التكوين 12 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

التكوين 12:1-20

دعوة أبرام

1وَقَالَ الرَّبُّ لأَبْرَامَ: «اتْرُكْ أَرْضَكَ وَعَشِيرَتَكَ وَبَيْتَ أَبِيكَ وَاذْهَبْ إِلَى الأَرْضِ الَّتِي أُرِيكَ، 2فَأَجْعَلَ مِنْكَ أُمَّةً كَبِيرَةً وَأُبَارِكَكَ وَأُعَظِّمَ اسْمَكَ، وَتَكُونَ بَرَكَةً (لِكَثِيرِينَ). 3وَأُبَارِكُ مُبَارِكِيكَ وَأَلْعَنُ لاعِنِيكَ، وَتَتَبَارَكُ فِيكَ جَمِيعُ أُمَمِ الأَرْضِ». 4فَارْتَحَلَ أَبْرَامُ كَمَا أَمَرَهُ الرَّبُّ، وَرَافَقَهُ لُوطٌ. وَكَانَ أَبْرَامُ فِي الْخَامِسَةِ وَالسَّبْعِينَ مِنْ عُمْرِهِ عِنْدَمَا غَادَرَ حَارَانَ. 5وَأَخَذَ أَبْرَامُ سَارَايَ زَوْجَتَهُ وَلُوطاً ابْنَ أَخِيهِ وَكُلَّ مَا جَمَعَاهُ مِنْ مُقْتَنَيَاتٍ وَكُلَّ مَا امْتَلَكَاهُ مِنْ نُفُوسٍ فِي حَارَانَ، وَانْطَلَقُوا جَمِيعاً إِلَى أَرْضِ كَنْعَانَ إِلَى أَنْ وَصَلُوهَا.

6فَشَرَعَ أَبْرَامُ يَتَنَقَّلُ فِي الأَرْضِ إِلَى أَنْ بَلَغَ مَوْضِعَ شَكِيمَ إِلَى سَهْلِ مُورَةَ. وَكَانَ الْكَنْعَانِيُّونَ آنَئِذٍ يَقْطُنُونَ تِلْكَ الأَرْضَ. 7وَظَهَرَ الرَّبُّ لأَبْرَامَ وَقَالَ لَهُ: «سَأُعْطِي هَذِهِ الأَرْضَ لِذُرِّيَّتِكَ». فَبَنَى أَبْرَامُ هُنَاكَ مَذْبَحاً لِلرَّبِّ الَّذِي ظَهَرَ لَهُ. 8وَانْتَقَلَ مِنْ هُنَاكَ إِلَى الْجَبَلِ شَرْقِيَّ بَيْتِ إِيلٍ حَيْثُ نَصَبَ خِيَامَهُ مَا بَيْنَ بَيْتِ إِيلٍ غَرْباً وَعَايَ شَرْقاً وَشَيَّدَ هُنَاكَ مَذْبَحاً لِلرَّبِّ وَدَعَا بِاسْمِهِ. 9ثُمَّ تَابَعَ أَبْرَامُ ارْتِحَالَهُ نَحْوَ الْجَنُوبِ.

أبرام في مصر

10وَعَمَّتْ تِلْكَ الْبِلادَ مَجَاعَةٌ، فَانْحَدَرَ أَبْرَامُ إِلَى مِصْرَ لِيَتَغَرَّبَ فِيهَا لأَنَّ الْمَجَاعَةَ كَانَتْ شَدِيدَةً فِي الأَرْضِ. 11وَمَا إِنِ اقْتَرَبَ مِنْ تُخُومِ مِصْرَ حَتَّى قَالَ لِزَوْجَتِهِ سَارَايَ: «أَنَا أَعْرِفُ أَنَّكِ امْرَأَةٌ جَمِيلَةٌ، 12فَمَا إِنْ يَرَاكِ الْمِصْرِيُّونَ حَتَّى يَقُولُوا: هَذِهِ هِيَ زَوْجَتُهُ فَيَقْتُلُونَنِي وَيَسْتَحْيُونَكِ. 13لِذَلِكَ قُولِي إِنَّكِ أُخْتِي، فَيُحْسِنُوا مُعَامَلَتِي مِنْ أَجْلِكِ وَتَنْجُوَ حَيَاتِي بِفَضْلِكِ».

14وَلَمَّا اقْتَرَبَ أَبْرَامُ مِنْ مِصْرَ اسْتَرْعَى جَمَالُ سَارَايَ أَنْظَارَ الْمِصْرِيِّينَ، 15وَشَاهَدَهَا أَيْضاً رُؤَسَاءُ فِرْعَوْنَ فَأَشَادُوا بِها أَمَامَهُ. فَأُخِذَتِ الْمَرْأَةُ إِلَى بَيْتِ فِرْعَوْنَ. 16فَأَحْسَنَ إِلَى أَبْرَامَ بِسَبَبِهَا وَأَجْزَلَ لَهُ الْعَطَاءَ مِنَ الْغَنَمِ وَالْبَقَرِ وَالْحَمِيرِ وَالْعَبِيدِ وَالإِمَاءِ وَالأُتُنِ وَالْجِمَالِ. 17وَلَكِنَّ الرَّبَّ ابْتَلَى فِرْعَوْنَ وَأَهْلَهُ بِبَلايَا عَظِيمَةٍ بِسَبَبِ سَارَايَ زَوْجَةِ أَبْرَامَ. 18فَاسْتَدْعَى فِرْعَوْنُ أَبْرَامَ وَسَأَلَهُ: «مَاذَا فَعَلْتَ بِي؟ لِمَاذَا لَمْ تُخْبِرْنِي أَنَّهَا زَوْجَتُكَ؟ 19وَلِمَاذَا ادَّعَيْتَ أَنَّهَا أُخْتُكَ حَتَّى أَخَذْتُهَا لِتَكُونَ زَوْجَةً لِي؟ وَالآنَ هَا هِيَ زَوْجَتُكَ، خُذْهَا وَامْضِ فِي طَرِيقِكَ». 20وَأَوْصَى فِرْعَوْنُ رِجَالَهُ بِأَبْرَامَ، فَشَيَّعُوهُ وَامْرَأَتَهُ وَكُلَّ مَا كَانَ يَمْلِكُ.

