نشيد الأنشاد 3 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

نشيد الأنشاد 3:1-11

1(الْمَحْبُوبَةُ): طَوَالَ اللَّيْلِ عَلَى مَضْجَعِي طَلَبْتُ بِشَوْقٍ مَنْ تُحِبُّهُ نَفْسِي، فَمَا وَجَدْتُهُ. 2سَأَنْهَضُ الآنَ أَطُوفُ فِي الْمَدِينَةِ وَأَتَجَوَّلُ فِي شَوَارِعِهَا وَسَاحَاتِهَا، أَلْتَمِسُ مَنْ تُحِبُّهُ نَفْسِي. وَهَكَذَا رُحْتُ أَلْتَمِسُهُ فَمَا وَجَدْتُهُ. 3وَعَثَرَ عَلَيَّ الْحُرَّاسُ الْمُتَجَوِّلُونَ فِي الْمَدِينَةِ، فَسَأَلْتُ: أَشَاهَدْتُمْ مَنْ تُحِبُّهُ نَفْسِي؟ 4وَمَا كِدْتُ أَتَجَاوَزُهُمْ حَتَّى وَجَدْتُ مَنْ تُحِبُّهُ نَفْسِي، فَتَشَبَّثْتُ بِهِ وَلَمْ أُطْلِقْهُ حَتَّى أَدْخَلْتُهُ بَيْتَ أُمِّي وَمُخْدَعَ مَنْ حَمَلَتْ بِي. 5أَسْتَحْلِفُكُنَّ يَا بَنَاتِ أُورُشَلِيمَ بِظِبَاءِ الصَّحْرَاءِ وَأَيَائِلِهَا أَلّا تُوْقِظْنَ أَوْ تُنَبِّهْنَ الْحَبِيبَ حَتَّى يَشَاءَ.

6(نَشِيدُ بَنَاتِ أُورُشَلِيمَ): مَنْ هَذِهِ الصَّاعِدَةُ مِنَ الْقَفْرِ كَأَعْمِدَةٍ مِنْ دُخَانٍ مُعَطَّرَةٍ بِالْمُرِّ وَاللُّبَانِ وَكُلِّ عُطُورِ التَّاجِرِ؟

7هَا هِيَ أَرِيكَةُ سُلَيْمَانَ يَحِفُّ بِهِ سِتُّونَ بَطَلاً مِنْ جَبَابِرَةِ إِسْرَائِيلَ. 8جَمِيعُهُمْ مُدَجَّجُونَ بِالسُّيُوفِ مُتَمَرِّسُونَ عَلَى الْحَربِ، تَتَدَلَّى سُيُوفُهُمْ عَلَى جَوَانِبِهِمْ تَأَهُّباً لأَهْوَالِ اللَّيْلِ.

9قَدْ صَنَعَ الْمَلِكُ سُلَيْمَانُ كُرْسِيَّ الْعَرْشِ مِنْ خَشَبِ لُبْنَانَ. 10وَصَنَعَ أَعْمِدَتَهُ فِضَّةً وَمُتَّكَأَهُ ذَهَباً وَمَقْعَدَهُ أُرْجُوَاناً، وَغِطَاؤُهْ الدَّاخِلِيُّ رَصَّعَتْهُ بَنَاتُ أُورُشَلِيمَ مَحَبَّةً.

11(الْمَحْبُوبَةُ): اُخْرُجْنَ يَا بَنَاتِ صِهْيَوْنَ وَانْظُرْنَ الْمَلِكَ سُلَيْمَانَ مُكَلَّلاً بِالتَّاجِ الَّذِي تَوَّجَتْهُ بِهِ أَمُّهُ فِي يَوْمِ عُرْسِهِ، فِي يَوْمِ بَهَجَةِ قَلْبِهِ.

Hindi Contemporary Version

सर्वश्रेष्ठ गीत 3:1-11

1अपने बिछौने पर मैं हर रात उसका इंतजार करती रही,

जो मुझे प्राणों से भी प्रिय है;

मैं उसे खोजती रही, मगर मेरी खोज बेकार रही.

2अब ठीक तो यही होगा कि मैं उठूं और नगर में जाकर खोज करूं,

गलियों में और चौकों में;

यह ज़रूरी है कि मैं उसे खोजूं, जो मेरे लिए प्राणों से भी अधिक प्रिय है.

मैं खोजती रही, किंतु मेरी खोज बेकार ही रही.

3वे पहरेदार, जो नगर में घूमते रहते हैं,

उनसे मेरी मुलाकात हुई.

मैंने उनसे पूछा, “क्या तुमने उसे देखा है, जो मुझे प्राणों से प्रिय है?”

4मैं पहरेदारों से कुछ ही दूर गई थी,

कि वह मुझे मिल गया, जो मेरे लिए प्राणों से भी अधिक प्रिय है,

मैं उससे लिपट गई, मैंने उसे जाने न दिया,

तब मैं उसे अपनी माता के घर पर ले गई,

उसके कमरे में, जिसने मुझे अपने गर्भ में धारण किया था.

5येरूशलेम की कन्याओ,

तुम्हें मैदान के हिरणों तथा हिरणियों की शपथ,

मुझको वचन दो, जब तक सही समय न आए,

मेरे प्रेम को न जगाना.

6रेगिस्तान की दिशा से धुएं के खंभे के

समान यह क्या बढ़ा चला आ रहा है,

यह लोबान और गन्धरस से सुगंधित है,

व्यापारियों के सारे चूर्णों से भी सुगंधित?

7देखो-देखो, यह शलोमोन की पालकी है,

साठ योद्धा उसे घेरे हुए हैं,

ये इस्राएल के शूरवीरों में से चुने हुए हैं.

8वे सभी तलवार लिए हुए हैं,

युद्ध कला में बेहतरीन,

हर एक ने अपनी तलवार अपने पास रखी है,

ये रात के आतंक का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.

9यह पालकी राजा शलोमोन ने अपने लिए बनवाई है;

इसमें इस्तेमाल की गई लकड़ी लबानोन से लाई गई थी.

10इसके खंभे चांदी के,

तथा सतह सोने का है.

इसमें बैठने के स्थान के लिए बैंगनी वस्त्र का इस्तेमाल हुआ है,

इसके अंदर के भाग को येरूशलेम की कन्याओं द्वारा प्रेम से मढ़ दिया गया है.

11ज़ियोन की कन्याओ, आगे बढ़ो, मुकुट पहने हुए महाराज शलोमोन को निहारो,

यह उसकी माता ने उसे पहनाया है,

यह उसके विवाह का दिन है,

यह वह दिन है, जब वह बहुत ही खुश है.