2 ነገሥት 17 – NASV & HCV

New Amharic Standard Version

2 ነገሥት 17:1-41

ሆሴዕ የመጨረሻው የእስራኤል ንጉሥ

1፥3-7 ተጓ ምብ – 2ነገ 1፥9-12

1የይሁዳ ንጉሥ አካዝ በነገሠ በዐሥራ ሁለተኛው ዓመት፣ የኤላ ልጅ ሆሴዕ በሰማርያ ከተማ በእስራኤል ላይ ነገሠ፤ ዘጠኝ ዓመትም ገዛ። 2እርሱም በእግዚአብሔር ፊት ክፉ ነገር አደረገ፤ ክፉ ሥራው ግን ከእርሱ አስቀድሞ የነበሩት የእስራኤል ነገሥታት የፈጸሙትን ያህል አልነበረም። 3የአሦር ንጉሥ ስልምናሶር ሊወጋው መጣ፤ ሆሴዕም ተገዛለት፤ ገበረለትም። 4የአሦር ንጉሥ ግን ሆሴዕ እንደ ከዳው ተገነዘበ፤ ምክንያቱም ወደ ግብፅ ንጉሥ ወደ ሲጎር መልክተኞች ስለላከና በየዓመቱም ያደርግ እንደ ነበረው ለአሦር ንጉሥ ስላልገበረ ነው፤ ከዚህም የተነሣ ስልምናሶር ይዞ ወህኒ ቤት አስገባው። 5የአሦርም ንጉሥ አገሩን በሙሉ ወረረ፤ ወደ ሰማርያም ገሥግሦ ሦስት ዓመት ከበባት። 6በሆሴዕ ዘመነ መንግሥት በዘጠነኛው ዓመት፣ የአሦር ንጉሥ ሰማርያን ያዘ፤ እስራኤላውያንንም በምርኮ ወደ አሦር አፈለሳቸው። እነዚህም በአላሔ፣ ጎዛን ውስጥ በአቦር ወንዝ አጠገብ እንዲሁም በሜዶን ከተሞች እንዲሰፍሩ አደረገ።

እስራኤላውያን በኀጢአታቸው ምክንያት ተማረኩ

7እንግዲህ እስራኤላውያን ይህ ሁሉ ሊደርስባቸው የቻለው፣ ከግብፅ ምድር ከፈርዖን አገዛዝ ከግብፅ ንጉሥ ያወጣቸውን አምላካቸውን እግዚአብሔርን ስለ በደሉት ነው፤ እንዲሁም ሌሎች አማልክትን በማምለክ፣ 8እግዚአብሔር ከፊታቸው አሳድዶ ያወጣቸውን የአሕዛብንና የእስራኤልም ነገሥታት ወደ ምድሪቱ ያገቡትን አስጸያፊ ልማድ ስለ ተከተሉ ነበር።

9እስራኤላውያን በአምላካቸው በእግዚአብሔር ላይ ትክክል ያልሆነ ነገር በስውር አደረጉ፤ ከቃፊር መጠባበቂያ ማማ አንሥቶ እስከ ተመሸገው ከተማ ባሉት መኖሪያዎቻቸው ሁሉ በሚገኙት ኰረብቶች ላይ ማምለኪያ ስፍራዎችን ሠሩ። 10በእያንዳንዱ ኰረብታ ላይና በእያንዳንዱም የተንሰራፋ ዛፍ ሥር ዐምደ ጣዖትና የአሼራን ምስል ዐምዶች አቆሙ። 11እግዚአብሔር ከፊታቸው አሳድዶ ያስወጣቸው አሕዛብ እንዳደረጉትም ሁሉ፣ በየኰረብታው ላይ ዕጣን አጤሱ፤ እግዚአብሔርንም የሚያስቈጣ ክፉ ነገር አደረጉ። 12እግዚአብሔር፣ “ይህን ማድረግ አይገባችሁም”17፥12 ዘፀ 20፥4-5 ቢላቸውም እንኳ እነርሱ ጣዖታትን አመለኩ። 13ይህም ሆኖ እግዚአብሔር፣ “ከክፉ መንገዳችሁ ተመለሱ፤ አባቶቻችሁ እንዲፈጽሙት ባዘዝኋቸው ሕግ ሁሉ መሠረት እንዲሁም በአገልጋዮቼ በነቢያት አማካይነት ለእናንተ ባስተላለፍሁት ሕግ መሠረት፣ ትእዛዜንና ሥርዐቴን ጠብቁ” ብሎ በነቢያቱና በባለ ራእዮች ሁሉ እስራኤልንና ይሁዳን አስጠንቅቆ ነበር።

