मत्ती 5 – NCA & PCB

New Chhattisgarhi Translation (नवां नियम छत्तीसगढ़ी)

मत्ती 5:1-48

पहाड़ ऊपर यीसू के उपदेस

1जब यीसू ह मनखेमन के भीड़ ला देखिस, त ओह पहाड़ ऊपर चघके उहां बईठ गीस। तब ओकर चेलामन ओकर करा आईन, 2अऊ ओह ओमन ला ए कहिके उपदेस देवन लगिस:

3“धइन अंय ओमन, जऊन मन आतमा म दीन अंय,

काबरकि स्‍वरग के राज ओमन के अय।

4धइन अंय ओमन, जऊन मन सोक करथें,

काबरकि ओमन ला सांति दिये जाही।

5धइन अंय ओमन, जऊन मन नरम सुभाव के अंय,

काबरकि ओमन धरती के उत्तराधिकारी होहीं।

6धइन अंय ओमन, जऊन मन धरमीपन बर भूखन अऊ पीयासन हवंय,

काबरकि परमेसर ह ओमन ला संतोस करही।

7धइन अंय ओमन, जऊन मन दयालु अंय,

काबरकि ओमन के ऊपर दया करे जाही।

8धइन अंय ओमन, जऊन मन के हिरदय निरमल हवय,

काबरकि ओमन परमेसर के दरसन करहीं।

9धइन अंय ओमन, जऊन मन मेल-मिलाप कराथें,

काबरकि ओमन ला परमेसर के बेटा कहे जाही।

10धइन अंय ओमन, जऊन मन धरमीपन के कारन सताय जाथें,

काबरकि स्‍वरग के राज ओमन के अय।

11धइन अव तुमन, जब मनखेमन मोर कारन तुम्‍हर बेजत्ती करथें, तुमन ला सताथें अऊ झूठ-मूठ के, तुम्‍हर बिरोध म किसम-किसम के खराप बात कहिथें। 12आनंद मनावव अऊ खुस रहव, काबरकि स्‍वरग म तुम्‍हर बर बड़े इनाम रखे हवय। तुम्‍हर ले पहिली अगमजानीमन ला मनखेमन अइसनेच सताय रिहिन।”

नून अऊ अंजोर

(मरकुस 9:50; लूका 14:34-35)

13“तुमन धरती के नून अव। पर कहूं नून ह अपन सुवाद ला गंवा देथे, त फेर एला कोनो किसम ले नूनचूर नइं करे जा सकय। एह कोनो काम के नइं रहि जावय। एला बाहिर फटिक दिये जाथे अऊ एह मनखेमन के गोड़ तरी रउंदे जाथे।

14तुमन संसार के अंजोर अव। पहाड़ ऊपर बसे सहर ह छिपे नइं रह सकय। 15अऊ न तो मनखेमन दीया ला बारके कटोरा के तरी म रखथें, पर दीया ला दीवट ऊपर मढ़ाथें, जिहां ले एह घर के हर एक जन ला अंजोर देथे। 16ओही किसम ले, तुम्‍हर अंजोर ह मनखेमन के आघू म चमकय, ताकि ओमन तुम्‍हर बने काम ला देखंय अऊ स्‍वरग म रहइया तुम्‍हर ददा के बड़ई करंय।”

मूसा के कानून के पूरा होवई

17“ए झन सोचव कि मेंह मूसा के कानून या अगमजानीमन के बातमन ला खतम करे बर आय हवंव। मेंह ओमन ला खतम करे खातिर नइं, पर ओमन ला पूरा करे खातिर आय हवंव। 18मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि जब तक स्‍वरग अऊ धरती हवय, तब तक मूसा के कानून के एक छोटे अकछर या बिन्दू घलो पूरा होय बिगर खतम नइं होवय। 19जऊन ह ए हुकूममन के छोटे ले छोटे बात ला घलो नइं मानय अऊ आने मन ला घलो अइसने करे बर सिखोथे, ओह स्‍वरग के राज म सबले छोटे समझे जाही, पर जऊन ह ए हुकूममन ला मानथे अऊ आने मन ला माने बर सिखोथे, ओह स्‍वरग के राज म बड़े समझे जाही। 20काबरकि मेंह तुमन ला कहत हवंव कि जब तक तुम्‍हर धरमीपन ह फरीसी अऊ कानून के गुरू मन के धरमीपन ले बढ़ के नइं होवय, तब तक तुमन स्‍वरग के राज म नइं जा सकव।”

