نحميا 8 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

نحميا 8:1-18

عزرا يقرأ الشريعة

1ثُمَّ اجْتَمَعَ بَنُو إِسْرَائِيلَ كَرَجُلٍ وَاحِدٍ فِي السَّاحَةِ الْوَاقِعَةِ أَمَامَ بَوَّابَةِ الْمَاءِ، وَطَلَبُوا مِنْ عِزْرَا الْكَاتِبِ أَنْ يَأْتِيَ بِسِفْرِ شَرِيعَةِ مُوسَى الَّتِي أَمَرَ بِها الرَّبُّ إِسْرَائِيلَ. 2فَأَخْرَجَ عِزْرَا الْكَاتِبُ سِفْرَ الشَّرِيعَةِ فِي الْيَوْمِ الأَوَّلِ مِنَ الشَّهْرِ السَّابِعِ، وَنَشَرَهُ أَمَامَ الْجَمَاعَةِ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاءِ وَكُلِّ مَنْ يَفْهَمُ مَا يَسْمَعُ، 3وَقَرَأَ مِنْهُ أَمَامَ السَّاحَةِ الْوَاقِعَةِ قُبَالَةَ بَوَّابَةِ الْمَاءِ مِنَ الصَّبَاحِ حَتَّى انْتِصَافِ النَّهَارِ، فِي حَضْرَةِ الرِّجَالِ وَالنِّسَاءِ وَالْفَاهِمِينَ، الَّذِينَ أَرْهَفُوا آذَانَهُمْ لِلاسْتِمَاعِ إِلَى كَلِمَاتِ سِفْرِ الشَّرِيعَةِ. 4وَوَقَفَ عِزْرَا الْكَاتِبُ عَلَى مِنْبَرٍ مِنْ خَشَبٍ أَعَدُّوهُ خِصِّيصاً لِهَذِهِ الْمُنَاسَبَةِ، وَوَقَفَ إِلَى جِوَارِهِ عَنْ يَمِينِهِ كُلٌّ مِنْ مَتَّثْيَا وَشَمَعَ وَعَنَايَا وَأُورِيَّا وَحِلْقِيَّا وَمَعْسِيَا، وَعَنْ شِمَالِهِ فَدَايَا وَمِيشَائِيلُ وَمَلْكِيَّا وَحَشُومُ وَحَشْبَدَّانَةُ وَزَكَرِيَّا وَمَشُلّامُ. 5وَإِذْ كَانَ عِزْرَا الْكَاتِبُ يَقِفُ عَلَى مَكَانٍ مُرْتَفِعٍ بِحَيْثُ يَرَاهُ جَمِيعُ الْحَاضِرِينَ، فَتَحَ السِّفْرَ عَلَى مَرْأَى مِنْ كُلِّ الشَّعْبِ الَّذِينَ وَقَفُوا احْتِرَاماً. 6وَبَارَكَ عِزْرَا الرَّبَّ الإِلَهَ الْعَظِيمَ، وَأَجَابَ الشَّعْبُ كُلُّهُ: «آمِين، آمِين» بِأَيْدٍ مَرْفُوعَةٍ. ثُمَّ أَكَبُّوا بِوُجُوهِهِمْ نَحْوَ الأَرْضِ سَاجِدِينَ لِلرَّبِّ. 7وَشَرَعَ يَشُوعُ وَبَانِي وَشَرَبْيَا، وَيَامِينُ، وَعَقُّوبُ وَشَبْتَايُ وَهُودِيَّا وَمَعْسِيَا وَقَلِيطَا وَعَزَرْيَا وَيُوزَابَادُ وَحَنَانُ وَفَلايَا وَاللّاوِيُّونَ يَشْرَحُونَ لِلشَّعْبِ الشَّرِيعَةَ وَالشَّعْبُ وَاقِفٌ فِي أَمَاكِنِهِ، 8وَقَرَأُوا مِنْ سِفْرِ شَرِيعَةِ اللهِ بِوُضُوحٍ، وَفَسَّرُوا مُحْتَوَيَاتِهِ، بِحَيْثُ فَهِمَ الشَّعْبُ مَا كَانَ يُقْرَأُ.

9وَإِذْ بَكَى الشَّعْبُ لَدَى سَمَاعِهِمْ نَصَّ الشَّرِيعَةِ، خَاطَبَهُمْ نَحَمْيَا الْوَالِي وَعِزْرَا الْكَاتِبُ وَاللّاوِيُّونَ الَّذِينَ عَلَّمُوا الشَّعْبَ قَائِلِينَ: «لا تَنُوحُوا وَلا تَبْكُوا، فَهَذَا الْيَوْمُ مُقَدَّسٌ لِلرَّبِّ إِلَهِكُمْ» 10ثُمَّ اسْتَطْرَدَ نَحَمْيَا: «اذْهَبُوا وَاحْتَفِلُوا آكِلِينَ أَطَايِبَ الطَّعَامِ، وَشَارِبِينَ حُلْوَ الشَّرَابِ، وَابْعَثُوا أَنْصِبَةً لِمَنْ لَمْ يُعَدَّ لَهُمْ. وَلا تَحْزَنُوا لأَنَّ هَذَا الْيَوْمَ مُقَدَّسٌ لِسَيِّدِنَا، فَفَرَحُ الرَّبِّ هُوَ قُوَّتُكُمْ». 11وَأَخَذَ اللّاوِيُّونَ يُهَدِّئُونَ كُلَّ الشَّعْبِ قَائِلِينَ: «كُفُّوا، لأَنَّ الْيَوْمَ مُقَدَّسٌ فَلا تَحْزَنُوا». 12فَمَضَى الشَّعْبُ كُلُّهُ لِيَأْكُلَ وَيَشْرَبَ وَيَبْعَثَ بِأَنْصِبَةٍ وَيَحْتَفِلَ بِفَرَحٍ عَظِيمٍ، لأَنَّهُ فَهِمَ نَصَّ الشَّرِيعَةِ الَّتِي عَلَّمُوهُ إِيَّاهَا.

