أخبار الأيام الثاني 2 – NAV & HCV

Ketab El Hayat

أخبار الأيام الثاني 2:1-18

الإعداد لبناء الهيكل

1وَأَصْدَرَ سُلَيْمَانُ أَمْرَهُ بِبِنَاءِ هَيْكَلٍ لاِسْمِ الرَّبِّ وَقَصْرٍ لِلْمَلِكِ. 2وَاسْتَخْدَمَ فِي ذَلِكَ سَبْعِينَ أَلْفَ حَمَّالٍ، وَثَمَانِينَ أَلْفَ نَحَّاتٍ فِي الْجَبَلِ، يُشْرِفُ عَلَيْهِمْ ثَلاثَةُ آلافٍ وَسِتُّ مِئَةِ وَكِيلٍ.

3وَوَجَّهَ سُلَيْمَانُ رِسَالَةً إِلَى حُورَامَ مَلِكِ صُورٍ قَائِلاً: «كَمَا سَبَقَ أَنْ تَعَامَلْتَ مَعَ أَبِي، فَأَرْسَلْتَ لَهُ خَشَبَ أَرْزٍ لِيَبْنِيَ لَهُ قَصْراً يُقِيمُ فِيهِ، 4فَهَا أَنَا قَدْ عَقَدْتُ الْعَزْمَ عَلَى تَشْيِيدِ هَيْكَلٍ لاِسْمِ الرَّبِّ إِلَهِي لأُخَصِّصَهُ لَهُ، لأُوْقِدَ أَمَامَهُ بَخُوراً عَطِراً وَأُقَرِّبَ خُبْزَ التَّقْدِمَةِ الدَّائِمَ وَلأُصْعِدَ الْمُحْرَقَاتِ صَبَاحاً وَمَسَاءً، وَفِي السُّبُوتِ وَمَطَالِعِ الشُّهُورِ وَمَوَاسِمِ أَعْيَادِ إِلَهِنَا، كَمَا أَمَرَ الرَّبُّ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَنْ يَفْعَلُوا إِلَى الأَبَدِ. 5وَالْهَيْكَلُ الَّذِي أَنَا مُزْمِعٌ بِنَاءَهُ هُوَ هَيْكَلٌ عَظِيمٌ، لأَنَّ إِلَهَنَا أَعْظَمُ مِنْ جَمِيعِ الآلِهَةِ. 6وَمَنْ يَسْتَطِيعُ حَقّاً أَنْ يَبْنِيَ لَهُ هَيْكَلاً لأَنَّ السَّمَاوَاتِ وَسَمَاءَ السَّمَاوَاتِ لَا تَسَعُهُ! وَمَنْ أَنَا حَتَّى أَبْنِيَ لَهُ هَيْكَلاً إِلّا لِيَكُونَ لَهُ هَيْكَلاً لإِيقَادِ الْبَخُورِ فِي حَضْرَتِهِ! 7فَالآنَ أَرْسِلْ لِي رَجُلاً حَاذِقاً فِي فُنُونِ صِنَاعَةِ الذَّهَبِ وَالْفِضَّةِ وَالنُّحَاسِ وَالْحَدِيدِ، وَفِي صِنَاعَةِ الْقُمَاشِ الأَزْرَقِ وَالْبَنَفْسَجِيِّ وَالأَحْمَرِ، وَمَاهِراً فِي حِرْفَةِ النَّقْشِ، لِيَعْمَلَ مَعَ الصُّنَّاعِ الْمَهَرَةِ الْمُتَوَافِرِينَ لَدَيَّ فِي يَهُوذَا وَفِي أُورُشَلِيمَ مِمَّنِ اخْتَارَهُمْ أَبِي دَاوُدُ. 8وَزَوِّدْنِي بِخَشَبِ أَرْزٍ وَسَرْوٍ وَصَنْدَلٍ مِنْ لُبْنَانَ، لأَنَّنِي أَعْرِفُ أَنَّ رِجَالَكَ مَاهِرُونَ فِي قَطْعِ خَشَبِ لُبْنَانَ، فَيَتَعَاوَنَ رِجَالِي مَعَ رِجَالِكَ. 9وَلْيُجَهِّزُوا لِي خَشَباً وَفِيراً، لأَنَّ الْهَيْكَلَ الَّذِي عَزَمْتُ عَلَى بِنَائِهِ هُوَ هَيْكَلٌ عَظِيمٌ وَمُدْهِشٌ، 10وَأَنَا أَدْفَعُ أُجْرَةَ قَاطِعِي الْخَشَبِ: عِشْرِينَ أَلْفَ كُرٍّ مِنَ الْقَمْحِ وَعِشْرِينَ أَلْفَ كِيسٍ مِنَ الشَّعِيرِ، وَعِشْرِينَ أَلْفَ بَثِّ خَمْرٍ، وَعِشْرِينَ أَلْفَ بَرْمِيلِ زَيْتٍ».