Hindi Contemporary Version

उत्पत्ति 12:1-20

अब्राम का आह्वान

1फिर याहवेह ने अब्राम से कहा, “अपने पिता के घर तथा अपने रिश्तेदारों को छोड़कर उस देश को चला जा, जो मैं तुम्हें दिखाऊंगा.

2“मैं तुमसे एक बड़ी जाति बनाऊंगा,

मैं तुम्हें आशीष दूंगा;

मैं तुम्हारा नाम बड़ा करूंगा,

और तुम एक आशीष होंगे.

3जो तुम्हें आशीष देंगे,

मैं उन्हें आशीष दूंगा तथा जो तुम्हें शाप देगा;

मैं उन्हें शाप दूंगा.

तुमसे ही पृथ्वी के सब लोग आशीषित होंगे.”

4इसलिये याहवेह के आदेश के अनुसार अब्राम चल पड़े; लोत भी उनके साथ गये. जब अब्राम हारान से निकले, तब वे 75 वर्ष के थे. 5अब्राम अपने साथ उनकी पत्नी सारय, उनका भतीजा लोत, उनकी पूरी संपत्ति तथा हारान देश में प्राप्‍त दास और दासियों को लेकर कनान देश पहुंचे.

6वहां से अब्राम शेकेम में मोरेह के बांज वृक्ष तक पहुंच गए. उस समय उस देश में कनानी लोग रहते थे. 7याहवेह ने अब्राम को दर्शन दिया और कहा, “तुम्हारे वंश को मैं यह देश दूंगा.” तब अब्राम ने उस स्थान पर याहवेह के सम्मान में, जो उन पर प्रकट हुए थे, एक वेदी बनाई.

8फिर अब्राम वहां से बेथेल के पूर्व में पर्वत की ओर बढ़ गए, वहीं उन्होंने तंबू खड़े किए. उनके पश्चिम में बेथेल तथा पूर्व में अय नगर थे. अब्राम ने वहां याहवेह के सम्मान में वेदी बनाई और आराधना की.

9वहां से अब्राम नेगेव की ओर बढ़े.

अब्राम का मिस्र प्रवास

10उस देश में अकाल पड़ा, तब अब्राम कुछ समय के लिये मिस्र देश में रहने के लिये चले गए, क्योंकि उनके देश में भयंकर अकाल पड़ा था. 11जब वे मिस्र देश के पास पहुंचे, तब अब्राम ने अपनी पत्नी सारय से कहा, “सुनो, मुझे मालूम है कि तुम एक सुंदर स्त्री हो. 12जब मिस्र के लोगों को यह पता चलेगा कि तुम मेरी पत्नी हो, तो वे मुझे मार डालेंगे और तुम्हें जीवित छोड़ देंगे. 13इसलिये तुम यह कहना कि तुम मेरी बहन हो, ताकि तुम्हारे कारण मेरी भलाई हो और वे मुझे नहीं मारें.”

14जब अब्राम मिस्र देश पहुंचे, तब मिस्रियों ने सारय को देखा कि वह बहुत सुंदर है. 15और फ़रोह के अधिकारियों ने भी सारय को देखा, तो उन्होंने फ़रोह को उसकी सुंदरता के बारे में बताया और सारय को फ़रोह के महल में लाया गया. 16फ़रोह ने सारय के कारण अब्राम के साथ अच्छा व्यवहार किया. उसने उसे भेड़ें, बैल, गधे-गधियां, ऊंट तथा दास-दासियां दिए.

17पर याहवेह ने अब्राम की पत्नी सारय के कारण फ़रोह तथा उसके घर पर बड़ी-बड़ी विपत्तियां डाली. 18इसलिये फ़रोह ने अब्राम को बुलवाया और उनसे कहा, “तुमने मेरे साथ यह क्या किया? तुमने मुझसे यह बात क्यों छिपाई कि यह तुम्हारी पत्नी है? 19तुमने यह क्यों कहा, ‘यह मेरी बहन है’? इस कारण मैंने उसे अपनी पत्नी बनाने के उद्देश्य से अपने महल में रखा! इसलिये अब तुम उसे अपने साथ लेकर यहां से चले जाओ!” 20तब फ़रोह ने अपने अधिकारियों को अब्राम के बारे में आदेश दिया और उन्होंने अब्राम को उनकी पत्नी और उनकी सब संपत्ति के साथ विदा किया.