بطرس الأولى 2 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

بطرس الأولى 2:1-25

1لِذَلِكَ، تَخَلَّصُوا مِنْ كُلِّ أَثَرٍ لِلشَّرِّ وَالْخِدَاعِ وَالرِّيَاءِ وَالْحَسَدِ وَالذَّمِّ. 2وَكَأَطْفَالٍ مَوْلُودِينَ حَدِيثاً، تَشَوَّقُوا إِلَى اللَّبَنِ الرُّوحِيِّ النَّقِيِّ لِكَيْ تَنْمُوا بِهِ إِلَى أَنْ تَبْلُغُوا النَّجَاةَ، 3إِنْ كُنْتُمْ حَقّاً قَدْ تَذَوَّقْتُمْ أَنَّ الرَّبَّ طَيِّبٌ!

حجارة حية وشعب مختار

4فَأَنْتُمْ قَدْ أَتَيْتُمْ إِلَيْهِ، بِاعْتِبَارِهِ الحَجَرَ الحَيَّ الَّذِي رَفَضَهُ النَّاسُ، وَاخْتَارَهُ اللهُ، وَهُوَ ثَمِينٌ عِنْدَهُ. 5إِذَنِ اتَّحِدُوا بِهِ كَحِجَارَةٍ حَيَّةٍ، مَبْنِيِّينَ بَيْتاً رُوحِيًّا، تَكُونُونَ فِيهِ كَهَنَةً مُقَدَّسِينَ تُقَدِّمُونَ لِلهِ ذَبَائِحَ رُوحِيَّةً مَقْبُولَةً لَدَيْهِ بِفَضْلِ يَسُوعَ الْمَسِيحِ. 6وَكَمَا يَقُولُ الْكِتَابُ: «هَا أَنَا أَضَعُ فِي صِهْيَوْنَ حَجَرَ زَاوِيَةٍ، مُخْتَاراً وَثَمِيناً. الَّذِي يُؤْمِنُ بِهِ، لَا يَخِيبُ!» 7فَإِنَّ هَذَا الْحَجَرَ هُوَ ثَمِينٌ فِي نَظَرِكُمْ، أَنْتُمُ الْمُؤْمِنِينَ بِهِ. أَمَّا بِالنِّسْبَةِ إِلَى الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ، «فَالْحَجَرُ الَّذِي رَفَضَهُ الْبَنَّاؤُونَ صَارَ هُوَ الْحَجَرَ الأَسَاسَ رَأْسَ زَاوِيَةِ الْبَيْتِ»، 8كَمَا أَنَّهُ هُوَ «الْحَجَرُ الَّذِي يَصْطَدِمُونَ بِهِ، وَالصَّخْرَةُ الَّتِي يَسْقُطُونَ عَلَيْهَا!» وَهُمْ يَسْقُطُونَ لأَنَّهُمْ يَرْفُضُونَ أَنْ يُؤْمِنُوا بِالْكَلِمَةِ. 9فَإِنَّ سُقُوطَهُمْ أَمْرٌ حَتْمِيٌّ! وَأَمَّا أَنْتُمْ، فَإِنَّكُمْ تُشَكِّلُونَ جمَاعَةَ كَهَنَةٍ مُلُوكِيَّةً، وَسُلالَةً اخْتَارَهَا اللهُ، وَأُمَّةً كَرَّسَهَا لِنَفْسِهِ، وَشَعْباً امْتَلَكَهُ. وَذَلِكَ لِكَيْ تُخْبِرُوا بِفَضَائِلِ الرَّبِّ، الَّذِي دَعَاكُمْ مِنَ الظَّلامِ إِلَى نُورِهِ الْعَجِيبِ! 10فَإِنَّكُمْ فِي الْمَاضِي لَمْ تَكُونُوا شَعْباً؛ أَمَّا الآنَ، فَأَنْتُمْ «شَعْبُ اللهِ وَقَدْ كُنْتُمْ سَابِقاً لَا تَتَمَتَّعُونَ بِرَحْمَةِ اللهِ، أَمَّا الآنَ، فَإِنَّكُمْ تَتَمَتَّعُونَ بِها!»