11فَأَجَابَهُ حُورَامُ مَلِكُ صُورَ فِي رِسَالَةٍ قَائِلاً: «لأَنَّ الرَّبَّ أَحَبَّ حَقّاً شَعْبَهُ وَلّاكَ عَلَيْهِمْ مَلِكاً. 12فَتَبَارَكَ الرَّبُّ إِلَهُ إِسْرَائِيلَ صَانِعُ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ الَّذِي رَزَقَ دَاوُدَ الْمَلِكَ ابْناً حَكِيماً مُتَمَيِّزاً بِالْمَعْرِفَةِ وَالْفَهْمِ لِيَبْنِيَ هَيْكَلاً لِلرَّبِّ وَقَصْراً لِنَفْسِهِ. 13وَهَا أَنَا أُرْسِلُ الآنَ رَجُلاً حَاذِقاً خَبِيراً هُوَ حُورَامُ أَبِي، 14ابْنُ امْرَأَةٍ مِنْ سِبْطِ دَانٍ، مُتَزَوِّجَةٍ مِنْ رَجُلٍ صُورِيٍّ، بَارِعٌ فِي صِنَاعَةِ الذَّهَبِ وَالْفِضَّةِ وَالنُّحَاسِ وَالْحَدِيدِ وَالْحِجَارَةِ وَالْخَشَبِ وَالْقُمَاشِ الأَزْرَقِ وَالْبَنَفْسَجِيِّ وَالْكَتَّانِ وَالأَحْمَرِ وَسَائِرِ فُنُونِ النَّقْشِ، وَتَنْفِيذِ مَا يُعْهَدُ بِهِ إِلَيْهِ مِنْ رُسُومَاتٍ، فَيَعْمَلُ حُورَامُ هَذَا جَنْباً إِلَى جَنْبٍ مَعَ صُنَّاعِكَ وَصُنَّاعِ سَيِّدِي دَاوُدَ أَبِيكَ. 15أَمَّا الْقَمْحُ وَالشَّعِيرُ وَالزَّيْتُ وَالْخَمْرُ الَّتِي ذَكَرَهَا سَيِّدِي، فَلْيَبْعَثْ بِها مَعَ رِجَالِهِ. 16وَنَحْنُ نَقُومُ بِقَطْعِ الْخَشَبِ مِنْ لُبْنَانَ، عَلَى مِقْدَارِ حَاجَتِكَ، وَنَنْقُلُهُ إِلَيْكَ حُزَماً عَائِمَةً عَلَى الْبَحْرِ إِلَى مِينَاءِ يَافَا. وَمِنْ هُنَاكَ يَتِمُّ حَمْلُهُ إِلَى أُورُشَلِيمَ».

17وَأَحْصَى سُلَيْمَانُ جَمِيعَ الْغُرَبَاءِ الْمُقِيمِينَ فِي أَرْضِ إِسْرَائِيلَ بَعْدَ أَنْ كَانَ أَبُوهُ قَدْ سَبَقَ فَأَحْصَاهُمْ، فَوَجَدَهُمْ مِئَةً وَثَلاثَةً وَخَمْسِينَ أَلْفاً وِستَّ مِئَةٍ، 18مِنْهُمْ سَبْعُونَ أَلْفَ حَمَّالٍ، وَثَمَانُونَ أَلْفَ نَحَّاتٍ لِقَطْعِ حِجَارَةِ الْجَبَلِ، وَثَلاثَةُ آلافٍ وَسِتُّ مِئَةٍ أَقَامَهُمْ وُكَلاءَ لِلإِشْرَافِ عَلَى الْعَمَلِ.

Hindi Contemporary Version

2 इतिहास 2:1-18

मंदिर निर्माण की तैयारी

1अब शलोमोन ने याहवेह की महिमा में मंदिर और अपने लिए राजमहल बनाने का निश्चय किया. 2इसके लिए शलोमोन ने सत्तर हज़ार व्यक्ति बोझ उठाने के लिए और अस्सी हज़ार पर्वतों से पत्थर काटने के लिए चुने. इन सबके लिए छत्तीस सौ मुखिया चुने गए थे.

3फिर शलोमोन ने सोर के राजा हीराम को यह संदेश भेजा:

“जब मेरे पिता दावीद अपने लिए भवन बनवा रहे थे, आपने उनके लिए देवदार के लट्ठे भेजे थे, आपका ऐसा ही व्यवहार मेरे साथ भी हो. 4देखिए, याहवेह, अपने परमेश्वर के लिए मैं एक भवन बनवाने पर हूं. यह उन्हें ही समर्पित होगा, कि इसमें उनके सामने सुगंधित धूप जलाई जाए, नियमित रूप से भेंट की रोटी रखी जाए और शब्बाथों2:4 शब्बाथ सातवां दिन जो विश्राम का पवित्र दिन है, नए चांद के उत्सवों और याहवेह हमारे परमेश्वर के लिए उत्सवों पर सुबह और शाम को होमबलि चढ़ाई जाए. इस्राएल देश की ये हमेशा के लिए रीतियां हैं.

