उत्पत्ति 35 – HCV & NASV

Hindi Contemporary Version

उत्पत्ति 35:1-29

याकोब बेथेल को लौटता है

1परमेश्वर ने याकोब से कहा, “उठो और जाकर बेथेल में बस जाओ. वहां परमेश्वर के लिए एक वेदी बनाओ, जिसने तुझे उस समय दर्शन दिया जब तू अपने भाई एसाव के डर से भाग रहा था.”

2इसलिये याकोब ने अपने पूरे घर-परिवार तथा उन सभी व्यक्तियों को, जो उनके साथ थे, कहा, “इस समय तुम्हारे पास जो पराए देवता हैं, उन्हें दूर कर दो और अपने आपको शुद्ध कर अपने वस्त्र बदल दो. 3उठो, हम बेथेल को चलें ताकि वहां मैं परमेश्वर के लिए एक वेदी बनाऊं, जिन्होंने संकट की स्थिति में मेरी दोहाई सुनी तथा जहां-जहां मैं गया जिनकी उपस्थिति मेरे साथ साथ रही.” 4यह सुन उन्होंने याकोब को सब पराए देवता दे दिए, जो उन्होंने अपने पास रखे थे. इसके अलावा कानों के कुण्डल भी दिये. याकोब ने इन सभी को उस बांज वृक्ष के नीचे दफना दिया, जो शेकेम के पास था. 5जब वे वहां से निकले तब पूरे नगर पर परमेश्वर का भय छाया हुआ था. किसी ने भी याकोब के पुत्रों का पीछा नहीं किया.

6इस प्रकार याकोब तथा उनके साथ के सभी लोग कनान देश के लूज़ (अर्थात् बेथेल) नगर पहुंच गए. 7याकोब ने वहां एक वेदी बनाई और उस स्थान का नाम एल-बेथेल रखा, क्योंकि इसी स्थान पर परमेश्वर ने स्वयं को उन पर प्रकट किया था, जब वह अपने भाई से बचकर भाग रहे थे.

8उसी समय रेबेकाह की धाय दबोरा की मृत्यु हो गई, उसे बेथेल के बाहर बांज वृक्ष के नीचे दफ़ना दिया. उस वृक्ष का नाम अल्लोन-बाकूथ रखा गया (अर्थात् रोने का बांज वृक्ष).

9जब याकोब पद्दन-अराम से आए, परमेश्वर दुबारा याकोब पर प्रकट हुए. परमेश्वर ने उनको आशीष दी. 10और कहा, “तुम्हारा नाम याकोब है, अब से तुम्हारा नाम इस्राएल होगा.” इस प्रकार परमेश्वर ने उन्हें इस्राएल नाम दे दिया.

11परमेश्वर ने उनसे यह भी कहा, “मैं एल शद्दय अर्थात् सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूं; तुम फूलो फलो और बढ़ते जाओ. तुम एक राष्ट्र तथा एक जनता का समूह भी होंगे, तुम्हारे वंश में राजा पैदा होंगे. 12जो देश मैंने अब्राहाम तथा यित्सहाक को दिया था, वह मैं तुम्हें भी दूंगा, तथा यही देश तुम्हारे बाद तुम्हारे वंश को दूंगा.” 13इसके बाद परमेश्वर उस स्थान से ऊपर चढ़ गए, जिस स्थान पर उन्होंने याकोब से बातचीत की थी.

14याकोब ने उस स्थान पर, जहां परमेश्वर से उनकी बात हुई थी, वहां खंभा खड़ा किया—यह एक पत्थर था. याकोब ने इस पर पेय बलि चढ़ाई तथा उस पर तेल भी उंडेला. 15जिस स्थान पर परमेश्वर ने उनसे बात की थी, उस स्थान का नाम उन्होंने बेथेल35:15 बेथेल अर्थ परमेश्वर का भवन रखा.

राहेल तथा याकोब की मृत्यु

16फिर वे बेथेल से चलना शुरू करके एफ़राथा नामक जगह के पास थे, कि राहेल की तबियत खराब हो गई. 17जब वह इस प्रसव पीड़ा में ही थी, धाय ने कहा, “डरो मत, अब तो तुम एक और पुत्र को जन्म दे चुकी हो.” 18जब उसके प्राण निकल ही रहे थे, उसने इस पुत्र का नाम बेन-ओनी35:18 बेन-ओनी मतलब मेरी मुसीबत का बेटा रखा. किंतु उसके पिता ने उसे बिन्यामिन35:18 बिन्यामिन अर्थ मेरे दाहिने हाथ का बेटा कहकर पुकारा.

19और वहां इस प्रकार राहेल की मृत्यु हुई तथा उसे एफ़राथा (अर्थात् बेथलेहेम) में दफ़ना दिया. 20याकोब ने उसकी कब्र पर एक स्तंभ खड़ा किया, राहेल की कब्र का यह स्तंभ आज तक वहां स्थित है.

