روما 11 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

روما 11:1-36

بقية بني إسرائيل

1وَهُنَا أَقُولُ: هَلْ رَفَضَ اللهُ شَعْبَهُ؟ حَاشَا! فَأَنَا أَيْضاً إِسْرَائِيلِيٌّ، مِنْ نَسْلِ إِبْرَاهِيمَ وَمِنْ سِبْطِ بِنْيَامِينَ. 2إِنَّ اللهَ لَمْ يَرْفُضْ شَعْبَهُ الَّذِي كَانَ قَدِ اخْتَارَهُ. أَمَا تَعْلَمُونَ مَا يَقُولُهُ الْكِتَابُ فِي أَمْرِ إِيلِيَّا لَمَّا رَفَعَ إِلَى اللهِ شَكْوَى عَلَى إِسْرَائِيلَ قَائِلاً: 3«يَا رَبُّ؟ قَتَلُوا أَنْبِيَاءَكَ، وَهَدَمُوا مَذَابِحَكَ، وَبَقِيتُ أَنَا وَحْدِي، وَهُمْ يَسْعَوْنَ إِلَى قَتْلِي!» 4وَلكِنْ، مَاذَا كَانَ الْجَوَابُ الإِلَهِيُّ لَهُ؟ «أَبْقَيْتُ لِنَفْسِي سَبْعَةَ آلافِ رَجُلٍ لَمْ يَحْنُوا رُكْبَةً لِلْبَعْلِ!» 5فَكَذَلِكَ، فِي الزَّمَانِ الْحَاضِرِ، مَاتَزَالُ بَقِيَّةٌ اخْتَارَهَا اللهُ بِالنِّعْمَةِ. 6وَلكِنْ، بِمَا أَنَّ ذَلِكَ قَدْ تَمَّ بِالنِّعْمَةِ، فَلَيْسَ بَعْدُ عَلَى أَسَاسِ الأَعْمَالِ، وَإلَّا فَلَيْسَتِ النِّعْمَةُ نِعْمَةً بَعْدُ. 7فَمَا الْخُلاصَةُ إِذاً؟ إِنَّ مَا يَسْعَى إِلَيْهِ إِسْرَائِيلُ لَمْ يَنَالُوهُ، بَلْ نَالَهُ الْمُخْتَارُونَ مِنْهُمْ، وَالْبَاقُونَ عَمِيَتْ بَصَائِرُهُمْ، 8وَفْقاً لِمَا قَدْ كُتِبَ: «أَلْقَى اللهُ عَلَيْهِمْ رُوحَ خُمُولٍ وَأَعْطَاهُمْ عُيُوناً لَا يُبْصِرُونَ بِها، وَآذَاناً لَا يَسْمَعُونَ بِها، حَتَّى هَذَا الْيَوْمِ». 9كَذَلِكَ يَقُولُ دَاوُدُ: «لِتَصِرْ لَهُمْ مَائِدَتُهُمْ فَخّاً وَشَرَكاً وَعَقَبَةً وَعِقَاباً. 10لِتُظْلِمْ عُيُونُهُمْ كَيْ لَا يُبْصِرُوا، وَلْتَكُنْ ظُهُورُهُمْ مُنْحَنِيَةً دَائِماً!»