14ይሁን እንጂ እነዚህም አልሰሙም፤ እግዚአብሔር አምላካቸውን እንዳልታመኑበት እንደ አባቶቻቸው ዐንገታቸውን አደነደኑ። 15ሥርዐቱንና ከአባቶቻቸው ጋር የገባውን ኪዳን፣ ለእነርሱም የሰጣቸውን ማስጠንቀቂያ ናቁ፤ ከንቱ ጣዖታትን ተከትለው ራሳቸውም ከንቱ ሆኑ፤ እግዚአብሔር፣ “እነርሱ የሚያደርጉትን እንዳታደርጉ” ብሎ ቢያዝዛቸው እንኳ በዙሪያቸው ያሉትን አሕዛብ ተከተሉ፤ እግዚአብሔር እንዳያደርጉ የከለከላቸውንም ፈጸሙ እንጂ አልተዉም።

16አምላካቸው እግዚአብሔር ያዘዛቸውን ሁሉ አልፈጸሙም፤ አቅልጠውም ሁለት የጥጃ ምስልና የአሼራን ምስል ዐምድ ሠሩ፤ ለሰማይ ከዋክብት ሰገዱ፤ በኣልን አመለኩ፤ 17እንዲሁም ወንዶችንና ሴቶች ልጆቻቸውን በእሳት የሚቃጠል መሥዋዕት አድርገው አቀረቡ።17፥17 ወይም ልጆቻቸው ገድሎ ጥንቈላና መተት አደረጉ፤ በእግዚአብሔርም ፊት ክፉ ነገር ለማድረግ ራሳቸውን ሸጡ፤ ለቍጣም አነሣሡት። 18ስለዚህ እግዚአብሔር በእነርሱ ላይ እጅግ ተቈጣ፤ የይሁዳ ነገድ ብቻ ሲቀር እስራኤልን ከፊቱ አራቀ። 19ይሁዳም ቢሆን ከእስራኤል የተቀበለውን ልማድ ተከተለ እንጂ የአምላኩን የእግዚአብሔርን ትእዛዝ አልጠበቀም። 20ስለዚህ እግዚአብሔር የእስራኤልን ሕዝብ ሁሉ ተዋቸው፤ አስጨነቃቸው፤ ከፊቱ እስኪያስወግዳቸውም ድረስ በማራኪዎቻቸው እጅ አሳልፎ ሰጣቸው።

21እስራኤልን ከዳዊት ቤት ከለየ በኋላ፣ እነርሱ የናባጥን ልጅ ኢዮርብዓምን አነገሡ፤ ኢዮርብዓምም እስራኤል እግዚአብሔርን እንዳይከተል በማሳት ትልቅ ኀጢአት እንዲሠራ አደረገ። 22እስራኤላውያንም በኢዮርብዓም ኀጢአት ሁሉ ጸኑ፤ ከዚያም አልተመለሱም። 23እግዚአብሔር በባሪያዎቹ በነቢያት ሁሉ አማካይነት ባስጠነቀቃቸው መሠረት፣ ከፊቱ እስኪያስወግዳቸው ድረስ በዚያው ቀጠሉበት፤ ስለዚህ የእስራኤል ሕዝብ ከሀገሩ ተማርኮ ወደ አሦር ተወሰደ፤ አሁንም በዚያው ይገኛል።

አሦራውያን በሰማርያ ሰፈሩ

24የአሦርም ንጉሥ ሕዝቡን ከባቢሎን፣ ከኩታ፣ ከአዋና ከሐማት፣ ከሴፈርዋይም ከተሞች አምጥቶ በእስራኤላውያን ቦታ እንዲገቡ በሰማርያ ከተሞች አሰፈራቸው፤ እነርሱም ሰማርያን ወርሰው በከተሞቿ ይኖሩ ጀመር። 25በዚያ መኖር እንደ ጀመሩም እግዚአብሔርን አላመለኩም፤ ስለዚህ እግዚአብሔር አንበሶች ሰደደባቸው፤ ከእነርሱም ጥቂቶቹን ሰብረው ገደሉ። 26ለአሦርም ንጉሥ፣ “ወደ ሰማርያ ከተሞች ወስደህ ያሰፈርኸው ሕዝብ የዚያ አገር አምላክ የሚፈልገውን አላወቀም፤ ከዚህም የተነሣ እግዚአብሔር ሰብሮ የሚገድል አንበሳ ላከበት” የሚል ወሬ ደረሰው።