21फिर इस्राएल ने अपनी यात्रा शुरू की और उन्होंने ऐदेर के स्तंभ से आगे बढ़कर तंबू डाला. 22जब इस्राएल उस देश में रह रहे थे, तब रियूबेन ने अपने पिता की रखेल बिलहाह से संभोग किया, जो इस्राएल से छिपा न रहा.

याकोब के पुत्र संख्या में बारह थे.

23इनमें लियाह के पुत्र:

याकोब का बड़ा बेटा रियूबेन,

फिर शिमओन, लेवी, यहूदाह, इस्साखार तथा ज़ेबुलून थे.

24राहेल के पुत्र:

योसेफ़ तथा बिन्यामिन.

25राहेल की दासी बिलहाह के पुत्र:

दान तथा नफताली.

26लियाह की दासी ज़िलपाह के पुत्र:

गाद तथा आशेर.

पद्दन-अराम में ही याकोब के ये पुत्र पैदा हुए थे.

27याकोब अपने पिता यित्सहाक के पास पहुंच गए, जो किरयथ-अरबा (अर्थात् हेब्रोन) के ममरे में रहते थे. अब्राहाम तथा यित्सहाक यहीं रहते थे. 28यित्सहाक की आयु एक सौ अस्सी वर्ष की हुई. 29तब उनकी मृत्यु हुई. उनके पुत्र एसाव तथा याकोब ने उन्हें वहीं दफनाया जहां उनके पिता को दफनाया गया था.

New Amharic Standard Version

ዘፍጥረት 35:1-29

ያዕቆብ ወደ ቤቴል ተመለሰ

1እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ያዕቆብን፣ “ተነሥና ወደ ቤቴል ውጣ፤ እዚያም ተቀመጥ፤ ከወንድምህ ከዔሳው ሸሽተህ በሄድህ ጊዜ ለተገለጠልህ አምላክ (ኤል) በዚያ መሠዊያ ሥራ” አለው።

2ስለዚህም ያዕቆብ ለቤቱ ሰዎችና አብረውት ለነበሩት ሁሉ እንዲህ አላቸው፤ “በእናንተ ዘንድ ያሉትን ባዕዳን አማልክት አስወግዱ፤ ሰውነታችሁን አንጹ፤ ልብሳችሁንም ለውጡ። 3ተነሥተን ወደ ቤቴል እንውጣ፤ እዚያም በመከራዬ ጊዜ ለሰማኝ፣ በሄድሁበትም ስፍራ ሁሉ ላልተለየኝ አምላክ (ኤል) መሠዊያ እሠራለሁ።” 4ስለዚህ በእነርሱ ዘንድ የነበሩትን ባዕዳን አማልክት ሰብስበው፣ የጆሮ ጕትቾቻቸውን አውልቀው ለያዕቆብ ሰጡት። ያዕቆብም ወስዶ ሴኬም አጠገብ ካለው ወርካ ዛፍ ሥር ቀበራቸው። 5ያንንም ቦታ ለቅቀው ሄዱ፤ እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) በዙሪያቸው በነበሩት ከተሞች ሁሉ ላይ ፍርሀትና ድንጋጤ ስለ ለቀቀባቸው ያሳደዳቸው አልነበረም።

6ያዕቆብና አብረውት የነበሩት ሰዎች ሁሉ፣ በከነዓን ወደምትገኘው፣ ቤቴል ወደተባለችው ወደ ሎዛ ደረሱ። 7ያዕቆብም በዚያ ስፍራ መሠዊያ ሠርቶ፣ ስሙን ኤል-ቤቴል35፥7 ኤል-ቤቴል ማለት የቤቴል አምላክ ማለት ነው። አለው፤ ምክንያቱም ከወንድሙ ሸሽቶ በሄደ ጊዜ እግዚአብሔር (ኤሎሂም) የተገለጠለት በዚህ ቦታ ነበር።

8በዚህ ጊዜ የርብቃ ሞግዚት ዲቦራ ሞተች፤ ከቤቴል ዝቅ ብሎ በሚገኘው ወርካ ዛፍ ሥር ተቀበረች። ከዚህ የተነሣም ያ ቦታ አሎንባኩት35፥8 አሎንባኩት ማለት የለቅሶ ወርካ ማለት ነው። ተባለ።

9ያዕቆብ ከሰሜን ምዕራብ መስጴጦምያ ከተመለሰ በኋላ፣ እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ለያዕቆብ ዳግመኛ ተገለጠለት፤ ባረከውም። 10እግዚአብሔርም (ኤሎሂም)፣ “እስካሁን ስምህ ያዕቆብ35፥10 ያዕቆብ ማለት ተረከዝ ይይዛል ማለት ነው፤ በምሳሌያዊ አገላለጽ ያታልላል ማለት ነው። ነበረ፤ ከእንግዲህ ያዕቆብ ተብለህ አትጠራም፤ ነገር ግን ስምህ እስራኤል35፥10 እስራኤል ማለት ከእግዚአብሔር ጋር ታገለ ማለት ነው። ይባላል” አለው።