13وَفِي الْيَوْمِ الثَّانِي حَضَرَ رُؤَسَاءُ عَائِلاتِ جَمِيعِ الشَّعْبِ وَالْكَهَنَةِ وَاللّاوِيُّونَ إِلَى عِزْرَا الْكَاتِبِ لِيُفْهِمَهُمْ نَصَّ الشَّرِيعَةِ، 14فَوَجَدُوا أَنَّهُ مُدَوَّنٌ فِي الشَّرِيعَةِ الَّتِي أَمَرَ بِها الرَّبُّ عَلَى لِسَانِ مُوسَى أَنَّ عَلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ الإِقَامَةَ فِي مَظَلّاتٍ فِي الْعِيدِ الْوَاقِعِ فِي الشَّهْرِ السَّابِعِ، 15وَالدَّعْوَةَ والمُنَادَاةَ فِي كُلِّ مُدُنِهِمْ وَأُورُشَلِيمَ قَائِلِينَ: «انْطَلِقُوا إِلَى الْجَبَلِ وَاجْلِبُوا أَغْصَانَ زَيْتُونٍ عَادِيٍّ وَبَرِّيٍّ، وَأَغْصَانَ آسٍ وَنَخْلٍ، وَأَغْصَانَ أَشْجَارٍ كَثِيفَةِ الأَوْرَاقِ لِصُنْعِ مَظَلاتٍ»، كَمَا هُوَ مَكْتُوبٌ. 16فَانْطَلَقَ الشَّعْبُ إِلَى التِّلالِ وَجَلَبُوا الأَغْصَانَ، وَصَنَعُوا لأَنْفُسِهِمْ مَظَلّاتٍ أَقَامُوهَا عَلَى سُطُوحِ بُيُوتِهِمْ، وَفِي سَاحَاتِ دُورِهِمْ، وَفِي فِنَاءِ الْهَيْكَلِ، وَفِي سَاحَةِ بَوَّابَةِ الْمَاءِ، وَفِي سَاحَةِ بَوَّابَةِ أَفْرَايِمَ. 17وَهَكَذَا صَنَعَ كُلُّ الرَّاجِعِينَ مِنَ السَّبْيِ مَظَلّاتٍ أَقَامُوا فِيهَا، لأَنَّ بَنِي إِسْرَائِيلَ لَمْ يَحْتَفِلُوا هَكَذَا مُنْذُ أَيَّامِ يَشُوعَ بْنِ نُونٍ إِلَى ذَلِكَ الْيَوْمِ، وَعَمَّهُمْ فَرَحٌ عَظِيمٌ جِدّاً. 18أَمَّا سِفْرُ شَرِيعَةِ الرَّبِّ فَكَانَ يُتْلَى مِنْهُ كُلَّ يَوْمٍ طَوَالَ أَيَّامِ الْعِيدِ السَّبْعَةِ. وَفِي الْيَوْمِ الثَّامِنِ اعْتَكَفَ الشَّعْبُ بِمُوْجِبِ مَرَاسِيمِ شَرِيعَةِ مُوسَى.

Hindi Contemporary Version

नेहेमियाह 8:1-18

1एक बड़ी भीड़ के रूप में पूरा इस्राएल उस चौक में इकट्ठा हो गया, जो जल फाटक के सामने है. उन्होंने व्यवस्था के ज्ञानी पुरोहित एज़्रा से विनती की थी, कि वह याहवेह द्वारा इस्राएल के लिए दी हुई मोशेह की व्यवस्था की पुस्तक अपने साथ लाएं.

2तब पुरोहित एज़्रा सातवें महीने के पहले दिन उन सभी स्त्री-पुरुषों की सभा के सामने वह व्यवस्था की पुस्तक लेकर आए, जो सुनकर समझ सकते थे. 3एज़्रा सुबह से लेकर दोपहर तक जल फाटक के सामने इकट्ठा भीड़ के सामने उन स्त्री-पुरुषों के लिए पढ़कर सुनाते रहे, जो सुनकर समझ सकते थे, ये सभी व्यवस्था की पुस्तक पर ध्यान लगाए थे.