हतिया अऊ गुस्सा

21“तुमन सुने हवव कि बहुंत पहिले मनखेमन ला ए कहे गे रिहिस, ‘हतिया झन करव, अऊ यदि कोनो हतिया करथे, त ओह कचहरी म दंड के भागी होही।’ 22पर मेंह तुमन ला कहत हंव कि यदि कोनो अपन भाई ऊपर गुस्सा करथे, त ओह दंड के भागी होही। जऊन कोनो अपन भाई के बेजत्ती करथे, त ओला धरम महासभा के आघू म जबाब देना पड़ही। पर जऊन कोनो अपन भाई ला कहिथे, ‘ए मुरुख!’ ओह नरक के आगी म पड़े के खतरा म होही।

23एकरसेति, यदि तेंह बेदी म अपन भेंट चघावत हस अऊ उहां तोला सुरता आथे कि तोर भाई के मन म तोर बिरोध म कुछू हवय, 24त उहां बेदी के आघू म अपन भेंट ला छोंड़ दे अऊ पहिली अपन भाई करा जा अऊ ओकर संग मेल-मिलाप कर, तब आ अऊ अपन भेंट ला चघा। 25ओ मनखे जऊन ह तोर बिरोध म अदालत जावत हे, ओकर संग जल्दी करके मेल-मिलाप कर ले। कचहरी जावत बेरा डहार म ही ओकर संग मेल-मिलाप कर ले, नइं तो ओह तोला नियायधीस ला सऊंप दिही, अऊ नियायधीस ह तोला पुलिस ला सऊंपही, अऊ तेंह जेल म डाल दिये जाबे। 26मेंह तोला सच कहत हंव कि जब तक तेंह कौड़ी-कौड़ी नइं चुका देबे, तब तक तेंह उहां ले छुटे नइं सकस।”

छिनारीपन

27“तुमन सुने हवव कि ए कहे गे रिहिस, ‘छिनारी झन करव।’ 28पर मेंह तुमन ला कहत हंव कि जऊन कोनो माईलोगन ला खराप नजर ले देखथे, त ओह अपन मन म ओकर संग छिनारी कर चुकिस। 29यदि तोर जेवनी आंखी ह तोर पाप म परे के कारन बनथे, त ओला निकारके फटिक दे। तोर बर एह बने अय कि अपन देहें के एक ठन अंग ला गंवा दे, पर तोर जम्मो देहें ह नरक म झन डारे जावय। 30अऊ कहूं तोर जेवनी हांथ ह तोर पाप म परे के कारन बनथे, त ओला काटके फटिक दे। तोर बर एह बने अय कि अपन देहें के एक ठन अंग ला गंवा दे, पर तोर जम्मो देहें ह नरक म झन चले जावय।”

तलाक

(मत्ती 19:9; मरकुस 10:11-12; लूका 16:18)

31“ए घलो कहे गे रिहिस, ‘जऊन कोनो अपन घरवाली ला छोंड़ देथे, त ओह ओला तियाग पतर जरूर देवय।’5:31 ब्यवस्था 24:1; मत्ती 19:3-9 32पर मेंह तुमन ला कहत हंव कि जऊन कोनो छिनारीपन के अलावा कोनो आने कारन ले अपन घरवाली ला छोंड़ देथे, त ओह ओकर छिनारी करे के कारन बनथे, अऊ जऊन ह ओ तियागे गय माईलोगन ले बिहाव करथे, त ओह घलो छिनारी करथे।”