الفروع المطعمة

11فَأَقُولُ إِذاً: هَلْ تَعَثَّرُوا لِكَيْ يَسْقُطُوا أَبَداً؟ حَاشَا! بَلْ بِسَقْطَتِهِمْ تَوَفَّرَ الْخَلاصُ لِلأُمَمِ، لَعَلَّ ذلِكَ يُثِيرُ غَيْرَتَهُمْ. 12فَإِذَا كَانَتْ سَقْطَتُهُمْ غِنىً لِلْعَالَمِ، وَخَسَارَتُهُمْ غِنىً لِلأُمَمِ، فَكَمْ بِالأَحْرَى يَكُونُ اكْتِمَالُهُمْ؟ 13فَإِنِّي أُخَاطِبُكُمْ، أَنْتُمُ الأُمَمَ، بِمَا أَنِّي رَسُولٌ لِلأُمَمِ، مُمَجِّداً رِسَالَتِي، 14لَعَلِّي أُثِيرُ غَيْرَةَ بَنِي جِنْسِي فَأُنْقِذَ بَعْضاً مِنْهُمْ. 15فَإِذَا كَانَ إِبْعَادُهُمْ فُرْصَةً لِمُصَالَحَةِ الْعَالَمِ، فَمَاذَا يَكُونُ قُبُولُهُمْ إِلّا حَيَاةً مِنْ بَيْنِ الأَمْوَاتِ؟ 16وَإذَا كَانَتِ الْقِطْعَةُ الأُولَى مِنَ الْعَجِينِ مُقَدَّسَةً، فَالْعَجِينُ كُلُّهُ مُقَدَّسٌ؛ وَإذَا كَانَ أَصْلُ الشَّجَرَةِ مُقَدَّساً، فَالأَغْصَانُ أَيْضاً تَكُونُ مُقَدَّسَةً. 17فَإِذَا كَانَتْ بَعْضُ أَغْصَانِ الزَّيْتُونَةِ قَدْ قُطِعَتْ، ثُمَّ طُعِّمْتَ فِيهَا وَأَنْتَ مِنْ زَيْتُونَةٍ بَرِّيَّةٍ، فَصِرْتَ بِذَلِكَ شَرِيكاً فِي أَصْلِ الزَّيْتُونَةِ وَغِذَائِهَا، 18فَلا تَفْتَخِرْ عَلَى بَاقِي الأَغْصَانِ. وَإِنْ كُنْتَ تَفْتَخِرُ، فَلَسْتَ أَنْتَ تَحْمِلُ الأَصْلَ، بَلْ هُوَ يَحْمِلُكَ. 19وَلكِنَّكَ قَدْ تَقُولُ: «تِلْكَ الأَغْصَانُ قَدْ قُطِعَتْ لأُطَعَّمَ أَنَا!» 20صَحِيحٌ! فَهِيَ قُطِعَتْ لِسَبَبِ عَدَمِ الإِيمَانِ، وَأَنْتَ إِنَّمَا تَثْبُتُ بِسَبَبِ الإِيمَانِ. فَلا يَأْخُذْكَ الْغُرُورُ، بَلْ خَفْ 21إِنَّ اللهَ رُبَّمَا لَا يُبْقِي عَلَيْكَ مَادَامَ لَمْ يُبْقِ عَلَى الأَغْصَانِ الأَصْلِيَّةِ. 22فَتَأَمَّلْ إِذاً لُطْفَ اللهِ وَشِدَّتَهُ: أَمَّا الشِّدَّةُ، فَعَلَى الَّذِينَ سَقَطُوا؛ وَأَمَّا لُطْفُ اللهِ فَمِنْ نَحْوِكَ مَادُمْتَ تَثْبُتُ فِي اللُّطْفِ. وَلَوْ لَمْ تَكُنْ ثَابِتاً، لَكُنْتَ أَنْتَ أَيْضاً تُقْطَعُ. 23وَهُمْ أَيْضاً، إِنْ لَمْ يَثْبُتُوا فِي عَدَمِ الإِيمَان فَسَوْفَ يُطَعَّمُونَ، لأَنَّ اللهَ قَادِرٌ أَنْ يُطَعِّمَهُمْ مِنْ جَدِيدٍ. 24فَإِذَا كُنْتَ أَنْتَ قَدْ قُطِعْتَ مِنَ الزَّيْتُونَةِ الْبَرِّيَّةِ الَّتِي تَنْتَمِي إِلَيْهَا أَصْلاً، وَطُعِّمْتَ خِلافاً لِلْعَادَةِ فِي الزَّيْتُونَةِ الْجَيِّدَةِ، فَكَمْ بِالأَحْرَى هَؤُلاءِ، الَّذِينَ هُمْ أَغْصَانٌ أَصْلِيَّةٌ، سَوْفَ يُطَعَّمُونَ فِي زَيْتُونَتِهِمِ الْخَاصَّةِ.

