روما 13 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

روما 13:1-14

الخضوع للسلطات

1عَلَى كُلِّ نَفْسٍ أَنْ تَخْضَعَ لِلسُّلْطَاتِ الْحَاكِمَةِ. فَلا سُلْطَةَ إِلّا مِنْ عِنْدِ اللهِ، وَالسُّلْطَاتُ الْقَائِمَةُ مُرَتَّبَةٌ مِنْ قِبَلِ اللهِ. 2حَتَّى إِنَّ مَنْ يُقَاوِمُ السُّلْطَةَ، يُقَاوِمُ تَرْتِيبَ اللهِ، وَالْمُقَاوِمُونَ سَيَجْلِبُونَ الْعِقَابَ عَلَى أَنْفُسِهِمْ. 3فَإِنَّ الْحُكَّامَ لَا يَخَافُهُمْ مَنْ يَفْعَلُ الصَّلاحَ بَلْ مَنْ يَفْعَلُ الشَّرَّ. أَفَتَرْغَبُ إِذَنْ فِي أَنْ تَكُونَ غَيْرَ خَائِفٍ مِنَ السُّلْطَةِ؟ اعْمَلْ مَا هُوَ صَالِحٌ، فَتَكُونَ مَمْدُوحاً عِنْدَهَا، 4لأَنَّهَا خَادِمَةُ اللهِ لَكَ لأَجْلِ الْخَيْرِ. أَمَّا إِنْ كُنْتَ تَعْمَلُ الشَّرَّ فَخَفْ، لأَنَّ السُّلْطَةَ لَا تَحْمِلُ السَّيْفَ عَبَثاً، إِذْ إِنَّهَا خَادِمَةُ اللهِ، وَهِيَ الَّتِي تَنْتَقِمُ لِغَضَبِهِ مِمَّنْ يَفْعَلُ الشَّرَّ. 5وَلِذَلِكَ، فَمِنَ الضَّرُورِيِّ أَنْ تَخْضَعُوا، لَا اتِّقَاءَ لِلْغَضَبِ فَقَطْ، بَلْ مُرَاعَاةً لِلضَّمِيرِ أَيْضاً. 6فَلِهَذَا السَّبَبِ تَدْفَعُونَ الضَّرَائِبَ أَيْضاً، لأَنَّ رِجَالَ السُّلْطَةِ هُمْ خُدَّامٌ لِلهِ يُوَاظِبُونَ عَلَى هَذَا الْعَمَلِ بِعَيْنِهِ. 7فَأَدُّوا لِكُلِّ وَاحِدٍ حَقَّهُ: الضَّرِيبَةَ لِصَاحِبِ الضَّرِيبَةِ وَالْجِزْيَةَ لِصَاحِبِ الْجِزْيَةِ، وَالاحْتِرَامَ لِصَاحِبِ الاحْتِرَامِ، وَالإِكْرَامَ لِصَاحِبِ الإِكْرَامِ.

المحبة تتميم للشريعة

8لَا تَكُونُوا مَدِينِينَ لأَحَدٍ، إِلّا بِأَنْ يُحِبَّ بَعْضُكُمْ بَعْضاً. فَإِنَّ مَنْ يُحِبُّ غَيْرَهُ، يَكُونُ قَدْ تَمَّمَ الشَّرِيعَةَ، 9لأَنَّ الْوَصَايَا «لا تَزْنِ، لَا تَقْتُلْ، لَا تَسْرِقْ، لَا تَشْهَدْ زُوراً، لَا تَشْتَهِ»، وَبَاقِي الْوَصَايَا، تَتَلَخَّصُ فِي هذِهِ الْكَلِمَةِ: «أَحِبَّ قَرِيبَكَ كَنَفْسِكَ!» 10فَالْمَحَبَّةُ لَا تَعْمَلُ سُوءاً لِلْقَرِيبِ. وَهكَذَا تَكُونُ الْمَحَبَّةُ إِتْمَاماً لِلشَّرِيعَةِ كُلِّهَا.