الحياة التقية في مجتمع وثني

11أَيُّهَا الأَحِبَّاءُ، مَا أَنْتُمْ إِلّا غُرَبَاءُ تَزُورُونَ الأَرْضَ زِيَارَةً عَابِرَةً. لِذَلِكَ أَطْلُبُ إِلَيْكُمْ أَنْ تَبْتَعِدُوا عَنِ الشَّهَوَاتِ الْجَسَدِيَّةِ الَّتِي تُصَارِعُ النَّفْسَ. 12وَلْيَكُنْ سُلُوكُكُمْ بَيْنَ الأُمَمِ سُلُوكاً حَسَناً. فَمَعَ أَنَّهُمْ يَتَّهِمُونَكُمْ زُوراً بِأَنَّكُمْ تَفْعَلُونَ الشَّرَّ، فَحِينَ يُلاحِظُونَ أَعْمَالَكُمُ الصَّالِحَةَ يُمَجِّدُونَ اللهَ يَوْمَ يَفْتَقِدُهُمْ.

13فَإِكْرَاماً لِلرَّبِّ، اخْضَعُوا لِكُلِّ نِظَامٍ يُدِيرُ شُؤُونَ النَّاسِ: لِلْمَلِكِ، بِاعْتِبَارِهِ صَاحِبَ السُّلْطَةِ الْعُلْيَا، 14وَلِلْحُكَّامِ، بِاعْتِبَارِهِمْ مُمَثِّلِي الْمَلِكِ الَّذِينَ يُعَاقِبُونَ الْمُذْنِبِينَ وَيَمْدَحُونَ الصَّالِحِينَ. 15فَإِنَّ هَذِهِ هِيَ إِرَادَةُ اللهِ: أَنْ تَفْعَلُوا الْخَيْرَ دَائِماً، فَتُفْحِمُوا جَهَالَةَ النَّاسِ الأَغْبِيَاءِ! 16تَصَرَّفُوا كَأَحْرَارٍ حَقّاً، لَا كَالَّذِينَ يَتَّخِذُونَ مِنَ الْحُرِّيَّةِ سِتَاراً لارْتِكَابِ الشَّرِّ بَلْ بِاعْتِبَارِ أَنَّكُمْ عَبِيدٌ لِلهِ. 17أَكْرِمُوا جَمِيعَ النَّاسِ. أَحِبُّوا الإِخْوَةَ. خَافُوا اللهَ. أَكْرِمُوا الْمَلِكَ.