رحمة الله متاحة للجميع

25فَإِنِّي لَا أُرِيدُ، أَيُّهَا الإِخْوَةُ، أَنْ يَخْفَى عَلَيْكُمْ هَذَا السِّرُّ، لِكَيْ لَا تَكُونُوا حُكَمَاءَ فِي نَظَرِ أَنْفُسِكُمْ، وَهُوَ أَنَّ الْعَمَى قَدْ أَصَابَ إِسْرَائِيلَ جُزْئِيًّا إِلَى أَنْ يَتِمَّ دُخُولُ الأُمَمِ. 26وَهكَذَا، سَوْفَ يَخْلُصُ جَمِيعُ إِسْرَائِيلَ، وَفْقاً لِمَا قَدْ كُتِبَ: «إِنَّ الْمُنْقِذَ سَيَطْلُعُ مِنْ صِهْيَوْنَ وَيَرُدُّ الإِثْمَ عَنْ يَعْقُوبَ. 27وَهَذَا هُوَ الْعَهْدُ مِنِّي لَهُمْ حِينَ أُزِيلُ خَطَايَاهُمْ». 28فَفِيمَا يَتَعَلَّقُ بِالإِنْجِيلِ، هُمْ أَعْدَاءُ اللهِ مِنْ أَجْلِكُمْ. وَأَمَّا فِيمَا يَتَعَلَّقُ بِالاخْتِيَارِ الإِلهِيِّ فَهُمْ مَحْبُوبُونَ مِنْ أَجْلِ الآبَاءِ. 29فَإِنَّ اللهَ لَا يَتَرَاجَعُ أَبَداً عَنْ هِبَاتِهِ وَدَعْوَتِهِ. 30وَالْوَاقِعُ أَنَّهُ كَمَا كُنْتُمْ أَنْتُمْ فِي الْمَاضِي غَيْرَ مُطِيعِينَ لِلهِ، وَلَكِنَّكُمُ الآنَ نِلْتُمُ الرَّحْمَةَ مِنْ جَرَّاءِ عَدَمِ طَاعَتِهِمْ هُمْ، 31فَكَذَلِكَ الآنَ هُمْ غَيْرُ مُطِيعِينَ لِلهِ. لِيَنَالُوا هُمْ أَيْضاً الرَّحْمَةَ، مِنْ جَرَّاءِ الرَّحْمَةِ الَّتِي نِلْتُمُوهَا أَنْتُمْ. 32فَإِنَّ اللهَ حَبَسَ الْجَمِيعَ مَعاً فِي عَدَمِ الطَّاعَةِ لِكَيْ يَرْحَمَهُمْ جَمِيعاً.

شكر الله

33فَمَا أَعْمَقَ غِنَى اللهِ وَحِكْمَتَهُ وَعِلْمَهُ! مَا أَبْعَدَ أَحْكَامَهُ عَنِ الْفَحْصِ وَطُرُقَهُ عَنِ التَّتَبُّعِ! 34«لأَنَّهُ مَنْ عَرَفَ فِكْرَ الرَّبِّ؟ أَوْ مَنْ كَانَ لَهُ مُشِيراً؟ 35أَوْ مَنْ أَقْرَضَهُ شَيْئاً حَتَّى يُرَدَّ لَهُ؟» 36فَإِنَّ مِنْهُ وَبِهِ وَلَهُ كُلَّ شَيْءٍ. لَهُ الْمَجْدُ إِلَى الأَبَدِ. آمِينَ!