किरिया

33“तुमन ए घलो सुने हवव कि बहुंत पहिले मनखेमन ला ए कहे गे रिहिस, ‘तुमन झूठ-मूठ के किरिया झन खावव, पर परभू के आघू म करे गे किरिया ला पूरा करव।’ 34पर मेंह तुमन ला कहत हंव कि किरिया कभू झन खावव; न तो स्‍वरग के काबरकि ओह परमेसर के सिंघासन अय; 35न तो धरती के, काबरकि एह परमेसर के गोड़ के चउकी अय; न तो यरूसलेम के, काबरकि ओह महाराजा के सहर अय। 36अऊ अपन मुड़ के घलो किरिया झन खावव, काबरकि तुमन एको ठन चुंदी ला घलो पंडरा या करिया नइं कर सकव। 37साफ-साफ तुम्‍हर गोठ ह हां के हां अऊ नइं के नइं होवय। एकर ले जादा जऊन कुछू होथे, ओह सैतान के तरफ ले होथे।”5:37 याकूब 5:12

बदला लेय के बारे म उपदेस

(लूका 6:29-30)

38“तुमन सुने हवव कि ए कहे गे रिहिस, ‘आंखी के बदला म आंखी अऊ दांत के बदला म दांत।’5:38 निरगमन 21:23-24 39पर मेंह तुमन ला कहत हंव कि दुस्‍ट मनखे के सामना झन करव। यदि कोनो तुम्‍हर जेवनी गाल म थपरा मारथे, त अपन डेरी गाल ला घलो ओकर अंग कर देवव। 40अऊ यदि कोनो तुम्‍हर ऊपर मुकदमा चलाके तुम्‍हर कुरता ला लेय चाहथे, त तुमन ओला अपन कोटी ला घलो लेवन दव। 41यदि कोनो तुमन ला जबरदस्‍ती एक मील ले जाथे, त तुमन ओकर संग दू मील चले जावव। 42जऊन ह तुम्‍हर ले मांगथे, ओला देवव, अऊ जऊन ह तुम्‍हर ले उधार मांगथे, ओला उधार देवव।”

बईरीमन बर मया

(लूका 6:27-28, 32-36)

43“तुमन सुने हवव कि ए कहे गे रिहिस, ‘अपन पड़ोसी ले मया, अऊ बईरीमन ले नफरत करव।’ 44पर मेंह तुमन ला कहत हंव कि अपन बईरीमन ले मया करव, अऊ जऊन मन तुम्‍हर ऊपर अतियाचार करथें, ओमन बर पराथना करव।5:44 निरगमन 23:4-5 45ताकि तुमन अपन स्वरगीय ददा के संतान बन जावव। ओह खराप अऊ बने दूनों मनखेमन ऊपर अपन सूरज चमकाथे, अऊ धरमी अऊ अधरमी दूनों के ऊपर पानी बरसाथे। 46यदि तुमन ओमन ला मया करथव, जऊन मन तुम्‍हर ले मया करथें, त तुमन ला का इनाम मिलही? लगान लेवइया पापीमन घलो अइसने करथें। 47यदि तुमन सिरिप अपन भाईमन ला ही जोहार करथव, त आने मन ले तुमन का बड़े बुता करथव? का आनजातमन घलो अइसने नइं करंय? 48एकरसेति, तुमन सिद्ध बनव, जइसने स्‍वरग म रहइया तुम्‍हर ददा ह सिद्ध अय।”

Persian Contemporary Bible

متی‌ٰ 5:1-48

موعظهٔ سر كوه

1روزی كه جمعيتی انبوه گرد آمده بودند، عيسی به همراه شاگردان خود بر فراز تپه‌ای برآمد و بنشست.

راز خوشبختی

2آنگاه شروع به تعليم ايشان كرد و فرمود:

3«خوشا به حال آنان كه نياز خود را به خدا احساس می‌كنند، زيرا ملكوت آسمان از آن ايشان است.

4«خوشا به حال ماتمزدگان، زيرا ايشان تسلی خواهند يافت.

5«خوشا به حال فروتنان، زيرا ايشان مالک تمام جهان خواهند گشت.

6«خوشا به حال گرسنگان و تشنگان عدالت، زيرا سير خواهند شد.