الاقتداء بالمسيح

18أَيُّهَا الْخَدَمُ، اخْضَعُوا لِسَادَتِكُمْ بِاحْتِرَامٍ لائِقٍ. لَيْسَ لِلسَّادَةِ الصَّالِحِينَ الْمُتَرَفِّقِينَ فَقَطْ، بَلْ لِلظَّالِمِينَ الْقُسَاةِ أَيْضاً! 19فَمَا أَجْمَلَ أَنْ يَتَحَمَّلَ الإِنْسَانُ الأَحْزَانَ حِينَ يَتَأَلَّمُ مَظْلُوماً، بِدَافِعٍ مِنْ ضَمِيرِهِ الْخَاضِعِ لِلهِ! 20فَبِالْحَقِيقَةِ، أَيُّ مَجْدٍ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَصْبِرُونَ وَأَنْتُمْ تَتَحَمَّلُونَ قَصَاصَ أَخْطَائِكُمْ؟ لَا فَضْلَ لَكُمْ عِنْدَ اللهِ إِلّا إِذَا تَحَمَّلْتُمُ الآلامَ صَابِرِينَ، وَأَنْتُمْ تَفْعَلُونَ الصَّوَابَ. 21لأَنَّ اللهَ دَعَاكُمْ إِلى الاشْتِرَاكِ فِي هَذَا النَّوْعِ مِنَ الآلامِ. فَالْمَسِيحُ، الَّذِي تَأَلَّمَ لأَجْلِكُمْ، هُوَ الْقُدْوَةُ الَّتِي تَقْتَدُونَ بِها. فَسِيرُوا عَلَى آثَارِ خُطْوَاتِهِ: 22إِنَّهُ لَمْ يَفْعَلْ خَطِيئَةً وَاحِدَةً، وَلا كَانَ فِي فَمِهِ مَكْرٌ. 23وَمَعَ أَنَّهُ أُهِينَ، فَلَمْ يَكُنْ يَرُدُّ الإِهَانَةَ. وَإِذْ تَحَمَّلَ الآلامَ، لَمْ يَكُنْ يُهَدِّدُ بِالانْتِقَامِ، بَلْ أَسْلَمَ أَمْرَهُ لِلهِ الَّذِي يَحْكُمُ بِالْعَدْلِ. 24وَهُوَ نَفْسُهُ حَمَلَ خَطَايَانَا فِي جَسَدِهِ (عِنْدَمَا مَاتَ مَصْلُوباً) عَلَى الْخَشَبَةِ، لِكَيْ نَمُوتَ بِالنِّسْبَةِ لِلْخَطَايَا فَنَحْيَا حَيَاةَ الْبِرِّ. وَبِجِرَاحِهِ هُوَ تَمَّ لَكُمُ الشِّفَاءُ، 25فَقَدْ كُنْتُمْ ضَالِّينَ كَخِرَافٍ ضَائِعَةٍ، وَلَكِنَّكُمْ قَدْ رَجَعْتُمُ الآنَ إِلَى رَاعِي نُفُوسِكُمْ وَحَارِسِهَا!

Hindi Contemporary Version

1 पेतरॉस 2:1-25

1इसलिये सब प्रकार का बैरभाव, सारे छल, कपट, डाह तथा सारी निंदा को दूर करते हुए 2वचन के निर्मल दूध के लिए तुम्हारी लालसा नवजात शिशुओं के समान हो कि तुम उसके द्वारा उद्धार के पूर्ण अनुभव में बढ़ते जाओगे. 3अब तुमने यह चखकर जान लिया है कि प्रभु कृपानिधान हैं.

नई याजकता

4अब तुम उनके पास आए हो, जो जीवित पत्थर हैं, जो मनुष्यों द्वारा त्यागा हुआ किंतु परमेश्वर के लिए बहुमूल्य और प्रतिष्ठित हैं. 5तुम भी जीवित पत्थरों के समान पवित्र पौरोहित्य के लिए एक आत्मिक भवन बनते जा रहे हो कि मसीह येशु के द्वारा परमेश्वर को भानेवाली आत्मिक बलि भेंट करो. 6पवित्र शास्त्र का लेख है:

“देखो, मैं ज़ियोन में एक उत्तम पत्थर,

एक बहुमूल्य कोने के पत्थर की स्थापना कर रहा हूं,

वह, जो उनमें विश्वास करता है

कभी भी लज्जित न होगा.”2:6 यशा 28:16

7इसलिये तुम्हारे लिए, जो विश्वासी हो, वह बहुमूल्य हैं. किंतु अविश्वासियों के लिए,

“वही पत्थर, जो राजमिस्त्रियों द्वारा नकार दिया गया था,”2:7 स्तोत्र 118:22

कोने का सिरा बन गया.

8तथा,

“वह पत्थर जिससे ठोकर लगती है,

वह चट्टान, जो उनके पतन का कारण है.”

वे लड़खड़ाते इसलिये हैं कि वे वचन को नहीं मानते हैं और यही दंड उनके लिये परमेश्वर द्वारा ठहराया गया है.

