠፋት የነገረኝ ራሱ እግዚአብሔር ነው።’ ”

26ከዚያም የኬልቅያስ ልጅ ኤልያቄም ሳምናስና ዮአስ የጦር መሪውን፣ “እኛ አገልጋዮችህ ስለምንሰማ፣ እባክህን በሶርያ ቋንቋ ተናገር፤ በቅጥሩ ላይ ያሉት ሰዎች በሚሰሙት በዕብራይስጥ አትናገረን” አሉት።

27የጦር አዛዡም፣ “ለመሆኑ ጌታዬ ይህን እንድናገር የላከኝ፣ ለጌታችሁና ለእናንተ ብቻ ነውን? እነርሱም እንደ እናንተው ገና ኵሳቸውን ይበሉ ዘንድ፣ ሽንታቸውንም ይጠጡ ዘንድ በቅጥሩ ላይ ለተቀመጡት ጭምር አይደለምን?”

28ከዚያም የጦር አዛዡ ቆሞ ድምፁን ከፍ በማድረግ በዕብራውያን ቋንቋ እንዲህ ሲል ተናገረ፤ “እንግዲህ የታላቁን የአሦርን ንጉሥ ቃል ስሙ! 29ንጉሡ የሚለውም ይህ ነው፤ ‘ከእጄ ሊያድናችሁ አይችልምና ሕዝቅያስ እንዳያታልላችሁ፤ 30ደግሞም ሕዝቅያስ፣ “እግዚአብሔር ያለ ጥርጥር ያድነናል፤ ይህችም ከተማ ለአሦር ንጉሥ ዐልፋ አትሰጥም” በማለት በእግዚአብሔር እንድትታመኑ የሚነግራችሁን አትቀበሉ።’

31“ሕዝቅያስንም አትስሙት፤ የአሦር ንጉሥ የሚለው ይህ ነው፤ ‘ከእኔ ጋር ሰላም መሥርቱ፤ እጃችሁን ስጡ፤ ከዚያም ከእናንተ እያንዳንዱ ከገዛ ወይኑና ከገዛ በለሱ ይበላል፤ ከገዛ ጕድጓዱም ውሃ ይጠጣል፤ 32ይህም የሚሆነው የእናንተኑ ወደምትመስለው ምድር እህልና የወይን ጠጅ፣ ዳቦና የወይን ተክል፣ የወይራ ዛፍና ማር ወዳለባት እስካገባችሁ ድረስ ነው፤ እናንተም ሞትን ሳይሆን ሕይወትን ምረጡ።’

“ሕዝቅያስ፣ ‘እግዚአብሔር ይታደገናል’ በማለት ስለሚያሳስታችሁ አትስሙት። 33ለመሆኑ ከአሕዛብ አማልክት ምድሩን ከአሦር ንጉሥ እጅ የታደገ ማን አለ? 34የሐማትና የአርፋድ አማልክት እስቲ የት አሉ? የሴፈርዋይም፣ የሄናና የዒዋም አማልክት ታዲያ የት ደረሱ? ሰማርያን ከእጄ አድነዋታልን? 35ከእነዚህ አገሮች አማልክት ሁሉ አገሩን ከእኔ ለማዳን የቻለ ማን አለ? ታዲያ እግዚአብሔር ኢየሩሳሌምን ከእጄ ሊታደጋት እንዴት ይችላል?”