7«خوشا به حال آنان كه مهربان و باگذشتند، زيرا از ديگران گذشت خواهند ديد.

8«خوشا به حال پاکدلان، زيرا خدا را خواهند ديد.

9«خوشا به حال آنان كه برای برقراری صلح در ميان مردم كوشش می‌كنند، زيرا ايشان فرزندان خدا ناميده خواهند شد.

10«خوشا به حال آنان كه به سبب نيک‌كردار بودن آزار می‌بينند، زيرا ايشان از بركات ملكوت آسمان بهره‌مند خواهند شد.

11«هرگاه به خاطر من شما را ناسزا گفته، آزار رسانند و به شما تهمت زنند، شاد باشيد. 12بلی، خوشی و شادی نماييد، زيرا در آسمان پاداشی بزرگ در انتظار شماست. بدانيد كه با پيامبران گذشته نيز چنين كردند.

تعليم درباره نمک و نور

13«شما نمک جهان هستيد و به آن طعم می‌بخشيد. اما اگر شما نيز طعم خود را از دست دهيد، وضع جهان چه خواهد شد؟ در اين صورت، شما را همچون نمكی بی‌مصرف دور انداخته، پايمال خواهند ساخت. 14شما نور جهان می‌باشيد. شما همچون شهری هستيد كه بر تپه‌ای بنا شده و در شب می‌درخشد و همه آن را می‌بينند. 15چراغ را روشن نمی‌كنند تا آن را زير كاسه بگذارند، بلكه روی چراغدان، تا كسانی كه در خانه هستند از نورش استفاده كنند. 16پس نور خود را پنهان مسازيد، بلكه بگذاريد نور شما بر مردم بتابد، تا كارهای نيک شما را ديده، پدر آسمانی‌تان را تمجيد كنند.

تعليم درباره تورات

17«گمان مبريد كه آمده‌ام تا تورات موسی و نوشته‌های ساير انبیا را منسوخ كنم. من آمده‌ام تا آنها را تكميل نمايم و به انجام رسانم. 18براستی به شما می‌گويم كه از ميان احكام تورات، هر آنچه كه بايد عملی شود، يقيناً همه يک به يک عملی خواهند شد. 19پس اگر كسی از كوچكترين حكم آن سرپيچی كند و به ديگران نيز تعليم دهد كه چنين كنند، او در ملكوت آسمان از همه كوچكتر خواهد بود. اما هر كه احكام خدا را اطاعت نمايد و ديگران را نيز تشويق به اطاعت كند، در ملكوت آسمان بزرگ خواهد بود.

20«اين را نيز بگويم كه تا شما بهتر از علما و پيشوايان دين يهود نشويد، محال است بتوانيد وارد ملكوت آسمان گرديد.

تعليم درباره خشم

21«گفته شده است كه هر كس مرتكب قتل شود، محكوم به مرگ می‌باشد. 22اما من می‌گويم كه حتی اگر نسبت به برادر خود خشمگين شوی و بر او فرياد بزنی، بايد تو را محاكمه كرد؛ و اگر برادر خود را ”ابله“ خطاب كنی، بايد تو را به دادگاه برد؛ و اگر به دوستت ناسزاگويی، سزايت آتش جهنم می‌باشد.

23«پس اگر نذری داری و می‌خواهی گوسفندی در خانهٔ خدا قربانی كنی، و همان لحظه به یادت آيد كه دوستت از تو رنجيده است، 24گوسفند را همانجا نزد قربانگاه رها كن و اول برو و از دوستت عذرخواهی نما و با او آشتی كن؛ آنگاه بيا و نذرت را به خدا تقديم كن. 25هرگاه كسی از تو شكايت كند و تو را به دادگاه ببرد، كوشش كن پيش از آنكه به دادگاه برسيد و قاضی تو را به زندان بيندازد، با شاكی صلح كنی؛ 26و گرنه، در زندان خواهی ماند و تا دينار آخر را نپرداخته باشی، بيرون نخواهی آمد.