27ከዚያም የአሦር ንጉሥ፣ “ከሰማርያ ማርካችሁ ካመጣችኋቸው ካህናት አንዱን፣ በእዚያው እንዲኖር መልሳችሁ ውሰዱትና የአገሩ አምላክ ምን እንደሚፈልግ ሕዝቡን ያስተምር” ሲል አዘዘ። 28ስለዚህ ከሰማርያ ማርከው ከወሰዷቸው ካህናት አንዱ ወደ ቤቴል ተመልሶ እግዚአብሔርን እንዴት ማምለክ እንደሚገባቸው አስተማራቸው። 29ያም ሆኖ ግን እያንዳንዱ ወገን በየሰፈረበት ከተማ የራሱን አምላክ ሠራ፤ ያንንም ቀድሞ የሰማርያ ሕዝብ በኰረብታው ላይ በሠራው ማምለኪያ እየወሰደ አቆመ። 30ከባቢሎን የመጡት ሱኮት-በኖትን፣ ከኩታ የመጡት ኔርጋልን፣ ከሐማት የመጡት አሲማትን ሠሩ፤ 31አዋውያንም ኤልባዝርንና ተርታቅ የተባሉትን አማልክት ሲሠሩ፣ ከሴፈርዋይም የመጡት ደግሞ አድራሜሌክና አናሜሌክ ለተባሉት አማልክታቸው ልጆቻቸውን የሚቃጠል መሥዋዕት አድርገው አቀረቡ። 32እግዚአብሔርን አመለኩ፤ ይሁን እንጂ እያንዳንዱ ወገን የመጣበትን ሕዝብ ልማድ ተከትሎ፣ በየኰረብታው ባሉት ቤተ ጣዖታት የሚያገለግሉትን ካህናት ሾመ። 33በአንድ በኩል እግዚአብሔርን ሲያመልኩ፣ በሌላ በኩል ግን እንደየአገራቸው ልማድ የየራሳቸውን አማልክት ያመልኩ ነበር።

34ይህንም ልማዳቸውን እስከ ዛሬ ድረስ አልተዉትም፤ እግዚአብሔርን በአግባቡ አያመልኩም፤ እንዲሁም እስራኤል ብሎ ለጠራው ለያዕቆብ ዘሮች የሰጣቸውን ሥርዐቶችና ደንቦች፣ ሕጎችና ትእዛዞችን አይከተሉም። 35እግዚአብሔር ከእስራኤላውያን ጋር ኪዳን ሲገባ እንዲህ ሲል አዝዟቸው ነበር፤ “ሌሎችን አማልክት አታምልኳቸው፤ አትስገዱላቸው፤ አታገልግሏቸው፤ አትሠዉላቸውም፤ 36ማምለክ የሚገባችሁ ግን በታላቅ ኀይልና በተዘረጋች ክንድ ከግብፅ ምድር ያወጣችሁን እግዚአብሔርን ብቻ ነው። ለእርሱ ስገዱ፤ ለእርሱም መሥዋዕት አቅርቡ። 37የጻፈላችሁን ሥርዐቶችና ደንቦች፣ ሕጎችና ትእዛዞች ምንጊዜም ተግታችሁ ጠብቁ። ሌሎች አማልክትን አታምልኩ። 38ከእናንተ ጋር የገባሁትን ኪዳን አትርሱ፤ ሌሎች አማልክትም አታምልኩ። 39ይልቅስ አምላካችሁን እግዚአብሔርን አምልኩ፤ ከጠላቶቻችሁ ሁሉ እጅ የሚታደጋችሁ እርሱ ነውና።”