9किंतु तुम एक चुने हुए वंश, राजकीय पुरोहित, पवित्र राष्ट्र तथा परमेश्वर की अपनी प्रजा हो कि तुम उनकी सर्वश्रेष्ठता की घोषणा कर सको, जिन्होंने अंधकार में से तुम्हारा बुलावा अपनी अद्भुत ज्योति में किया है. 10एक समय था जब तुम प्रजा ही न थे, किंतु अब परमेश्वर की प्रजा हो; तुम कृपा से वंचित थे परंतु अब तुम उनके कृपापात्र हो गए हो.

विनम्रता व समर्पण निर्देश: अन्यजातियों के प्रति

11प्रिय भाई बहनो, मैं तुम्हारे परदेशी और यात्री होने के कारण तुमसे विनती करता हूं कि तुम शारीरिक अभिलाषाओं से बचे रहो, जो आत्मा के विरुद्ध युद्ध करते हैं. 12अन्यजातियों में अपना चालचलन भला रखो, जिससे कि जिस विषय में वे तुम्हें कुकर्मी मानते हुए तुम्हारी निंदा करते हैं, तुम्हारे भले कामों को देखकर उस आगमन दिवस पर परमेश्वर की वंदना करें.

13मनुष्य द्वारा चुने हुए हर एक शासक के प्रभु के लिए अधीन रहो: चाहे राजा के, जो सर्वोच्च अधिकारी है 14या राज्यपालों के, जो कुकर्मियों को दंड देने परंतु सुकर्मियों की सराहना के लिए चुने गए हैं, 15क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यही है कि तुम अपने सच्चे चरित्र के द्वारा उन मूर्खों का मुख बंद करो, जो बेबुनियादी बातें करते रहते हैं. 16तुम्हारा स्वभाव स्वतंत्र व्यक्तियों के समान तो हो किंतु तुम अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग बुराई पर पर्दा डालने के लिए नहीं परंतु परमेश्वर के सेवकों के रूप में ही करो. 17सभी का सम्मान करो, साथी विश्वासियों के समुदाय से प्रेम करो; परमेश्वर के प्रति श्रद्धा भाव रखो और राजा का सम्मान करो.

18सेवको, पूरे आदर भाव में अपने स्वामियों के अधीन रहो; भले और हितैषी स्वामियों के ही नहीं परंतु बुरे स्वामियों के भी. 19यदि कोई परमेश्वर के प्रति विवेकशीलता के कारण क्लेश भोगता है और अन्यायपूर्ण रीति से सताया जाता है, वह प्रशंसनीय है. 20भला इसमें प्रशंसनीय क्या है कि तुमने अपराध किया, उसके लिए सताए गए और उसे धीरज के साथ सहते रहे? परंतु यदि तुमने वह किया, जो उचित है और उसके लिए धीरज के साथ दुःख सहे तो तुम परमेश्वर के कृपापात्र हो. 21इसी के लिए तुम बुलाए गए हो क्योंकि मसीह ने भी तुम्हारे लिए दुःख सहे और एक आदर्श छोड़ गए कि तुम उनके पद-चिह्नों पर चलो.

22“न उन्होंने कोई पाप किया और न उनके मुख से

छल का कोई शब्द निकला”2:22 यशा 53:9

23जब उनकी उल्लाहना की जा रही थी, उन्होंने इसके उत्तर में उल्लाहना नहीं की; दुःख सहते हुए भी, उन्होंने धमकी नहीं दी; परंतु स्वयं को परमेश्वर के हाथों में सौंप दिया, जो धार्मिकता से न्याय करते हैं. 24“मसीह ने काठ पर स्वयं” अपने शरीर में हमारे पाप उठा लिए कि हम पाप के लिए मरकर तथा धार्मिकता के लिए जीवित हो जाएं. “उनके घावों के द्वारा तुम्हारी चंगाई हुई है. 25तुम लगातार भेड़ों के समान भटक रहे थे,”2:25 यशा 53:4, 5, 6 किंतु अब अपने चरवाहे व अपनी आत्मा के रखवाले के पास लौट आए हो.