5“जिस भवन को मैं बनवाने पर हूं वह बहुत ही भव्य होगा, क्योंकि हमारे परमेश्वर सभी देवताओं से महान हैं. 6ऐसा कौन है, जो उनके लिए भवन बनवा सके, क्योंकि वह आकाश और ऊंचे स्वर्ग में भी नहीं समाते हैं? सो मैं कौन हूं, कि उनके सामने धूप जलाने के अलावा किसी और काम के लिए मैं उनका भवन बनवाऊं?

7“अब आप कृपा कर मेरे लिए एक ऐसा व्यक्ति भेज दें, जो सोने, चांदी, कांसे और लोहे का सामान बनाने में और साथ ही जो बैंगनी लाल और नीले वस्त्रों पर कसीदा काढ़ने में निपुण हो, और जो नक्काशी के काम में भी निपुण हो, जो मेरे निपुण शिल्पियों के साथ काम कर सके, जो यहां यहूदिया और येरूशलेम में हैं, जिन्हें मेरे पिता दावीद ने चुना है.

8“कृपया मेरे लिए लबानोन से देवदार, सनोवर और चन्दन के लट्ठे भी भेजने का इंतजाम करें. क्योंकि मुझे मालूम है कि आपके सेवक लबानोन की लकड़ी काटने में निपुण हैं. मैं यह विश्वास दिलाना चाहता हूं कि इसके लिए मेरे सेवक आपके सेवकों के साथ मिलकर काम करेंगे, 9जिससे कि मेरे लिए भारी मात्रा में लकड़ी तैयार हो जाए, उस भवन के लिए, जिसको मैं बनवाने पर हूं, जो भव्य और अद्भुत होगा. 10अब यह याद रखिए: मैं आपके सेवकों के लिए, जो लकड़ी को काटेंगे, मैं उनके लिए 3,200 मेट्रिक टन गेहूं, 2,700 मेट्रिक टन जौ, 4,40,000 लीटर अंगूर का रस और 4,40,000 लीटर तेल दूंगा.”

11सोर के राजा हीराम ने शलोमोन को एक पत्र के द्वारा उत्तर दिया,

“याहवेह ने तुम्हें अपनी प्रजा पर राजा इसलिये बनाया है कि उन्हें अपनी प्रजा से प्रेम है.”

12हीराम ने आगे यह भी कहा:

“याहवेह, इस्राएल के परमेश्वर महान हैं, उन्होंने स्वर्ग और पृथ्वी को बनाया है! उन्हीं ने राजा दावीद को एक बुद्धिमान पुत्र दिया है, उन्होंने उसे विवेक और समझ से भर दिया है. वही है जो याहवेह के लिए भवन और अपने लिए एक राजमहल को बनवाएगा.

13“अब मैं हुराम-आबी नामक एक निपुण व्यक्ति को भेज रहा हूं, 14वह दान की वंशज स्त्री और सोर देश के व्यक्ति का पुत्र है. उसे सोना, चांदी, कांसे, लोहे, पत्थरों, लकड़ी और नीले, लाल और बैंगनी वस्त्रों के काम का उत्तम अनुभव है. वह नक्काशी का काम भी जानता है. वह किसी भी नक्शे को देखकर काम करने में माहिर है. इसलिये वह आपके कुशल शिल्पियों के साथ अच्छे से काम कर सकेगा और इसके अलावा उनके साथ भी, जो मेरे स्वामी, आपके पिता दावीद के साथ काम कर चुके हैं.

15“इसलिये अब मेरे स्वामी, अपने ही कहने के अनुसार अपने सेवकों के लिए गेहूं, जौ तेल और अंगूरों का रस भेज दीजिए. 16हम लबानोन से आप जैसी चाहें वैसी लकड़ी आपके लिए काट देंगे और हम इन्हें लट्ठों के बेड़े पर समुद्र के रास्ते से योप्पा को भेज देंगे, कि आप वहां से इन्हें येरूशलेम ले जा सकें.”

17शलोमोन ने इस्राएल राष्ट्र में बसे सभी विदेशियों की गिनती की, जैसी गिनती उनके पिता दावीद ने की थी. तब राज्य में 1,53,600 विदेशी पाए गए. 18शलोमोन ने उनमें से सत्तर हज़ार को बोझा ढोने और अस्सी हज़ार को पहाड़ों से पत्थर काटने और छत्तीस सौ को सारे कामों पर मुखिया बना दिया, कि काम बिना रुके चलता रहे.