箴言 知恵の泉 6 – JCB & HCV

Japanese Contemporary Bible

箴言 知恵の泉 6:1-35

6

愚かな者にならないように

1わが子よ。見ず知らずの人の保証人になり、

借金の肩代わりをすることになったら、

それは深刻な問題です。

2あなたは自分が承諾したことによって、

罠に陥ったのです。

3もしそうなったら、すぐに手を打ちなさい。

プライドを捨て、恥をかくことを覚悟して

相手のところへ飛んで行き、

証書から名前を消してもらいなさい。

4先に延ばさず、今すぐしなさい。

眠るのはそのあとにしなさい。

5鹿が猟をする者の手を逃れ、

鳥が網から逃れるように、うまく逃れるのです。

6怠け者よ、蟻を見ならいなさい。

蟻のやり方を見て学びなさい。

7蟻には、働けと命じる支配者がいません。

8それでも夏の間懸命に働き、冬の食糧を集めます。

9ところが、あなたがたは眠ってばかりいます。

いったいいつ目を覚ますのですか。

10「まだしばらく寝かせてほしい」と言っていますが、

その「ほんの少し」が問題なのです。

11のんびり眠っている間に

泥棒のように貧しさが近づいてきて、

気がついたときには手遅れです。

12-13悪者は、どうしようもない人間です。

彼らは平気でうそをつき、

仲間には目くばせや合図で企みを伝えます。

14反抗心が人一倍強く、悪いことばかり考え、

いさかいを巻き起こすのです。

15しかし、あっという間に身を滅ぼし、

倒れたら二度と立ち直れません。

16-19神のきらいなものが六つ、いいえ七つあります。

高慢な態度、うそをつくこと、人殺し、

悪だくみ、悪事に熱中すること、

偽証、仲たがいの種をまくことです。

20若者よ。親の言いつけを守りなさい。

21一瞬たりとも忘れないように、

親の教えをしっかり心に刻み込みなさい。

22昼も夜も彼らの助言に従えば、いつも安全です。

朝、目を覚ましたら、教えどおりに一日を始めなさい。

23危険だとわかっていればこそ、

前もって忠告してくれるのです。

だから忠告を聞き、良き人生を送りなさい。

24そうすれば、悪い女の甘いお世辞に

惑わされることもありません。

25彼女の美しさに心を奪われてはなりません。

誘惑するような目つきにだまされてはいけません。

26彼女におぼれると金を巻き上げられ、

人妻にうつつを抜かすと身を滅ぼすからです。

27火をかかえ込めばやけどをし、

28熱く燃える炭火の上を歩けば、やけどを負います。

29同じように、人妻と汚らわしい関係を結ぶ者も

罰を免れません。

30空腹のあまり盗みをしてしまったとしたら、

言い訳の余地があるかもしれません。

31しかし、盗みは盗みです。

償いにたくさんの罰金を払わなければなりません。

持ち物を全部売り払ってでも、

支払わなければならないのです。

32人妻と関係する者は愚かな者で、

自分で自分を滅ぼします。

33身も心も傷つき、取り返しのつかない恥をかくのです。

34嫉妬に狂った彼女の夫はあなたに復讐し

35どんな償いをしても赦しません。

Hindi Contemporary Version

सूक्ति संग्रह 6:1-35

व्यवहारिक चेतावनियां

1मेरे पुत्र, यदि तुम अपने पड़ोसी के लिए ज़मानत दे बैठे हो,

किसी अपरिचित के लिए वचनबद्ध हुए हो,

2यदि तुम वचन देकर फंस गए हो,

तुम्हारे ही शब्दों ने तुम्हें विकट परिस्थिति में ला रखा है,

3तब मेरे पुत्र, ऐसा करना कि तुम स्वयं को बचा सको,

क्योंकि इस समय तो तुम अपने पड़ोसी के हाथ में आ चुके हो:

तब अब अपने पड़ोसी के पास चले जाओ,

और उसको नम्रता से मना लो!

4यह समय निश्चिंत बैठने का नहीं है,

नींद में समय नष्ट न करना.

5इस समय तुम्हें अपनी रक्षा उसी हिरणी के समान करना है, जो शिकारी से बचने के लिए अपने प्राण लेकर भाग रही है,

जैसे पक्षी जाल डालनेवाले से बचकर उड़ जाता है.

6ओ आलसी, जाकर चींटी का ध्यान कर;

उनके कार्य पर विचार कर और ज्ञानी बन जा!