40ነገር ግን በቀደመው ልማዳቸው ጸኑ እንጂ አልተመለሱም። 41እነዚህ ሕዝቦች ምንም እንኳ በአንድ ወገን እግዚአብሔርን ቢያመልኩትም፣ የተቀረጹ ምስሎቻቸውንም ያገለግሉ ነበር። ልጆቻቸውና የልጅ ልጆቻቸውም አባቶቻቸው ያደረጉትን ዛሬም እንደ ቀጠሉበት ነው።

Hindi Contemporary Version

2 राजा 17:1-41

इस्राएल पर होशिया का शासन

1यहूदिया के राजा आहाज़ के शासन के बारहवें साल में एलाह का पुत्र होशिया शमरिया में राजा बना. उसका शासन नौ साल का था. 2उसने वह किया, जो याहवेह की दृष्टि में गलत था, मगर उस सीमा तक नहीं, जैसा इस्राएल में उसके पहले के राजाओं ने किया था.

3अश्शूर के राजा शालमानेसर ने उस पर हमला कर दिया. होशिया को उसके अधीन, जागीरदार होकर उसे कर देना पड़ता था. 4मगर अश्शूर के राजा को होशिया के एक षड़्‍यंत्र के विषय में मालूम हो गया. होशिया ने मिस्र देश के राजा सोअ से संपर्क के लिए अपने दूत भेजे थे, और उसने अपने ठहराए गए कर का भुगतान भी नहीं किया था, जैसा वह हर साल किया करता था. तब अश्शूर के राजा ने उसे बंदी बनाकर बंदीगृह में डाल दिया. 5इसके बाद उसने सारी इस्राएल देश पर कब्जा किया, और तीन साल तक शमरिया नगर को अपनी अधीनता में रखा. 6होशिया के शासन के नवें साल में अश्शूर के राजा ने शमरिया को अपने अधिकार में ले लिया. उसने इस्राएल जनता को बंदी बनाकर अश्शूर ले जाकर वहां हालाह और हाबोर क्षेत्र में बसा दिया. ये दोनों क्षेत्र मेदिया प्रदेश के गोज़ान नदी के तट पर स्थित हैं.

इस्राएल के पतन का कारण

7यह सब इसलिये हुआ कि इस्राएल वंशजों ने याहवेह, अपने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया; उस परमेश्वर के विरुद्ध, जिन्होंने उन्हें मिस्र के राजा फ़रोह की बंधुआई से मुक्त कराया था. उनमें पराए देवताओं के लिए भय आ गया था. 8वे उन राष्ट्रों की प्रथाओं का पालन करने लगे थे, जिन जनताओं को याहवेह ने इस्राएल वंश के सामने से अलग कर दिया था. इसके अलावा वे इस्राएल के राजाओं द्वारा प्रचलित प्रथाओं का पालन करने लगे थे. 9इस्राएल के लोग याहवेह, उनके परमेश्वर के विरुद्ध गुप्‍त रूप से वह सब करते रहे, जो गलत था. उन्होंने अपने सारे नगरों में पहरेदारों के खंभों से लेकर गढ़नगर तक पूजा की जगहों को बनवाया. 10उन्होंने हर एक ऊंची पहाड़ी पर और हर एक हरे पेड़ के नीचे अशेराह के खंभे खड़े किए. 11वे सारे पूजा स्थलों पर धूप जलाते थे, उन्हीं जनताओं के समान, जिन्हें याहवेह ने उनके सामने से हटाकर अलग किया था. इस्राएली प्रजा दुष्टता से भरे कामों में लगी रही, जिससे याहवेह का गुस्सा भड़क उठता था. 12वे मूर्तियों की सेवा-उपासना करते रहे, जिनके विषय में याहवेह ने उन्हें चेताया था, “तुम यह न करना.” 13फिर भी याहवेह इस्राएल और यहूदिया को हर एक भविष्यद्वक्ता और दर्शी के द्वारा इस प्रकार चेतावनी देते रहेः “व्यवस्था के अनुसार अपनी बुराइयों से फिरकर मेरे आदेशों और नियमों का पालन करो, जिनका आदेश मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया था, और जिन्हें मैंने भविष्यवक्ताओं, मेरे सेवकों के माध्यम से तुम तक पहुंचाया.”