Hindi Contemporary Version

रोमियों 11:1-36

इस्राएल का शेषांश

1तो मेरा प्रश्न यह है: क्या परमेश्वर ने अपनी प्रजा का त्याग कर दिया है? नहीं! बिलकुल नहीं! क्योंकि स्वयं मैं एक इस्राएली हूं—अब्राहाम की संतान तथा बिन्यामिन का वंशज. 2परमेश्वर ने अपनी पूर्वावगत11:2 पूर्वावगत: वह, जिसके विषय में पहले से ज्ञात था. प्रजा का त्याग नहीं कर दिया या क्या तुम यह नहीं जानते कि पवित्र शास्त्र में एलियाह से संबंधित भाग में क्या कहा गया है—इस्राएल के विरुद्ध होकर वह परमेश्वर से कैसे विनती करते हैं: 3“प्रभु, उन्होंने आपके भविष्यद्वक्ताओं की हत्या कर दी है, उन्होंने आपकी वेदियां ध्वस्त कर दीं. मात्र मैं शेष रहा हूं और अब वे मेरे प्राणों के प्यासे हैं?”11:3 1 राजा 19:10, 14 4इस पर परमेश्वर का उत्तर क्या था? “मैंने अपने लिए ऐसे सात हज़ार व्यक्ति चुन रखे हैं, जो बाल देवता के सामने नतमस्तक नहीं हुए हैं.”11:4 1 राजा 19:18 5ठीक इसी प्रकार वर्तमान में भी परमेश्वर के अनुग्रह में एक थोड़ा भाग चुना गया है. 6अब, यदि इसकी उत्पत्ति अनुग्रह के द्वारा ही हुई है तो इसका आधार काम नहीं हैं नहीं तो अनुग्रह, अनुग्रह नहीं रह जाएगा.

7तब इसका परिणाम क्या निकला? इस्राएलियों को तो वह प्राप्‍त हुआ नहीं, जिसे वे खोज रहे थे; इसके विपरीत जो चुने हुए थे, उन्होंने इसे प्राप्‍त कर लिया तथा शेष हठीले बना दिए गए. 8ठीक जिस प्रकार पवित्र शास्त्र का लेख है:

“परमेश्वर ने उन्हें जड़ता की स्थिति में डाल दिया कि

आज तक उनकी आंख देखने में

तथा कान सुनने में असमर्थ हैं.”11:8 व्यव 29:4; यशा 29:10

9दावीद का लेख है:

“उनके भोज्य पदार्थ उनके लिए परीक्षा और फंदा,

तथा ठोकर का पत्थर और प्रतिशोध बन जाएं.

10उनके आंखों की ज्योति जाती रहे और वे देख न सकें,

उनकी कमर स्थायी रूप से झुक जाए.”11:10 स्तोत्र 69:22, 23

भविष्य में यहूदी अपने निर्धारित स्थान पर लाए जाएंगे

11तो मेरा प्रश्न यह है: क्या उन्हें ऐसी ठोकर लगी कि वे कभी न उठ पाएं? नहीं! बिलकुल नहीं! यहूदियों के गिरने के द्वारा ही गैर-यहूदियों को उद्धार प्राप्‍त हुआ है कि यहूदियों में जलनभाव उत्पन्‍न हो जाए. 12यदि उनकी गिरावट ही संसार के लिए आत्मिक धन तथा उनकी असफलता ही गैर-यहूदियों के लिए आत्मिक धन साबित हुई है तो कितना ज्यादा होगा उन सभी की भरपूरी का प्रभाव!

13अब मैं तुमसे बातें करता हूं, जो गैर-यहूदी हो. अब, जबकि मैं गैर-यहूदियों के लिए प्रेरित हूं, मुझे अपनी सेवकाई का गर्व है 14कि मैं किसी भी रीति से कुटुंबियों में जलनभाव उत्पन्‍न कर सकूं तथा इसके द्वारा उनमें से कुछ को तो उद्धार प्राप्‍त हो सके; 15क्योंकि यदि उनकी अस्वीकृति संसार से परमेश्वर के मेल-मिलाप का कारण बन गई है, तो उनकी स्वीकृति मरे हुओं में से जी उठने के अलावा क्या हो सकती है? 16यदि भेंट का पहला पेडा पवित्र ठहरा तो गूंधा हुआ सारा आटा ही पवित्र है. यदि जड़ पवित्र है तो शाखाएं भी पवित्र ही हुईं न?

