Псалтирь 50 – NRT & HCV

New Russian Translation

Псалтирь 50:1-21

Псалом 50

1Дирижеру хора. Псалом Давида, 2когда пророк Нафан пришел к нему, после того, как Давид согрешил с Вирсавией50:2 См. 2 Цар. 11:1–12:23.,

3Боже, помилуй меня

по Своей милости,

по великой Своей любви

изгладь мои беззакония.

4Омой меня от неправды

и от греха очисти,

5потому что я сознаю свои беззакония,

и грех мой всегда предо мной.

6Против Тебя Одного я согрешил

и в Твоих глазах сделал зло.

Ты справедлив в Своем приговоре

и безупречен в суде Своем.

7Вот, грешником я родился,

грешным зачала меня моя мать.

8Но Ты желаешь истины, сокрытой в сердце,

так наполни меня Своей мудростью.

9Очисти меня иссопом50:9 Иссоп – по всей вероятности, один из видов майорана, распространенный в Израиле. Это растение использовалось священниками для кропления (см. Лев. 14:4-7; Чис. 19:18) и было символом очищения от греха в иудейской культуре., и буду чист;

омой меня, и стану белее снега.

10Дай мне услышать веселье и радость;

пусть порадуются кости, Тобой сокрушенные.

11Отврати лицо от моих грехов

и неправду мою изгладь.

12Сотвори во мне чистое сердце, Боже,

и обнови во мне правый дух.

13Не отвергни меня от Себя

и не лиши меня Твоего Святого Духа.

14Верни мне радость Твоего спасения

и Духом владычественным поддержи меня.

15Тогда я научу нечестивых Твоим путям,

и грешники к Тебе обратятся.

16Избавь меня от кровопролития, Боже,

Боже моего спасения,

и язык мой восхвалит праведность Твою.

17Открой мне уста, Владыка,

и они Тебя возвеличат.

18Жертва Тебе неугодна – я дал бы ее,

всесожжения Ты не желаешь.

19Жертва Богу – дух сокрушенный;

сокрушенное и скорбящее сердце, Боже,

Ты не презришь.

20Сотвори Сиону добро по Своей благосклонности;

заново возведи стены Иерусалима.

21Тогда будут угодны Тебе предписанные жертвы,

возношения и всесожжения;

тогда приведут быков к Твоему жертвеннику.

Hindi Contemporary Version

स्तोत्र 50:1-23

स्तोत्र 50

आसफ का एक स्तोत्र.

1वह, जो सर्वशक्तिमान हैं, याहवेह, परमेश्वर,

सूर्योदय से सूर्यास्त तक

पृथ्वी को संबोधित करते हैं.

2ज़ियोन के परम सौंदर्य में,

परमेश्वर तेज दिखा रहे हैं.

3हमारे परमेश्वर आ रहे हैं,

वह निष्क्रिय नहीं रह सकते;

उनके आगे-आगे भस्मकारी अग्नि चलती है,

और उनके चारों ओर है प्रचंड आंधी.

4उन्होंने आकाश तथा पृथ्वी को आह्वान किया,

कि वे अपनी प्रजा की न्याय-प्रक्रिया प्रारंभ करें.

5उन्होंने आदेश दिया, “मेरे पास मेरे भक्तों को एकत्र करो,

जिन्होंने बलि अर्पण के द्वारा मुझसे वाचा स्थापित की है.”

6आकाश उनकी धार्मिकता की पुष्टि करता है,

क्योंकि परमेश्वर ही न्यायाध्यक्ष हैं.

7“मेरी प्रजा, मेरी सुनो, मैं कुछ कह रहा हूं;

इस्राएल, मैं तुम्हारे विरुद्ध साक्ष्य दे रहा हूं,

परमेश्वर मैं हूं, तुम्हारा परमेश्वर.

8तुम्हारी बलियों के कारण मैं तुम्हें डांट नहीं रहा

और न मैं तुम्हारी अग्निबलियों की आलोचना कर रहा हूं, जो नित मुझे अर्पित की जा रही हैं.

9मुझे न तो तुम्हारे पशुशाले से बैल की आवश्यकता है

और न ही तुम्हारे झुंड से किसी बकरे की,

10क्योंकि हर एक वन्य पशु मेरा है,

वैसे ही हजारों पहाड़ियों पर चर रहे पशु भी मेरे ही हैं.

11पर्वतों में बसे समस्त पक्षियों को मैं जानता हूं,

मैदान में चलते फिरते सब प्राणी भी मेरे ही हैं.

12तब यदि मैं भूखा होता तो तुमसे नहीं कहता,

क्योंकि समस्त संसार तथा इसमें मगन सभी वस्तुएं मेरी ही हैं.

13क्या बैलों का मांस मेरा आहार है

और बकरों का रक्त मेरा पेय?

14“परमेश्वर को धन्यवाद का बलि अर्पित करो,

सर्वोच्च परमेश्वर के लिए अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करो,

15तब संकट काल में मुझे पुकारो;

तो मैं तुम्हारा उद्धार करूंगा और तुम मुझे सम्मान दोगे.”

16किंतु दुष्ट से, परमेश्वर कहते हैं:

“जब तुम मेरी शिक्षाओं से घृणा करते,

और मेरे निर्देशों को हेय मानते हो?

17तो क्या अधिकार है तुम्हें मेरी व्यवस्था का वाचन करने,

अथवा मेरी वाचा को बोलने का?

18चोर को देखते ही तुम उसके साथ हो लेते हो;

वैसे ही तुम व्यभिचारियों के साथ व्यभिचार में सम्मिलित हो जाते हो.

19तुमने अपने मुख को बुराई के लिए समर्पित कर दिया है,

तुम्हारी जीभ छल-कपट के लिए तत्पर रहती है.

20तुम निरंतर अपने ही भाई की निंदा करते रहते हो,

अपने ही सगे भाई के विरुद्ध चुगली लगाते रहते हो.

21तुम यह सब करते रहे, किंतु मैं चुप रहा,

और तुम यह समझते रहे कि मैं तुमसे सहमत हूं.

किंतु मैं अब तुम्ही पर शासन करूंगा

और तुम्हारे ही सम्मुख तुम पर आरोप लगाऊंगा.

22“तुम, जो परमेश्वर को भूलनेवाले हो गए हो, विचार करो,

ऐसा न हो कि मैं तुम्हें टुकड़े-टुकड़े कर नष्ट कर दूं और कोई तुम्हारी रक्षा न कर सके:

23जो कोई मुझे धन्यवाद की बलि अर्पित करता है, मेरा सम्मान करता है,

मैं उसे, जो सन्मार्ग का आचरण करता है, परमेश्वर के उद्धार का अनुभव करवाऊंगा.”