14मगर उन्होंने इसकी अवहेलना की, और अपने हृदय कठोर कर लिए; जैसा उनके पूर्वजों ने किया था, जिनकी याहवेह, उनके परमेश्वर में कोई श्रद्धा न थी. 15उन्होंने याहवेह के नियमों का तिरस्कार किया और उस वाचा को तुच्छ माना, जो याहवेह ने उनके पूर्वजों के साथ स्थापित की थी. उन्होंने उन चेतावनियों पर ध्यान न दिया, जिनके द्वारा याहवेह ने उन्हें सचेत करना चाहा था. वे बेकार के कामों का अनुसरण करते-करते खुद भी बेकार बन गए, और अपने पड़ोसी राष्ट्रों के समान हो गए. इन्हीं राष्ट्रों के बारे में याहवेह ने उन्हें साफ़ आदेश दिया था: “उनका अनुसरण नहीं करना.”

16उन्होंने याहवेह, अपने परमेश्वर के सभी आदेशों को त्याग दिया, और उन्होंने अपने लिए बछड़ों की धातु की मूर्तियां, हां, दो बछड़ों की मूर्तियां ढाल लीं. उन्होंने अशेराह को बनाया और आकाश की सारी शक्तियों और बाल देवता की उपासना की. 17इसके बाद उन्होंने अपनी संतान को आग के बीच से होकर निकलने की प्रथा पूरी करने के लिए मजबूर किया. वे भावी कहते थे और जादू-टोना भी करते थे. उन्होंने स्वयं को वह सब करने के लिए समर्पित कर दिया, जो याहवेह की दृष्टि में गलत है. इससे उन्होंने याहवेह के क्रोध को भड़का दिया.

18फलस्वरूप याहवेह इस्राएल पर बहुत ही क्रोधित हो गए, और उन्होंने इस्राएल को अपनी नज़रों से दूर कर दिया; सिवाय यहूदाह गोत्र के. 19यहूदिया ने भी याहवेह, अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन नहीं किया. उसने उन्हीं प्रथाओं का अनुसरण किया, जिनको इस्राएल द्वारा शुरू किया गया था. 20याहवेह ने इस्राएल के सारे वंशजों को त्याग दिया, उन्हें सताया, उन्हें लुटेरों को सौंप दिया, और अपनी दृष्टि से दूर कर दिया.

21जब याहवेह इस्राएल को दावीद के वंश से अलग कर चुके, इस्राएलियों ने नेबाथ के पुत्र यरोबोअम को राजा बनाकर प्रतिष्ठित किया. यरोबोअम ने इस्राएल से याहवेह का अनुसरण खत्म करवा दिया, और इस्राएल को अधम पाप के लिए उकसाया. 22इस्राएली प्रजा ने वे सारे पाप किए, जो यरोबोअम ने स्वयं किए थे. इन पापों से वे कभी दूर न हुए. 23तब याहवेह ने उन्हें अपनी दृष्टि से दूर कर दिया, जैसा उन्होंने भविष्यवक्ताओं, अपने सेवकों, के द्वारा पहले ही घोषित कर दिया था. तब इस्राएल वंशज अपने देश से अश्शूर को बंधुआई में भेज दिए गए, वे अब तक बंधुआई में ही हैं.

इस्राएल के नगरों में विदेशियों का बसाया जाना

24अश्शूर के राजा ने बाबेल, कूथाह, अव्वा, हामाथ और सेफरवाइम से लोगों को लाकर शमरिया के नगरों में बसा दिया, जहां इसके पहले इस्राएल का रहना था. उन्होंने शमरिया को अपने अधिकार में ले लिया, और उसके नगरों में रहने लगे. 25उनके वहां रहने के शुरुआती सालों में उनके मन में याहवेह के प्रति भय था ही नहीं. तब याहवेह ने उनके बीच शेर भेज दिए, जिन्होंने उनमें से कुछ को अपना कौर बना लिया. 26इसके बारे में अश्शूर के राजा को सूचित किया गया: “जिन राष्ट्रों को आपने ले जाकर शमरिया के नगरों में बसाया है, उन्हें इस देश के देवता की विधि पता नहीं है, इसलिये उसने उनके बीच शेर भेज दिए हैं. अब देखिए वे प्रजा को मार रहे हैं, क्योंकि प्रजा को इस देश के देवता का पता नहीं है.”

