الْمَزْمُورُ الْمِئَةُ
مَزْمُورُ اعْتِرَافٍ بِحَمْدِ الرَّبِّ
1اهْتِفُوا لِلرَّبِّ يَا سُكَّانَ الأَرْضِ جَمِيعاً. 2اعْبُدُوا الرَّبَّ بِبَهْجَةٍ، وَامْثُلُوا أَمَامَهُ مُتَرَنِّمِينَ. 3اعْلَمُوا أَنَّ الرَّبَّ هُوَ اللهُ. هُوَ صَنَعَنَا وَنَحْنُ لَهُ، نَحْنُ شَعْبُهُ وَقَطِيعُ مَرْعَاهُ. 4ادْخُلُوا أَبْوَابَهُ حَامِدِينَ، دِيَارَهُ مُسَبِّحِينَ. اشْكُرُوهُ وَبَارِكُوا اسْمَهُ. 5فَإِنَّ الرَّبَّ صَالِحٌ، إِلَى الأَبَدِ رَحْمَتُهُ وَأَمَانَتُهُ دَائِمَةٌ مِنْ جِيلٍ إِلَى جِيلٍ.
स्तोत्र 100
एक स्तोत्र. धन्यवाद के लिए गीत
1याहवेह के स्तवन में समस्त पृथ्वी उच्च स्वर में जयघोष करे.
2याहवेह की आराधना आनंदपूर्वक की जाए;
हर्ष गीत गाते हुए उनकी उपस्थिति में प्रवेश किया जाए.
3यह समझ लो कि स्वयं याहवेह ही परमेश्वर हैं.
हमारी रचना उन्हीं ने की है, स्वयं हमने नहीं; हम पर उन्हीं का स्वामित्व है.
हम उनकी प्रजा, उनकी चराई की भेड़ें हैं.
4धन्यवाद के भाव में उनके द्वारों में
और स्तवन भाव में उनके आंगनों में प्रवेश करो;
उनकी महिमा को धन्य कहो.
5याहवेह भले हैं; उनकी करुणा सदा की है;
उनकी सच्चाई का प्रसरण समस्त पीढ़ियों में होता जाता है.