36ነገር ግን ሕዝቡ ዝም አለ፤ ምንም መልስ አልሰጠም፤ ንጉሡ፣ “መልስ እንዳትሰጡ” ሲል አዝዞ ነበርና።

37ከዚያም የቤተ መንግሥቱ አዛዥ የኬልቅያስ ልጅ ኤልያቄም፣ ጸሓፊው ሳምናስ እንዲሁም ታሪክ ጸሓፊው የአሳፍ ልጅ ዮአስ ልብሳቸውን ቀደዱ፤ ወደ ሕዝቅያስም መጥተው የጦር አዛዡ ያላቸውን ነገሩት።

Hindi Contemporary Version

2 राजा 18:1-37

यहूदिया पर हिज़किय्याह का शासन

1इस्राएल के राजा एलाह के पुत्र होशिया के शासन के तीसरे साल में आहाज़ के पुत्र हिज़किय्याह ने यहूदिया पर शासन करना शुरू किया. 2जब हिज़किय्याह राजा बना, उसकी उम्र पच्चीस साल थी. येरूशलेम में उसने उनतीस साल शासन किया. उसकी माता का नाम अबीयाह18:2 अबीयाह मूल में अबी था, वह ज़करयाह की पुत्री थी. 3उसने वही किया, जो याहवेह की दृष्टि में सही था, वैसा ही, जैसा उसके पूर्वज दावीद ने किया था. 4उसने पूजा की जगह हटा दीं, पूजा के खंभे तोड़ दिए और अशेराह के खंभे भी ध्वस्त कर दिए. उसने मोशेह द्वारा बनाई उस कांसे के सांप की मूर्ति को भी नष्ट कर दिया, क्योंकि तब तक इस्राएली प्रजा इसे नेहूष्तान18:4 नेहूष्तान अर्थ पीतल का सांप नाम से पुकारते हुए इसके सामने धूप जलाने लगे थे.

5हिज़किय्याह का भरोसा याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर पर था, इसलिये न उसके बाद और न ही उसके पहले यहूदिया के सारी राजाओं में उसके समान कोई हुआ. 6वह याहवेह से चिपका रहा. कभी भी उसने याहवेह का अनुसरण करना न छोड़ा. वह मोशेह को सौंपे गए याहवेह के आदेशों का पालन करता रहा. 7वह जहां कहीं गया, याहवेह उसके साथ रहे. वह उन्‍नत ही होता चला गया. उसने अश्शूर के राजा के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, और उससे अपना दासत्व खत्म कर लिया. 8उसने अज्जाह की सीमा तक फिलिस्तीनियों को हरा दिया, यानी पहरेदारों की मचान से लेकर नगर गढ़ तक.

9हिज़किय्याह के शासन के चौथे साल में, जो इस्राएल के राजा एलाह के पुत्र होशिया के शासन का सातवां साल था, अश्शूर के राजा शालमानेसर ने शमरिया पर घेरा डाल दिया. 10और तीन साल पूरा होते-होते उन्होंने शमरिया को अपने अधिकार में ले लिया. हिज़किय्याह के शासन का छठवां और इस्राएल के राजा होशिया के शासन का नवां साल था, जब शमरिया पर अश्शूर के राजा का अधिकार हो गया. 11अश्शूर का राजा इस्राएलियों को बंदी बनाकर अश्शूर देश को ले गया. वहां उसने उन्हें गोज़ान नदी के तट पर हालाह और हाबोर नामक स्थानों में और मेदिया प्रदेश के नगरों में बसा दिया, 12क्योंकि उन्होंने याहवेह, अपने परमेश्वर की वाणी को अनसुनी ही नहीं की, बल्कि उन्होंने उनकी वाचा भी तोड़ दी थी, यहां तक कि उन सारी आदेशों को भी, जो याहवेह के सेवक मोशेह ने दिए थे. न तो उन्होंने इन्हें सुना और न ही उनका पालन किया.

13राजा हिज़किय्याह के शासनकाल के चौदहवें वर्ष में अश्शूर के राजा सेनहेरीब ने यहूदिया के समस्त गढ़ नगरों पर आक्रमण करके उन पर अधिकार कर लिया. 14यहूदिया के राजा हिज़किय्याह ने लाकीश नगर में अश्शूर के राजा को यह संदेश भेजा, “मुझसे गलती हुई है. अपनी सेना यहां से हटा लीजिए. आप मुझ पर जो भी आर्थिक दंड देंगे मैं उसे पूरा करूंगा!” तब अश्शूर के राजा ने यहूदिया के राजा हिज़किय्याह से दस टन चांदी और एक टन सोने का दंड तय कर दिया. 15तब राजा हिज़किय्याह ने याहवेह के भवन और राजघराने के खजाने में रखी पूरी चांदी अश्शूर के राजा को सौंप दी.