17किंतु यदि कुछ शाखाएं तोड़ी गई तथा तुम, जो एक जंगली ज़ैतून हो, उनमें रोपे गए हो तथा उनके साथ ज़ैतून पेड़ की जड़ के अंग होने के कारण पौष्टिक सार के सहभागी बन गए हो 18तो उन शाखाओं का घमंड न भरना. यदि तुम घमंड भरते ही हो तो इस सच्चाई पर विचार करो: यह तुम नहीं, जो जड़ के पोषक हो परंतु जड़ ही है, जो तुम्हारा पोषक है. 19तब तुम्हारा दूसरा तर्क होगा: “शाखाएं तोड़ी गई कि मुझे रोपा जा सके.” 20ठीक है. किंतु उन्हें तो उनके अविश्वास के कारण अलग किया गया किंतु तुम स्थिर हो अपने विश्वास के कारण. इसके विषय में घमंड न भरते हुए श्रद्धा भाव को स्थान दो. 21यदि परमेश्वर ने स्वाभाविक शाखाओं को भी न छोड़ा तो वह तुम पर भी कृपा नहीं करेंगे.

22परमेश्वर की कृपा तथा उनकी कठोरता पर विचार करो: गिरे हुए लोगों के लिए कठोरता तथा तुम्हारे लिए कृपा—यदि तुम वास्तव में उनकी कृपा की सीमा में बने रहते हो नहीं तो तुम्हें भी काटकर अलग कर दिया जाएगा. 23तब वे भी, यदि वे अपने अविश्वास के हठ में बने न रहें, रोपे जाएंगे क्योंकि परमेश्वर उन्हें रोपने में समर्थ हैं. 24जब तुम्हें उस पेड़ से, जो प्राकृतिक रूप से जंगली ज़ैतून है, काटकर स्वभाव के विरुद्ध फल देनेवाले जैतून के पेड़ में जोड़ा गया है, तब वे शाखाएं, जो प्राकृतिक हैं, अपने ही मूल पेड़ में कितनी सरलतापूर्वक जोड़ ली जाएंगी!

इस्राएल का उद्धार

25प्रिय भाई बहिनो, मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो—ऐसा न हो कि तुम अपने ऊपर घमंड करने लगो—इस्राएलियों में यह कुछ भाग की कठोरता निर्धारित संख्या में गैर-यहूदियों के मसीह में आ जाने तक ही है. 26इस प्रकार पूरा इस्राएल उद्धार प्राप्‍त करेगा—ठीक जिस प्रकार पवित्र शास्त्र का लेख है:

उद्धारकर्ता का आगमन ज़ियोन से होगा.

वह याकोब से अभक्ति को दूर करेगा.

27जब मैं उनके पाप हर ले जाऊंगा,

तब उनसे मेरी यही वाचा होगी.

28ईश्वरीय सुसमाचार के दृष्टिकोण से तो वे तुम्हारे लिए परमेश्वर के शत्रु हैं किंतु चुन लिए जाने के दृष्टिकोण से पूर्वजों के लिए प्रियजन. 29परमेश्वर द्वारा दिया गया वरदान तथा उनका बुलावा अटल हैं. 30ठीक जिस प्रकार तुमने, जो किसी समय परमेश्वर की आज्ञा न माननेवाले थे, अब उन यहूदियों की अनाज्ञाकारिता के कारण कृपादृष्टि प्राप्‍त की है. 31वे अभी भी अनाज्ञाकारी हैं कि तुम पर दिखाई गई कृपादृष्टि के कारण उन पर भी कृपादृष्टि हो जाए. 32इस समय परमेश्वर ने सभी को आज्ञा के उल्लंघन की सीमा में रख दिया है कि वह सभी पर कृपादृष्टि कर सकें.

परमेश्वर की करुणा और ज्ञान का स्तुति गान

33ओह! कैसा अपार है

परमेश्वर की बुद्धि और ज्ञान का भंडार! कैसे अथाह हैं उनके निर्णय!

तथा कैसा रहस्यमयी है उनके काम करने का तरीका!

34भला कौन जान सका है परमेश्वर के मन को?

या कौन हुआ है उनका सलाहकार?

35क्या किसी ने परमेश्वर को कभी कुछ दिया है

कि परमेश्वर उसे वह लौटाएं?11:35 अय्यो 41:11

36वही हैं सब कुछ के स्रोत, वही हैं सब कुछ के कारक,

वही हैं सब कुछ की नियति—उन्हीं की महिमा सदा-सर्वदा होती रहे, आमेन.