4एज़्रा एक लकड़ी की चौकी पर खड़े हुए थे, जो इसी मौके के लिए खास तौर पर बनाई गई थी. इस मौके पर उनके दाईं ओर मत्तीथियाह, शेमा, अनाइयाह, उरियाह, हिलकियाह और मआसेइयाह खड़े हुए थे और उनके बाईं ओर थे पेदाइयाह, मिषाएल, मालखियाह, हाषूम, हासबद्दानाह, ज़करयाह और मेशुल्लाम.

5एज़्रा ने पूरी भीड़ के देखते इस पुस्तक को खोला, क्योंकि वह उस ऊंची चौकी पर खड़े हुए थे. जैसे ही उन्होंने पुस्तक खोली, पूरी भीड़ खड़ी हो गई. 6तब एज़्रा ने याहवेह, महान परमेश्वर की स्तुति की और भीड़ ने कहा: “आमेन, आमेन!” उन सभी लोगों ने अपने हाथ उठाए हुए थे, तब बड़े ही आदर के साथ भीड़ ने भूमि की ओर झुककर याहवेह की स्तुति की उनके मुंह ज़मीन पर ही लगे रहे.

7जब सभी लोग अपनी-अपनी जगह पर ठहरे हुए थे, येशुआ, बानी, शेरेबियाह, यामिन, अक्कूब, शब्बेथाइ, होदियाह, मआसेइयाह, केलिता, अज़रियाह, योज़ाबाद, हानन, पेलाइयाह और लेवी लोगों को व्यवस्था की पुस्तक का मतलब साफ़-साफ़ समझाते जाते थे. 8वे इस पुस्तक से पढ़ते जाते-परमेश्वर की व्यवस्था में से और वे उसका अनुवाद भी करते जाते थे कि सभी लोग पढ़े गए भाग को समझते भी जाएं.

9तब नेहेमियाह ने, जो राज्यपाल थे, पुरोहित एज़्रा ने, जो व्यवस्था के ज्ञानी थे और लेवियों ने, जो सभी लोगों के शिक्षक थे, घोषणा की: “याहवेह तुम्हारे परमेश्वर के सामने यह दिन पवित्र है; न तो शोकित होओ, और न ही रोओ,” क्योंकि व्यवस्था के वचन सुनकर सभी लोग रोने लगे थे.

10नेहेमियाह ने उन्हें आदेश दिया “जाइए, अच्छा-अच्छा भोजन कीजिए, मीठा-मीठा रस पीजिए और कुछ भाग उसे भी दे दीजिए, जिसके पास यह सब तैयार किया हुआ नहीं है; क्योंकि यह दिन हमारे याहवेह के सामने पवित्र है. दुःखी न रहिए; क्योंकि याहवेह के दिए हुए आनंद में ही आपका बल है.”

11इस प्रकार लेवियों ने सभी को यह कहकर साथ शांत किया, “आप शांत हो जाइए. आप दुःखी न हों; क्योंकि यह पवित्र दिन है.”

12तब सभी लोग खाने-पीने के लिए चले गए और उन्होंने उत्सव के लिए कुछ भाग दूसरों को भी दिए; क्योंकि यह एक खास उत्सव था. यह इसलिये कि उन्होंने पवित्र व्यवस्था-विधान का मतलब समझ लिया था.

13इसके बाद दूसरे दिन सारी प्रजा के पितरों के प्रधान पुरोहित और लेवी व्यवस्था के ज्ञानी एज़्रा के सामने इकट्ठा हुए, कि यह मालूम कर सकें कि व्यवस्था के वचनों का मतलब क्या है. 14उनके विचार करने का विषय था मोशेह के द्वारा याहवेह की आज्ञा अनुसार सातवें महीने में झोपड़ियों के उत्सव के मौके पर इस्राएल वंशजों का रहन-सहन कैसा हो. 15इसलिये उन्होंने घोषणा करके येरूशलेम में और राज्य के सभी नगरों में यह घोषणा करवा दी, “पहाड़ों पर जाकर ज़ैतून, जंगली जैतून, मेहन्दी, खजूर और अन्य पत्तियों के पेड़ों की डालियां लाई जाएं कि इनका इस्तेमाल व्यवस्था में लिखी हुई विधि के अनुसार झोपड़ियां बनाने के लिए किया जा सके.”

16तब लोग बाहर गए, और डालियां लेकर आए और अपने-अपने लिए झोपड़ियां बना लीं; हर एक ने अपनी छत पर और अपने आंगन में और परमेश्वर के भवन के आंगन में, उस चौक में जो जल फाटक के सामने है और एफ्राईम फाटक के सामने के चौक पर. 17बंधुआई से लौटे हुओं की पूरी भीड़ ने झोपड़ियां बनाईं और उनमें रहे भी. बल्कि इस्राएल वंशजों ने नून के पुत्र यहोशू के शासनकाल से अब तक यह नहीं किया था. यह बहुत बड़ा आनंद का उत्सव हो गया.

18एज़्रा हर रोज़, पहले दिन से आखिरी दिन तक परमेश्वर की व्यवस्था की पुस्तक में से सुनाया करते थे. आदेश के अनुसार आठवें दिन विशेष महासभा बुलाई गई.