27यह सुन अश्शूर के राजा ने यह आदेश दिया, “जिन पुरोहितों को बंधुआई में लाया गया है, उनमें से एक पुरोहित को वहां भेज दिया जाए, कि वह वहां जाकर वहीं रहा करे, और वहां बसे इन लोगों को उस देश के देवता की व्यवस्था की शिक्षा दे.” 28तब शमरिया से निकले पुरोहितों में से एक पुरोहित बेथेल नगर में आकर निवास करने लगा, जो उन्हें याहवेह के प्रति भय रखने के विषय में शिक्षा देता था.

29मगर हर एक राष्ट्र अपने-अपने देवताओं की मूर्तियां बनाता रहा, और उन्हें अपने-अपने नगरों के पूजा स्थलों में प्रतिष्ठित करता रहा; उन पूजा स्थलों पर, जो शमरिया के मूलवासियों द्वारा बनाए गए थे. यह वे उन सभी नगरों में करते गए, जहां वे बसते जा रहे थे. 30जो लोग बाबेल से आए थे उन्होंने सुक्कोथ-बेनोथ की मूर्ति, कूथ से आए लोगों ने नेरगल की, हामाथ से बसे हुए विदेशियों ने आषिमा की, 31अब्बी प्रवासियों ने निभाज़ और तारतक की; इसके अलावा सेफारवी प्रवासियों ने अपने बालकों को अद्राम्मेलेख और अन्‍नाम्मेलेख के लिए आग में बलि करने सेफरवाइम देवता की प्रथा चालू रखी. 32हां, उन्होंने भय के कारण याहवेह के लिए सभी प्रकार के लोगों में से पुरोहित भी चुन लिए. ये पुरोहित उनके लिए पूजा की जगहों पर बलि चढ़ाया करते थे. 33संक्षेप में, वे याहवेह के प्रति भय रखते हुए भी अपने-अपने राष्ट्र के उन देवताओं की उपासना करते रहे, जिन राष्ट्रों से लाकर वे यहां बसाए गए थे.

34आज तक वे अपनी-अपनी पहले की प्रथाओं में लगे हैं. वे न तो याहवेह के प्रति भय दिखाते हैं, न ही वे याहवेह द्वारा दी गई विधियों या आदेशों या नियमों या व्यवस्था का पालन करते हैं, जिनके पालन करने का आदेश याहवेह द्वारा याकोब के वंशों को दिया गया था, जिन्हें वह इस्राएल नाम से बुलाते थे, 35जिनके साथ याहवेह ने वाचा स्थापित की थी, और उन्हें यह आदेश दिया था: “पराए देवताओं से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है और न ही आवश्यकता है उनके सामने झुकने की, न उन्हें बलि चढ़ाने की, और न उनकी सेवा-उपासना करने की. 36हां, भय उस याहवेह के लिए रखो, जिन्होंने मिस्र देश से तुम्हें अद्धुत सामर्थ्य और बढ़ाई हुई भुजा से तुमको निकालकर यहां ले आए हैं. भय उन्हीं के प्रति बनाए रखो, वंदना के लिए उन्हीं के सामने झुको, और बलि उन्हें ही चढ़ाओ. 37इसके अलावा जो विधियां, नियम, व्यवस्था और आदेश उन्होंने तुम्हारे लिए लिखवा दिए हैं, उन्हें तुम हमेशा पालन करते रहो. साथ ही, यह ज़रूरी नहीं कि तुम पराए देवताओं से डरो. 38तुम उस वाचा को न भूलना जो मैंने तुम्हारे साथ बांधी है और न पराए देवताओं का भय मानना. 39तुम सिर्फ याहवेह अपने परमेश्वर का भय मानना. याहवेह ही तुम्हें तुम्हारे सारी शत्रुओं से छुटकारा दिलाएंगे.”

40इतना सब होने पर भी उन्होंने याहवेह की बातों पर ध्यान न दिया, वे अपने पहले के आचरण पर ही चलते रहे. 41इन जातियों ने याहवेह का भय तो माना, मगर साथ ही वे अपनी गढ़ी हुई मूर्तियों की उपासना भी करते रहे. उनकी संतान भी यही करती रही. और उनके बाद उनकी संतान भी, जैसा जैसा उन्होंने अपने पिता को करते देखा, उन्होंने आज तक उसी के जैसा किया.