ስለዚህም እስራኤል ብሎ ጠራው።

11ደግሞም እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ያዕቆብን እንዲህ አለው፤ “እኔ ሁሉን ማድረግ የሚችል35፥11 በዕብራይስጥ ኤልሻዳይ ማለት ነው። አምላክ ነኝ፤ ብዛ ተባዛ፤ ሕዝብና የሕዝቦች ማኅበር ከአንተ ይወጣሉ፤ ነገሥታትም ከአብራክህ ይከፈላሉ። 12ለአብርሃምና ለይስሐቅ የሰጠኋትን ምድር ለአንተ እሰጥሃለሁ፤ ከአንተም በኋላ ይህችኑ ምድር ለዘርህ እሰጣለሁ።” 13እግዚአብሔርም (ኤሎሂም) ከእርሱ ጋር ከተነጋገረበት ስፍራ ወደ ላይ ወጣ።

14ያዕቆብ እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ከእርሱ ጋር በተነጋገረበት ስፍራ የድንጋይ ሐውልት አቆመ፤ በሐውልቱ ላይ የመጠጥ ቍርባን አፈሰሰ፤ ዘይትም አፈሰሰበት። 15ያዕቆብም፣ እግዚአብሔር (ኤሎሂም) ከእርሱ ጋር የተነጋገረበትን ስፍራ ቤቴል35፥15 ቤቴል ማለት የእግዚአብሔር ቤት ማለት ነው። ብሎ ጠራው።

የራሔልና የይስሐቅ መሞት

35፥23-26 ተጓ ምብ – 1ዜና 2፥1-2

16ከዚያም ከቤቴል ተነሥተው ሄዱ፤ ኤፍራታ ለመድረስ ጥቂት ሲቀራቸው ራሔልን ምጥ ያዛት፤ ምጡም ጠናባት። 17ምጡ አስጨንቋት ሳለ፣ አዋላጇ፣ “አይዞሽ አትፍሪ፤ ሌላ ወንድ ልጅ ልትገላገይ ነው” አለቻት። 18እርሷ ግን ሕይወቷ ልታልፍ በማጣጣር ላይ ሳለች፣ ልጇን ቤንኦኒ35፥18 ቤንኦኒ ማለት የመከራዬ ልጅ ማለት ነው። አለችው፤ አባቱ ግን ብንያም35፥18 ብንያም ማለት የቀኜ ልጅ ማለት ነው። አለው።

19ራሔልም ሞተች፤ ወደ ኤፍራታ በሚወስደው መንገድ በቤተ ልሔም ተቀበረች። 20ያዕቆብም በራሔል መቃብር ላይ ሐውልት አቆመ፤ እስከ ዛሬም የራሔል መቃብር ምልክት ይኸው ሐውልት ነው።

21እስራኤልም ጕዞውን በመቀጠል ከጋዴር ወንዝ ባሻገር ድንኳኑን ተከለ። 22እስራኤልም በዚያ ምድር ሳለ፣ ሮቤል ከአባቱ ቁባት ከባላ ጋር ተኛ፤ እስራኤልም ድርጊቱን ሰማ።

ያዕቆብ ዐሥራ ሁለት ልጆች ነበሩት፤ እነርሱም፦

23የልያ ልጆች፦

የያዕቆብ የበኵር ልጅ ሮቤል፣

ስምዖን፣ ሌዊ፣ ይሁዳ፣ ይሳኮር፣ ዛብሎን፤

24የራሔል ልጆች፦

ዮሴፍ፣ ብንያም፤

25የራሔል አገልጋይ የባላ ልጆች፦

ዳን፣ ንፍታሌም፤

26የልያ አገልጋይ የዘለፋ ልጆች፦

ጋድ፣ አሴር ናቸው።

እነዚህ ያዕቆብ በሰሜን ምዕራብ መስጴጦምያ ሳለ የተወለዱለት ወንዶች ልጆች ነበሩ።

27ያዕቆብ አባቱ ወዳለበት ወደ መምሬ መጣ፤ አብርሃምና ይስሐቅ የኖሩባት፣ ቂርያትአርባቅ ወይም ኬብሮን የተባለችው ቦታ ናት። 28ይስሐቅ መቶ ሰማንያ ዓመት ኖረ፤ 29አርጅቶ፣ ዕድሜ ጠግቦ ሞተ፤ ወደ ወገኖቹ ተሰበሰበ፤ ልጆቹም ዔሳውና ያዕቆብ ቀበሩት።