16इसी समय हिज़किय्याह ने याहवेह के मंदिर के दरवाजों पर मढ़ी गई सोने की परत उतार ली और वैसे ही दरवाजों के मीनारों की भी, जो यहूदिया के राजा हिज़किय्याह द्वारा ही दरवाजों और दरवाजों के मीनारों पर चढ़ाई गई थी. यह उसने अश्शूर के राजा को सौंप दिया.

सेनहेरीब द्वारा यहूदिया पर हमला

17इस पर अश्शूर के राजा ने लाकीश से राजा हिज़किय्याह के पास अपने सर्वोच्च सेनापति, अपने मुख्य अधिकारी और अपने प्रमुख सेनापति18:17 प्रमुख सेनापति हिब्री भाषा में राबशाकेह को एक बड़ी सेना के साथ येरूशलेम भेज दिया. येरूशलेम पहुंचकर वे उस ऊपरी तालाब की नाली पर जा खड़े हुए, जो सदह-कोबेस के राजमार्ग पर बनी है. 18जब उन्होंने राजा को पुकारा, तब गृह प्रबंधक एलियाकिम, जो हिलकियाह का पुत्र था, शास्त्री शेबना तथा आसफ का पुत्र योआह, जो प्रालेख अधिकारी था, राजा से भेंट करने गए.

19प्रमुख सेनापति ने उन्हें आदेश दिया, “हिज़किय्याह से जाकर यह कहो,

“ ‘पराक्रमी राजा, अश्शूर के राजा का संदेश यह है: कौन है तुम्हारे इस भरोसे का आधार? 20युद्ध से संबंधित तुम्हारी रणनीति तथा तुम्हारी शक्ति मात्र खोखले शब्द हैं. किस पर है तुम्हारा अवलंबन कि तुमने मुझसे विद्रोह का साहस किया है? 21देखो, तुमने जो मिस्र देश पर भरोसा किया है, वह है ही क्या, एक टूटा हुआ सरकंडे की छड़ी! यदि कोई व्यक्ति इसकी टेक लेना चाहे तो यह छड़ी उसके हाथ में ही चुभ जाएगी. मिस्र का राजा फ़रोह भी उन सबके लिए ऐसा ही साबित होता है, जो उस पर भरोसा करते हैं. 22हां, यदि तुम मुझसे कहो, “हम तो याहवेह हमारे परमेश्वर पर भरोसा करते हैं,” तो क्या ये वही नहीं हैं, जिनके पूजा-स्थल तथा वेदियां हिज़किय्याह ने ध्वस्त कर दी हैं, तथा यहूदिया तथा येरूशलेम को यह आदेश दिया गया है: “तुम्हें येरूशलेम में इसी वेदी के समक्ष आराधना करनी होगी”?

23“ ‘तो अब आओ, और हमारे स्वामी, अश्शूर के राजा से मोलभाव कर लो: मैं तुम्हें दो हज़ार घोड़े दूंगा; यदि तुम अपनी ओर से उनके लिए दो हज़ार घुड़सवार ला सको तो! 24रथों और घुड़सवारों के लिए मिस्र देश पर निर्भर रहते हुए यह कैसे संभव है कि तुम मेरे स्वामी के छोटे से छोटे सेवक से टक्कर ले उसे हरा दो! 25क्या मैं याहवेह की आज्ञा बिना ही इस स्थान को नष्ट करने आया हूं? याहवेह ही ने मुझे आदेश दिया है, इस देश पर हमला कर इसे खत्म कर दो.’ ”

26तब हिलकियाह का पुत्र एलियाकिम, शेबना तथा योआह ने प्रमुख सेनापति से आग्रह किया, “अपने सेवकों से अरामी भाषा में संवाद कीजिए, क्योंकि यह भाषा हम समझते हैं; यहूदिया की हिब्री भाषा में संवाद मत कीजिए, क्योंकि प्राचीर पर कुछ लोग हमारा वार्तालाप सुन रहे हैं.”