7बिना किसी प्रमुख,

अधिकारी अथवा प्रशासक के,

8वह ग्रीष्मकाल में ही अपना आहार जमा कर लेती है

क्योंकि वह कटनी के अवसर पर अपना भोजन एकत्र करती रहती है.

9ओ आलसी, तू कब तक ऐसे लेटा रहेगा?

कब टूटेगी तेरी नींद?

10थोड़ी और नींद, थोड़ा और विश्राम,

कुछ देर और हाथ पर हाथ रखे हुए विश्राम,

11तब देखना निर्धनता कैसे तुझ पर डाकू के समान टूट पड़ती है

और गरीबी, सशस्त्र पुरुष के समान.

12बुरा व्यक्ति निकम्मा ही सिद्ध होता है,

उसकी बातों में हेरा-फेरी होती है,

13वह पलकें झपका कर,

अपने पैरों के द्वारा

तथा उंगली से इशारे करता है,

14वह अपने कपटी हृदय से बुरी युक्तियां सोचता

तथा निरंतर ही कलह को उत्पन्‍न करता रहता है.

15परिणामस्वरूप विपत्ति उस पर एकाएक आ पड़ेगी;

क्षण मात्र में उस पर असाध्य रोग का प्रहार हो जाएगा.

16छः वस्तुएं याहवेह को अप्रिय हैं,

सात से उन्हें घृणा है:

17घमंड से भरी आंखें,

झूठ बोलने वाली जीभ,

वे हाथ, जो निर्दोष की हत्या करते हैं,

18वह मस्तिष्क, जो बुरी योजनाएं सोचता रहता है,

बुराई के लिए तत्पर पांव,

19झूठ पर झूठ उगलता हुआ साक्षी तथा वह व्यक्ति,

जो भाइयों के मध्य कलह निर्माण करता है.

व्यभिचार के विरुद्ध चेतावनी

20मेरे पुत्र, अपने पिता के आदेश पालन करते रहना,

अपनी माता की शिक्षा का परित्याग न करना.

21ये सदैव तुम्हारे हृदय में स्थापित रहें;

ये सदैव तुम्हारे गले में लटके रहें.

22जब तुम आगे बढ़ोगे, ये तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे;

जब तुम विश्राम करोगे, ये तुम्हारे रक्षक होंगे;

और जब तुम जागोगे, तो ये तुमसे बातें करेंगे.

23आदेश दीपक एवं शिक्षा प्रकाश है,

तथा ताड़ना सहित अनुशासन जीवन का मार्ग हैं,

24कि बुरी स्त्री से तुम्हारी रक्षा की जा सके

व्यभिचारिणी की मीठी-मीठी बातों से.

25मन ही मन उसके सौंदर्य की कामना न करना,

उसके जादू से तुम्हें वह अधीन न करने पाए.

26वेश्या मात्र एक भोजन के द्वारा मोल ली जा सकती है6:26 या वेश्या तुमको गरीबी में ले जाएगी!,

किंतु दूसरे पुरुष की औरत तुम्हारे खुद के जीवन को लूट लेती है.

27क्या यह संभव है कि कोई व्यक्ति अपनी छाती पर आग रखे

और उसके वस्त्र न जलें?

28अथवा क्या कोई जलते कोयलों पर चले

और उसके पैर न झुलसें?

29यही नियति है उस व्यक्ति की, जो पड़ोसी की पत्नी के साथ यौनाचार करता है;

उसके साथ इस रूप से संबंधित हर एक व्यक्ति का दंड निश्चित है.

30लोगों की दृष्टि में वह व्यक्ति घृणास्पद नहीं होता

जिसने अतिशय भूख मिटाने के लिए भोजन चुराया है,

31हां, यदि वह चोरी करते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे उसका सात गुणा लौटाना पड़ता है,

इस स्थिति में उसे अपना सब कुछ देना पड़ सकता है.

32वह, जो व्यभिचार में लिप्‍त हो जाता है, निरा मूर्ख है;

वह, जो यह सब कर रहा है, स्वयं का विनाश कर रहा है.

33घाव और अपमान उसके अंश होंगे,

उसकी नामधराई मिटाई न जा सकेगी.

34ईर्ष्या किसी भी व्यक्ति को क्रोध में भड़काती है,

प्रतिशोध की स्थिति में उसकी सुरक्षा संभव नहीं.

35उसे कोई भी क्षतिपूर्ति स्वीकार्य नहीं होती;

कितने भी उपहार उसे लुभा न सकेंगे.