تعليم درباره زنا

27«گفته شده است كه زنا مكن. 28ولی من می‌گويم كه اگر حتی با نظر شهوت‌آلود به زنی نگاه كنی، همان لحظه در دل خود با او زنا كرده‌ای. 29پس، اگر چشمی كه برايت اينقدر عزيز است، باعث می‌شود گناه كنی، آن را از حدقه درآور و دور افكن. بهتر است بدنت ناقص باشد، تا اين كه تمام وجودت به جهنم بيفتد. 30و اگر دست راستت باعث می‌شود گناه كنی، آن را ببر و دور بينداز. بهتر است يک دست داشته باشی، تا اينكه با دو دست به جهنم بروی.

تعليم درباره طلاق

31«گفته شده است: اگر كسی می‌خواهد از دست زنش خلاص شود، كافی است طلاقنامه‌ای بنويسد و به او بدهد. 32اما من می‌گويم هر كه زن خود را بدون اينكه خيانتی از او ديده باشد، طلاق دهد و آن زن دوباره شوهر كند، آن مرد مقصر است زيرا باعث شده زنش زنا كند؛ و مردی نيز كه با اين زن ازدواج كرده، زناكار است.

تعليم درباره قَسَم

33«باز گفته شده كه قسم دروغ نخور و هرگاه به نام خدا قسم ياد كنی، آن را وفا كن. 34اما من می‌گويم: هيچگاه قسم نخور، نه به آسمان كه تخت خداست، 35و نه به زمين كه پای‌انداز اوست، و نه به اورشليم كه شهر آن پادشاه بزرگ است؛ به هيچيک از اينها سوگند ياد نكن. 36به سر خود نيز قسم مخور، زيرا قادر نيستی مويی را سفيد يا سياه گردانی. 37فقط بگو: ”بلی“ يا ”نه“. همين كافی است. اما اگر برای سخنی كه می‌گويی، قسم بخوری، نشان می‌دهی كه نيرنگی در كار است.

تعليم درباره انتقام

38«گفته شده كه اگر شخصی چشم كسی را كور كند، بايد چشم او را نيز كور كرد و اگر دندان كسی را بشكند، بايد دندانش را شكست. 39اما من می‌گويم كه اگر كسی به تو زور گويد، با او مقاومت نكن؛ حتی اگر به گونهٔ راست تو سيلی زند، گونهٔ ديگرت را نيز پيش ببر تا به آن نيز سيلی بزند. 40اگر كسی تو را به دادگاه بكشاند تا پيراهنت را بگيرد، عبای خود را نيز به او ببخش. 41اگر يک سرباز رومی به تو دستور دهد كه باری را به مسافت يک ميل حمل كنی، تو دو ميل حمل كن. 42اگر كسی از تو چيزی خواست، به او بده؛ و اگر از تو قرض خواست، او را دست خالی روانه نكن.

تعليم درباره محبت به دشمنان

43«شنيده‌ايد كه می‌گويند با دوستان خود دوست باش، و با دشمنانت دشمن؟ 44اما من می‌گويم كه دشمنان خود را دوست بداريد، و هر كه شما را لعنت كند، برای او دعای بركت كنيد؛ به آنانی كه از شما نفرت دارند، نيكی كنيد، و برای آنانی كه به شما ناسزا می‌گويند و شما را آزار می‌دهند، دعای خير نماييد. 45اگر چنين كنيد، فرزندان راستين پدر آسمانی خود خواهيد بود، زيرا او آفتاب خود را بر همه می‌تاباند، چه بر خوبان، چه بر بدان؛ باران خود را نيز بر نيكوكاران و ظالمان می‌باراند. 46اگر فقط آنانی را كه شما را دوست می‌دارند، محبت كنيد، چه برتری بر مردمان پست داريد، زيرا ايشان نيز چنين می‌كنند. 47اگر فقط با دوستان خود دوستی كنيد، با كافران چه فرقی داريد، زيرا اينان نيز چنين می‌كنند. 48پس شما كامل باشيد، همانگونه كه پدر آسمانی شما كامل است.»