27किंतु प्रमुख सेनापति ने उत्तर दिया, “क्या मेरे स्वामी ने मात्र तुम्हारे स्वामी तथा मात्र तुम्हें यह संदेश देने के लिए मुझे प्रेषित किया है, तथा प्राचीर पर बैठे व्यक्तियों के लिए नहीं, जिनके लिए तो यही दंड निर्धारित है, कि वे तुम्हारे साथ स्वयं अपनी विष्ठा का सेवन करें तथा अपने ही मूत्र का पान?”

28यह कहते हुए प्रमुख सेनापति खड़ा हो गया और सबके सामने उच्च स्वर में यहूदिया की हिब्री भाषा में यह कहा: “अश्शूर के राजा, प्रतिष्ठित सम्राट का यह संदेश सुन लो! 29सम्राट का आदेश यह है: हिज़किय्याह तुम्हें इस छल में सम्भ्रमित न रखे, क्योंकि वह तुम्हें विमुक्त करने में समर्थ न होगा; 30न ही हिज़किय्याह यह कहते हुए तुम्हें याहवेह पर भरोसा करने के लिए उकसाए, ‘निःसंदेह याहवेह हमारा छुटकारा करेंगे. यह नगर अश्शूर के राजा के अधीन होने न दिया जाएगा.’

31“हिज़किय्याह के आश्वासन पर ध्यान न दो, क्योंकि अश्शूर के राजा का संदेश यह है, मुझसे संधि स्थापित कर लो. नगर से निकलकर बाहर मेरे पास आ जाओ. तब तुममें से हर एक अपनी ही लगाई हुई दाखलता से फल खाएगा, तुममें से हर एक अपने ही अंजीर वृक्ष से अंजीर खाएगा, और तुममें से हर एक अपने ही कुंड में से जल पीएगा. 32तब मैं आऊंगा और तुम्हें एक ऐसे देश में ले जाऊंगा, जो तुम्हारे ही देश के सदृश्य है, ऐसा देश जहां अन्‍न की उपज है, तथा नई द्राक्षा भी. यह भोजन तथा द्राक्षा उद्यानों का देश है, जैतून के पेड़ों और शहद में भरपूर; कि तुम वहां सम्पन्‍नता में जी सको, तुम काल का ग्रास न बनो.

“तब तुम हिज़किय्याह के आश्वासन पर ध्यान न देना, जब वह तुम्हें यह कहते हुए भटकाएगा: ‘याहवेह हमारा छुटकारा कर देंगे.’ 33भला, कहीं कोई ऐसा हुआ भी है कि पड़ोसी राष्ट्रों के किसी देवता ने अपने देश को अश्शूर के राजा से बचाया हो? 34कहां हैं, हामाथ तथा अरपाद के देवता? कहां हैं, सेफरवाइम, हेना और इव्वाह के देवता? और हां, उन्होंने शमरिया को कब मेरे अधिकार से विमुक्त किया है? 35इन देशों के किस देवता ने अपने देश को मेरे हाथों से विमुक्त किया है? यह याहवेह येरूशलेम को मेरे हाथों से कैसे विमुक्त करा लेंगे?”

36मगर प्रजा मौन रही. किसी ने भी उससे एक शब्द तक न कहा, क्योंकि राजा का आदेश ही यह था, “उसे उत्तर न देना!”

37हिलकियाह के पुत्र एलियाकिम ने, जो राजघराने में गृह प्रबंधक था, लिपिक शेबना और आसफ के पुत्र योआह ने, जो लेखापाल था अपने वस्त्र फाड़े और जाकर प्रमुख सेनापति के शब्द राजा को जा सुनाए.