11وَفَوْقَ هَذَا، فَأَنْتُمْ تَعْرِفُونَ الْوَقْتَ، وَأَنَّهَا الآنَ السَّاعَةُ الَّتِي يَجِبُ أَنْ نَسْتَيْقِظَ فِيهَا مِنَ النَّوْمِ. فَخَلاصُنَا الآنَ، أَقْرَبُ إِلَيْنَا مِمَّا كَانَ يَوْمَ آمَنَّا: 12كَادَ اللَّيْلُ أَنْ يَنْتَهِيَ وَالنَّهَارُ أَنْ يَطْلُعَ. فَلْنَطْرَحْ أَعْمَالَ الظَّلامِ، وَنَلْبَسْ سِلاحَ النُّورِ 13وَكَمَا فِي النَّهَارِ، لِنَسْلُكْ سُلُوكاً لائِقاً: لَا فِي الْعَرْبَدَةِ وَالسُّكْرِ، وَلا فِي الْفَحْشَاءِ وَالإِبَاحِيَّةِ، وَلا فِي النِّزَاعِ وَالْحَسَدِ. 14وَإِنَّمَا الْبَسُوا الرَّبَّ يَسُوعَ الْمَسِيحَ، وَلا تَنْشَغِلُوا بِالتَّدْبِيرِ لِلْجَسَدِ لإِشْبَاعِ شَهْوَاتِهِ.

Hindi Contemporary Version

रोमियों 13:1-14

अधिकारियों की अधीनता

1तुममें से प्रत्येक प्रशासनिक अधिकारियों के अधीन रहे. यह इसलिये कि परमेश्वर द्वारा ठहराए अधिकारी के अलावा अन्य कोई अधिकारी नहीं है. वर्तमान अधिकारी परमेश्वर के द्वारा ही ठहराए गए हैं. 2इसलिये वह, जो अधिकारी का विरोध करता है, परमेश्वर के आदेश का विरोधी है और ऐसे विरोधी स्वयं अपने ऊपर दंड ले आएंगे. 3राजा अच्छे काम के लिए नहीं परंतु बुरे काम के लिए भय के कारण हैं. क्या तुम अधिकारियों से निर्भय रहना चाहते हो? तो वही करो, जो उचित है. इस पर तुम्हें अधिकारी की सराहना प्राप्‍त होगी 4क्योंकि अधिकारी तुम्हारे ही हित में परमेश्वर का सेवक है किंतु यदि तुम वह करते हो, जो बुरा है तो डरो क्योंकि उसके हाथ में तलवार व्यर्थ नहीं है. वह अधिकारी परमेश्वर द्वारा चुना हुआ सेवक है—कुकर्मियों के दंड के लिए प्रतिशोधी. 5इसलिये यह सही है कि सिर्फ दंड के भय के कारण ही नहीं परंतु अंतरात्मा के हित में भी अधीन रहा जाए.

6तुम इसी कारण राज्य-कर भी चुकाते हो कि राजा परमेश्वर के जनसेवक हैं और इसी काम के लिए समर्पित हैं. 7जिसे जो कुछ दिया जाना निर्धारित है, उसे वह दो: जिसे कर देना है, उसे कर दो; जिसे शुल्क, उसे शुल्क; जिनसे डरना है, उनसे डरो तथा जो सम्मान के अधिकारी हैं, उनका सम्मान करो.

आपसी प्रेम तथा व्यवस्था

8आपसी प्रेम के अलावा किसी के कर्ज़दार न हो. वह जो अपने पड़ोसी से प्रेम करता है, उसने व्यवस्था का पालन कर लिया 9क्योंकि: व्यभिचार मत करो, हत्या मत करो, चोरी मत करो, लोभ मत करो,13:9 निर्ग 20:13-15, 17; व्यव 5:17-19, 21 तथा इसके अतिरिक्त यदि कोई भी अन्य आज्ञा हो तो उसका सार यही है: अपने पड़ोसी के लिए तुम्हारा प्रेम वैसा ही हो जैसा तुम्हारा स्वयं के लिए है.13:9 लेवी 19:18 10प्रेम पड़ोसी का बुरा नहीं करता. इसलिये प्रेम व्यवस्था की पूर्ति है.

ज्योति की संतान

11आवश्यक है कि तुम समय को पहचानो. तुम्हारा नींद से जाग जाने का समय आ चुका है. उस समय की तुलना में, जब हमने इस विश्वास को अपनाया था, हमारे उद्धार की पूर्ति पास है. 12रात समाप्‍त होने पर है. दिन का आरंभ हो रहा है. इसलिये हम अंधकार के कामों को त्याग कर ज्योति के शस्त्र धारण कर लें. 13हमारा स्वभाव समय के अनुसार—दिन के अनुकूल हो, न कि लीला-क्रीड़ा, पियक्कड़पन, व्यभिचार, भ्रष्‍ट आचरण, झगड़ा तथा जलन से भरा, 14परंतु प्रभु येशु मसीह को धारण कर लो तथा शरीर की अभिलाषाओं को पूरा करने की इच्छा न करो.